विशेष
नयी पीढ़ी के नेतृत्व में शिफ्ट होने की तैयारी में है दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी
हिंदी पट्टी के राज्यों में पार्टी के संगठनात्मक रूप में आयेगा क्रांतिकारी बदलाव
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी, यानी भाजपा ने बीते दो दिनों के अंदर ही दो बड़े फैसले लिये हैं, जिनका लंबे समय से इंतजार हो रहा था। एक तरफ केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी को यूपी भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है, तो वहीं बिहार के मंत्री नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। दोनों ही फैसले चौंकाने वाले हैं, लेकिन नितिन नबीन का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनना सबसे अहम फैसला है। वह महज 45 साल के हैं और बिहार के पहले नेता हैं, जिन्हें भाजपा ने राष्ट्रीय नेतृत्व के तौर पर मौका दिया है। कायस्थ समाज से आने वाले नितिन नबीन को पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह का करीबी माना जाता है। बीते करीब डेढ़ सालों से राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर भाजपा और संघ नेतृत्व में रस्साकशी चल रही थी। ऐसे में अचानक से नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने के फैसले ने सभी को चौंका दिया। उनका नाम दूर-दूर तक चर्चा में भी नहीं था। धर्मेंद्र प्रधान, शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल खट्टर समेत कई नामों की चर्चा थी, लेकिन अंत में नितिन नबीन के नाम पर ही मुहर क्यों लगी। कहा जा रहा है कि अगले कुछ महीनों में नितिन नबीन को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। भाजपा में अंदरखाने और बाहर भी इसे लेकर चर्चा है कि आखिर नितिन नबीन पर संघ परिवार कैसे सहमत हुआ। भाजपा और संघ दोनों ही कैसे इस मामले में एकमत हो गये। नितिन नबीन का संघ परिवार से पुराना नाता है। उनके पिता बिहार भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। परिवार विचारधारा के प्रति दो पीढ़ियों से समर्पित रहा है। यही वजह रही कि पीएम मोदी और अमित शाह ने जब उनका नाम आगे बढ़ाया, तो आरएसएस भी उस पर सहमत हो गया। संघ परिवार की ओर से लगातार इस बात पर जोर था कि वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध नेता को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसा पद मिले। इसके अलावा नयी पीढ़ी के किसी नेता को मौका दिया जाये। इसके अलावा बिहार से नितिन नबीन को अध्यक्ष पद देकर भाजपा ने हिंदी पट्टी में अपनी पैठ बनाये रखने की भी कोशिश की है। मौजूदा परिदृश्य में बिहार, यूपी, राजस्थान, एमपी जैसे हिंदी राज्य उसके लिए पावर हाउस बन चुके हैं। इसलिए यहीं से अध्यक्ष देना भाजपा के लिए मुफीद फैसला है। फिर नितिन नबीन साफ छवि के और बिना किसी विवाद में पड़े काम करने वाले नेता माने जाते हैं। उनकी उनकी इसी सादगी और चुपचाप काम में लगे रहने की छवि का फायदा मिला है। नितिन नबीन की नियुक्ति के पीछे क्या है भाजपा की रणनीति, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।
भारतीय जनता पार्टी ने फिर से सबको चौंकाते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में 45 साल के युवा नितिन नबीन के हाथों पार्टी की कमान संभालने का फैसला ले लिया। इसे सामान्य नियुक्ति नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर भरोसे, संगठनात्मक परिवर्तन और आने वाले चुनावी दौर की रणनीति का संकेत है। माना जा रहा है कि नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव तक नितिन यह जिम्मेदारी संभालेंगे। राजनीतिक हलकों में इसे बंगाल विधानसभा चुनाव तक की तैयारी से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
नितिन नबीन बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री और भाजपा के छत्तीसगढ़ प्रभारी हैं। वह बिहार की बांकीपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं। भाजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने के बाद नितिन नबीन ने इसके लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को धन्यवाद दिया है। उन्होंने कहा, यह पार्टी के कार्यकर्ताओं का परिश्रम है। मैं तो मानता हूं कि कार्यकर्ता के रूप में काम करने से पार्टी के वरिष्ठ नेता हमेशा आप पर ध्यान देते हैं। मुझे जो आशीर्वाद मिला है, हम मिल कर काम करेंगे। पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट कर नितिन को बधाई दी और लिखा कि एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है।
नितिन नबीन साल 2006 में पटना पश्चिम विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने थे। साल 2010 से 2025 तक वह लगातार पांच बार बांकीपुर सीट से जीतते आ रहे हैं। नितिन नबीन फिलहाल बिहार की एनडीए सरकार में पथ निर्माण विभाग और नगर विकास एवं आवास मंत्री हैं। नितिन नबीन का जन्म मई 1980 में रांची में हुआ। नितिन नबीन ने साल 1996 में पटना के सेंट माइकल हाइ स्कूल से मैट्रिक और 1998 में दिल्ली के सीएसकेएम पब्लिक स्कूल से इंटर की पढ़ाई पूरी की है।
