विशेष
राजनीति की पथरीली जमीन से जीत तक का सफर बड़ा ही शानदार
झारखंड के सियासी क्षितिज की पहली प्रमुख महिला किरदार बनी हैं
आज महिलायें उनमें अपना भविष्य देखती हैं, उन्हें आदर्श मानती हैं
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की नेता कल्पना सोरेन के प्रादुर्भाव ने साबित कर दिया है कि झारखंड की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी ही नहीं, स्वीकार्यता और प्रभाव बड़ी तेजी से बदल रहा है। कल्पना का उदय इस बात का भी संकेत है कि यहां महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण भी पूरे 360 डिग्री से बदल रहा है। आज राजनीति में महिलाएं जितनी प्रभावशाली तरीके से आगे आ रही हैं, उससे तो यही साबित होता है कि झारखंड अपनी आधी आबादी का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार है। कल्पना सोरेन ने पिछले नौ महीने में जिस तेजी से अपनी जगह बनायी है और खुद को राजनीति की पथरीली जमीन पर मजबूती से स्थापित किया है, वह उनकी नेतृत्व क्षमता को तो साबित करता ही है, इस कहावत को भी सच साबित करता है कि एक महिला के आगे बढ़ने से पूरा समाज आगे बढ़ता है। वैसे भी जनजातीय समाज में महिला नेतृत्व की पुरानी परंपरा रही है और यहां अधिकांश गंभीर आंदोलनों की कमान महिलाओं ने सफलतापूर्वक संभाली है। कल्पना सोरेन ने जिन परिस्थितियों में राजनीति के मैदान में दस्तक दी और अपनी नेतृत्व क्षमता के बल पर जितनी तेजी से जगह बनायी है, वह अविश्वसनीय लगता है। ऐसा नहीं है कि कल्पना सोरेन झारखंड की राजनीति में कदम रखनेवाली पहली महिला हैं, लेकिन उन्होंने जो लोकप्रियता हासिल की है, वह अद्भुत है। उनसे पहले झारखंड की किसी भी महिला नेत्री ने ऐसा प्रभाव नहीं छोड़ा था। कल्पना सोरेन के बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि घर के देहरी से बाहर निकल कर वह न केवल शिबू सोरेन की विरासत को आगे बढ़ाने में अपने पति हेमंत सोरेन की सहायक बन रही हैं, बल्कि खुद की पहचान को भी स्थापित किया है। कल्पना सोरेन के इसी अविश्वसनीय व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का क्या हो सकता है असर और क्या हैं संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड की छठी विधानसभा में पहली बार दर्जन भर महिला विधायकों का प्रवेश एक सुखद संकेत तो है ही, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस चुनाव ने झारखंड के राजनीतिक क्षितिज पर एक ऐसे सितारे का उदय हुआ है, जिसने महज नौ महीने में अपनी रोशनी से इस पथरीले रास्ते को चमकदार बना दिया है। इस सितारे का नाम है कल्पना सोरेन, जो खुद तो चुनाव जीती ही हैं, झारखंड की राजनीति में एक नयी लकीर खींच रही हैं।
झारखंड की महिला नेतृत्व का इतिहास
झारखंड के आदिवासी समुदायों में लड़कियों के जन्म को गोहार भरने के साथ जोड़ा जाता है। लड़कियां ‘सयानी बेटी’ के रूप में घर, परिवार और समाज में स्वीकार की जाती हंै। इस समाज में कन्या भ्रूण हत्या न के बराबर है। अत: आदिवासी क्षेत्रों में लड़कियों की सघन उपस्थिति देखी जाती है। आदिवासी स्त्रियों की नेतृत्व क्षमता को सिनगीदई से लेकर दयामनी बारला तक साफ तौर पर देखा जा सकता है। विद्रोहों और आंदोलनों में महिलाएं बढ़-चढ़ कर भाग लेती थीं। तिलका मांझी की अगुवाई में चले विद्रोह में फूलमनी मझिआइन ने भी अंग्रेजी सभा का मुकाबला किया। 1831 ई. के कोल विद्रोह के समय सिंगराय बहनों ने अपनी निडरता का परिचय दिया। 30 जून 1855 को भोगनाडीह में सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, के नेतृत्व में हूल (विद्रोह) का आगाज किया गया था। संथाल हूल के समय सिदो-कान्हू, चांद-भैरव की दो बहनों ने फूलो और झानो ने आंदोलनकारियों और विद्रोहियों के हौसला को बनाये रखा। बिरसा मुंडा के उलगुलान में महिलाएं भी शामिल थीं। बिरसा मुंडा की दो महिला अंगरक्षक भी थीं। 1930 के नमक सत्याग्रह के समय खूंटी के टाना भगतों की सभा में आधी संख्या स्त्रियों की थी। झारखंड आंदोलन में भी महिला नेत्रियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इसके अलावा कई जनांदोलनों में भी महिलाओं ने अहम भूमिका निभायी है।
कल्पना सोरेन के उदय पर फिल्म या वेब सीरीज बने, तो सुपर डुपर हिट होना तय
