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    Home»विशेष»ऐसे ही झारखंड की सियासी स्टार नहीं बन गयीं कल्पना सोरेन
    विशेष

    ऐसे ही झारखंड की सियासी स्टार नहीं बन गयीं कल्पना सोरेन

    shivam kumarBy shivam kumarDecember 11, 2024No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    विधानसभा सत्र के पहले दिन सादगी और विनम्रता से जीता सभी का दिल

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    झारखंड की छठी विधानसभा का पहला सत्र अभी चल रहा है। सत्र के पहले दिन नवनिर्वाचित विधायकों का शपथ ग्रहण संपन्न हुआ। सत्र के पहले दिन वैसे तो तमाम विधायकों का रंग-ढंग सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा था, लेकिन भीड़ से अलग यदि कोई चेहरा था, तो वह था कल्पना सोरेन का, जिन्होंने लगातार दूसरी बार गांडेय विधानसभा सीट से चुनाव जीता है। वह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी और झारखंड के सबसे बड़े राजनीतिक शख्सियत शिबू सोरेन की बहू हैं, लेकिन विधानसभा के भीतर उन्होंने जिस सादगी और विनम्रता का परिचय दिया, उससे साफ हो गया कि कल्पना सोरेन ऐसे ही झारखंड की सियासी स्टार नहीं बनी हैं। उनमें कुछ ऐसा जरूर है, जो उन्हें दूसरों से अलग करता है। अपने व्यवहार से कल्पना सोरेन ने पूरे सदन का ध्यान तो खींचा ही है, आम लोग भी उनके मुरीद हो गये हैं। कल्पना सोरेन ने जिस तरह सिर पर पल्लू रख कर चाचा चंपाई सोरेन, बाबूलाल मरांडी और सरयू राय के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया, उससे साबित हो गया कि कल्पना सोरेन के जीवन में संस्कारों का कितना महत्व है और वह भारतीय परंपराओं से कितने गहरे रूप से जुड़ी हैं। इतना ही नहीं, रामेश्वर उरांव, राधाकृष्ण किशोर और मथुरा महतो जैसे बड़ों के पैर छूकर और अपने समकक्ष विधायकों का अभिवादन कर कल्पना सोरेन ने साबित कर दिया कि उनके लिए सियासत से ऊपर उनका संस्कार है। परिस्थितियों ने भले ही कल्पना सोरेन को सियासत की पथरीली जमीन पर उतारा है, लेकिन उन्होंने अपनी विनम्रता से इस पथरीली जमीन को बेहद नर्म बना दिया है। यह झारखंड के लिए बेहद सुखद है। कल्पना सोरेन की सादगी और उनकी विनम्रता के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    झारखंड की छठी विधानसभा का चार दिवसीय पहला सत्र नौ दिसंबर को शुरू हुआ। इस विधानसभा में करीब दो दर्जन युवा चेहरे पहुंचे हैं और सत्र के पहले दिन इन सभी की गतिविधियों पर लोगों की खास निगाह थी, लेकिन जिस एक विधायक ने सभी का ध्यान खींचा, वह थीं कल्पना सोरेन, जो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी होने के साथ गांडेय विधानसभा सीट से लगातार दूसरी बार विधायक बनी हैं। विधायक कल्पना सोरेन की सादगी और विनम्रता ने जहां सदन के बाकी सदस्यों को अभिभूत किया, वहीं सदन के बाहर आम लोगों को भी खासा प्रभावित किया। झारखंड के पहले राजनीतिक परिवार की बहू और मुख्यमंत्री की पत्नी होने के बावजूद कल्पना सोरेन पूरी तरह सहज और शालीन थीं। पोशाक से लेकर मेकअप तक कहीं भी कोई गुरूर या दंभ नहीं, एक आम भारतीय शिक्षित महिला की तरह कल्पना सोरेन के व्यवहार की चौतरफा तारीफ हो रही है। उन्होंने सिर पर पल्लू रख कर जिस तरह खुद से बड़े लोगों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, उससे जाहिर हो गया कि कल्पना सोरेन के भीतर उनके संस्कार बहुत गहरे जमे हुए हैं। चाहे बाबूलाल मरांडी हों या सरयू राय, चाचा चंपाई सोरेन हों या डॉ रामेश्वर उरांव या फिर राधाकृष्ण किशोर और मथुरा महतो, कल्पना ने हर किसी का पैर छुआ और आशीर्वाद लिया। सदन के भीतर और बाहर उनके व्यवहार में कहीं से कोई दर्प या आभामंडल दिखाई नहीं दिया। वह जितनी सहज थीं, आम तौर पर कोई नहीं रहता। इतना ही नहीं, वह जिससे भी मिलीं, उसे यथोचित सम्मान दिया। किसी का हाथ जोड़ कर अभिवादन किया, तो किसी से हाथ भी मिलाने से नहीं चूकीं। कल्पना सोरेन ने अपनी सादगी और विनम्रता से साबित कर दिया कि वह ऐसे ही झारखंड की सियासत की स्टार नहीं बन गयी हैं। कल्पना सोरेन उच्च शिक्षित हैं, लेकिन परंपरा और संस्कारों को उन्होंने तनिक भी नहीं छोड़ा है।

