कोलेबिरा में कांग्रेस की जीत का सबसे सटीक विश्लेषण  | आजाद सिपाही विशेष

रांची। कोलेबिरा उपचुनाव का परिणाम झारखंड की राजनीति के लिए काफी अहम माना जा रहा है। यहां अहम कहने का तात्पर्य यह है कि कोलेबिरा की जनता ने एनोस के वर्चस्व को समाप्त किया, तो वहीं डेढ़ दशक बाद कांग्रेस के हाथों फिर कमान सौंप दी। कांग्रेस ने जिस प्रत्याशी को यहां उतारा था, उसके पास चुनाव से पहले बैंक एकाउंट तक नहीं थे। हालांकि पिछले 15 वर्षों से नमन विल्शन कोनगाड़ी इस क्षेत्र में काम कर रहे थे। इस जीत ने झारखंड में कांग्रेस के कद को बढ़ा दिया है। कांग्रेस के डॉ अजय कुमार इस परिणाम के बाद अजेय बनकर उभरे हैं। वहीं सुबोधकांत सहाय, बाबूलाल मरांडी, आलमगीर आलम का भी कद बढ़ा है। इतना ही नहीं, झारखंड में अपने अस्तित्व को पुनर्जीवित करने में जुटी कांग्रेस पार्टी को संजीवनी मिली है। दूसरी ओर झाविमो की भी ताकत बढ़ी है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार के नेतृत्व में मिली पहली जीत के पीछे कुशल व्यवस्था है। पहली बार उन्होंने महागठबंधन का खयाल किये बिना अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए प्रत्याशी उतारा। इसमें बाबूलाल मरांडी काभी भरपूर समर्थन मिला। साथ ही सुबोधकांत सहाय ने भी पूरी तरह से कमान सभाल ली। वोटिंग के पहले तक हारी हुई बाजी को कांग्रेस जीत गयी। यह माना जा रहा था कि पूर्व विधायक एनोस एक्का की पत्नी की यहां से जीत तय है। बावजूद इसके इस हार को डॉ अजय के कुशल नेतृत्व के कारण जीत मिल गयी। यह कहा जा सकता है कि तन-मन से किया गया काम सुखद परिणाम ही देता है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों में आंधी का असर भी कोलेबिरा में दिखा। सिर्फ कोलेबिरा ही नहीं, अब तो तमाम आदिवासी और क्रिश्चियन-मुसलिम बहुल सीट पर अलग समीकरण दिख रहा है। कहीं न कहीं कांग्रेस के पक्ष में यह खेमा जाता दिख रहा है। इसाई मिशनरी पूरी तरह से झारखंड सरकार के खिलाफ हो गयी है। कारण चाहे जोभी हो, लेकिन मुसलमान समुदाय के बीच भी यह धारणा बन गयी है कि यह सरकार उनका साथ नहीं देगी। दो समुदाय के एकजुट होने के कारण ही बिल्शन कोनगाड़ी को कोलेबिरा की जनता ने नमन किया। कोलेबिरा की जनता ने बिल्शन कोनगाड़ी को जीत नहीं दिलायी, बल्कि कांग्रेस का हाथ पकड़ा। साथ ही झामुमो को झटका भी दिया। कारण झामुमो ने झापा प्रत्याशी मेनन एक्का को समर्थन दिया था। झामुमो नेभी शायद इसी गुमान में समर्थन दिया था कि मेनन एक्का की इस क्षेत्र में जीत पक्की है, लेकिन क्षेत्र की जनता ने मेनन एक्का की जमानत तक जब्त करा दी। इस परिणाम से झामुमो भी चारों खाने चित हो गया।
इस परिणाम ने यह भी संकेत दिया कि धीरे-धीरे आम जन का रुझान अब राष्ट्रीय दल की ओर होता जा रहा है। राष्ट्रीय नेताओं की तरफ जनता का झुकाव बढ़ता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्तर का नाम भी जनता के जेहन में कौंध रहा है। कारण इस क्षेत्र में बाबूलाल मरांडी, सुबोधकांत सहाय सरीखे नेताओं ने मोर्चा सभाल रखा था। बाबूलाल की क्षेत्रीय दल में होते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2019 के चुनाव में इसका फायदा कांग्रेस और बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो को मिल सकता है। इसलिए कि बाबूलाल मरांडी मौसमी नेता नहीं हैं। वह हर वक्त राजनीति करते हैं। राजनीति ही उनका मुख्य पेशा है। दूसरी ओर बाबूलाल मरांडी का कोई बिजनेस नहीं है। भाई भतीजा को विरासत में राजनीति नहीं सौंपनी है। दूसरे नेताओं में कुछ न कुछ ये चीजें होती हैं। किसी नेता को पत्नी को आगे बढ़ाने की मंशा होती है, तो कोई बेटा-भाई और अन्य रिश्तेदार को विरासत सौंपना चाहता है। वहीं बाबूलाल मरांडी के पास इसमें से कोई भी बीमारी नहीं है। उन्हें न पत्नी को स्थापित करना है और न बेटे को नेतागिरी का ताज सौंपना है। बाबूलाल मरांडी राजनीति के सहारे सिर्फ लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं। इसी कारण तमाम विषम परिस्थतियों में भी वह खड़े हैं। कभी पैसे के पीछे भी नहीं भागे । शायद यही कारण है कि कोलेबिरा की जनता ने बाबूलाल, सुबोधकांत सहाय और डॉ अजय कुमार सरीखे नेताओं पर भरोसा किया है।

