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    Home»Jharkhand Top News»कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने में झारखंड अव्वल
    Jharkhand Top News

    कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने में झारखंड अव्वल

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 20, 2020No Comments6 Mins Read
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    बात चाहे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की हो या फिर हाइकोर्ट की। कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने में झारखंड अव्वल रहा है। बात चाहे पूर्व सीएम के आवास को खाली करने की हो, या फिर गाड़ियों से नेम प्लेट हटाने की। नेम प्लेट हटाने को लेकर हाइकोर्ट ने एक बार फिर फैसला सुनाया है, लेकिन इसके पहले भी कोर्ट का इस बाबत निर्देश आ चुका है। उस समय भी सरकार की तरफ से आदेश जारी हुआ था। नेम प्लेट हटाने का अभियान भी चला, लेकिन कुछ ही दिनों में मामला ठंडा पड़ गया। कारण यह मामला रसूखदारों से संबंधित था। यही नहीं, पूर्व सीएम के बंगला खाली करने के संबंध में आये आदेश का काट भी झारखंड ने निकाल लिया। हालांकि आदेश के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपना बंगला जरूर खाली कर दिया था, लेकिन कुछ ही वर्षों में फिर वह वापस आ गये। विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं कि सीएम पद की कुर्सी एक बार पा लेने से जीवन भर के लिए बंगला क्यों मिलना चाहिए। नैतिकता नाम की भी कोई चीज झारखंड में बची है या नहीं। कोर्ट के निर्देश को कैसे झारखंड में हवा-हवाई किया जा रहा है, इसी पर आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव की रिपोर्ट।

    झारखंड हाइकोर्ट के निर्देश के बाद गाड़ियों में पदनाम वाले नेम प्लेट हटाने के आदेश का सबसे बड़ा झटका सियासी दलों के उन नेताओं को लगा है, जो अभी तक कार के अगले हिस्से में नेमप्लेट लगाकर चलते हैं। इसकी आड़ में रौब झाड़ते रहते हैं। आदेश के अनुसार सांसद और विधायक भी अब अपनी कार में अपना पदनाम नहीं लिख पायेंगे। सवाल भी है कि कारों पर से पदनाम की पट्टी हटने के बाद आम लोगों में खास रुतबे की पहचान कैसे होगी। आलम यह है कि पार्षद, मुखिया, सरपंच, निगम-बोर्डों के सदस्य की तो छोड़ दीजिए, राजनीतिक दलों के पदधारी भी गाड़ियों में बड़े बड़े अक्षरों में पदनाम लिख कर चलना शुरू कर दिया है। इस क्रम में कुछ सफेदपोश और कागजों में सीमित निजी संगठनों के पदाधिकारियों ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए अपनी कारों के आगे अपनी धार्मिक पदवियों की तख्तियां लगानी शुरू कर दीं। राजनीतिक दलों के ब्लाक स्तर का भी पदाधिकारी अपनी कार पर नेम प्लेट लगा कर अपने आपको वीआइपी मानने लगा है। अब कोर्ट के फैसले से यह पूरी तरह से साफ हो गया है कि वीआइपी संस्कृति को खत्म किया जाये।
    आखिर कब समाप्त होगा वीआइपी कल्चर
    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकारी और निजी वाहनों में नेम प्लेट और पदनाम का बोर्ड लगाने वालों के खिलाफ राज्य में कार्रवाई नहीं होने पर हाइकोर्ट ने नाराजगी जाहिर करने के साथ सख्ती दिखायी है। झारखंड हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने शुक्रवार को गजाला तनवीर की याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा है कि वाहनों में पदनाम और बोर्ड लगा कर चलने वालों को सरकार छूट देकर वीआइपी कल्चर को बढ़ावा दे रही है।
    कोर्ट ने सुनवाई के दौरान परिवहन सचिव से पूछा भी कि आखिर बोर्ड क्यों नहीं हटाये जा रहे, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने वीआइपी कल्चर को समाप्त करने के लिए ही वाहनों से बीकन लाइट और नेम प्लेट हटाने का निर्देश दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से पक्ष रखते हुए अधिवक्ता फैसल अल्लाम ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि किसी भी वाहन में किसी भी पदनाम और नाम का प्लेट और बोर्ड नहीं लगाया जा सकता। लेकिन झारखंड में इसका पालन नहीं किया जा रहा है। सरकारी अधिकारी से लेकर राजनीतिक दल के कार्यकर्ता और अन्य लोग भी बोर्ड लगा कर चल रहे हैं, लेकिन सरकार कुछ नहीं कर रही है।
    पूर्व सीएम से बंगला खाली कराने का आदेश भी हवा-हवाई
    सात मई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास दिये जाने के खिलाफ फैसला सुनाया था। इसमें कहा गया था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले खाली करने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास दिये जानेवाले कानून को रद्द कर दिया और कहा कि यह संविधान के खिलाफ है। यह कानून समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है और मनमाना है। झारखंड में इस मामले को लेकर तत्कालीन आरटीआइ कार्यकर्ता दिवान इंद्रनील सिन्हा ने जनहित याचिका दायर की। पीआइएल पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन सरकार की तरफ से सात नवंबर 2018 को जवाब दिया गया। सरकार ने अपने जवाब में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास और अन्य सुविधाएं ना दिये जाने का आदेश पूरी तरह से लागू है। जब दिवान इंद्रनील सिन्हा ने हाइकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास को लेकर जनहित याचिका दायर की थी तो हेमंत सोरेन पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से सरकारी आवास में थे। कोर्ट में मामला जाते ही उन्होंने नियमसम्मत सरकारी आवास को नेता प्रतिप्रक्ष के नाम पर आवंटित करने का अनुरोध किया। भवन निर्माण विभाग ने हेमंत सोरेन के अनुरोध पर उनके सरकारी आवास को नेता प्रतिपक्ष के नाम पर आवंटित कर दिया। वहीं, बाबूलाल मरांडी ने गरमाये माहौल को देखते हुए मोरहाबादी स्थित अपना सराकरी आवास कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया था। मामला ठंडे बस्ते में जाते ही वह दोबारा से सरकारी आवास में शिफ्ट कर गये। वहीं मधु कोड़ा ने अपने सरकारी आवास को अपनी विधायक पत्नी के नाम पर आवंटित करने का अनुरोध किया था। विभाग ने पूर्व विधायक गीता कोड़ा के नाम पर आवास आवंटित कर दिया, लेकिन 2019 में गीता कोड़ा सांसद बन गयीं। लिहाजा एक बार फिर से मधु कोड़ा का सरकारी आवास अवैध रूप से रहनेवालों की श्रेणी में आ गया। उसी तरह अर्जुन मुंडा भी पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से सरकारी आवास में हैं। इससे साफ है कि जहां नेताओं को अपने लाभ-हानि की बात आती है, तो सभी नियम-कायदे ताक पर रख दिये जाते हैं और जब आम जन से जुड़ा मामला आता है, तो सख्ती सामने आ जाती है। आम जन दो गज जमीन पर अगर रोजी-रोजगार करना चाहे, तो प्रशासन का हथौड़ा हर समय तैयार रहता है और इधर साधन संपन्न नेता किसी भी हाल में सरकारी आवास को छोड़ना नहीं चाहते।

    Jharkhand topped in defying court order
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