केंद्र सरकार के उपक्रम दामोदर घाटी निगम, यानी डीवीसी ने झारखंड सरकार से बकाया वसूलने के लिए इसके सात जिलों की बिजली काटने की चेतावनी दी है। जाहिर है कि इस चेतावनी के बाद चिंता बढ़ी है, क्योंकि इससे पहले मार्च में भी डीवीसी इस तरह की हरकत कर चुका है। झारखंड सरकार पर डीवीसी का करीब पांच हजार करोड़ रुपये बकाया है। यह बकाया नवंबर 2019 तक का है, यानी वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल का कोई भी बकाया नहीं है। हेमंत सोरेन सरकार को सत्ता संभाले अभी एक साल ही हुए हैं और इसमें से आठ महीने तो कोरोना संकट और लॉकडाउन में ही निकल गये। इसके बावजूद डीवीसी ने तीसरी बार यह चेतावनी दी है। मार्च में पहली बार तो उसने बिजली काट दी थी और अक्टूबर में झारखंड सरकार के खाते से ही 1417.50 करोड़ रुपये निकाल लिये। आखिर डीवीसी झारखंड के साथ बार-बार ऐसा क्यों कर रहा है। क्या उसे लगता है कि वह इस तरह का व्यवहार कर झारखंड में अपना कारोबार जारी रख सकेगा। डीवीसी को यह भी सोचना चाहिए कि यदि झारखंड में उसका विरोध शुरू हुआ, तो उसके लिए कारोबार चलाना भी मुश्किल हो जायेगा। झारखंड को चेतावनी देकर डीवीसी ने उस प्रदेश पर रोब गांठने की कोशिश की है, जिससे उसका पूरा कारोबार चलता है। इसलिए अब समय आ गया है कि डीवीसी को उसकी ही भाषा में माकूल जवाब दिया जाये। डीवीसी की चेतावनी पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
बात इस साल मार्च की है। सबसे बड़े सामुदायिक त्योहार होली के दिन 10 मार्च को राज्य के सात जिलों में बिजली नहीं थी। बिना किसी चेतावनी के भारत सरकार के उपक्रम दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) ने धनबाद, रामगढ़, हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह और बोकारो की बिजली काट दी। राज्य की एक तिहाई आबादी तीन दिन तक पानी और बिजली के लिए तरसती रही। डीवीसी का कहना था कि बकाया वसूलने के लिए उसने बिजली काटी है। तीन दिन तक काफी मनुहार के बाद डीवीसी ने इन जिलों की बिजली बहाल की। इसके बाद अक्टूबर में डीवीसी ने झारखंड पर अपने बकाये के लिए केंद्र सरकार से गुहार लगायी और त्रिपक्षीय समझौते का हवाला दिया।
इस पर केंद्र सरकार ने आनन-फानन में झारखंड सरकार के खाते से 1417.50 करोड़ रुपये काट लिये और डीवीसी को दे दिया। अब एक बार फिर डीवीसी ने झारखंड की बिजली काटने की चेतावनी दी है। डीवीसी का दावा है कि झारखंड पर उसका करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रुपया बकाया है और इसका भुगतान नहीं होने से उसकी आर्थिक स्थिति पर असर पड़ रहा है।
डीवीसी द्वारा बार-बार इस तरह की बांह मरोड़ने की कार्रवाई के बाद अब इस कंपनी के खिलाफ झारखंड में माहौल बनने लगा है। स्वतंत्र भारत की पहली बहुद्देशीय जल विद्युत परियोजना के रूप में सात जुलाई 1948 को अस्तित्व में आये दामोदर घाटी निगम की कार्रवाई पर कई सवाल उठ रहे हैं। इन सवालों से इतर इस पूरे घटनाक्रम में राजनीति की बू भी आ रही है, जैसा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा भी है।
