- मास्टर स्ट्रोक : एक-एक कर अपने चुनावी वायदों को पूरा कर लोकप्रिय हो रहे सीएम
झारखंड में राजनीतिक उथल-पुथल एक सप्ताह से अधिक समय से जारी है। इस दौरान कई घटनाएं हुईं और हरेक संभावना की डोर तलाशी गयी। लेकिन यदि यह पूछा जाये कि इस सियासी बिसात पर किसकी स्थिति मजबूत है, तो उसका एकमात्र जवाब होगा, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की। 31 जुलाई को हावड़ा में तीन विधायकों की गिरफ्तारी के बाद से उन्होंने एक सधे हुए राजनेता की तरह एक-एक कदम बढ़ाया है। एक-एक कर उन्होंने उन चुनावी वादों को पूरा करने की घोषणा की है, जिनके कारण उनकी पार्टी को 2019 में सत्ता हासिल हुई थी। इसी बीच अपनी विधानसभा सदस्यता पर मंडराते खतरे के बीच विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करना उनकी ऐसी सधी हुई चाल बतायी जा रही है, जिससे भाजपा सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सदस्यता पर संकट के बीच विधानसभा सत्र बुला कर हेमंत सोरेन ने ऐसा दांव खेला है, जिससे भाजपा परेशानी बढ़ सकती है। इससे आनेवाले दिनों में सीधा फायदा सत्तारूढ़ गठबंधन को होगा। माना जा रहा है कि विशेष सत्र के दौरान सरकार 1932 का खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू करने, ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने और स्थानीयता पर भी फैसले ले सकती है। पुरानी पेंशन योजना लागू करने और नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करना और पुलिसकर्मियों का क्षतिपूर्ति अवकाश फिर से लागू करना भी हेमंत सोरेन के बड़े फैसलों में गिना जा रहा है। इसलिए भाजपा फिलहाल पसोपेश में है और हेमंत सोरेन की सदस्यता के मुद्दे पर अब कुछ भी कहने से बच रही है। सच तो यह है कि पहले बार-बार अगस्त पार नहीं होने का दावा करनेवाले नेता भी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि राज्यपाल कब तक अपना निर्णय सुनायेंगे। इतना ही नहीं, भाजपा पर यह खतरा भी मंडरा रहा है कि झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश का ठीकरा भी उसके माथे पर ही फूटेगा। इसलिए झारखंड की सियासी बिसात अब और अधिक रोमांचक और रोचक हो गयी है। इन तमाम परिस्थितियों का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह।
भारतीय राजनीति की प्रयोगशाला के रूप में चर्चित झारखंड इन दिनों एक ऐसे कश्मकश से गुजर रहा है, जिसकी कल्पना तो की गयी थी, लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह इतना लंबा खिंचेगा। लेकिन चुनाव आयोग की तरफ से 25 अगस्त को सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर राज्यपाल को भेजे गये एक पत्र पर जारी सस्पेंस ने इस उथल-पुथल को रोमांचक दौर में पहुंचा दिया है। इस सियासी बिसात पर अब सबसे अधिक चर्चा भाजपा के उन नेताओं की हो रही है, जिन्होंने भविष्यवाणी की थी कि अगस्त पार नहीं होगा। इस बिसात की मौजूदा स्थिति के बारे में एक बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि हेमंत सोरेन ने राजनीतिक रूप से फिलहाल भाजपा को मात दी है। उनका हर कदम भाजपा की रणनीति को कमजोर कर रहा है और अब तक भाजपा के नेता इस मामले पर अपनी ओर से टिप्पणी करने से भी बच रहे हैं।