कल्पना सोरेन के उदय की कहानी भी अद्भुत है। आंसू कब अंगार में बदल गये, पता भी नहीं चला। कहते हैं जब विपदा आती है, तभी इंसान अपने असली ताकत से परिचित होता है। वह 31 मार्च की रात थी, जब कल्पना सोरेन अपने पति हेमंत सोरेन से मिलने इडी के दफ्तर में आयी थीं। उस वक्त कल्पना सोरेन घबराई हुइ भी थीं वह शांत थीं, खामोश थीं। लेकिन यह आंधी से पहले की शांति थी। चार मार्च की रात भला कौन भूल सकता है, गिरिडीह के झंडा मैदान में झामुमो के स्थापना दिवस समारोह का मंच, जहां कल्पना सोरेन भरार्यी आवाज में हुंकार भर रही थीं। इस आवाज और इस अपील का झारखंड में जादुई असर हुआ। गले में हंसुली, एक हाथ में कड़ा, एक हाथ में घड़ी, हरे पाढ़ की साड़ी में जब कल्पना सोरेन मंच से लोगों का अभिवादन करती हैं, तो लोग पूरी गर्मजोशी से नारों और तालियों के साथ उनसे जुड़ जाते हैं। कल्पना के बहे आंसू विरोधियों पर अंगार बन कर बरसे। वह विरोधियों के लिए पहेली बन गयीं। विरोधियों को समझ में ही नहीं आया कि कल्पना का मुकाबला आखिर किया कैसे जाए। हेमंत ने विरोधियों का चक्रव्यूह तो भेदा, लेकिन इसमें कल्पना सोरेन की भी महत्ता अद्भुत है। कल्पना महिलाओं के लिए आदर्श बन कर उभरी हैं। महज नौ महीने बाद 23 नवंबर की शाम रांची हवाई अड्डे पर जब हेमंत सोरेन अपनी ‘स्टार प्रचारक’ का स्वागत करने पहुंचते हैं, तो झारखंड ही नहीं, पूरे देश को महसूस होता है कि कल्पना सोरेन अब केवल शिबू सोरेन की बहू और हेमंत सोरेन की पत्नी नहीं रहीं, बल्कि उनकी खुद की एक अलग पहचान है।
2019 के लोकसभा चुनाव के पहले जो कल्पना कह रही थीं कि वह राजनीति में नहीं आना चाहतीं, परिवार में खुश हैं, पांच साल बाद यानि 2024 आते-आते वह राजनीति की बातें करने लगी हैं। 31 जनवरी 2024 को पति हेमंत सोरेन के जेल जाने के 32 दिन बाद यानी 4 मार्च को वह सक्रिय राजनीति में आने का ऐलान करती हैं। इसके बाद कल्पना ने गांडेय सीट से उपचुनाव लड़ा। इस सीट पर लोकसभा चुनाव-2024 के साथ ही चुनाव हुए थे। इसमें कल्पना खुद की सीट पर प्रचार के साथ ही दूसरी सीटों पर भी इंडिया गठबंधन के लिए प्रचार कर रही थीं। वे गांडेय सीट से उपचुनाव जीतीं और इसी के साथ ही उनके नये सफर की शुरूआत हो गयी है। 39 साल की कल्पना सोरेन का राजनीतिक करियर अभी महज नौ महीने का है। लेकिन इस चुनाव में वो इंडिया गठबंधन की स्टार प्रचारक रहीं। कल्पना को मिलाकर झामुमो के 38 और कांग्रेस के 40 स्टार प्रचारक थे, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा सभाएं कल्पना और हेमंत सोरेन ने ही की।
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झामुमो बेहाल हो गया था। परिवार भी बिखरने की कगार पर था। ऐसे में कल्पना ने घर की देहरी से बाहर निकलने का फैसला किया और फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन के लिए प्रचार की कमान संभाली और फिर विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जम कर प्रचार किया।
कहा जाता है कि हेमंत सोरेन यदि जेल नहीं जाते, तो शायद कल्पना कभी राजनीति में नहीं आतीं। मजबूरी में ही सही, उनका राजनीति में आना झारखंड के सियासी इतिहास का सुनहरा अध्याय साबित हुआ। उनकी रैलियों की इतनी मांग थी कि प्रत्याशी की तरफ से कल्पना की सभाएं कराने की बाढ़ आने लगी थी। कल्पना ने राजनीति में जो लकीर खींची है, वह इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनसे पहले किसी महिला ने झारखंड में ऐसी लोकप्रियता हासिल नहीं की थी। झारखंड की राजनीति में महिलाएं आती रही हैं, लेकिन कल्पना अब आइकन बन चुकी हैं।
इतने कम समय में कल्पना सोरेन के इतने लोकप्रिय होने की कई वजहें हैं। वह मुद्दों की बात करती हैं। वह तेजी से लोगों से जुड़ती हैं। परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम उनमें है। कल्पना ने झारखंड में सिर्फ झारखंड के ही मुद्दों को नहीं उठाया, बल्कि छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगल की कटाई का मुद्दा भी उठाया, जहां से आदिवासियों को हटाया गया, मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ हुई बर्बरता का जिक्र बार-बार किया। इससे उनकी पहचान बड़ी होती गयी।
अब ऐसा कहा जाने लगा है कि कल्पना सोरेन के रूप में देश को एक बेहद लोकप्रिय महिला आदिवासी नेता मिलने वाली हैं। हालांकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी संथाली हैं,और ओड़िशा के मयूरभंज से ही आती हैं, लेकिन कल्पना सोरेन का जिस तरह से उदय हो रहा है, उससे लग रहा है कि वे राजनीति में लंबी पारी खेलने की तैयारी में हैं। इस बात में संदेह नहीं है कि कल्पना झारखंड में आदिवासियों की सबसे बड़ी महिला नेता बन गयी हैं। कल्पना सोरेन की राजनीति कहां जाती है, ये तो वक्त बतायेगा, लेकिन कल्पना सोरेन के जरिये झारखंड की राजनीति नये रास्ते पर आगे बढ़ गयी है, जिसका परिणाम सुखद ही होगा।