    वास्तव में इस विधानसभा चुनाव ने झारखंड के राजनीतिक क्षितिज पर कल्पना सोरेन के रूप में एक ऐसे सितारे को जन्म दिया है, जिसने महज नौ महीने में अपनी रोशनी से इस पथरीले रास्ते को चमकदार बना दिया है। कल्पना सोरेन को भले ही परिस्थितियों ने सियासत में उतार है, लेकिन अपने संस्कार, व्यहार और चाल-ढाल से वह झारखंड की राजनीति में एक नयी लकीर खींच रही हैं।

    इतने कम समय में कल्पना सोरेन के इतने लोकप्रिय होने की कई वजहें हैं। वह मुद्दों की बात करती हैं। वह तेजी से लोगों से जुड़ती हैं। परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम उनमें है। कल्पना ने झारखंड में सिर्फ झारखंड के ही मुद्दों को नहीं उठाया, बल्कि छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगल की कटाई का मुद्दा भी उठाया, जहां से आदिवासियों को हटाया गया, मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ हुई बर्बरता का जिक्र बार-बार किया। इससे उनकी पहचान बड़ी होती गयी।

    अब ऐसा कहा जाने लगा है कि कल्पना सोरेन के रूप में देश को एक बेहद लोकप्रिय महिला आदिवासी नेता मिलने वाली हैं। हालांकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी संथाली हैं,और ओडिशा के मयूरभंज से ही आती हैं, लेकिन कल्पना सोरेन का जिस तरह से उदय हो रहा है, उससे लग रहा है कि वे राजनीति में लंबी पारी खेलने की तैयारी में हैं। इस बात में संदेह नहीं है कि कल्पना झारखंड में आदिवासियों की सबसे बड़ी महिला नेता बन गयी हैं। कल्पना सोरेन की राजनीति कहां जाती है, ये तो वक्त बतायेगा, लेकिन कल्पना सोरेन के जरिये झारखंड की राजनीति नये रास्ते पर आगे बढ़ गयी है, जिसका परिणाम सुखद ही होगा।

    ऐसे हुआ कल्पना सोरेन का उदय
    वह 31 मार्च की रात थी, जब कल्पना सोरेन अपने पति हेमंत सोरेन से मिलने इडी के दफ्तर में आयी थीं। और फिर चार मार्च की वह रात गिरिडीह के झंडा मैदान में झामुमो के स्थापना दिवस समारोह का मंच, जहां कल्पना सोरेन भर्रायी आवाज में हुंकार भर रही थीं। इस आवाज और इस अपील का झारखंड में जादुई असर हुआ। गले में हंसुली, एक हाथ में कड़ा, एक हाथ में घड़ी, हरे पाढ़ की साड़ी में जब कल्पना सोरेन मंच से लोगों का अभिवादन करती हैं, तो लोग पूरी गर्मजोशी से नारों और तालियों के साथ उनसे जुड़ जाते हैं। महज नौ महीने बाद 23 नवंबर की शाम रांची हवाई अड्डे पर जब हेमंत सोरेन अपनी स्टार प्रचारक का स्वागत करने पहुंचते हैं, तो झारखंड ही नहीं, पूरे देश को महसूस होता है कि कल्पना सोरेन अब केवल शिबू सोरेन की बहू और हेमंत सोरेन की पत्नी नहीं रहीं, बल्कि उनकी खुद की एक पहचान है।

    हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झामुमो बेहाल हो गया था। परिवार भी बिखरने की कगार पर था। ऐसे में कल्पना ने घर की देहरी से बाहर निकलने का फैसला किया और फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन के लिए प्रचार की कमान संभाली और फिर विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जम कर प्रचार किया।

    कहा जाता है कि हेमंत सोरेन यदि जेल नहीं जाते, तो शायद कल्पना कभी राजनीति में नहीं आतीं। मजबूरी में ही सही, उनका राजनीति में आना झारखंड के सियासी इतिहास का सुनहरा अध्याय साबित हुआ। उनकी रैलियों में हेमंत सोरेन से भी ज्यादा भीड़ उमड़ती रही। उनकी रैलियों की इतनी मांग थी कि प्रत्याशी की तरफ से कल्पना की सभाएं कराने की बाढ़ आ गयी थी। कल्पना ने राजनीति में जो लकीर खींची है, वह इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनसे पहले किसी महिला ने झारखंड में ऐसी लोकप्रियता हासिल नहीं की थी। झारखंड की राजनीति में महिलाएं आती रही हैं, लेकिन कल्पना अब आइकन बन चुकी हैं।

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