सियासत के शह-मात के इस खेल में सीएम हेमंत सोरेन भी एक मंजे हुए राजनेता की तरह अपने कदम बढ़ा रहे हैं और उससे पहले भरपूर तैयारी करते हुए दिख रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है राज्य में फिलहाल भाजपा की रणनीति बिहार की तरह बिखरती हुई नजर आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि हेमंत सोरेन ने जैसे को तैसा का रुख अख्तियार किया है। उन्होंने भाजपा को उसी की भाषा में जवाब दिया है। भाजपा ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में जो किया, हेमंत सोरेन झारखंड में ठीक वही सब कर रहे हैं। इसलिए उनकी पार्टी कह रही है कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे भाजपा की चाल को भांप नहीं पाये, लेकिन हेमंत सोरेन ने समय रहते इसे पकड़ लिया। यही कारण है कि इन्होंने यूपीए के विधायकों को अपने राज्य से बाहर रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया, जहां ये सीधे इनके नियंत्रण में हैं।
हेमंत की मजबूत स्थिति का दूसरा बड़ा कारण यह है कि दलीय अंकगणित पूरी तरह उनके पक्ष में है। भाजपा के शुरूआती झटके से हेमंत सोरेन थोड़े घबराये जरूर थे, लेकिन अब वह पूरी तरह आश्वस्त दिख रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में उन्होंने जो निर्णय लिया है, इससे स्पष्ट है कि वह पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उनके पास नंबर है और वह अपनी कुर्सी बचा लेंगे। यही नहीं एक-एक कर अपने चुनावी वायदों को पूरा कर वह अगले चुनाव की तैयारी भी कर रहे हैं।
दूसरी तरफ जहां तक भाजपा की बात है, तो फिलहाल उसके पास ‘वेट एंड वाच’ के अलावा कोई विकल्प नहीं बच गया है। सत्तारूढ़ गठबंधन को तोड़ने और सरकार बनाने की उसकी रणनीति अब पूरी तरह फेल होती नजर आ रही है। अब भाजपा यदि सत्तारूढ़ विधायकों को तोड़ती है, तो इसका खामियाजा पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। अब उसके पास एक ही विकल्प बचता है और वह है धारा 356, यानी राष्ट्रपति शासन। लेकिन यह फैसला इतना आसान नहीं है। एक पूर्ण बहुमत की सरकार को बरखास्त कर देना भाजपा के माथे पर ऐसा कलंक लगायेगा कि वह कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं बचेगी।
हेमंत के फैसले बता रहे कि वह चुनाव के लिए भी तैयार हैं
इस बीच इस बात की भी चर्चा हो रही है कि झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। हेमंत सोरेन यहां भी भाजपा को पटखनी देने की तैयारी कर रहे हैं। यही कारण है कि अपने चुनावी घोषणापत्र में किये गये लगभग सारे वादों को हेमंत सोरेन चुनाव से दो साल पहले लागू कर चुके हैं। इनमें तमाम अवरोधों के बावजूद राज्य में पुरानी पेंशन योजना को लागू करना, पंचायत सचिव की नयी बहाली को रद्द कर पुराने को जारी रखना, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विस्तारीकरण के प्रस्ताव को रद्द करना, पत्थलगड़ी समर्थकों के खिलाफ गुमला में दर्ज केस को वापस लेने का फैसला और चतुर्थवर्गीय कर्मचारी, सिपाही और पुलिसकर्मियों के क्षतिपूर्ति अवकाश को फिर से बहाल करना शामिल है। इसके अलावा पारा शिक्षकों और सहायक पुलिसकर्मियों के हित में भी हेमंत सरकार ने जो फैसले लिये हैं, वे चुनावी अखाड़े में उन्हें ताकत देंगे। इतना ही नहीं, 5 सितंबर के विशेष सत्र में यदि वह पिछड़ों के लिए आरक्षण, नियोजन नीति और सरना धर्मकोड जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी फैसला ले लेते हैं, तो यह उनकी स्थिति को और मजबूत कर देगा।
वैसे पिछले 33 महीने के शासनकाल में हेमंत ने कभी कोई ऐसा फैसला नहीं किया, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हो। वह जानते हैं कि उनका एक गलत कदम उन्हें भाजपा के सामने कमजोर कर देगा। इसलिए वह अपना हर फैसला अच्छी तरह ठोक-बजा कर ले रहे हैं। अनावश्यक टीका-टिप्पणियों पर वह ध्यान भी नहीं देते और न राजनीतिक रूप से कोई कमजोर कदम ही उठाते हैं। हार्वर्ड से लेकर हाट गम्हरिया तक अपने संबोधनों में उन्होंने केवल झारखंड की बात की है। इसलिए फिलहाल वह आगे दिखाई दे रहे हैं।