स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) की समय सीमा समाप्त होने में 2 साल बाकी हैं, लेकिन पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 62.5 फीसदी या भारत के 640 जिलों में से 400 को खुले में शौच मुक्त घोषित नहीं किया गया है।
29 राज्यों और सात संघ शासित प्रदेशों में, आकार अनुसार देश का सबसे छोटा राज्य और पर्यटन केंद्र गोवा का प्रदर्शन स्वच्छ भारत मिशन के शुरु होने के बाद तीन वर्षों से सबसे बद्तर रहा है। इसके दोनों जिले, उत्तर गोवा और दक्षिण गोवा ने खुले में शौच होने की सूचना दर्ज की है, जैसा कि 1 दिसंबर, 2017 तक दर्ज आंकड़े दर्शाते हैं।
बड़े राज्यों में, जम्मू-कश्मीर ने खुले में शौच को समाप्त करने के संबंध में सबसे धीमी प्रगति दिखाई है। राज्य के केवल 5.6 फीसदी गांवों ने खुले में शौच मुक्त होने की सूचना दी है। भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में भी परिवर्तन धीमी रहा है – बिहार में 7.74 फीसदी गांवों के खुले में शौच मुक्त होने की सूचना दी है, जबकि उत्तर प्रदेश के लिए आंकड़े 14.96 फीसदी रहा है।
खुले में शौच के पैमाने पर खराब प्रदर्शन करने वाले अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में त्रिपुरा (1.06 फीसदी), अंडमान निकोबार द्वीप समूह (0.93 फीसदी), पुदुचेरी (3.4 फीसदी) और मणिपुर (14.29 फीसदी) शामिल हैं।
स्वच्छ भारत मिशन के तहत राज्यों की मांगों के अनुसार निधियां आवंटित की जाती हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश को सबसे अधिक धन प्राप्त हुआ था।
इस राज्यों के लिए राशि 2,477 करोड़ रुपए, 2,287 करोड़ रुपए, 2,287 करोड़ रुपए और 1,909 करोड़ रुपए रहे हैं।
7 अगस्त, 2017 तक कुल 23,883 करोड़ रुपए का वितरण किया गया है। इनमें से गोवा और दमन और दीव को सबसे कम (एक-एक करोड़ रुपए) का एक हिस्सा मिला है, जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है। 2014 में मिशन की शुरुआत के बाद से, गोवा को 2015-16 में केवल एक बार धन प्राप्त हुआ है।
पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने 10 अगस्त 2017 को लोकसभा को दिए गए एक उत्तर में कहा, “चूंकि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) एक मांग-आधारित योजना है, राज्यवार आवंटन नहीं किए जाते हैं।
”
आंकड़ों के मुताबिक, 27 जुलाई, 2017 तक, घरेलू शौचालय की उपलब्धता 71.12 फीसदी हुई है। हम बता दें कि 2 अक्टूबर, 2014 तक यह आंकड़े 38.7 फीसदी थे।
सरकार ने अब तक स्वच्छ भारत मिशन की रिपोर्ट की गई प्रगति का एक तृतीय-पक्ष सत्यापन नहीं किया है। सितंबर / अक्टूबर में एक सर्वेक्षण शुरू करने के लिए एक स्वतंत्र सत्यापन एजेंसी निर्धारित किया गया था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 4 अगस्त 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
इस बीच, स्वच्छता शोधकर्ताओं द्वारा स्वतंत्र शोध और वास्तविक साक्ष्य सरकार के प्रगति के दावों से मेल नहीं खाते हैं। इस संबंध में ‘द हिन्दू’ ने 15 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
गोवा के पंचायत निदेशालय के निदेशक संध्या कामत ने इंडियास्पेंड को बताया कि गोवा सरकार अपना खुद का सर्वेक्षण भी आयोजित करेगी। कामत कहती हैं, “गोवा में मिशन को लागू करने की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग से पंचायत निदेशालय को स्थानांतरित कर दी गई है।
स्व-सहायता समूहों के सहयोग से मामले से जुड़ी समस्याओं का पता लगाया जा रहा है, जैसे कि कितने शौचालय मौजूद हैं, कितने की और आवश्यकता है, और क्या-क्या समस्याएं हैं, आदि। सर्वेक्षण का काम जल्द ही शुरु होने वाला है। काम पूरा होने पर वेबसाइट पर डेटा अपडेट किया जाएगा।”
यह लेख मूलत: 4 दिसंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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