झारखंड में बोर्ड-निगम के अध्यक्ष का पद हमेशा से चर्चा के केंद्र में रहा है, क्योंकि इन पदों पर सांसद-विधायक का टिकट पाने से चूक गये सत्ताधारी दल के वरीय नेताओं और मंत्री नहीं बन सके विधायकों को एडजस्ट किये जाने की परंपरा रही है। छोटा राज्य होने के कारण झारखंड की विधानसभा भी छोटी है, इसीलिए यहां विधान परिषद भी नहीं है। इस कारण यहां की कैबिनेट में मुख्यमंत्री समेत अधिकतम 12 मंत्री ही हो सकते हैं। इसलिए बाकी विधायकों और वरिष्ठ नेताओं को बोर्ड-निगम का अध्यक्ष पद देकर संतुष्ट किया जाता है, क्योंकि वहां का रुतबा और अधिकार भी कम नहीं होता है। झारखंड में कई ऐसे बोर्ड-निगम हैं, जिनके अध्यक्ष का पद खाली है और अब तक इन पर नियुक्ति की कोई सुगबुगाहट भी नहीं है। कुछ बोर्ड और निगम में ऐसे भी पद हैं, जिन पर पिछली सरकार में भाजपा ने पार्टी की विचारधारा से मेल खानेवाले लोगों को बैठाया था। वे आज भी उस पद को सुशोभित कर रहे हैं। ऐसे में सत्तारूढ़ गठबंधन के घटक दलों के विधायकों और वरिष्ठ नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं में बेचैनी बढ़ रही है। इन बोर्ड-निगमों पर पहला और स्वाभाविक दावा विधायकों का बनता है। इसलिए उनके बीच अब इस मुद्दे पर फुसफुसाहट भी होने लगी है। वैसे भी सरकार को पदभार संभाले 11 महीने बीत गये हैं और कोरोना का संकट काल भी कमोबेश अब सामान्य स्थिति में बदल चुका है। इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर राज्य सरकार इन पदों को कब भरेगी। इसके अतिरिक्त अध्यक्ष का पद खाली रहने से इन बोर्ड-निगमों का सामान्य कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। ऐसे में राज्य सरकार को इस दिशा में अब ठोस कदम बढ़ाने की जरूरत है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जनवरी महीने में ही इस बाबत प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया था, लेकिन कोरोना संकट के कारण वह थम गया। अब नये सिरे से इस पर काम शुरू हो सकता है। झारखंड में खाली पड़े बोर्ड-निगमों के अध्यक्ष पदों पर नियुक्ति के सवाल का जवाब तलाशती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
रुतबा, पावर और दबदबा हर किसी को अच्छा लगता है। लाल-पीली बत्ती लगी गाड़ी, सायरन बजाती पायलट गाड़ियां, हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहने का सपना हर नेता और कार्यकर्ता का होता है। सभी को सांसद या विधायक बनने का मौका नहीं मिल पाता है, तो फिर वे राज्य के बोर्ड-निगम का अध्यक्ष पद लेकर अपनी इन हसरतों को पूरा करना चाहते हैं। झारखंड में तो यह परंपरा भी है। इसलिए अब राज्य में इन नियुक्तियों के लिए फुसफुसाहट तेज हो गयी है।
पिछले 20 साल के दौरान झारखंड में सत्ताधारी गठबंधन के जिन विधायकों को कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी, उन्हें करीब डेढ़ दर्जन बोर्ड और निगमों के अध्यक्ष पद पर नियुक्त करने की परिपाटी रही है। चूंकि झारखंड में विधानसभा सीटों की संख्या केवल 81 है, इसलिए यहां की कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या अधिकतम 12 ही हो सकती है। इसलिए सत्ता पक्ष के बाकी विधायकों को बोर्ड-निगमों का अध्यक्ष बनाया जाता है। इसके अलावा पार्टी के उन समर्पित और वरीय नेताओं-कार्यकर्ताओं को भी बोर्ड-निगम में एडजस्ट किया जाता है, जिन्हें चुनाव में टिकट नहीं मिल पाता है। यह परिपाटी गलत भी नहीं है, क्योंकि पार्टी के लिए पूरा जीवन समर्पित करनेवाला कार्यकर्ता भी चाहता है कि उसे मान्यता मिले और सत्ता सुख का उपभोग वह भी कर सके।
