विशेष
-पहले छुट्टियों की सूची को लेकर नीतीश सरकार ने खड़ा किया बड़ा बखेड़ा
-अब संस्कृत की परीक्षा में इस्लाम धर्म से संबंधित प्रश्न पूछने पर हुआ विवाद
-बड़ा सवाल : क्यों बिहार में स्कूल बन गये हैं हिंदू-मुस्लिम राजनीति का अखाड़ा
बिहार में स्कूली शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर गहरे विवाद में फंस गयी है। पहले स्कूली छुट्टियों के नये कैलेंडर पर हिंदू-मुस्लिम पर बहस छिड़ गयी थी और अब संस्कृत की परीक्षा में इस्लाम धर्म के बारे में सवाल पूछने पर बखेड़ा खड़ा हो गया है। इन दोनों विवादों के बाद बिहार की नीतीश कुमार सरकार पर शिक्षा का इस्लामीकरण करने के आरोप लगाये जा रहे हैं। भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने साफ तौर पर कहा है कि नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली जदयू-राजद-कांग्रेस की महागठबंधन सरकार इस तरह के फैसले लेकर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपना रही है। इसलिए पहले मुस्लिम त्याहोरों पर छुट्टियां बढ़ा दी गयीं और हिंदू पर्वों की छुट्टियां या तो खत्म कर दी गयीं या घटा दी गयीं। इसके बाद नौवीं की परीक्षा में संस्कृत के पेपर में ईद और मुहर्रम से संबंधित सवाल पूछे गये, जिससे साफ होता है कि नीतीश सरकार की नीयत साफ नहीं है। इससे पहले भी मुस्लिम बाहुल्य स्कूलों में शुक्रवार की छुट्टी पर भी विवाद हो चुका है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि बिहार में स्कूल क्यों हिंदू-मुस्लिम राजनीति का अखाड़ा बन गये हैं। यह दुखद तो है, भविष्य के लिए खतरनाक भी है। बच्चों के मन में इस तरह की राजनीति का रंग भरना कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है। नीतीश कुमार सरकार पर क्यों लग रहे हैं शिक्षा के इस्लामीकरण के आरोप और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। राज्य के स्कूलों में पहले छुट्टियों के मामले को लेकर विवाद पैदा हुआ। उसके बाद अब संस्कृत की परीक्षा में इस्लाम धर्म से संबंधित सवाल पूछे जाने पर विवाद खड़ा हो गया है। मामला इतना गरम हो गया कि नीतीश कुमार सरकार पर शिक्षा के इस्लामीकरण का आरोप तक लगने लगा और इसने राजनीतिक रंग अख्तियार कर लिया है।
पहले छुट्टियों की सूची को लेकर हुआ विवाद
मामला शुरू हुआ छुट्टियों की सूची से। स्कूली शिक्षा विभाग ने साल 2024 की छुट्टियों का नया कैलेंडर जारी किया था। इसमें कई बदलाव किये गये थे। रक्षाबंधन, तीज और जिउतिया जैसे पर्वों की छुट्टियों को खत्म कर दिया गया था। साथ ही दुर्गा पूजा पर छुट्टी घटा दी गयी थी। दूसरी ओर ईद और बकरीद पर छुट्टियों की संख्या बढ़ा दी गयी थी। सरकार के इस फैसले ने बड़ा विवाद पैदा कर दिया था। भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों ने नीतीश सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगाये। भाजपा ने नीतीश सरकार को हिंदू और सनातन विरोधी बता दिया। भाजपा के नेता यहां तक कहने लगे थे कि बिहार को पाकिस्तान क्यों नहीं बना देते। विवाद बढ़ता देख सरकार ने फैसला वापस ले लिया और छुट्टियों का संशोधित कैलेंडर जारी कर दिया।
पहले भी सरकार को वापस लेना पड़ा था आदेश
इससे पहले अगस्त महीने में भी शिक्षा विभाग द्वारा ऐसा ही एक आदेश जारी हुआ था। उस समय नीतीश सरकार ने रक्षाबंधन की छुट्टी खत्म कर दी थी। साथ ही दिवाली, छठ, दूर्गा पूजा जैसे पर्वों पर छुट्टियों में कटौती की गयी थी। इस पर जमकर सियासी बवाल हुआ था। इसके बाद सरकार ने यह आदेश वापस ले लिया था।
शुक्रवार के साप्ताहिक अवकाश पर भी विवाद
