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    Home»Jharkhand Top News»भाजपा नेताओं को आत्ममंथन की जरूरत
    Jharkhand Top News

    भाजपा नेताओं को आत्ममंथन की जरूरत

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 14, 2020Updated:November 14, 2020No Comments6 Mins Read
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    मेहनत जब जीतने के लिए की जाये और नतीजा हार के रूप में सामने आये, तो आत्ममंथन जरूरी होता है। झारखंड विधानसभा की दो सीटों दुमका और बेरमो में हुए उपचुनाव के बाद झारखंड भाजपा को आत्ममंथन की जरूरत है। जरूरत बिहार भाजपा के नेताओं को भी है कि आखिर बिहार विधानसभा चुनाव में जो नतीजे अपेक्षित थे, वे क्यों नहीं आये। बिहार भाजपा के नेताओं के लिए राहत ये है कि वहां एनडीए की जीत हुई है, लेकिन झारखंड में दोनों सीटों पर हार के बाद झारखंड भाजपा के नेताओं को और गंभीरता से आत्ममंथन की जरूरत है। हालांकि, झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने अपने बयान में कहा कि दुमका और बेरमो में भाजपा जीतते-जीतते हारी और महागठबंधन हारते-हारते जीत गया। यह भी कहा कि उपचुनाव में पार्टी का वोट शेयर बढ़ा। पर प्रदेश भाजपा का यह बयान ‘दिल को बहलाने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है’ की तरह ही है, क्योंकि कहा तो यही जाता है कि जो जीता वही सिकंदर। और उपचुनाव में दो सीटों पर जीत के बाद सिकंदर की भूमिका में महागठबंधन के नेता हेमंत सोरेन ही हैं। झारखंड की दो सीटों पर उपचुनाव तथा बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा के नेताओं को आत्ममंथन की जरूरत को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    12 अक्टूबर को जब आजसू के हरमू स्थित कार्यालय में भाजपा और आजसू की संयुक्त प्रेसवार्ता हो रही थी, उत्साह से भरे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि उपचुनाव में दोनों दल न केवल एनडीए प्रत्याशी के समर्थन में मजबूती से चुनाव प्रचार करेंगे, बल्कि संयुक्त संचालन समिति भी बनेगी। उप चुनाव परिवारवाद बनाम लोकतंत्र के अलावा वर्तमान सरकार की नाकामियों पर लड़ा जायेगा। हेमंत सरकार को उखाड़ फेंकने की यहीं से शुरुआत होगी। पर जब 10 नवंबर को झारखंड की दो सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आये, तो रिजल्ट भाजपा के पक्ष में नहीं था। झारखंड की दो सीटों दुमका और बेरमो में पार्टी पराजित हो गयी। दुमका में बसंत सोरेन ने लुइस मरांडी को पराजित किया, तो बेरमो में अनुप सिंह ने योगेश्वर महतो बाटुल को हराया। इसी के साथ भाजपा का इन दोनों सीटों को महागठबंधन के हाथ से छीनने का सपना भी टूट गया।
    भाजपा की चुनाव प्रचार की रणनीति में बदलाव जरूरी
    झारखंड विधानसभा उपचुनाव के लिए भाजपा ने पूर्व के विधानसभा चुनाव की तरह ही व्यक्तिगत आरोप और आक्रामक चुनाव प्रचार की रणनीति अपनायी। जबकि यह तरीका बीते विधानसभा चुनाव में ही फेल हो चुका था। भाजपा दुमका हो या बेरमो वोटरों को यह समझाने में विफल रही कि पार्टी दोनों सीटों पर विकास की क्या और कैसी लकीर खींचेगी। भाजपा उम्मीदवारों के जीतने से क्षेत्र की तकदीर कैसे बदलेगी। पार्टी के प्रत्याशी जीतने के बाद ऐसा क्या करेंगे, जो होना चाहिए था और अब तक नहीं हुआ। चुनाव में यह बताने की जगह भाजपा ने चुनाव लड़ने का एजेंडा सरकार को उखाड़ फेंकने, उस पर भ्रष्टाचार का आरोप मढ़ने और परिवारवाद बनाम लोकतंत्र रखा। आजसू के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी ने बेरमो मेें बाहरी-भीतरी का नारा दिया। ऐसा नारा देते समय उन्हें यह याद नहीं रहा कि बेरमो के मतदाताओं का मिजाज कैसा है। कोयलांचल में जब भी आप बाहरी भीतरी कह कर हमला करेंगे, तो यह भाजपा के उलट ही जायेगा। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी तथा अन्य नेताओं ने दुमका में पार्टी प्रत्याशी की जीत तय करने के लिए कोशिश तो पूरी की, लेकिन कोई ऐसा मुद्दा जनताप के सामने नहीं रख पाये, जिससे जनता प्रभावित होती।