अस्मिता के साथ राजनीति के नये रास्ते की तलाश
कोलेबिरा उपचुनाव के परिणाम से कोई अप्रत्याशित राजनीतिक निष्कर्ष भले ही न निकाला जाये, लेकिन प्रवृति के तौर पर इस क्षेत्र की आदिवासी अस्तित्व की राजनीति और नयी पीढ़ी में आ रहे बदलाओं का संकेत जरूर दिया है। तीन राज्यों के विधानससभा चुनाव के नतीजों ने राष्ट्रीय राजनीति के गैर भाजपा खेमे में एक नयी सरगर्मी पैदा कर दी है। साथ ही चुनावी एकजुटता को लेकर हो रही कवायदों का भी आत्मविश्वास बढ़ाया है। यह कह सकते हैं कि कोलेबिरा विधानससभा उपचुनाव की सियासी हलचल में भी इसका सकारात्मक प्रभाव दिखा है। भा  जपा को हराने के नाम पर गैर भा  जपा महागठबंधनी जमात में ही सभी दल एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंके हुए थे। हालांकि इस बार महागठबंधन में भी गांठ दिखी। कारण झामुमो ने मेनन एक्का का समर्थन किया था। वहीं कांग्रेस ने प्रत्याशी उतारा। इसे झाविमो ने समर्थन किया था। महागठबंधनी राजनीति का शीराजा इस कदर बिखर गया है कि उम्मीदवार खड़ा करने और समर्थन देने के सवाल पर सभी ने अपने-अपने कुनबे खड़ा कर लिये। यह उपचुनाव एनोस एक्का के एक पारा टीचर हत्याकांड में सजायाफ्ता हो जाने से उनकी विधायकी समाप्त हो जाने के कारण हुआ। आदिवासी आरक्षित सीट होने के कारण सभी प्रत्याशी स्थानीय आदिवासी ही थे। इस विधानसभा  क्षेत्र में आदिवासी बहुलता होने के कारण आदिवासी राजनीति भी एक निर्णायक पहलू था, जिसके लिए सभी दल अपनी विशेष रणनीति के साथ जोर-आजमाइश में भी   ड़े थे। इस सीट पर कभी जीत हासिल नहीं करने वाले सत्ताधारी दल भा  जपा की मुश्किलें विपक्ष के बिखराव से थोड़ी कम होती जरूर दिखीं। इस क्षेत्र के कई इलाकों में माओवादियों और पीएलएफआइ का अच्छा खासा प्रभा  व है और इस राजनीतिक धारा को भी स्थानीय लोगों और नौजवानों का एक हद तक समर्थन प्राप्त है। इसके अलावा आदिवासियों में खड़िया समुदाय की बहुसंख्या होने के साथ चर्च का भी अच्छा खासा प्रभा  व है, जो यहां के हर चुनाव में अपना असर डालता है। ये सारे पहलू ऐसे थे जिन्हें नजरअंदाज कोई नहीं कर सकता। ऐसे में इस क्षेत्र की आदिवासी राजनीति कैसे और क्या करवट लेगी, यह चुनाव परिणाम बता गया।
बतातें चलें कि हिंदी पट्टी के राज्यों से सटे होने के बावजूद झारखंड का जो अपना एक अलग क्षेत्रीय स्वरूप रहा है, तो उसके मूल में आदिवासी समाज और उसकी राजनीति की सघन उपस्थिति है। जो ऊपर से देखने में तो एक जैसी लगती है, लेकिन इसके अंदर कई भी   न्न क्षेत्रीय और स्थानीय सामाजिक केंद्रों का समावेश है, जो अपनी बहुलता वाले इलाके की राजनीति में प्रभा  वी ढंग से अभी   व्यक्त होता है। उदाहरण के लिए उत्तरी झारखंड की राजनीति का केंद्र है संथाल परगना का संथाल बाहुल्य क्षेत्र, तो दक्षिण पूर्व झारखंड का केंद्र है हो बाहुल्य सिंहभ   ूम का इलाका, जिसे कोल्हान भी कहा जाता है। तीसरा केंद्र है राज्य की राजधानी से सटा मुंडा, उरांव और खड़िया बाहुल्य पुरानी रांची कमिश्नरी का इलाका। 81 विधानसभा   क्षेत्र वाले वर्तमान के झारखंड में दो दर्जन से भी अधिक सीटें आदिवासी-अनुसूचित जनजाति सीट के रूप में सुरक्षित हैं।
झारखंड गठन के बाद यहां की आम राजनीति के साथ आदिवासी राजनीति में भी काफी बदलाव आया है। तब भी आदिवासी पहलू इतना महत्वपूर्ण है कि वर्तमान मुख्यमंत्री से पहले के सभी मुख्यमंत्री आदिवासी ही बनाये गये, लेकिन अब इसमें भी आ रहे नये बदलाव का असर आदिवासी राजनीति के शीर्ष से लेकर नीचे जमीनी स्तर तक की सामाजिक हलचल की सोच और व्यवहार में स्पष्ट परीलक्षित हो रहा है। हाल के दिनों में पत्थलगड़ी अभी   यान से उभ   रा सरकार और आदिवासी समाज का टकराव इसी का एक ताजा उदाहरण है। दूसरे, आदिवासी मुद्दों और खासकर जमीन की लूट और राज्य में स्थानीयता जैसे सवालों पर परंपरागत झारखंड नामधारी दलों के रस्मी विरोध से इस समुदाय की नयी पीढ़ी के एक हिस्से में उग्र और अतिवादी सोच लगातार बढ़ रहा है। क्योंकि यह अपनी भा  षा-परंपरा और जंगल-जमीन की खुली संगठित लूट अब बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।
15 साल के बाद कांग्रेस पार्टी ने किया कमबैक
झामुमो से अलग राह पकड़कर कांग्रेस ने यहां बिक्सल कोनगाड़ी पर दांव खेला। प्रचार में पार्टी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। पार्टी को इसाई समुदाय का भी भ   रपूर साथ मिला। लिहाजा कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की। इस जीत के साथ 15 साल के बाद कांग्रेस ने कोलेबिरा में कमबैक किया। जबकि बीजेपी को पहले से ही इस सीट से ज्यादा उम्मीद नहीं थी। बीजेपी ने यहां स्थानीय नेता बसंत सोरेंग को मैदान में उतारा था। प्रचार में दम-खम नहीं झोंका। सीएम से लेकर प्रदेश के तमाम बड़े नेता प्रचार से दूर रहे। वैसे आज तक बीजेपी इस सीट पर जीत दर्ज नहीं करा पायी है।
कोलेबिरा की जीत के दस बड़े कारण
तीन राज्यों में फतह के बाद कांग्रेस ने झारखंड में भी जीत का झंडा बुलंद किया। कांग्रेस ने कोलेबिरा उपचुनाव में विजय हासिल की। कांग्रेस प्रत्याशी बिक्सल कोनगाड़ी ने बीजेपी उम्मीदवार बसंत सोरेंग को 9658 वोटों से हराया। चौथे स्थान पर झारखंड पार्टी की उम्मीदवार मेनन एक्का रहीं।
राज्यभ में कई मुद्दों को लेकर मिशनरीज पर कार्रवाई
सरकार के द्वारा धर्मांतरण बिल लाना
कोलेबिरा में इसाई समुदाय का एकमुश्त कांग्रेस को वोट
कांग्रेस द्वारा इसाई समुदाय के प्रत्याशी को मैदान में उतारना
बिक्सल कोनगाड़ी की क्षेत्र में अच्छी छवि
पूर्व विधायक एनोस एक्का के खिलाफ जनता में नाराजगी
पारा शिक्षक हत्याकांड में सजा पाने के बाद एनोस का जेल जाना
जेल जाने से एनोस की कार्यकर्ता और जनता से दूरी बन गयी
प्रचार से बीजेपी के बड़े नेता दूर रहे, जबकि कांग्रेस ने पूरा जोर लगाया
छत्तीसगढ़ से सटे रहने के कारण चुनाव का भी हुआ असर