पिछले साल किशनगंज समेत सीमांचल के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में रविवार के बजाय शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश रखने पर भी बिहार में सियासी विवाद हो चुका है। शिक्षा विभाग की ओर से नये आदेश में उर्दू स्कूलों के अंदर शुक्रवार का साप्ताहिक अवकाश रखने की बात कही है। इसके अलावा जिन स्कूलों में मुस्लिम छात्र बहुतायत में हैं, वहां भी शुक्रवार को छुट्टी रखी जा सकेगी। इसके लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी होगी। दरअसल, शुक्रवार के दिन जुमे की नमाज होती है। अब भाजपा ने इस पर भी आपत्ति जतायी है।
लग रहा इस्लामीकरण का आरोप
छुट्टियों की सूची का विवाद अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि बिहार की स्कूली शिक्षा व्यवस्था नये विवाद में फंस गयी। दरअसल बिहार बोर्ड में कक्षा नौ की संस्कृत की पुस्तक में मुस्लिमों के पर्व ईद के बारे में पढ़ाया जा रहा है। इसी तरह नौवीं और 10वीं कक्षा में इसी विषय में मुस्लिम पात्रों के नाम ठूंस दिये गये हैं। मतलब यह कि हिंदू विद्यार्थियों को इस्लामी पर्व के बारे में पढ़ाया जा रहा है, उन्हें उर्दू के शब्द सिखाये जा रहे हैं, जबकि उर्दू में हिंदू त्योहारों के बारे में एक शब्द भी नहीं है। हिंदी का पाठ्यक्रम तो अपने आपमें विचित्र है। नौवीं और 10वीं कक्षा के हिंदी के पाठ्यक्रम में प्रेमचंद की एक भी रचना शामिल नहीं की गयी है। इसकी जगह बच्चों को श्रम विभाजन और जातिवाद का मतलब पढ़ाया जा रहा है। 10वीं के विद्यार्थियों को ‘नौबतखाने में इबादत’, जबकि नौवीं में नीतीश कुमार और सोनिया गांधी पर निबंध पढ़ाये जा रहे हैं। नीतीश सरकार पर शिक्षा के इस्लामीकरण के आरोप उस समय लगे, जब अक्टूबर माह में नौवीं कक्षा में मासिक परीक्षा में ईद से संबंधित सवाल पूछे गये। तब संस्कृत के इस्लामीकरण का खुलासा हुआ। संस्कृत की परीक्षा में ईद से जुड़े 10 प्रश्न पूछे गये थे, जिसमें इफ्तार क्या होता है, रोजा किस समय खोला जाता है, क्या देख कर खोल जाता है, फितरा किसे कहते हैं, ईद में क्या-क्या पकवान बनते हैं, ईद कैसा पर्व है जैसे सवाल शामिल थे।
विवादों के केंद्र में केके पाठक
दरअसल, इन सभी विवादों के केंद्र में एक नौकरशाह केके पाठक हैं। उन्होंने जब से शिक्षा विभाग में अपर मुख्य सचिव का पद संभाला है, तब से वह नये-नये प्रयोग कर रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने आदेश दिया था कि बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को अब हर महीने परीक्षा देनी होगी। इसी आदेश के तहत नौवीं कक्षा की संस्कृत की परीक्षा हुई थी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि संस्कृत में इस्लाम का घालमेल केवल एक अध्याय तक सीमित नहीं है। नौवीं और 10वीं में संस्कृत में ही कई अध्याय हैं, जिसमें मुस्लिम नाम वाले चरित्र को वार्तालाप में शामिल किया गया है। नौवीं में संस्कृत के पांचवें अध्याय ‘संस्कृतस्य महिमा’ में कमाल और रहीम को शिक्षक के साथ वार्तालाप करते दिखाया गया है।
खतरनाक है इस तरह का विवाद
स्कूली शिक्षा में इस तरह के प्रयोग और ऐसा विवाद राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से भले ही लाभदायक प्रतीत हो रहा हो, भविष्य के लिए यह खतरनाक ही होगा। भारतीय शिक्षा की पुरातन प्रणाली को अंग्रेजी शासन द्वारा खत्म किये जाने का दुष्परिणाम देश आज भी भुगत रहा है। भारत की प्राचीन विधाएं, आयुर्वेद, ज्योतिष विज्ञान और उपचार संहिता विलुप्त होती जा रही हैं। दूसरी तरफ अंग्रेजों द्वारा शुरू की गयी नयी शिक्षा व्यवस्था हमारी जड़ों को ही खोखला कर रही है। बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में इस तरह के प्रयोग से न केवल विवाद पैदा होगा, बल्कि इसका असर आनेवाली पीढ़ियों पर भी पड़ेगा, जिसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना होगा। इसलिए ऐसे प्रयोगों से बचने की जरूरत है।