    दीपक प्रकाश ने टीम तो बनायी पर कई प्लेयर प्रभावी नहीं थे
    झारखंड विधानसभा उपचुनाव के लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने जो टीम बनायी थी, उसमें आजसू को छोड़ दिया जाये तो लोजपा, जदयू और झामुमो उलगुलान मतदाताओं पर कोई विशेष प्रभाव डालने में विफल रहे। इसका भी परिणाम चुनाव के नतीजों के रूप में सामने आया। चुनाव में पार्टी के बड़े केंद्रीय नेताओं की सभाएं न होना भी एनडीए के लिए अच्छा नहीं रहा। प्रदेश भाजपा के नेताओं ने अपनी पूरी ताकत तो झोंकी, लेकिन नकारात्मक राजनीति ने उनके किये कराये पर पानी फेर दिया। संथाल परगना के लोगों में गुरुजी शिबू सोरेन की लोकप्रियता सिर चढ़ कर बोलती है। इस परिवार को वहां की जनता ने हमेशा सिर आंखों पर बैठाया है। ऐसे में वहां परिवारवाद की बात करना समझ से परे है। अगर परिवार का कोई और सदस्य समाज सेवा करना चाहता है, राजनीति के माध्यम से देश की सेवा करना चाहता है, इसमें खराबी कहां है। जब आइएएस के परिवार में आइएएस, आइपीएस के परिवार में आइपीएस, डॉक्टर के परिवार में डॉक्टर बनने पर गर्व महसूस होता है, तो राजनीति के क्षेत्र में किसी भी परिवार से योग्य आदमी के राजनीति में आने से वह गलत कैसे हो जायेगा। और जनता ने दुमका से बसंत सोरेन को जीता कर यही संदेश दिया है कि अगर कोई व्यक्ति जनता की सेवा करना चाहता है, तो गलत कहां है। बेरमो में कांग्रेस प्रत्याशी अनुप सिंह के पक्ष में सहानुभूति की लहर और दुमका में दिशोम गुरु शिबू सोरेन की उपस्थिति तथा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की रणनीति ने भी एनडीए की हार तय करने में मुख्य भूमिका निभायी।
    ग्रामीण इलाकों में असरदार होने की जरूरत
    अब बात बिहार विधानसभा में भाजपा के प्रदर्शन की करते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा 110 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। चुनाव में वह 74 सीटें जीतने में सफल रही। इन सीटों में अधिकांश ऐसी हैं, जो शहरी या अर्द्धशहरी हैं। इससे साफ है कि भाजपा को शहरी क्षेत्र की अपनी परंपरागत सीटों पर कब्जा जमाने में सफलता मिली है। दूसरी ओर राजद ने उन सीटों पर कब्जा जमाया, जो ग्रामीण इलाकों की हैं। ऐसे में जाहिर है कि भाजपा को अपना जनाधार ग्रामीणों क्षेत्रों में बढ़ाने की जरूरत है। बिहार में किसी दल को सरकार बनाने के लिए 122 सीटें चाहिए। हालांकि एनडीए ने चुनाव में 125 सीटों पर जीत हासिल की है, पर अकेली भाजपा चुनाव में इतनी सीटें नहीं ला सकी है कि बिहार का किंग बन सके। भाजपा को जो सीटेें बिहार में मिली हैं, उनमें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह, जेपी नड्डा जैसे नेताओं की लोकप्रियता बड़ी वजह है। बिहार चुनाव में राजद 75 सीटों के साथ अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफल रही, वहीं भाजपा 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। कहने को भाजपा और राजद की सीटों में अंतर सिर्फ एक ही सीट का है, लेकिन यह भी गौर करने लायक है कि राजद ने इस बार चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा था और उसके मुकाबले में भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार भाजपा के दिग्गज चेहरे थे। तो बिहार में भाजपा नेताओं की पहली कोशिश तो यह होनी चाहिए कि वे पार्टी को अकेली सबसे बड़ी पार्टी की भूमिका में ले आयें। ग्रामीण इलाकों में भाजपा का जनाधार कैसे बढ़े, इसकी तैयारी करें और इसकी भी कोशिश करने की जरूरत है कि वह दिन कब आयेगा, जब पार्टी अपने दम पर बिहार में 122 से अधिक सीटें लाने में सफल रहेगी।

    BJP leaders need introspection
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