रांची: कभी अपने इतिहास पर इठलाने वाला रांची का जिला स्कूल इन दिनों अपने वर्तमान पर कराह रहा है। संयुक्त बिहार के जमाने में जिला स्कूल में अपने बच्चों को दाखिला दिलाने वाले अभिभावक इसे उपलब्धि के रूप में देखते थे, लेकिन अब यह स्कूल लाचार छात्रों की पाठशाला बनकर रह गया है।
क्या है मामला
रांची के जिला स्कूल की स्थापना तत्कालीन शासक विक्टोरिया के जमाने में हुई थी। तब झारखंड बंगाल का हिस्सा हुआ करता था। संयुक्त बिहार के वक्त स्कूल में शिक्षक के 40 पद सृजित किये गये। कई शिक्षक रिटायर हुए। फिर शिक्षकों की संख्या कम होती चली गयी। अभी इस स्कूल में माध्यमिक शिक्षा के लिए प्रिंसिपल के अलावा दो और शिक्षक हैं जो दिसंबर में रिटायर हो जायेंगे। गुणवत्ता तो छोड़िये, रेगुलर क्लास तक नहीं होता। पांच शिक्षक डेपुटेशन पर आये जरूर, लेकिन 850 छात्रों के सामने वे खुद को बेबश समझते हैं।
तब और अब
जिला स्कूल के प्रिंसिपल नरेंद्र कुमार कभी जिला स्कूल के छात्र थे। पूरे 12 साल स्कूल में गुजारे। तब का एक-एक पल उनके लिए गौरव भरा था। माता-पिता भी यह सोचकर खुश होते थे कि बेटा जिला स्कूल रांची में पढ़ रहा है, लेकिन अब इसी स्कूल के प्रिसिंपल बनकर लज्जा आती है। वजह है शिक्षकों की भारी कमी। कमी ही नहीं बल्कि हालात ऐसे हो गये कि संस्कृत के शिक्षक गोविंद बिहारी को राजनीति शास्त्र पढ़ाना पड़ रहा है। नरेंद्र कुमार कहते हैं कि वर्ष 1974 में इसी स्कूल से मैट्रिक किया। तब 40 शिक्षक यहां थे। प्रत्येक क्लास में 5-6 शिक्षक थे। लिहाजा यहां का रिजल्ट भी अच्छा होता था।
मंत्री कहती हैं
इधर सूबे की शिक्षा मंत्री नीरा यादव इस मामले में चिंतित जरूर हैं, लेकिन उनके बयान से लगता है कि इंसान का कर्मवादी नहीं बल्कि भाग्यवादी होना चाहिए। मंत्री कहती हैं कि बेशक शिक्षक छात्रों के अनुपात में होना चाहिए, पर जो शिक्षक हैं, उन्हीं से बेहतर पढ़ाई करवायी जा रही है। पूरे मामले में बेहद चौंकाने वाला तथ्य यह कि इस स्कूल को सूबे की स्कूली शिक्षा सचिव आराधना पटनायक ने गोद ले रखा है।
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