इसके अलावा बड़ा सवाल यह भी है कि झारखंड के कोयले और पानी के अलावा जमीन पर चलनेवाली कंपनी झारखंड के लोगों के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकती है। डीवीसी ने जिन जिलों की बिजली काटने की चेतावनी दी है, वहां उसके अधिकारी और कर्मचारी भी रहते हैं। उनके सामने भी बिजली और पानी की किल्लत पैदा होगी। डीवीसी का तर्क है कि बकाये का भुगतान नहीं होने से झारखंड में मौजूद उसकी बिजली उत्पादक इकाइयां बंद हो सकती हैं। झारखंड में डीवीसी की बिजली उत्पादन इकाइयां बोकारो थर्मल, चंद्रपुरा और कोडरमा में हैं। डीवीसी का कहना है कि बकाया होने के कारण वह कोयला कंपनियों को भुगतान नहीं कर पा रहा है। इसके कारण उसे कोयले की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। लेकिन सवाल यह है कि यदि झारखंड की जमीन, पानी और कोयले का इस्तेमाल करने के बावजूद कोई कंपनी यहीं के लोगों का जीवन मुश्किल में डाल दे, तो फिर ऐसी कंपनी को यहां क्यों कारोबार करने दिया जाये। ऐसा नहीं है कि झारखंड ने डीवीसी का भुगतान नहीं किया है। और ऐसा भी नहीं है कि झारखंड किसी निजी उद्योगपति की तरह विदेश भाग जायेगा। ऐसे में राज्य भर में उसके खिलाफ एक माहौल खड़ा हो रहा है। लोग अब डीवीसी का विरोध करने का मन बना रहे हैं। यदि डीवीसी के कारण कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हुई, तो इसकी जिम्मेदारी निश्चित तौर पर उसकी ही होगी।
डीवीसी की कार्रवाई खुद डीवीसी के लिए ही नुकसानदेह साबित हो सकती है, क्योंकि उसके कारोबार का बड़ा हिस्सा झारखंड पर ही निर्भर है। यदि झारखंड ने उसका कोयला और पानी रोक दिया, तो उसके सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जायेगा। डीवीसी का बकाया है, इससे किसी को इनकार नहीं है। झारखंड डीवीसी का पूरा बकाया चुका देगा, बस उसे थोड़े वक्त की जरूरत है। यदि डीवीसी इतना भी नहीं कर सकता है, तो फिर इस राज्य से उसे अपना बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए, क्योंकि जहां उसकी दुकान है, उस इलाके के प्रति उसकी भी कोई जिम्मेदारी बनती है।
डीवीसी का कहना है कि झारखंड पर उसका बकाया नवंबर, 2019 तक का है। इसका मतलब यह हुआ कि यह बकाया वर्तमान सरकार के कार्यकाल का नहीं है। कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण पूरे देश की स्थिति खराब है। झारखंड तो वैसे भी बेहद खराब स्थिति में है। पिछले साल दिसंबर में जब हेमंत सोरेन ने सत्ता संभाली थी, तब उन्होंने साफ कर दिया था कि वह केंद्र से टकराव की स्थिति पैदा नहीं करेंगे, बल्कि झारखंड के विकास के लिए मिल कर काम करेंगे। बाद में भी उन्होंने अपना यही इरादा दोहराया और यह कहना गलत नहीं होगा कि वह कमोबेश अपने इरादे पर कायम रहे। लेकिन डीवीसी की कार्रवाई केंद्रीय उपक्रमों का झारखंड के प्रति रवैया साफ कर देता है। कोरोना संकट के इस दौर में झारखंड को केंद्र से क्या मिला और क्या नहीं मिला, इस पर विवाद हो सकता है, लेकिन एक बात तय है कि झारखंड आज हर चीज का मोहताज हो गया है।
पिछले अक्टूबर में जब रिजर्व बैंक ने झारखंड के खाते से रकम काट ली थी, तब हेमंत सोरेन ने एक बड़ा सवाल यह खड़ा किया था कि आखिर झारखंड के साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया जा रहा है। जो राज्य पूरे देश को कोयला और दूसरे खनिज पदार्थ देता है, उसके साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों हो रहा है। हेमंत के ये सवाल आज भी अनुत्तरति हैं।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि अपनी बेशुमार खनिज संपदाओं के कारण चर्चित झारखंड को केंद्र का मजबूत समर्थन चाहिए। हेमंत सरकार अपनी पूरी ताकत और हर उपलब्ध संसाधन का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन नये संकट पैदा कर उसकी राह में बाधाएं खड़ी की जा रही हैं। ऐसे में झारखंड यदि सीधे-सीधे टकराव पर उतर जाये, तो पूरे देश की बत्ती गुल हो जायेगी। इतना ही नहीं, देश का पहिया ही थम जायेगा।