नई दिल्ली। निवेशकों और कारपोरेट जगत को सरकार की ओर से शीतकालीन सत्र में बड़ी सौगात मिलने जा रही है। 1 दिसंबर से शुरू हो रहे संसद सत्र में केंद्र ‘प्रतिभूति बाजार संहिता विधेयक 2025’ पेश करेगा, जिसके तहत वर्षों पुराने तीन प्रमुख कानूनों—सेबी कानून 1992, डिपॉजिटरीज कानून 1996 और प्रतिभूति लेन-देन (नियमन) कानून 1956—को समाप्त कर एक ही समग्र कानून बनाया जाएगा। लोकसभा सचिवालय की अधिसूचना के मुताबिक इस एकीकृत संहिता से पूंजी बाजार के सभी हितधारकों को एक ही नियम-पुस्तिका मिलेगी, जिससे अनुपालन की लागत 30-40 फीसदी तक घटने का अनुमान है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहली बार वित्त वर्ष 2021-22 के बजट भाषण में इस विचार का जिक्र किया था, ताकि नियामकीय दोहराव दूर किया जा सके और भारतीय बाजारों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके। अब जब विधेयक संसद में आ रहा है, उद्योग जगत की उम्मीदें बढ़ गई हैं। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि एक ही कानून से सेबी, डिपॉजिटरी, स्टॉक एक्सचेंज और कंपनियों के बीच टकराव खत्म होगा; नियमों की व्याख्या एक समान होने से कंपनियां करोड़ों रुपये के कानूनी झंझट से बचेंगी।
निवेशकों को भी फायदा होगा। अभी तक ब्रोकिंग, क्लीयरिंग, डिपॉजिटरी और शेयर ट्रांसफर के लिए अलग-अलग फॉर्म भरने पड़ते हैं; नया कानून सिंगल डिजिटल फॉर्म लाएगा, जिससे समय और कागजी खर्च दोनों बचेंगे। सूत्रों के मुताबिक संहिता में ‘एक देश-एक बाजार’ सिद्धांत को साकार करते हुए इलेक्ट्रॉनिक सिक्योरिटीज को पूरी तरह डीमैटेरियलाइज्ड रखने का प्रावधान होगा, जिससे फिजिकल शेयर सर्टिफिकेट की एंट्री पर पूरी तरह रोक लग जाएगी और सेटलमेंट साइकिल को और घटाकर T+1 से T+0 किया जा सकेगा।
कारपोरेट मामलों के मंत्रालय ने जनवरी 2024 में जारी ड्राफ्ट पर उद्योग, निवेशक संगठनों और सेबी से सुझाव मांगे थे; 80 फीसदी सिफारिशें मंजूर कर ली गई हैं। सूत्र बताते हैं कि नियमों की अधिसूचना जनवरी 2025 से जारी होगी, जिसके बाद कंपनियों को एक साल का ट्रांजिशन पीरियड मिलेगा। यदि विधेयक शीतकालीन सत्र में पारित हो जाता है तो भारत का पूंजी बाजार नियमन दुनिया के सबसे सरल और टेक-फ्रेंडली नियमन में शुमार हो जाएगा।
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