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    Home»देश»सीमांचल बनेगा किंगमेकर! बिहार चुनाव की सियासी रण का नया मोर्चा, राष्ट्रीय राजनीति पर असर तय
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    सीमांचल बनेगा किंगमेकर! बिहार चुनाव की सियासी रण का नया मोर्चा, राष्ट्रीय राजनीति पर असर तय

    shivam kumarBy shivam kumarNovember 10, 2025No Comments4 Mins Read
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    – मोदी-शाह की जोड़ी ने सीमांचल को बनाया राजग का किला, विपक्ष में मची खलबली- सीमांचल में भाजपा, राजद और ओवैसी की तिकड़ी आमने-सामने
    पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण में मंगलवार को 20 जिलों की 122 सीटों पर मतदान होना है। मतदान की सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं, लेकिन उससे पहले एक नजर राज्य के सीमांचल इलाके पर डालना भी अवश्यक है, क्योंकि इस क्षेत्र का असर राज्य की राजधानी पटना से लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सत्ता तक महसूस किया जा रहा है।

    दरअसल, 24 सीटों वाला यह इलाका सिर्फ बिहार की सरकार नहीं तय करता, बल्कि इस बार राष्ट्रीय राजनीति के भविष्य की दिशा भी तय करने जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह प्रवेश द्वार, महागठबंधन के लिए ढाल और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं के लिए मिशन विस्तार बन चुका है।

    सीमांचल बिहार का छोटा इलाका, पर बड़ी सियासी कुंजी
    सीमांचल में चार जिले आते हैं, किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया। यही वो इलाका है, जो पश्चिम बंगाल से सटा है और जहां मुस्लिम आबादी 40 से 67 फीसदी के बीच है। 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां 24 सीटों में से 12 राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग), सात महागठबंधन और पांच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहा मुस्लिमुदुलमीन (एआईएमआईएम) के खाते में गई थीं। अब 2025 के इस चुनाव में हर पार्टी इसे अपनी जीत की गारंटी मानकर मैदान में उतर चुकी है। भाजपा के रणनीतिकारों को मालूम है कि सीमांचल में पैठ बनाना मतलब 2029 के लोकसभा चुनाव के समीकरणों को मजबूत करना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद पूर्णिया तक पहुंचे, 40 हजार करोड़ रुपये की योजनाओं का शिलान्यास किया। संदेश साफ था, सीमांचल अब हाशिए पर नहीं रहेगा, विकास की राजनीति ही पहचान बनेगी।

    राजग का सीमांचल सर्जिकल प्लान
    भाजपा ने बिहार के लगभग 12,000 (बारह हजार) कमजोर बूथों की पहचान की है, जिनमें से सबसे अधिक सीमांचल में हैं। इन बूथों पर मुस्लिम आबादी 60 से 70 प्रतिशत तक है, पर भाजपा का फोकस है, विकास बनाम वोट-बैंक की राजनीति है। पार्टी जानती है कि खुलकर मुस्लिम वोट नहीं मिलेंगे, इसलिए रणनीति है कि गैर-मुस्लिम, पिछड़ा और महिला वोट को एकजुट किया जाए। पूर्णिया, कटिहार और अररिया में भाजपा के रोड शो और गृह मंत्री अमित शाह के आक्रामक भाषण इसी क्लस्टर लक्ष्यीकरण (क्लस्टर टारगेटिंग) का हिस्सा हैं। जानकार बताते हैं कि भाजपा इन जिलों में 8-10 सीटें जीतने की उम्मीद पर काम कर रही है, जो उसे राज्य में बहुमत की रेखा तक खींच सकती हैं।

    ओवैसी का सीमांचल मॉडल, राजद की मुश्किलें बढ़ीं
    एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि सीमांचल की आवाज को पटना में सुना जाना चाहिए। ओवैसी की पार्टी से पांच विधायक 2020 में बने थे, अब वे इस इलाके को मुस्लिम सशक्तिकरण की प्रयोगशाला बना रहे हैं, लेकिन उनके मैदान में उतरने से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की मुश्किल बढ़ गई हैं। लालू-तेजस्वी का परंपरागत एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण अब दो हिस्सों में बंट रहा है। एआईएमआईएम के उभार से मुस्लिम वोट खिसकते हैं और राजग को अप्रत्यक्ष फायदा मिल जाता है।

    तेज प्रताप की बगावत महागठबंधन की एक और दरार
    तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी चुनौती इस बार विपक्ष नहीं, घर के भीतर से है। लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अब अलग पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में हैं। तेज प्रताप ने कहा है कि जो रोजगार देगा, पलायन रोकेगा, वो उसी का समर्थन करेंगे, चाहे वो कोई भी हो। इस बयान ने सियासी गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। क्या यह अप्रत्यक्ष रूप से राजग के पक्ष में माहौल बना रहा है? भाजपा इस पर मौन है, लेकिन पार्टी सूत्रों का दावा है कि चुनाव के बाद समीकरण खुल सकते हैं।

    हार का ठीकरा ईवीएम पर क्यों?
    राहुल गांधी ने सीमांचल से लेकर सहरसा तक सभाओं में कहा है कि हरियाणा से लेकर बिहार तक भाजपा ने वोट चोरी की, अब बिहार की जनता नहीं मानेगी। भाजपा ने इस पर पलटवार करते हुए कहा है कि जब भी राहुल हारते हैं, ईवीएम और चोरी याद आती है। जनता विकास के नाम पर वोट दे रही है, डराने के नाम पर नहीं। राहुल की आक्रामक भाषा जहां कार्यकर्ताओं को ऊर्जा दे रही है, वहीं भाजपा इसे हताशा की राजनीति बताकर जनमत को प्रभावित करने की कोशिश में है।

    सीमांचल के संग्राम से खुलेगा 2029 की राजनीति का समीकरण
    राजनीकित विश्लेषकों का मानना है कि बिहार का सीमांचल इलाका अब सिर्फ राज्य की सीट नहीं, बल्कि 2029 की राष्ट्रीय रणनीति का ट्रायल जोन बन चुका है। जैसे बंगाल में ध्रुवीकरण मॉडल ने भाजपा को फायदा दिया, वैसे ही सीमांचल में भाजपा विकास प्लस सुरक्षा नैरेटिव को आजमा रही है। राजद ी-कांग्रेस इसे वोट-बैंक ध्रुवीकरण कह रही है, जबकि राजग इसे नए बिहार की बुनियाद बता रहा है। ओवैसी का प्रवेश इसे तीन-कोणीय मुकाबला बना रहा है, जिससे पलड़ा किसी भी तरफ झुक सकता है।

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