वर्तमान स्थिति की बात करें, तो झारखंड में अधिकांश बोर्ड-निगमों के अध्यक्ष का पद खाली है। हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद जनवरी में इन पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया था। राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव डॉ डीके तिवारी ने 29 जनवरी को सभी विभागों के प्रमुखों को एक पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने सरकार के सभी बोर्ड, निगम, निबंधित संस्था और स्वतंत्र निकाय के सभी पदधारकों और सदस्यों की नियुक्ति या मनोनयन की प्रक्रिया और योग्यता के संबंध में जानकारी देने को कहा था। साथ ही यह जानकारी भी मांगी थी कि वर्तमान में किस पद पर कौन सरकारी या गैर सरकारी व्यक्ति कार्यरत हैं और उनका कार्यकाल कब समाप्त हो रहा है। लेकिन यह प्रक्रिया बीच में ही कहीं थम गयी। इसका कारण कोरोना का संकट काल और लॉकडाउन को बताया गया। इस बात में कोई संदेह नहीं कि सात महीने के लॉकडाउन के कारण सरकार के बहुत से कामों पर विराम लग गया, क्योंकि तब पहली प्राथमिकता सामाजिक समरसता कायम रखने की थी। इस मोर्चे पर हेमंत सोरेन सरकार ने शानदार काम किया, लेकिन अब स्थिति लगभग सामान्य हो चुकी है। इसलिए बोर्ड-निगम के अध्यक्ष की नियुक्ति का पेंच सुलझाने का समय आ गया है।
अभी जिन बोर्ड-निगमों में अध्यक्ष पद खाली हैं, उनमें झारखंड राज्य निगरानी पर्षद, राज्य स्तरीय 20 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति, झारखंड राज्य विकास परिषद, झारखंड औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार, झारक्राफ्ट, झारखंड राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, तेनुघाट विद्युत निगम लिमिटेड, 15 सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति, झारखंड राज्य आवास बोर्ड, झालको, झारखंड कृषि विपणन परिषद, रांची क्षेत्रीय विकास प्राधिकार, झारखंड पर्यटन विकास निगम, झारखंड राज्य वन विकास निगम, झारखंड राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड, मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड, झारखंड माटी कला बोर्ड और समाज कल्याण बोर्ड शामिल हैं। इनके अलावा खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार, धनबाद, बोकारो औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार, आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार, जरेडा, राज्य हिंदू धार्मिक न्यास बोर्ड, झारखंड श्वेतांबर जैन न्यास बोर्ड, संताल परगना औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार, राज्य प्रावैद्यिक शिक्षा परिषद, झारखंड राज्य ग्रामीण पथ विकास प्राधिकरण, झारखंड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार बोर्ड और सैरात रेमिशन कमेटी जैसे निकायों में भी अध्यक्ष के रूप में नियुक्तियां होनी हैं। इनके अलावा विधायकों और वरीय नेताओं को झारखंड राज्य बाल श्रमिक आयोग, राज्य अल्पसंख्यक आयोग, झारखंड राज्य अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड अनुसूचित जनजाति आयोग, झारखंड राज्य गौ सेवा आयोग, राज्य महिला आयोग और युवा आयोग में भी एडस्ट किया जायेगा। इन दोनों के अतिरिक्त राज्य विधि आयोग, राज्य नि:शक्तता आयुक्त, झारखंड एकेडेमिक काउंसिल, झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद और झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण जैसे स्वतंत्र निकाय भी हैं, जिनके अध्यक्ष खास योग्यता वाले विधायकों या पार्टी नेताओं को बनाया जा सकता है।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव हारे नेता पार्टी के प्रति वफादारी का हवाला देकर बोर्ड-निगम का जुगाड़ सेट करने में लग गये हैं। बड़े नेताओं के चहेते भी इन कुर्सियों की जुगाड़ में दिन-रात एक किये हुए हैं। ऐसे में नियुक्ति नहीं होने से बेचैनी का बढ़ना स्वाभाविक है। और यह बेचैनी कांग्रेस के नेताओं में ज्यादा है। बोर्ड-निगम के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के बाद ही यह बेचैनी खत्म होगी।