प्रगतिशील सरकार की स्थापना करनी है: अजय कुमार
फोटो फोल्डर
रांची। झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार ने कहा कि भा  जपा शासन खत्म कर प्रगतिशील सरकार की स्थापना के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम और महागठबंधन का स्वरूप तय किया जायेगा। अजय कुमार सोमवार को पार्टी कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक प्रगतिशील सरकार की स्थापना के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं के संकल्प के सामने भा  जपा की ताकत नाकाफी साबित होगी। इस मौके पर कांग्रेस विधायक दल नेता आलमगीर आलम ने कहा कि कोलेबिरा विधानसभा   चुनाव परिणाम 2019 का आगाज है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में लोग विश्वास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पारा शिक्षकों की लगातार हो रही मौत चिंताजनक है। इसके लिए 26 दिसंबर को विधानसभा   में स्थगन प्रस्ताव लाया जायेगा।
नये विधायक ने कोलेबिरा की जनता को किया नमन
कांग्रेस के नवनिर्वाचित विधायक नमन बिक्सल कोनगाडी ने कोलेबिरा की जनता का आभा  र जताते हुए कहा कि यह राहुल गांधी के नेतृत्व की जीत है। प्रेसवार्ता में विधायक मनोज यादव, सुखदेव भ   गत, डॉ इरफान अंसारी, बिट्टू सिंह, बादल पत्रलेख उपस्थित थे।
अच्छे लोगों के लिए दरवाजे खुले हैं
डॉ अजय कुमार ने कहा कि एनोस एक्का को अलग कर दें, तो झारखंड पार्टी में कई ऐसे लोग हैं, जो महागठबंधन के लिए मायने रखते हैं। उनके लिए हमेशा दरवाजे खुले हैं।

 

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