नितिन नबीन फिलहाल पटना की बांकीपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं और बिहार सरकार में मंत्री हैं। उन्होंने साल 2006 में राजनीति की शुरूआत की थी। मान सकते हैं कि उन्हें यह विरासत में मिली है। उनके पिता नवीन किशोर सिन्हा शुरूआती दौर में कई बार भाजपा से विधायक रहे थे और पिता के निधन के बाद नितिन नबीन उस सीट से जीत रहे हैं। नितिन नबीन साल 2016-19 में भाजपा युवा मोर्चा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष थे। उन्हें पहली बार नीतीश कुमार की सरकार में साल 2021 में मंत्री बनाया गया था।
लो प्रोफाइल में रहते हैं नबीन
पांच बार के विधायक और 3 बार के मंत्री होने के बाद भी नितिन नबीन काफी लो प्रोफाइल नेता हैं। नबीन काफी मिलनसार नेता हैं। बिना परिचय के लोगों से भी आसानी से मिल लेते हैं। उनसे मिलना कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक के लिए आसान रहता है। कोई भी व्यक्ति रात हो या दिन, कभी भी मिल सकता है। कार्यकर्ताओं के लिए उनका दरवाजा 24 घंटे खुला रहता है। नबीन का पूरा परिवार आरएसएस का करीबी रहा है। वे अभी 45 साल के हैं। इनको आगे कर भाजपा ने युवा पीढ़ी को आगे किया है। भाजपा ने सधी हुई रणनीति के तहत समीकरण साधा है। उसे पता है कि अपने कोर वोटर को कैसे सहेजना है। टॉप लीडरशिप ने जब नाम आगे बढ़ाया तो संघ भी मना नहीं कर पाया। प्रपोजल में इसमें नितिन नबीन की कार्यकुशलता, पब्लिक कनेक्ट, संगठन की अच्छी समझ का उदाहरण दिया गया था। साथ ही बिहार की जीत, छत्तीसगढ़ का प्रबंधन का भी जिक्र था। नितिन नबीन को अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचाने में आरएसएस के दो टॉप लीडर और क्षेत्र के प्रभारी का सहयोग माना जा रहा है।
भाजपा ने क्यों बनाया कार्यकारी अध्यक्ष
भाजपा में लंबे समय से नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर फैसला नहीं हो पाया है। इस मुद्दे की चर्चा राजनीतिक हलकों के अलावा संसद में भी होती रही है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने संसद में आरोप लगाया था कि भाजपा अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष तक नहीं चुन पायी है। उस समय इस मुद्दे पर गृह मंत्री अमित शाह ने अखिलेश यादव के आरोपों के जवाब में कहा था कि भाजपा कार्यकर्ताओं पर आधारित पार्टी है, पारिवारिक पार्टी नहीं है, इसलिए देरी होती है।
पार्टी में अगली पीढ़ी की तैयारी
नबीन की नियुक्ति यह संदेश है कि पार्टी में जेनरेशन नेक्स्ट का कॉल शुरू हो चुका है, यानी पार्टी अब अगली पीढ़ी की छाया में प्रवेश करने की तैयारी कर रही है। दरअसल तीसरी पंक्ति के कई नेता भी अध्यक्ष पद की दौड़ में थे। संघ और भाजपा के समन्वय की बात भी कही जा रही थी, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने नबीन को यह जिम्मेदारी दी। छत्तीसगढ़ में प्रभारी के रूप में उनकी भूमिका को सराहा गया। वहां बूथ स्तर का प्रबंधन, संगठन विस्तार और चुनावी तालमेल पर उनके फोकस का नतीजा निर्णायक जीत के रूप में सामने आया। इसके बाद माना जाने लगा कि नितिन नबीन राष्ट्रीय स्तर पर भी संगठन खड़ा करने की क्षमता रखते हैं।
सामाजिक समीकरणों के लिहाज से भी यह नियुक्ति चर्चा में है। नितिन नबीन कायस्थ समाज से आते हैं। बिहार में इस समाज की आबादी भले ही एक प्रतिशत से कम हो, लेकिन यह भाजपा का पारंपरिक और भरोसेमंद मतदाता वर्ग रहा है। यशवंत सिन्हा के बाद इस समाज के किसी नेता को इतने ऊंचे संगठनात्मक पद पर जिम्मेदारी मिलना भी राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
जानकारों की मानें, तो नितिन नबीन की नियुक्ति एक आश्चर्य भरा फैसला है। करीब तीन साल से जेपी नड्डा को विस्तार दिया जा रहा है और ऐसा लगता है कि इस मुद्दे पर सवालों से बचने के लिए भाजपा ने कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। लेकिन यह कदम सवालों को और ज्यादा बढ़ायेगा। लोग अब यह भी पूछ सकते हैं कि क्या भाजपा और आरएसएस में कोई मतभेद है। क्या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में किसी एक नाम को लेकर सहमति नहीं है, जो पूर्णकालिक अध्यक्ष न बनाकर अभी कार्यकारी अध्यक्ष का नाम सामने आया है। वैसे यह तय है कि भाजपा जैसी बड़ी पार्टी के अध्यक्ष पद का काम जो भी नेता संभालेगा, उसके पास राष्ट्रीय स्तर पर एक विजन होना चाहिए, उसे देश के अलग-अलग इलाकों में लोगों के साथ बैठकें करनी होती हैं। हालांकि ऐसा कई बार देखा जाता है कि किसी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व किसी ऐसे शख्स को पार्टी की जिम्मेदारी सौंपता है, जिसके साथ मिलकर काम को आसानी से आगे बढ़ाया जा सके। लेकिन भाजपा का यह फैसला क्या राजनीतिक चर्चा को विराम देगा या विपक्ष इस मुद्दे पर नये सवाल खड़े करेगा, यह देखना अभी बाकी है।

