-तीन साल पूर्व निर्मित टनल से लगातार हो रहे भूस्खलन से उठे सवाल, शासन भी उलझन में

-आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने भी माना, सेफ्टी ऑडिट जरूर होना चाहिए

उत्तरकाशी | बीते रविवार को यमुनोत्री हाइवे पर सिलक्यारा सुरंग के धंसने की घटना ने उत्तराखंड में निर्माणाधीन चार धाम परियोजना और अन्य सड़क निर्माण कार्यों की सुरक्षा मानकों को सवालों के घेरे में ला दिया है। इसको लेकर शासन भी उलझन में दिखाई दे रहा है।

एक ओर निर्माण कार्यों में सुरक्षा की अनदेखी हो रही है तो दूसरी ओर यह तथ्य भी सामने आया है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू करने से पहले आवश्यक तकनीकी और भूगर्भीय सर्वे नहीं किया जा रहा है या फिर सुरंग निर्माण की गुणवत्ता को परखा नहीं जाता है, जिससे इस तरह की दुर्घटनाएं हो रही हैं।

सिलक्यारा टनल धंसने की घटना पर कांग्रेस जिलाध्यक्ष मनीष राणा ने बताया कि कम्पनी ने सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किये थे। उनका कहना है कि उन्होंने रविवार को खासकर दिवाली के दिन निर्माण कार्य किये जाने पर भी सवाल खड़ा किया है। इसमें मशीन फंस गई थी।

आरोप है कि इस मशीन को निकालने के लिए दूसरी टनल बनाई गई तो उसमें अवैज्ञानिक तरीके अपनाए गए। बताया जाता है कि टनल के अवैज्ञानिक तरीके से निर्माण के कारण ही जोशीमठ दरकने लगा और जमीन धंसने लगी थी। इस घटना के बाद धामी सरकार ने हिमालय क्षेत्र के सभी शहरों की कैरिंग कैपेसिटी की जांच के आदेश दिये थे, लेकिन भूस्खलन के लिए जिम्मेदार सबसे बड़ी वजह यानी टनल निर्माण को लेकर किसी तरह के जांच की बात नहीं की गई।

सरकार के पास इसका भी आकड़ा नहीं है कि टनल के निर्माण से पहले संबंधित क्षेत्र का सेफ्टी ऑडिट होता है या नहीं। हिमालय के पहाड़ कच्चे हैं और यहां मामूली भूगर्भीय हलचल भी भूस्खलन पैदा कर सकता है। इस कारण टनल जैसे निर्माण कार्यों से पहले यह जांचना जरूरी होता है कि संबंधित क्षेत्र की भूगर्भीय संरचना टनल के निर्माण के लायक है या नहीं।

यदि विपक्ष के आरोपों को नजरअंदाज भी कर दिया जाए तो यह सच है कि उत्तराखंड में सुरंगों के लगातार धंसने की घटनाएं हो रही हैं। इसी वर्ष जनवरी में जब जोशीमठ के धंसने का मामला सामने आया तो तपोवन विष्णुगाड पावर प्रोजेक्ट के लिए निर्माणाधीन टनल को इसका जिम्मेदार माना गया। दरअसल, इस टनल में बोरिंग किया गया है। जांच में सब कुछ साफ हो जाएगा।

कुल मिलाकर यदि टनल के निर्माण के साथ ही ह्यूम पाइप भी साथ चलती है। यदि भूस्खलन जैसी कोई स्थिति पैदा होती है तो मजदूर उसके माध्यम से सुरक्षित बाहर निकल जाते हैं। उन्होंने कम्पनी पर आरोप लगाया है कि मजदूरों की सुरक्षा की अनदेखी की गई है।

आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने भी माना है कि सेफ्टी ऑडिट जरूर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि चारधाम परियोजना से जुड़े निर्माण कार्यों में ऐसा हुआ है या नहीं, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। जहां तक यमुनोत्री मार्ग पर सुरंग धंसने का मामला है तो इसके लिए तकनीकी समिति को मौके पर भेजा गया है।

सुरंग के अंदर पर्याप्त ऑक्सीजन : सचिव
सिलक्यारा टनल घटनास्थल पर पहुंचे आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने कहा कि सुरंग के निर्माणाधीन क्षेत्र में मुलायम चट्टान होने की बात सामने आई है। यह चट्टानें दबाव नहीं झेल पाईं और इस कारण भूस्खलन हुआ है। उन्होंने कहा कि इसके निदान के उपाय बाद में किये जाएंगे। फिलहाल हम राहत व बचाव कार्य को प्राथमिकता दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि अगले 24 से 48 घंटे में सभी मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया जाएगा। सुरंग में प्रभावित क्षेत्र में पांच से छह दिनों तक के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन है।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version