अगर आज कोई आपसे कहे कि मैं राजनीति में करियर बना रहा हूं, तो आप उसे पागल या सनकी ही कहेंगे। सवाल है कि मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, टीचिंग, मार्केटिंग आदि क्षेत्रों में करियर बनाया जा सकता है, तो राजनीति में क्यों नहीं? यह सच है कि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता, लेकिन यह भी पूरी तरह सही है कि अगर इरादे सच्चे हों, तो बाकी ज्यादातर क्षेत्रों में सिर्फ आप अपने लिए काम करते हैं, जबकि राजनीति में करियर बनाकर आप देश और राज्य की बेहतरी में योगदान दे सकते हैं और आमजन की सेवा कर सकते हैं। झारखंड 20 साल का जवान हो गया है। वह जवानी की अंगड़ाई ले रहा है। वहीं दूसरी ओर झारखंड विधानसभा में भी युवा विधायक राजनीति को नयी दिशा देने को आतुर दिख रहे हैं। पहले से ही विधानसभा में कमोवेश हर दल से युवा विधायक चुनाव जीत कर आये हैं। अभी हाल में हुए उपचुनाव में बेरमो से अनुप सिंह और दुमका से बसंत सोरेन ने चुनाव जीतकर युवा विधायकों की संख्या में इजाफा कर दिया है। वैसे झारखंड की राजनीति में सबसे कम उम्र की युवा विधायक अंबा प्रसाद हैं। झारखंड की राजनीति में युवा विधायकों की धमक पर प्रस्तुत है आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव की रिपोर्ट।
झारखंड विधानसभा के चुनाव में जहां रिश्तों की भी खूब डोर बंधी। वहीं युवा चेहरों के साथ परिवार की विरासत बचाने को लेकर मैदान में उतरे रणबांकुरों को जनता का संबल मिला। झारखंड की सियासत में एक बार फिर नये दौर का आगाज हुआ है। जनता ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले महागठबंधन को सत्ता सौंपी। आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के अनुयायी और राजनीतिक परिवार से आने वाले हेमंत दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। इससे पहले उन्होंने 2013 में झारखंड के सबसे कम उम्र के सीएम के रूप में सत्ता संभाली थी। अब बीस वर्ष का युवा झारखंड युवा जोश के साथ आगे बढ़ रहा है। झारखंड विधानसभा चुनाव में 41 प्रतिशत युवा विधायक बने। चुनाव में कुल 1216 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत अजमायी थी। इसमें से 70 प्रतिशत युवा प्रत्याशी थे। चुने गये विधायकों में से सबसे अधिक युवाओं की संख्या भाजपा और झामुमो से थे। भाजपा और झामुमो से 11-11 युवा थे। जबकि झाविमो और राजद से दो-दो, कांग्रेस से छह, आजसू और निर्दलीय से एक-एक उम्मीदवार शामिल थे। युवा नेता में हेमंत सोरेन ऐसे युवा रहे, जो हमेशा बरहेट सीट से जीतते रहे। चुनाव में सबसे अधिक संख्या में युवाओं ने जीत दर्ज की है। 2014 के चुनाव में 81 प्रत्याशियों में से 30 प्रत्याशी युवा विधायक बने थे। जबकि कई युवा और पुराने युवा चेहरे चुनाव हार गये थे। इसमें आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो भी शामिल थे। इस बार सुदेश महतो ने शानदार वापसी की। युवाओं के सामने कड़े संघर्ष करते रहने का संदेश दिया। साथ ही झारखंड विधानसभा में इस बार 10 महिला विधायक निर्वाचित हुर्इं। इनमें कांग्रेस से चार, भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा से तीन-तीन विधायक हैं। 