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    Home»Jharkhand Top News»दुमका-बेरमो में जीत से झामुमो-कांग्रेस को मिली मजबूती
    Jharkhand Top News

    दुमका-बेरमो में जीत से झामुमो-कांग्रेस को मिली मजबूती

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 11, 2020No Comments6 Mins Read
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    झारखंड की दो विधानसभा सीटों, दुमका और बेरमो में जीत हासिल कर झामुमो और कांग्रेस स्वाभाविक तौर पर बेहद संतुष्ट हैं। इस चुनाव परिणाम से हालांकि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार की सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ा है, लेकिन विधानसभा में सत्ता पक्ष की स्थिति मजबूत होना एक तरह का लाभ ही है। इन दोनों सीटों पर हुए उप चुनाव को जीत कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी पहली वार्षिक परीक्षा अव्वल नंबरों से पास कर ली है। दूसरी तरफ भाजपा के लिए दिसंबर में हुई पराजय के बाद वापसी की कोशिश को करारा झटका लगा है। पहले ही कहा जा रहा था दुमका-बेरमो जहां हेमंत सोरेन सरकार की परीक्षा है, वहीं भाजपा की स्वीकार्यता का टेस्ट भी है। इसलिए इस चुनाव परिणाम का साफ संदेश है कि झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार अच्छा काम कर रही है और भाजपा को अभी मेहनत करने की जरूरत है। इसके साथ ही इन दोनों सीटों से चुने गये युवा विधायकों को जनता ने संदेश दिया है कि राजनीति को अवसर की बजाय जनसेवा का माध्यम बनायें। दुमका और बेरमो उप चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    झारखंड की दो विधानसभा सीटों, दुमका और बेरमो से झामुमो और कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार की मजबूती में एक और परत चढ़ा दी है। इन दोनों सीटों के परिणामों ने झारखंड की राजनीति में नया अध्याय तो जोड़ा ही है, साथ ही कई संदेश भी दिये हैं। तीन नवंबर को जब इन दोनों सीटों पर मतदान हुआ था, उसी समय से कहा जाने लगा था कि परिणाम दिसंबर में हुए चुनाव के अनुरूप ही होंगे और हुआ भी वैसा ही। फर्क केवल इतना रहा कि इस बार जीत का अंतर थोड़ा कम हो गया। पिछली बार दुमका से हेमंत सोरेन ने भाजपा की लुइस मरांडी को 13 हजार से अधिक मतों के अंतर से हराया था, जबकि इस बार झामुमो के बसंत सोरेन की जीत का अंतर कम होकर करीब साढ़े छह हजार रह गया। उधर बेरमो में दिसंबर में हुए चुनाव में कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल को 25 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था, जबकि इस बार कुमार जयमंगल उर्फ अनुप सिंह ने बाटुल को करीब 14 हजार मतों से हराया।
    दोनों सीटों पर जीत का अंतर कम होने का कारण यह रहा कि भाजपा को दोनों ही सीटों पर दिसंबर के मुकाबले इस बार अपने सहयोगियों का वोट भी मिला। दिसंबर में दुमका में बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो और जदयू ने अलग चुनाव लड़ा था। झाविमो प्रत्याशी अंजुला मुर्मू ने तीन हजार से अधिक और जदयू के मार्शल टुडू ने 24 सौ से अधिक वोट हासिल किये थे। चुनाव के बाद फरवरी में बाबूलाल मरांडी की पार्टी का भाजपा में विलय हो गया और इस बार वे सारे वोट भाजपा को ट्रांसफर हो गये। जदयू ने भी इस बार भाजपा को समर्थन दिया था। उधर बेरमो में पिछली बार आजसू ने अलग चुनाव लड़ा था और उसके प्रत्याशी काशीनाथ सिंह को 16 हजार से अधिक वोट मिले थे। इस बार भाजपा को आजसू का समर्थन हासिल था और उसके वोट भाजपा को मिल गये। यानी इस चुनाव परिणाम का एक मतलब यह निकलता है कि भाजपा में झाविमो के विलय को लोगों ने कुछ हद तक स्वीकार किया है और आजसू के साथ उसके रिश्ते मजबूत हुए हैं।
    जहां तक झामुमो और कांग्रेस का सवाल है, तो दोनों दलों ने ये सीटें बरकरार रखने में कामयाबी हासिल की है। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान जिस तरह हेमंत सोरेन सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही थी, उसे इस चुनाव परिणाम ने विफल कर दिया है। इसके अलावा इस चुनाव परिणाम से यह भी साफ हो गया है कि हेमंत सोरेन सरकार लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतर रही है। कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान हेमंत सरकार ने जो काम किया और प्रवासियों के लिए उसने जो प्रयास किये, दुमका और बेरमो की जनता ने उस पर मुहर लगायी है।
    इस चुनाव परिणाम ने झारखंड में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को आत्ममंथन करने का अवसर दिया है। विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी ने दीपक प्रकाश को कमान सौंपी थी, जबकि बाबूलाल मरांडी के शामिल होने के बाद भाजपा उन्हें अपना सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा बना चुकी थी। इस उप चुनाव के परिणाम ने साफ कर दिया है कि इन दोनों नेताओं को अभी बहुत मेहनत करनी होगी। खास कर बाबूलाल मरांडी के लिए आगे का रास्ता और चुनौतीपूर्ण होनेवाला है।
    दुमका और बेरमो में जीत के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन का उत्साह स्वाभाविक रूप से चरम पर है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इन दोनों सीटों पर जिस आक्रामक ढंग से चुनाव प्रचार किया था, उसका परिणाम उन्हें मिला है। दिसंबर में सत्ता संभालने के बाद वह जिस संजीदगी और प्रभावी तरीके से सरकार चला रहे हैं, यह जीत उसका ही परिणाम है। इस जीत ने साबित कर दिया है कि उनकी सरकार झारखंड की जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप ही काम कर रही है। दिसंबर में चुनाव जीतने के बाद हेमंत ने कहा था कि चुनाव प्रचार अभियान की कड़वाहट भूल कर वह सकारात्मक राजनीति को तरजीह देंगे और उन्होंने ऐसा किया भी, लेकिन इस जीत ने उनकी चुनौतियां कुछ बढ़ा दी हैं। लोगों की उम्मीदें उनसे बढ़ गयी हैं। इसके साथ ही दुमका और बेरमो से चुने गये दोनों युवा विधायकों, बसंत सोरेन और अनुप सिंह के कंधों पर भी नयी जिम्मेदारी आ गयी है। ये दोनों पहली बार राज्य की सबसे बड़ी पंचायत के लिए चुने गये हैं और अपने-अपने क्षेत्र के साथ झारखंड के भविष्य को तय करने में इन्हें बड़ी जिम्मेदारी निभानी है। बसंत सोरेन तो अपने पिता और बड़े भाई की कर्मभूमि के प्रतिनिधि हैं और इस लिहाज से उनकी जिम्मेदारी बड़ी हो जाती है। अनुप सिंह को अपने दिवंगत पिता के अधूरे कामों को आगे बढ़ाना है, जिसका वादा वह चुनाव प्रचार अभियान के दौरान कर चुके हैं। उनके लिए खुद को प्रमाणित करने का अवसर आ गया है, क्योंकि अब वे सीधे जनता के सामने होंगे।
    दुमका और बेरमो में उप चुनाव संपन्न होने के बाद अब झारखंड की राजनीति का अगला अध्याय शुरू होगा, जिसमें भाजपा और उसके सहयोगियों की रणनीति पर खास नजर होगी।

    JMM-Congress strengthened by victory in Dumka-Bermo
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