नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि भारतीय वायुसेना के कर्मचारी धार्मिक कारणों का हवाला देते हुए दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि समुदाय विशेष के वायुसेना कर्मियों के दाढ़ी रखने पर पाबंदी लगाने का केंद्र का फैसला मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। पीठ ने भारतीय वायुसेना के दो मुस्लिम कर्मचारियों द्वारा दायर की गई याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उनकी याचिकाओं को खारिज करने को चुनौती दी गई थी।
शीर्ष अदालत का यह फैसला दो वायुसेना कर्मियों मोहम्मद जुबैर और अंसारी आफताब अहमद द्वारा अलग-अलग दायर की गई याचिकाओं पर आया है। इन याचिकाओं में मुस्लिम कर्मचारियों के दाढ़ी रखने पर रोक लगाने संबंधी 24 फरवरी, 2013 के भारतीय वायुसेना के ‘गोपनीय आदेश’ को चुनौती दी गई थी। जुबैर ने अपनी याचिका में कहा था कि यह आदेश नागरिक के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है और यह सरकार द्वारा गृह मंत्रालय के जरिए 18 जुलाई, 1990 को जारी किए गए पत्र का भी विरोधाभासी है। याचिका के मुताबिक गृह मंत्रालय के इस पत्र में वर्दीधारी मुस्लिम-सिख कर्मियों को धार्मिक आधार पर दाढ़ी रखने की अनुमति की बात है, बशर्ते इसके लिए अधिकारियों से पूर्व अनुमति ली ली गयी हो।
केंद्र ने कहा कि भारतीय वायुसेना का आदेश लड़ाकू बल में सामंजस्य बनाए रखने के हित में है और इसके सुरक्षा संबंधी आशय भी हैं। इसमें कहा गया कि ये नीतियां धर्मनिरपेक्ष किस्म की हैं और यह किसी धर्म विशेष के वायुसेना कर्मियों पर किसी तरह की बंदिश लगाने के लिए नहीं बनाई गई हैं। केंद्र ने इसे पहले अदालत में कहा था कि भारतीय वायुसेना निश्चित ही एक धर्मनिरपेक्ष बल है जो सभी धर्मों का सम्मान करता है और अनिवार्य रूप से इसके कर्मियों के बीच जाति, संप्रदाय, त्वचा के रंग या धार्मिक आधार पर भेदभाव से रहित भाईचारे की भावना है।
याचिकाकर्ताओं ने भारतीय वायुसेना के आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय में रिट याचिका के जरिए चुनौती दी थी और एकल न्यायाधीश ने मुस्लिम धर्म ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा था कि दाढ़ी रखना अनिवार्य नहीं है और याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने खंडपीठ में आवेदन दिया था जिसने एकल न्यायाधीश के आदेश पर सहमति जताते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने बाद में शीर्ष अदालत में अपील की थी।