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    Home»Jharkhand Top News»70 साल के मुद्दे को राष्टÑीय फलक पर ला दिया हेमंत ने
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    70 साल के मुद्दे को राष्टÑीय फलक पर ला दिया हेमंत ने

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 13, 2020No Comments5 Mins Read
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    झारखंड विधानसभा ने सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर आदिवासियों के हित में बड़ा कदम उठाया है। और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का इस मुद्दे पर एक बार फिर राजनीतिक कद ऊंचा हुआ है। उन्होंने इस मुद्दे पर न केवल लचीला रुख अपनाया और विपक्ष के संशोधन प्रस्ताव को मंजूर किया, बल्कि आदिवासियों के बीच अपना कद और ऊंचा कर ले गये। झारखंड के 20 साल के इतिहास में यह पहला प्रस्ताव है, जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। यह हेमंत सोरेन की राजनीतिक इच्छा शक्ति और सकारात्मक रवैये का ही परिणाम था कि सरना आदिवासी धर्म कोड जैसे संवेदनशील मुद्दे पर इतनी आसानी सर्वसम्मति हो गयी, जबकि पिछले 70 साल से यह मुद्दा घुमड़ रहा था। झारखंड विधानसभा द्वारा पारित यह प्रस्ताव अब सिफारिश के रूप में केंद्र सरकार को भेजा जायेगा। इसकी अंतिम परिणति क्या होती है, यह तो केंद्र पर निर्भर करता है, लेकिन आदिवासियों की पहचान स्थापित करने की दिशा में यह निश्चित रूप से ऐतिहासिक कदम साबित होगा। हेमंत सोरेन ने इस मुद्दे पर राजनीतिक बढ़त हासिल की है और लंबी अवधि में इसका लाभ उन्हें जरूर मिलेगा। सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पारित करने के राजनीतिक परिणाम पर नजर दौड़ाती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    11 नवंबर, 2020 का दिन झारखंड के लिए ऐतिहासिक बन गया। राज्य स्थापना के 20 साल पूरे होने से महज चार दिन पहले झारखंड विधानसभा ने सरना आदिवासी धर्म कोड बनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर एक इतिहास रच दिया। इसके साथ ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राजनीतिक रूप से बड़ा माइलेज भी ले लिया। अब विधानसभा से पारित यह प्रस्ताव सिफारिश के रूप में केंद्र सरकार के पास भेजा जायेगा। इसमें अगले साल होनेवाली जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड को शामिल करने की मांग होगी। प्रस्ताव पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार को लेना है।
    झारखंड विधानसभा का यह फैसला इसलिए ऐतिहासिक है, क्योंकि पिछले 20 साल में लगभग सभी सरकारों ने इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने की बात तो कही, लेकिन किसी ने इसकी जहमत नहीं उठायी। इस मुद्दे को महज वोट की राजनीति के लिए ही इस्तेमाल किया गया। लेकिन 11 महीने पहले सत्ता में आयी हेमंत सोरेन सरकार ने न केवल इस बारे में की गयी घोषणा को अमली जामा पहनाया, बल्कि सर्वसम्मति भी बना दी।
    जहां तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सवाल है, तो विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान एक बार फिर उनका लचीला रुख सामने आया। हेमंत ने सत्ता संभालने के बाद जिस तरह का लचीला रवैया अपनाया है, उसे सकारात्मक ही माना जा सकता है। चाहे लॉकडाउन शुरू होने से पहले सर्वदलीय बैठक बुला कर सभी का सुझाव लेना हो या लैंड म्यूटेशन बिल पर विरोध के कारण वापस लेने का सवाल हो, हेमंत ने हमेशा नये किस्म की राजनीतिक कार्यशैली का परिचय दिया है। विधानसभा के विशेष सत्र में भी जब भाजपा ने सरना/आदिवासी धर्म कोड पर आपत्ति उठायी और इसे सरना आदिवासी धर्म कोड करने का सुझाव दिया, तो हेमंत ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसके अनुरूप संकल्प में संशोधन की मंजूरी भी दे दी। इस मुद्दे को सुलझा कर हेमंत ने अपने लिए एक बड़ा समर्थक वर्ग तैयार कर लिया है, जो अब तक वादों के झूले में ही झूल रहा है। हेमंत सोरेन और झामुमो को अब सरना धर्मावलंबियों का समर्थन भी निश्चित तौर पर बड़े पैमाने पर मिलेगा, जो अब तक दूसरे दलों को मिलने की बात कही जा रही थी। इसके अलावा हेमंत सोरेन ने गेंद पूरी तरह से केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है। झारखंड सरकार की सिफारिश को लागू करने की जिम्मेवारी केंद्र सरकार की है और इस बारे में उसका फैसला झारखंड की राजनीति पर गंभीर असर डालेगा। लोकसभा चुनाव में 14 में से 12 सीटें भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को देनेवाले झारखंड के आदिवासियों की कई साल से लंबित आकांक्षा पूरी होती है या नहीं, यह देखनेवाली बात होगी। हेमंत ने अपना काम कर दिया है। अब बारी भाजपा की है। यदि वह इस सिफारिश को स्वीकार करती है, तो भी राजनीतिक रूप से इसका लाभ हेमंत सोरेन को ही मिलेगा और यदि इसे नामंजूर किया जाता है, तो भी हेमंत को एक मुद्दा मिल जायेगा।
    सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पारित होने के बाद अब इस धर्म को माननेवालों को मान्यता मिल गयी है और इससे स्वाभाविक रूप से उनमें खुशी का माहौल है। सरना बनाम इसाई का जो नया विवाद अब पैदा किया जा रहा है, वह मुद्दे को उलझाने और लोगों को भरमाने के लिए ही है। झारखंड विधानसभा से पारित होने के बाद अब साफ हो गया है कि सरना आदिवासी एक अलग धर्म है, भले ही उसका कोई धर्मग्रंथ या धार्मिक पद्धति नहीं है। यह भी मान लेने से कोई अंतर नहीं पड़ता है कि सरना आदिवासी कोई धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है।
    बहरहाल हेमंत सोरेन सरकार ने सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर झारखंड में लंबे समय से सुलग रहे मुद्दे को सुलझा कर बेहद सकारात्मक कदम उठाया है। राजनीतिक रूप से उनका यह फैसला कितना लाभकारी होगा, इसकी भविष्यवाणी अभी नहीं की जा सकती, लेकिन इतना जरूर है कि उनका यह फैसला झारखंड को सामाजिक समभाव के रास्ते पर तेजी से आगे ले जाने में सक्षम होगा। झारखंड के सरना आदिवासी धर्मावलंबियों के लिए इसे हेमंत सोरेन सरकार का दिवाली गिफ्ट माना जा सकता है। अब राज्य के कोने-कोने में चीरा झंडा लहराता दिखेगा और यह झारखंड को एक नयी सांस्कृतिक-सामुदायिक पहचान देगा, जिससे दुनिया भर में उसकी अलग पहचान स्थापित होगी। फिलहाल तो हेमंत सोरेन सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले का जश्न मनाने का समय है और उसके बाद इस फैसले का औचित्य साबित करने की चुनौती सामने होगी, जिससे पार पाना झारखंड के सरना आदिवासी धर्मावलंबियों के लिए बहुत मुश्किल नहीं होगा, क्योंकि वे चुनौतियों से जूझने की अपनी क्षमता कई बार प्रमाणित कर चुके हैं। सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कराने के लिए हेमंत सोरेन सरकार सचमुच बधाई की हकदार है और इसमें किसी को कंजूसी नहीं करनी चाहिए।

    Hemant brought the issue of 70 years on the national board
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