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    Home»Jharkhand Top News»सीएनटी में आवश्यक संशोधन तो हो, पर इसके दुरूपयोग से बचे सरकार : बंधु तिर्की
    Jharkhand Top News

    सीएनटी में आवश्यक संशोधन तो हो, पर इसके दुरूपयोग से बचे सरकार : बंधु तिर्की

    SUNIL SINGHBy SUNIL SINGHNovember 24, 2023No Comments3 Mins Read
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    झायेरखंड में 1950 के जिला एवं थाना क्षेत्र के आधार पर सीएनटी जमीन की खरीद-बिक्री को मंजूरी मिले भी तो इस शर्त के साथ कि इसका व्यावसायिक इस्तेमाल न हो। खरीद-बिक्री की सीमा तय की जा

    रांची। झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) में 1950 के जिला एवं थाना क्षेत्रों को आधार बनाने संबंधित आवश्यक संशोधन के लिए जनजातीय परामर्शदात्री परिषद (टीएसी) की बैठक में सहमति तो मिल गयी है, लेकिन वह अंतिम मंतव्य नहीं है। श्री तिर्की ने कहा कि इस मामले में झारखंड के लोगों और जमीन के जानकार विशेषज्ञ लोगों से भी सुझाव मांगा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 1950 में वर्तमान झारखंड क्षेत्र में केवल सात जिले और बहुत कम थाना क्षेत्र थे, जबकि आज उसकी संख्या बढ़ गयी और इस दृष्टिकोण से आवश्यक बदलाव जरूरी है। श्री तिर्की ने कहा कि यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि सीएनटी के संदर्भ में किस विधायक ने अपना क्या सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा अब तक इस मामले पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है और कई नेताओं के द्वारा कही जा रही बातें केवल भ्रमित करने का ही प्रयास है।
    श्री तिर्की ने कहा कि यदि टीएसी यह महसूस करती है कि झारखंड के आदिवासियों के हित में यह जरूरी है कि 1950 के जिला एवं थाना क्षेत्र के आधार पर ही आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री को मंजूरी देते हुए आवश्यक संशोधन किया जाये तो उससे पहले सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही ऐसा फैसला करना चाहिए। इस मामले में सरकार को अनिवार्य रूप से यह ध्यान रखना चाहिए कि सीएनटी एक्ट में वैसे ही संशोधन किये जायें, जिससे इस कानून का किसी भी दृष्टिकोण से दुरूपयोग नहीं हो, वे भूमिहीन नहीं हो जायें और उनका हित प्रभावित ना हो।
    श्री तिर्की ने कहा कि अब तक सीएनटी एक्ट में तमाम प्रावधानों के बाद भी झारखंड में आदिवासी जमीन का व्यापक स्तर पर दुरूपयोग हो रहा है और सही अर्थों में कहा जाये तो आदिवासियों के हाथ से जमीन लूटी जा रही है। लेकिन फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बरसों पुराना यह कानून, बदली हुई परिस्थितियों में कुछेक प्रावधानों के अंतर्गत अप्रासंगिक हो चुका है और इस परिप्रेक्ष्य में आवश्यक संशोधन निश्चित रूप से किया जाना चाहिए, परंतु इस मामले में दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ना तो वैसी जमीन का व्यापक स्तर पर व्यावसायिक इस्तेमाल हो और एक सीमा से अधिक इसकी खरीद-बिक्री को किसी भी हाल में मंजूरी नहीं दी जाये अर्थात प्रत्येक खरीद-बिक्री की सीमा को कठोरता से निर्धारित भी किया जाये और उसका व्यावहारिक स्तर पर अनुपालन भी हो।

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