- पीएम मोदी और अमित शाह ने संभाला मोर्चा : भीतरघात की आशंका से पार्टी ने बदला चुनाव लड़ने का मॉडल
गुजरात चुनाव में भाजपा को वैसे तो लगभग अपराजेय माना जा रहा है, लेकिन एक हकीकत यह भी है कि वह विपक्षियों से ज्यादा भीतरघात से परेशान है। भाजपा ने बड़े पैमाने पर विधायकों के टिकट काटे हैं और इसके चलते कुछ नेता बागी हो गये हैं। कई ताकतवर विधायकों ने पार्टी बदली है, तो कई ऐसे भी नेता हैं, जो भाजपा में रहते हुए भी खिलाफ दिख रहे हैं। ऐसे हालात में कांग्रेस को अपने लिए जरूर एक उम्मीद नजर आ रही है। आमतौर पर कांग्रेस इस तरह की बगावत का सामना करती रही है, लेकिन गुजरात भाजपा में ऐसा पहली बार हो रहा है। इसलिए गुजरात में भाजपा का चेहरा पूरी तरह बदला हुआ नजर आ रहा है। उसने न केवल अपनी रणनीति में बदलाव किया है, बल्कि बूथ मैनेजमेंट पर भी बारीक नजर रखी जा रही है। पार्टी ने 27 साल की एंटी इनकमबैंसी से निपटने के लिए ये फेरबदल किये हैं। पार्टी नेतृत्व को लगता है कि दूसरे दलों से आने वाले नेताओं के साथ एक जनाधार भी आता है, जिसके भाजपा के सपोर्ट बेस के साथ मिल जाने पर जीत पक्की हो जाती है। हालांकि अब यह दांव भी गलत साबित हो रहा है, क्योंकि नेता और कार्यकर्ता टिकट बाहरी को देने के फैसले को चुपचाप स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। कई मामलों में तो सीधे अमित शाह को ही बागियों को राजी करने की कोशिश करनी पड़ी है। इन तमाम स्थितियों को देखते हुए पीएम मोदी और अमित शाह ने आक्रामक प्रचार की जो रणनीति तैयार की है, उससे विपक्ष अभी से ही पस्त नजर आ रहा है। गुजरात चुनाव के इस ताजा परिदृश्य पर नजर डाल रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी और 27 साल से गुजरात में अपराजेय रही भाजपा की रणनीति में इस बार आक्रामक बदलाव हुआ है। यह बदलाव इसलिए भी जरूरी हो गया था, क्योंकि अब उसे विरोधियों से अधिक परेशानी भीतरघात से हो रही है। इसलिए गुजरात का मोर्चा अब पीएम मोदी और उनके चाणक्य कहे जानेवाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संभाल लिया है। भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात चुनाव में केंद्रीय नेताओं और वरिष्ठ पदाधिकारियों के लिए खास रणनीति बनायी है। इसके तहत वे पहले चरण की सभी 89 विधानसभा में तीन दिन तक प्रवास करेंगे। साथ ही चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले दो दिन यानी 28-29 नवंबर और 2-3 दिसंबर को पीएम मोदी सहित दिग्गज नेता जनसंपर्क करेंगे। पार्टी का मानना है इस अभियान से राज्य में पिछले चुनाव से अधिक सीटें मिलेंगी और वोट शेयर भी बढ़ेगा। पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, गुजरात के सीएम भूपेंद्र पटेल सहित 54 नेता सभा और रोड शो खत्म होने के बाद घर-घर जाकर पर्ची बाटेंगे। पीएम मोदी लगभग छह मोहल्लों में पहुंचेगे। किसी चुनाव में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब पार्टी के सभी स्टार प्रचारक घर-घर जाकर जनसंपर्क करेंगे। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह यूपी विधानसभा और बाहरी हैदराबाद म्युनिसिपल चुनाव में घर-घर जाकर जनसंपर्क कर चुके हैं।
यहां बड़ा सवाल यह है कि जो गुजरात पिछले 27 साल से मजबूती से भाजपा के पीछे खड़ा है, वहां के लिए पार्टी को अपना मॉडल क्यों बदलना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस बार गुजरात में भाजपा-कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी भी ताल ठोक रही है। इसलिए भाजपा ने 27 वर्ष बाद अपना गढ़ बचाने के लिए पुराने पन्ना प्रमुख मॉडल में बदलाव कर दिया है।
क्या है भाजपा का नया मॉडल
