रांची। मिशन 2019 को लेकर झारखंड भाजपा दो वर्षों से तैयारी में जुटी हुई हँै। पार्टी स्तर पर संगठन को मजबूत करने को लेकर लगातार कार्यक्रम किये गये। एक तरफ विपक्षी दल महागठबंधन की कवायद में जुटे हुए हैं, वहीं भाजपा अपने सहयोगी दलों को पूछ तक नहीं रही है। पिछले चार वर्षों में एक बार भी भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ बैठक नहीं की। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आजसू और लोजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। चार वर्षों में एक बार भी भाजपा का दरबार इन दलों के लिए नहीं खुला। भाजपा अकेले अपना राग अलापती रही। अब आलम यह है कि आजसू, जो भाजपा की झारखंड में प्रमुख सहयोगी दल है, वह अपनी अलग राह तलाश रही है।
गोमिया उपचुनाव में भाजपा और आजसू की दूरी पहली बार दिखी। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत आजसू ने यह सीट भाजपा के लिए छोड़ी थी, लेकिन उपचुनाव में उसने भाजपा के खिलाफ प्रत्याशी दिया था। भाजपा की तरफ से एक बार भी आजसू को मनाने की पहल नहीं की गयी। एनडीए की बैठक नहीं बुलायी गयी। इतना ही नहीं, चार वर्ष हो गये हैं, अभी तक एनडीए समन्वय समिति का गठन नहीं किया गया। गठबंधन की प्राथमिकता तय नहीं की गयी। जब-जब विधानसभा का सत्र हुआ, उस समय सिर्फ एनडीए विधायक दल की बैठक कर औपचारिकता को पूरा कर लिया गया। कभी भी भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ तारतम्य बैठने का प्रयास नहीं किया। लोजपा में भी भाजपा के साथ रहने को लेकर खटराग शुरू हो गया है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले कुछ छोटी पार्टियां झारखंड में भाजपा के साथ दिख रही थीं। कई मौके पर पूर्व मंत्री भानु प्रताप शाही की पार्टी नौजवान संघर्ष मोर्चा, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पार्टी जय भारत समानता पार्टी और पूर्व मंत्री एनोस एक्का की झापा भाजपा के साथ थी। विधानसभा सत्र और राज्यसभा चुनाव में इन दलों ने भाजपा प्रत्याशी को समर्थन किया था। उस समय भाजपा इन्हें अपने खेमे में करने में सफल रही थी। लगातार इन दलों के नेता भाजपा से संपर्क बनाये हुए थे, लेकिन काम होने के बाद भाजपा ने इन्हें तरजीह नहीं दी। अब तीन राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद देश की राजनीति का सीन पहले से अलग है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की जीत ने कांग्रेस पार्टी को ऊर्जा देने का काम किया है। छोटे दलों को भी अब लगने लगा है कि भाजपा के साथ वे नहीं चल सकते। लिहाजा सभी ने अपनी अलग राह तलाशनी शुरू कर दी है।
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने विधायक पत्नी गीता कोड़ा के साथ कांग्रेस का दामन थाम लिया है। नौजवान संघर्ष मोर्चा के भानु प्रताप शाही अपने हिसाब से राजनीति कर रहे हैं और जो बातें सामने आ रही हैं, उनके मुताबिक वह भाजपा के साथ नहीं आयेंगे। पूर्व मंत्री एनोस एक्का की पत्नी मेनन एक्का को कोलेबिरा उपचुनाव में समर्थन देकर झामुमो और राजद ने इस बात का इशारा कर दिया है कि वह भी यूपीए में ही रहेंगी। विपक्ष एक रणनीति के तहत काम कर रहा है, लेकिन भाजपा सहयोगी दलों को भाव नहीं दे रही है।
यही वजह है कि भाजपा की प्रमुख सहयोगी दल आजसू लगातार सरकार विरोधी अभियान चला रही है। आजसू प्रमुख सुदेश महतो स्वाभिमान यात्रा के माध्यम से जनता के बीच सरकार को खुल कर कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। कोई ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसको लेकर सुदेश महतो सरकार पर आंखें नहीं तरेर रहे हैं। प्रमुख सहयोगी दल के तल्ख तेवर को देखकर भी भाजपा आंखें मुंदी हुई हैं।
भाजपा प्रदेश नेतृत्व की तरफ से एक बार भी प्रयास नहीं किया गया कि इस मामले पर वह आजसू नेतृत्व से बात करे। इतना ही नहीं, पिछले चार वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आधा दर्जन बार झारखंड में कार्यक्रम हुआ। एक बार भी भाजपा की तरफ से यह कोशिश नहीं की गयी कि आजसू नेतृत्व से उनकी मुलाकात करायी जाये, जबकि चुनाव से पहले गठबंधन को लेकर दिल्ली में भाजपा आलाकमान के साथ आजसू की बैठक हुई थी। सहयोगी दल की बात तो अलग है, भाजपा के अंदर भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
जिस तरह भाजपा ने वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में विरोधी दलों के विधायकों को तोड़ने का काम किया था, अब दूसरे दल से भाजपा में आये अधिकांश विधायक नये ठौर की तलाश में हैं। जानकारी के अनुसार आधे दर्जन के करीब भाजपा विधायक दल छोड़ने का मूड बना रहे हैं। इसमें तो एक-दो ऐसे हैं, जो सरकार में मंत्री हैं या मंत्री का दर्जा प्राप्त बोर्ड-निगम में अध्यक्ष के पद पर हैं। बताया जा रहा है कि इन विधायकों की झामुमो, कांग्रेस और झाविमो से बात चल रही है। सबसे ज्यादा झुकाव झामुमो की तरफ है।
भाजपा विधायक ढुल्लू महतो के बारे में तो यह कहा जा रहा है कि वह झामुमो से एक लोकसभा और पांच विधानसभा सीट पर अपने चहेते को टिकट दिलाने के नाम पर बात कर चुके हैं।
कहा यह जा रहा है कि झामुमो का लगातार गिरिडीह लोकसभा सीट पर महागठबंधन में दावेदारी इसी कारण से हो रहा है। उसी तरह सरकार के कृषि मंत्री रणधीर सिंह का झुकाव भी झामुमो की तरफ है। जो बातें सामने आ रही हैं, उनके हिसाब से कई ऐसी सीटें हैं, जहां से भाजपा विधायक साथ छोड़नेवाले हैं। समय रहते भाजपा नहीं चेती तो चुनाव पूर्व भाजपा में बड़ी भगदड़ होगी, जो भाजपा के मिशन 2019 पर भारी पड़ सकता है। वैसे भी तीन राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा के ही कई बड़े नेता पार्टी को समय रहते संभलने की सलाह दे रहे हैं।
भाजपा के केंद्रीय स्तर के रणनीतिकार भी तीन राज्यों के चुनाव परिणाम को झारखंड के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं। जिस तरह से अपनों में चुनाव पूर्व भगदड़ है और सहयोगी दल अलग राप अलाप रहे हैं, यह अच्छा संकेत नहीं है। आजसू ने तो सभी विधानसभा सीट पर प्रत्याशी देने की घोषणा तक कर दी है। बिहार में भाजपा की सहयोगी पार्टी जदयू भी झारखंड में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है।
बहरहाल यह कहा जा सकता है कि अपने अच्छे प्रदर्शन को भाजपा जारी रखना चाहती है, तो अभी से सहयोगियों को एक मंच पर लाने की कवायद शुरू कर दे।