2014 में आठ महिलाएं विधानसभा पहुंची थीं। वहीं बेरमो की सीट दिग्गज नेता के निधन के बाद खाली हुई, तो इस पर युवा चेहरे अनुप सिंह को ही जनता ने जीत दिलायी। वहीं हेमंत सोरेन ने जब दुमका की सीट छोड़ी, तो वहां भी बसंत सोरेन को जनता ने सिर आंखों पर बैठाया। वहीं सबसे कम उम्र की विधायक बड़कागांव की अंबा प्रसाद हैं। पिता जेल में और मां तड़ीपार होने के बाद उन्होंने राजनीति में एक नयी इबारत लिख दी। वहीं झारखंड के तमाम युवा विधायक न सिर्फ क्षेत्र की समस्याओं को लेकर विधानसभा बल्कि सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक आंदोलनरत हैं। युवा विधायकों की देखादेखी अब तो बुजुर्ग विधायक भी उनके नक्शेकदम पर चल पड़े हैं। एक ओर जहां हेमंत सोरेन, अंबा प्रसाद, ममता देवी, दीपिका पांडेय सिंह, अमित मंडल, इरफान अंसारी, विकास मुंडा, अनुप सिंह, बसंत सोरेन समेत अन्य युवा विधायक क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को टटोलने के बाद उचित मंच पर पहुंचा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर विधानसभा में भी अपनी बातों को बहुत ही मुखर अंदाज में तार्किक तरीके से उठाते हैं। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि युवाओं का राजनीति में आना अच्छा संकेत है, वह भी तब जब झारखंड जवान हो रहा है। युवा जोश ही जवान होते झारखंड को नयी दिशा दे सकता है। वैसे विधानसभा में अनुभव की भी कोई कमी नहीं दिखती है। एक ओर जहां नलिन सोरेन, रामेश्वर उरांव, आलमगीर आलम, स्टीफन मरांडी, बाबूलाल मरांडी जैसे सरीखे कद्दावर नेताओं का जोश है, तो दूसरी ओर युवा जोश भी झारखंड को नयी गति और दिशा देने को व्याकुल दिख रहा है। निश्चित तौर पर पांचवीं विधानसभा झारखंड की तकदीर संजाने और संवारने को व्याकुल है। युवा जोश और अनुभव का संगम झारखंड के माथे पर लगे कुछ कलंक जैसे, पलायन, मानव तस्करी को मिटाने में कामयाब होगा।
41 प्रतिशत युवा, तो 11 प्रतिशत बुजुर्ग विधायक
झारखंड विधानसभा चुनाव में 41 प्रतिशत युवा विधायक बने हैं। चुनाव में कुल 1216 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत अजमायी थी। इसमें से 70 प्रतिशत युवा प्रत्याशी थे। चुने गये विधायकों में से सबसे अधिक युवाओं की संख्या भाजपा और झामुमो से है। भाजपा और झामुमो से 11-11 युवा हैं। वहीं चुनाव में 30 प्रतिशत बुजुर्ग प्रत्याशियों ने भाग्य आजमाये। इसमें से 11 प्रतिशत ने बाजी मारी। इसमें कई ऐसे नाम हैं, जो पहले भी चुनाव जीत चुके हैं। जिनमें मुख्य रूप से स्टीफन मरांडी, रामचंद्र चंद्रवंशी, चंपाई सोरेन आदि शामिल हैं।
राजनीतिक बगिया में तैयार होती युवा राजनीतिज्ञों की पौध
युवा झारखंड की राजनीतिक बगिया काफी समृद्ध है। यहां युवाओं की पौध नित तैयार हो रही है। इस पौध को तैयार करने में जुटे हैं विभिन्न छात्र संगठन जो छात्र हित में आये दिन सड़कों पर उतरते हैं और विश्वविद्यालय तथा कॉलेजों में प्रदर्शन करते नजर आते हैं। तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी छात्र इकाई को मजबूत कर युवाओं को मौका दिया है। कांग्रेस का छात्र संगठन एनएसयूआइ, राजद का छात्र राजद, झारखंड मुक्ति मोर्चा का झारखंड छात्र मोर्चा, भाजपा का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और आजसू छात्र संघ इस बगिया को सींचने में जुटे हैं। अधिकांश राजनीतिक दल अपने युवा मोर्चा और छात्र संगठनों का मार्गदर्शन भी करते रहते हैं। आज झारखंड की राजनीति में देखा जाये, तो कई ऐसे राजनेता हैं, छात्र राजनीति से ही उभर कर आये हैं। इनमें राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री और विधायक सुदेश कुमार महतो का नाम प्रमुख है। इसके अलावा भाजपा विधायक अनंत ओझा, झामुमो विधायक चमरा लिंडा, कांग्रेस विधायक अंबा प्रसाद, कुमार जय मंगल सिंह, झामुमो विधायक बसंत सोरेन आदि सहज ही सामने आ जाते हैं। इसलिए कहते हैं कि झारखंड की राजनीति बगिया में युवाओं की समृद्ध पौध है, जो आनेवाले दिनों में युवा प्रदेश को विकास के मार्ग पर आगे ले जाने में काफी सहायक होगी।