•  कुछ भी हो, कई राज्यों में कांग्रेस का विकल्प बन रही है पार्टी

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम आने में अब कुछ ही समय बचा है, लेकिन दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आम आदमी पार्टी की जबरदस्त जीत के बाद एक साथ बहुत से परिदृश्य उभर कर सामने आ रहे हैं। इसमें सबसे प्रमुख है, इन दो राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद देश की राजनीति में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का लगातार बढ़ता कद। भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी से सूचना के अधिकार की सीढ़ी के सहारे अन्ना आंदोलन के मंच पर चढ़े अरविंद केजरीवाल ने 2013 में एक नयी पार्टी के साथ दिल्ली की राजनीति में कदम रखा था। केवल 10 साल के अंदर ही पार्टी ने देश भर में हुए चुनावों में दस्तक देकर अपना जनाधार बनाया है। आम आदमी पार्टी ने जो भी चुनाव लड़ा, उसमें पार्टी का बड़ा चेहरा केवल अरविंद केजरीवाल ही रहे और उनका दिल्ली का विकास मॉडल कई चुनावी राज्यों में लगभग पंसद भी किया जा रहा है। इस मॉडल से ही आम आदमी पार्टी पंजाब में भी बहुमत के साथ सत्ता में आयी। भले यह मॉडल फ्री वाला हो, लेकिन जनता को लुभाने में अरविंद केजरीवाल कहीं न कहीं सफल भी हो रहे हैं। दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है और इस वजह से यहां की गतिविधियों में केंद्र सरकार का पूरा दखल है, इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल ने सत्ता में आकर आप का मुफ्त मॉडल विकसित करने में सफलता प्राप्त की है। अरविंद केजरीवाल ने 2013 में नयी दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की थी और 15 साल से लगातार दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस को शिकस्त देकर भारत की राजनीति का सबसे बड़ा उलटफेर किया था। 2013 में आप को केवल 28 सीट मिली थी। इसके बाद 2015 में हुए चुनाव में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 67 सीटें हासिल कर नया कीर्तिमान बनाया था। इसके बाद पंजाब में केजरीवाल ने अपनी पार्टी को सत्ता दिलायी और अब गुजरात-हिमाचल में भी उनकी उपस्थिति थोड़ी मजबूत तो जरूर हुई है। समय के साथ आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है। क्योंकि कांग्रेस का जो वोट बैंक है, उसे आम आदमी पार्टी से परहेज नहीं है। अरविंद केजरीवाल को वे नये मसीहा के रूप में देखने लगे हैं। क्योंकि अरविंद केजरीवाल भाजपा को भरपूर कोस लेते हैं। उनकी राजनीति का एक हिस्सा मोदी विरोध भी है। कांग्रेस के पास तो मोदी विरोध के अलावा कोई मुद्दा बचा ही नहीं है। उनका तो यह फुल टाइम जॉब है। सो मैचिंग हो गया है। लेकिन आम आदमी पार्टी तुष्टीकरण के साथ-साथ फ्री वाला मॉडल भी देती है। सो लेफ्ट-लिबरल और अन्य खेमों में अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। आम आदमी पार्टी का कद कई क्षेत्रीय पार्टियों से कहीं ज्यादा बढ़ चुका है। चाहे वह सपा हो, जदयू हो, राजद हो या फिर टीएमसी। अरविंद केजरीवाल के बढ़ते राजनीतिक कद के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

लगातार दो बार दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी अब अपना विस्तार कर रही है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी मजबूती से न केवल ताल ठोक रही है, बल्कि उसने इन दोनों राज्यों में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरने का संकेत भी दे दिया है। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का कद भी गैर-भाजपा दलों के तमाम नेताओं में सबसे बड़ा होकर सामने आ रहा है। इसलिए उनकी पार्टी के बढ़ते कद के बीच अब राष्ट्रीय राजनीति में आम आदमी पार्टी की भूमिका को लेकर भी चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं।