इस चुनाव में पार्टी नये मॉडल के साथ मैदान में उतर गयी है। इस मॉडल को पन्ना कमेटी नाम दिया गया है। वोटर लिस्ट के हर पन्ने के लिए एक कमेटी में पांच सदस्य बनाये गये हैं। इसमें हर सदस्य की जिम्मेदारी होगी कि वे अपने परिवार के तीन लोगों का वोट भाजपा को दिलायेंगे। पार्टी ने पूरे प्रदेश में 82 लाख पन्ना सदस्य बनाये हैं। इसमें लक्ष्य है कि हर पन्ना सदस्य तीन वोट डलवाये। बता दें कि जुलाई 2020 में आठ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में पार्टी ने सबसे पहले इस मॉडल को अपनाया था। इन उपचुनावों में पार्टी सभी सीटों पर जीत हासिल की। इसके बाद फिर 2021 में गुजरात निकाय चुनाव में मॉडल को लागू किया गया। इसमें भाजपा को 80 प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर सफलता मिली। इस नये फॉर्मूले के तहत भाजपा ने सभी पन्ना सदस्यों को एक पहचान पत्र जारी किया है। इसमें वे भाजपा के अधिकृत कार्यकर्ता के रूप में जाने जायेंगे। वोटिंग से पहले तक मंडल या जिला स्तर के नेता अपने इलाके के सभी पन्ना सदस्यों के घर कम से कम एक बार जायेंगे।
चार हिस्सों में बांटा गुजरात, ऐसे की मोर्चाबंदी
पार्टी ने फिर से गुजरात पर कब्जा बरकरार रखने के लिए चारों दिशाओं में मोर्चाबंदी कर दी है। जातीय और भौगोलिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रदेश की 182 सीटों को चार हिस्सों (सौराष्ट्र, उत्तर, पश्चिम, मध्य क्षेत्र) में बांट दिया है। सौराष्ट्र में उत्तर प्रदेश, पश्चिम में महाराष्ट्र, उत्तर में राजस्थान और मध्य क्षेत्र में मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं की ड्यूटी लगायी है। इन चारों क्षेत्रों में इन राज्यों के मंत्री, विधायक, पूर्व विधायक और संघ पृष्ठभूमि के नेताओं को तैनात किया गया है। मध्यप्रदेश के सीमावर्ती और मध्य गुजरात के सात जिलों की 37 सीटों का प्रभार पूर्व विधायकों और संगठन मंत्री रह चुके नेताओं को सौंपा गया है। मध्य प्रदेश से जुड़ी गुजरात की कुछ विधानसभा सीटें आदिवासी बाहुल है। चुनाव रणनीति के हिसाब से हर सीट पर मध्यप्रदेश के दो—दो नेताओं को तैनात किया गया है। ये सभी लोग गुजरात प्रदेश इकाई के साथ दिल्ली हाइकमान को भी हर दिन की प्रोग्रेस रिपोर्ट साझा कर रहे हैं। मध्य गुजरात की 37 सीटों पर भाजपा का कब्जा है।
इसी तरह उत्तर गुजरात के क्षेत्र की नौ जिलों की 43 विधानसभा सीटों पर प्रवासी राजस्थानियों की संख्या अच्छी खासी है। ऐसे में इन सीटों पर भाजपा के पक्ष में मतदान का जिम्मा राजस्थान के नेताओं को दिया गया है। इन नौ जिलों में कच्छ, भुज, गांधी शहर और ग्रामीण, बनासकांठा, पाटन, अहमदाबाद उत्तर और दक्षिण, मोडासा, मेहसाणा, साबरकांठा शामिल हैं। इन सीटों के लिए राजस्थान के पूर्व मंत्री और राजस्थान बीजेपी में प्रदेश महामंत्री सुशील कटारा को संयोजक बनाया गया है। यहां भी हर सीट पर दो-दो और उसके बाद हर जिले में भी दो-दो प्रभारी लगाये गये हैं। गुजरात में 18 से 20 प्रतिशत वोटर ऐसा है, जो राजस्थानी है। या फिर राजस्थानियों से व्यापार या अन्य दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ है। इसलिए ऐसे मतदाताओं को साधने के लिए राजस्थान से प्रभारी लगाये गये हैं। चुनाव में यूपी के योगी सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्रियों और प्रदेश के दो राज्यसभा सदस्यों को कमल खिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। गुजरात की जिन विधानसभा सीटों की कमान इन नेताओं को सौंपी है, उनमें से अधिकांश पर कांग्रेस काबिज है।
भाजपा की इस आक्रामक रणनीति और माइक्रो मैनेजमेंट के आगे विरोधी दल अभी से ही पस्त नजर आ रहे हैं। लेकिन अंतिम परिणाम के लिए तो आठ दिसंबर तक का इंतजार करना ही होगा।