भाजपा की राह में फूल ही नहीं, कांटे भी हैं
राज्य में सत्ता की चाबी किसके हाथ लगेगी, यह बहुत हद तक 12 दिसंबर को तय हो जायेगा। इस चरण की 17 सीटों में से दस सीटों पर भाजपा ने वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में कब्जा जमाया था। लेकिन इस बार भाजपा की राह में आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो और झाविमो के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी चट्टान की तरह खड़े हैं। झारखंड की राजनीति में अपनी ताकत का विस्तार करने और अपने राजनीतिक रसूख को स्थापित करने के लिए झाविमो सुप्रीमो ने खुद को झोंक दिया है। पहली बार 81 सीटों पर प्रत्याशी देकर बाबूलाल ने जहां अपनी ताकत का एहसास कराया है। झाविमो एकमात्र पार्टी है, जिसने सभी 81 सीटों पर उम्मीदवार उतारा है। बाबूलाल के बारे में यह बात कही जाती है कि वह विषम से विषम परिस्थितियों के बावजूद उबरकर खड़े हो जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद उनकी पार्टी के आठ में से छह विधायक एक साथ भाजपा में चले गये थे। इसके बाद उनकी पार्टी के कई कद्दावर नेताओं ने किनारा कर लिया था। तब यह कहा जा रहा था कि बाबूलाल की पार्टी शायद ही फिर से मजबूती के साथ खड़ी हो पाये, लेकिन ऐसी आशंकाओं की धूल झाड़ते हुए वह जिस तरह खड़े हुए हैं, उससे उनके धुर विरोधी भी हैरान हैं। बीते लोकसभा चुनाव में अन्नपूर्णा देवी के हाथों पराजय झेलने के बाद भी उनका मनोबल ऊंचा है और इस बार धनवार सीट पर जीत हासिल करने के लिए उन्होंने पूरी ताकत लगा दी है। पांच लाख नये सदस्य बनाने और धुर्वा के प्रभात तारा मैदान में उमड़ी चालीस हजार की भीड़ ने उन्हें आत्मविश्वास से लबरेज कर रखा है। धनवार सीट पर बाबूलाल मरांडी का मुकाबला मौजूदा विधायक भाकपा माले के राजकुमार यादव, झामुमो के निजामुद्दीन अंसारी और भाजपा के लक्ष्मण प्रसाद सिंह से होना है। हालांकि निर्दलीय प्रत्याशी अनूप संथालिया भी इस सीट पर बाबूलाल मरांडी से दो-दो हाथ करने की चाहत लिये कमर कस कर चुनाव के मैदान में उतर गये हैं। यहां आदिवासी और मुस्लिम वोटरों को साधने की लड़ाई है। धनवार के कोदाईबांक में बाबूलाल मरांडी का पैतृक घर है। ऐसे में बाबूलाल को उम्मीद है कि आदिवासी और मुस्लिम वोटरों का बड़ा तबका उनके साथ आयेगा।
भाजपा की राह में आज की तारीख में सबसे बड़ी चट्टान के रूप में कोई खड़ा है, तो वह हैं सुदेश कुमार महतो। इस चुनाव में उन्होंने अपनी अलग राह नापी है। सिर्फ राह ही नहीं नापी है, 53 सीटों पर उम्मीदवार उतार कर उन्होंने झारखंड की राजनीति में जोर का धमाका किया है। यह पहला अवसर है, जब आजसू में कई सारे कद्दावर नेताओं का जमावड़ा लगा है। सच कहा जाये, तो सुदेश महतो की कार्यशैली और आजसू की नीतियों से प्रभावित होकर कई दलों के कद्दावर नेताओं ने आजसू का दामन थामा है और चुनाव में वे गठबंधन के साथ-साथ भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इनमें आधा दर्जन तो राज्य स्तरीय नेता हैं, जो कांग्रेस, भाजपा और झामुमो का दामन छोड़ कर आजसू से अपना भाग्य आजमा रहे हैं। प्रदीप बलमुचू, राधाकृष्ण किशोर, शिवपूजन मेहता, अकील अख्तर सरीखे नेताओं के आने से आजसुू का वजन बढ़ा है। उनके आने से आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के आत्मविश्वास में भी गजब का उफान आया है और यही कारण है कि उन्होंने इस बार सीधे-सीधे भाजपा को चुनौती देकर इस बार गांव की सरकार का नारा दे दिया है। वे सभाओं में समान रूप से झामुमो, कांग्रेस और भाजपा पर हमला बोल रहे हैं। सुदेश महतो का कहना है कि वे विकास के मुद्दों को लेकर गांव और कस्बे के लोगों तक पहुंच रहे हैं।
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भाजपा ने इस बार लगभग आधा दर्जन बड़े नेताओं को झामुमो और कांग्रेस से तोड़ा है। बाजी अपने हाथ में करने के लिए ही उसने लोहरदगा सीट पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को पार्टी में शामिल करा कर मैदान में उतारा, तो पांकी सीट पर शशिभूषण मेहता, भवनाथपुर सीट पर भानुप्रताप शाही और बरही सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे मनोज यादव और मांडू सीट से झामुमो के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को टिकट देकर बड़ा दांव खेला है। कुल मिला कर भाजपा के लिए तीसरे चरण में कोडरमा, बरकट्ठा, बरही, बड़कागांव, रामगढ़, मांडू, हजारीबाग, सिमरिया, धनवार, गोमिया, बेरमो, ईचागढ़, सिल्ली, खिजरी, हटिया, कांके और रांची सीटों से काफी उम्मीद है। और सच यही है कि ये सीटें ही भाजपा के भाग्य का फैसला करेंगी। इन सीटों में ज्यादातर सीटें शहर से हैं, जिन्हें भाजपा का मजबूत किला माना जाता है। इन किलों पर कब्जा के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ-साथ तमाम केंद्रीय नेता भी जोर लगाये हुए हैं। लगभग आधा दर्जन बड़े केंद्रीय मंत्री झारखंड में धुआंधार प्रचार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री तीसरी बार सोमवार को झारखंड आ रहे हैं और गृह मंत्री तीन बार दौरा कर चुके हैं। उनके आने का सिलसिला अभी जारी रहेगा। झारखंड के किले को बचाये रखने के लिए जहां मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सब कुछ झोंक दिया है, वहीं प्रधानमंत्री और गृह मंत्री भी सहज उपलब्ध हैं। यही कारण है कि भाजपा का उत्साह चरम पर है और लगातार वह दावा कर रही है कि बाजी उसके हाथ आयेगी।