नयी दिल्ली:  साल का अंत आते-आते कागजी मुद्रा बीते दौर की बात होती जा रही है। नया साल अपने साथ भारत के कैशलेस होने का वादा लेकर आ रहा है, जहां 1.3 अरब की जनसंख्या डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर भेजा जा रहा है। आज बहुत से ऐसे यूजर हैं, जो पहली बार प्लास्टिक मनी से रूबरू हो रहे हैं। यहां तक कि बहुत पढ़े-लिखे लोग भी डिजिटल दुनिया में ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जो काफी महंगी साबित हो सकती हैं। इसलिए, नए प्रयोगकर्ताओं के लिए यह एक ऐसा जोखिमपूर्ण क्षेत्र है, जहां मोलभाव करने के लिए बहुत समझदारी की जरूरत होती है।

इस साल की शुरुआत में, देश के सबसे बड़े बैंक- भारतीय स्टेट बैंक- से 32 लाख क्रेडिट और डेबिट कार्ड की जानकारी कथित तौर पर चोरी हो गई थी और आज तक जांच एजेंसियां ज्यादा कुछ प्रगति नहीं कर पाई हैं। एक ऐसा देश जहां संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, 28.7 करोड़ व्यस्क अब भी निरक्षर हैं, वहां कैशलेस लेनदेन में शामिल होना कैसे सुरक्षित है? कुछ लोगों का कहना है कि डिजिटल दुनिया के डकैत और लुटेरे कभी चंबल घाटी में राज करने वाले कुख्यात डकैतों से ज्यादा बेदर्द हैं।

एक रिपोर्ट का कहना है कि वर्ष 2015 के एक माह में साइबर अपराधियों ने 100 से अधिक बैंकों को वैश्विक तौर पर निशाना बनाया और एक अरब डॉलर हथिया लिए। डिजिटल दुनिया का एक हिस्सा सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील है क्योंकि अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठान पेंटागन के सबसे अधिक सुरक्षित कंप्यूटरों की सुरक्षा भी कुछ समय पहले खतरे में पड़ चुकी है और उनसे संवेदनशील डेटा चुराया जा चुका है। ऐसे में भारत अपनी डिजिटल संपत्ति की सुरक्षा के प्रबंधन में कितना समर्थ है और इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट एवं पेमेंट गेटवे का इस्तेमाल करने के दौरान मुझे और आपको क्या करना चाहिए? इन चीजों के लिए कोई सरल उपाय नहीं हैं और सारा बोझ उन प्रयोगकर्ताओं पर आ पड़ा है, जिन्होंने अपने धन को कंप्यूटर के कूट संकेतों में रखा हुआ है।

लगभग बिना प्रशिक्षण के और बिना गहरी समझ के, नागरिकों से इंटरनेट बैंकिंग एवं मोबाइल एप्प आधारित वित्तीय लेनदेन को अपनाने के लिए कहा जा रहा है। लोगों को बैंकों के सर्वर से जोड़ने वाले ‘वर्चुअल सुपरहाइवे’ पर पहुंचने के लिए एक ऐसा सर्वव्यापी इंटरनेट चाहिए, जो गड़बड़ी से दूर हो। हालांकि सुदूर इलाकों में यह अभी बहुत दूर की कौड़ी है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अनुसार, जून 2016 तक इंटरनेट के कुल 35 करोड़ सब्सक्राइबर थे। कई लोगों के पास एक से अधिक मोबाइल फोन और एक से अधिक इंटरनेट कनेक्शन हैं। ऐसे में इसका अर्थ यह है कि दो तिहाई से ज्यादा भारतीयों की पहुंच डिजिटल दुनिया में जीने के लिए जरूरी इंटरनेट तक नहीं है।

बैंकिंग डेटा से लैस एक मोबाइल उपकरण की हिफाजत ठीक उसी तरह जरूरी है, जैसे किसी हस्ताक्षरित चेक की होती है। बैंकिंग डेटा से लैस मोबाइल फोन चोरी हो जाना किसी हस्ताक्षरित चेक के चोरी हो जाने जैसा है क्योंकि अधिकतर प्रयोगकर्ता अपने उपकरणों या सिम कार्डों को लॉक करने के लिए पिन (पर्सनल आइडेंटिफिकेशन नंबर) का इस्तेमाल नहीं करते। पेटीएम जैसे इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट में पैसा भेजना और निकालना बहुत आसान है और इसी वजह से यह लोकप्रिय है। लेकिन वहीं, यदि कोई कार्ड एप्प पर क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड की जानकारी डाल देता है तो चोरी करना भी आसान हो जाता है। इंटरनेट बैंकिंग का ही मामला लीजिए। इसमें 8-16 या ज्यादा अक्षरों का कोड याद रखना पहले ही इंसानों के लिए मुश्किल है।

रिपोर्टों का कहना है कि नवंबर में, साइबर अपराधियों ने एक ब्रितानी बैंक से 50 लाख डॉलर लूट लिए। फरवरी में हैकरों के निशाने पर एक बांग्लादेशी बैंक था। उन्होंने इस बैंक से एक अरब डॉलर चुराने की कोशिश की थी। कैशलेस डिजीटल दुनिया में खुद को सुरक्षित बनाने के कोई आसान उपाय नहीं हैं लेकिन खतरे को कम करना सर्वश्रेष्ठ विकल्प हो सकता है। भारत द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को अपना लिए जाने पर आने वाले नए साल में बेहद सावधान रहना होगा। साइबर सेंधमारी के खतरों को देखते हुए, कम नकदी एक बात है लेकिन पूरी तरह कैशलेस हो जाना दूसरी बात है।

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