क्या है केजरीवाल की सफलता का राज
केजरीवाल एक नौकरशाह रहे हैं। भारतीय राजस्व सेवा से इस्तीफा देकर सूचना के अधिकार का अग्रिम पंक्ति का कार्यकर्ता होने के बाद उन्होंने अन्ना आंदोलन के मंच के सहारे 2013 में चुनावी राजनीति में कदम रखा। इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली में अपनी सरकार बना कर शासन का ऐसा मॉडल जनता के सामने रखा, जिसने चुनावी राजनीति की तमाम स्थापित परिभाषा को बदल कर रख दिया। केजरीवाल की राजनीति मुद्दों पर आधारित है। वह जनता का काम करते हैं और यही उनकी सफलता का कारण है। केजरीवाल धीरे-धीरे उस राजनीति की ओर शिफ्ट हो रहे हैं, जिसमें न जाति है, न संप्रदाय, न धर्म है और न कोई गुटबाजी। आम आदमी पार्टी के केंद्र में आम आदमी है और उसके जीवन से जुड़ी समस्याएं। उनके लिए केजरीवाल के पास अपना एक मॉडल है, जिसका इस्तेमाल वह कई चुनावी राज्यों में कर रहे हैं।

दूसरे क्षेत्रीय क्षत्रपों से अलग हैं केजरीवाल
केजरीवाल ने अपने मुद्दों की राजनीति के सहारे दूसरे स्थापित क्षेत्रीय दलों के नेताओं को पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने अपनी पार्टी को न केवल पंजाब की सत्ता दिलायी, बल्कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी उन्होंने भाजपा जैसी पार्टी को धूल चटा दी है। इसके बाद अब गुजरात और हिमाचल में केजरीवाल ने जिस दम-खम के साथ चुनाव लड़ा है, वह भी गौर करने लायक है। केजरीवाल ने नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, लालू यादव, ममता बनर्जी, शरद पवार और केसीआर जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों को बता दिया है कि अब राजनीति का रास्ता क्या हो सकता है। आप पहली ऐसी क्षेत्रीय पार्टी है, जो लगातार अपने विस्तार में लगी है।

केजरीवाल के आगे की रणनीति
एक तरफ कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को परास्त करने की योजना बना रहा है, तो दूसरी तरफ केजरीवाल ने भी अपना एजेंडा स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कह दिया है कि वह गठबंधन करके किसी पार्टी को हराना नहीं चाहते, बल्कि 130 करोड़ देशवासियों के साथ गठबंधन कर देश को जिताना चाहते हैं। उनके इस बयान से कयास लगाये जा रहे हैं कि उन्होंने विपक्षी एकजुटता के प्रयास को झटका देते हुए बड़ी राजनीतिक लकीर खींच दी है। केजरीवाल के इस बयान को विपक्षी एकजुटता को झटके के तौर पर भी देखा जा रहा है। दरअसल, जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आयी है, भाजपा का विजयी रथ हर गुजरते चुनाव के साथ आगे बढ़ता जा रहा है, लेकिन दिल्ली में आकर इस रथ को केजरीवाल रोक देते हैं। यह तब होता है, जब न पुलिस केजरीवाल के पास है और न उप राज्यपाल का समर्थन।

राष्ट्रीय पार्टी बन जायेगी आप
गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव के परिणामों से आम आदमी पार्टी की बड़ी उम्मीदें लगी हुई हैं। इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद आप को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता मिलने की भी उम्मीद है। यह केजरीवाल का सपना भी है और उनके लिए यह बड़ी राजनीतिक उपलब्धि होगी। इसलिए इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम उनके लिए महत्वपूर्ण होने वाले हैं। जीत-हार और सरकार बनाने या मुख्य विपक्षी दल बनने की होड़ के इतर यह चुनाव परिणाम केजरीवाल के कद को इतना ऊंचा कर देगा, जितना कि हर नेता का सपना होता है। देश में अभी भारतीय जनता पार्टी, अखिल भारतीय कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्टी पार्टी-मार्क्सवादी, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रीय पीपुल्स पार्टी, यानी कुल आठ दलों को राष्ट्रीय राजनीतिक दल का दर्जा मिला हुआ है।

केजरीवाल ने महज 10 साल में राजनीति के फलक पर जो इबारत लिखी है, उससे किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है। वास्तव में उन्होंने बता दिया है कि अब भारत की राजनीति में केवल काम-काज का मूल्यांकन होगा और वोट भी इसी आधार पर मिलेगा। जोड़-तोड़ और नकारात्मक राजनीति के दिन अब लद चुके हैं। केजरीवाल के इस सबक को कम से कम तमाम क्षेत्रीय दलों को आत्मसात करना ही चाहिए। क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों को यह ध्यान रखना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंच चुके हैं और तीसरे राज्य के मतदाताओं के बीच दस्तक दे चुके हैं। बाकी क्षेत्रीय दलों के नेता अपने राज्य में सिमटे हुए हैं।

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