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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के आदेश पर छिड़ी बहस
    स्पेशल रिपोर्ट

    राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के आदेश पर छिड़ी बहस

    azad sipahiBy azad sipahiNovember 13, 2022No Comments7 Mins Read
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    • सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस के मनु सिंघवी को कड़ा एतराज : तमिलनाडु की सियासत पर भी पड़ेगा इस फैसले का असर

    उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को समय से पहले रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विवाद उठना स्वाभाविक है। कांग्रेस ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति की है। जानकारों के अनुसार यह फैसला इस जघन्य हत्याकांड के दोषियों और उनके समर्थकों के साथ क्षेत्रवाद की सस्ती राजनीति करनेवालों का दुस्साहस बढ़ानेवाला है। इस फैसले की व्यापक आलोचना हो रही है, तो इसीलिए कि यह इसी लायक है। राजीव गांधी केवल कांग्रेस के नेता ही नहीं, देश के पूर्व प्रधानमंत्री भी थे। तथ्य यह भी है कि उनके साथ 14 अन्य लोग भी मारे गये थे। मद्रास हाइकोर्ट के फैसले और केंद्र सरकार की राय के विरुद्ध जाकर सुप्रीम कोर्ट ने चाहे जो भी उदाहरण पेश किया हो, इससे एक गलत परंपरा स्थापित होने की आशंका है। यह समझना कठिन है कि इस हत्याकांड में शामिल लोगों पर दया दिखा कर सुप्रीम कोर्ट ने समाज को क्या संदेश देने की कोशिश की है। निश्चित रूप से यह किसी भी तरह से वैसा मामला नहीं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट को अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ती। सुप्रीम कोर्ट की इस दलील में कोई दम नहीं दिखता कि राजीव गांधी हत्याकांड में सजा काट रहे दोषियों का चाल-चलन अच्छा था और जेल में रह कर उन्होंने पढ़ाई भी की थी। क्या इन सब कारणों से किसी को भी समय से पहले रिहा किया जा सकता है, भले ही वह कितने ही संगीन अपराध में लिप्त रहा हो। इस तरह दोषियों पर दया दिखाना एक तरह से न्याय का उपहास उड़ाना ही है। इस फैसले का असर सियासत पर, खास कर तमिलनाडु की सियासत पर जरूर पड़ेगा, क्योंकि वहां की सत्ताधारी पार्टी द्रमुक अभी कांग्रेस के साथ है और वह इस फैसले का स्वागत कर रही है। राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के फैसले के विभिन्न पहलुओं को उजागर कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के फैसले के बाद देश में गंभीर विवाद छिड़ गया है। कांग्रेस समेत समाज का बड़ा वर्ग सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जता रहा है, तो तमिलनाडु में कांग्रेस की सहयोगी सत्ताधारी पार्टी द्रमुक ने इस फैसले का समर्थन किया है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सियासत भी शुरू हो गयी है। सर्वोच्च अदालत के फैसले पर सोनिया गांधी के रुख को दरकिनार करते हुए कांग्रेस ने सख्त नाराजगी जतायी है, हालांकि कानूनी व्याख्याकार इस फैसले को सही ठहराते हैं, लेकिन इसका एक बड़ा खतरा यह है कि इससे आतंकवाद को फलने-फूलने का मौका मिलेगा। सवाल यह भी है कि इस फैसले का तमिलनाडु की राजनीति पर कितना असर पड़ेगा, क्योंकि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की अगुवाई वाली द्रमुक सरकार में कांग्रेस भी भागीदार है। वहीं द्रमुक कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की पार्टनर है, जो लंबे समय से इन दोषियों की रिहाई के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही थी। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस समूचे विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में जुटी हुई है, लेकिन इस फैसले ने पार्टी के सामने यह धर्म संकट खड़ा कर दिया है कि वह अपने नेता के हत्यारों की रिहाई की पैरवी करनेवाली द्रमुक को अब साथ रखेगी या फिर उससे नाता तोड़ेगी।

    तमिलनाडु के पिछले लोकसभा चुनाव में भी द्रमुक और कांग्रेस के बीच सीटों का गठबंधन हुआ था और तब यूपीए ने 39 में से 38 सीटों पर कब्जा जमाया था। तब द्रमुक को 23, कांग्रेस को आठ और अन्य छोटे दलों ने सात सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रिहाई के इस फैसले ने तमिलनाडु के सियासी गणित को बदल कर रख दिया है। अगले चुनाव में कांग्रेस अगर द्रमुक के साथ सीटों का गठबंधन करती है, तो इसका गलत सियासी संदेश जाने का खतरा है और यदि अकेले लड़ती है, तो अपनी जमीन कमजोर होने का यह डर बना रहेगा कि तब उसे आठ सीट भी मिलती है या नहीं। इसलिए इस फैसले ने कांग्रेस को एक ऐसे सियासी संकट में फंसा दिया है, जिसका सीधा असर लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष की एकता पर पड़ना तय है।
    राजीव गांधी की हत्या के दोषियों की रिहाई पर कांग्रेस ने सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए यहां तक कहा है कि पार्टी सोनिया गांधी के मत से सहमत नहीं है। पार्टी नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस फैसले पर कई सवाल तो उठाये, लेकिन साथ ही मीडिया के सामने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सोनिया गांधी अपना मत देने का अधिकार रखती हैं, लेकिन मैं पूरे सम्मान के साथ कहता हूं कि पार्टी उनके मत से सहमत नहीं है और उन्हें भी यह बात स्पष्ट रूप से बता दी गयी है।

    गौरतलब है कि कुछ साल पहले सोनिया गांधी ने इस मामले की एक दोषी नलिनी को माफ कर दिया था। राजीव गांधी हत्याकांड में जब नलिनी को गिरफ़्तार किया गया, तब वह गर्भवती थी। उसकी गर्भावस्था को दो महीने हो गये थे। नलिनी श्रीहरन को आत्मघाती दस्ते का सदस्य होने का दोषी पाया गया था।

    नलिनी को पहले तीन अन्य दोषियों के साथ मौत की सजा सुनायी गयी थी, लेकिन सोनिया गांधी की अपील के बाद नलिनी की सजा को घटा कर उम्र कैद में बदल दिया गया था। सोनिया गांधी ने कहा था कि नलिनी की गलती की सजा एक मासूम बच्चे को कैसे मिल सकती है, जो अब तक दुनिया में आया ही नहीं है, लेकिन कांग्रेस नेता सिंघवी ने सोनिया के उस रुख से हट कर पार्टी का स्टैंड साफ करते हुए कहा, इस मामले में हमारे पास जो भी विकल्प होंगे, उनका हम इस्तेमाल करेंगे। राजीव गांधी का बलिदान हम व्यर्थ नहीं जाने देंगे। सिंघवी ने कहा कि हमारी कोर्ट से अपील है कि वह दोषियों को रिहा न करे। पूर्व पीएम की हत्या भारत के अस्तित्व पर हमला है। इसमें कोई राजनीति का रंग नहीं होता। इस तरह के अपराध में किसी को रिहा नहीं किया जा सकता। पीएम या पूर्व पीएम पर हमला आम अपराध नहीं हो सकता। प्रदेश सरकार दोषियों का समर्थन कर रही थी। उस वजह से कोर्ट को इस तरह का फैसला देना पड़ा, जबकि केंद्र सरकार प्रदेश सरकार के मत से अहसमत नहीं थी। सिंघवी खुद एक बड़े वकील हैं, लेकिन उन्होंने इस फैसले को लेकर अजीबो गरीब तर्क भी दिया है। उनके मुताबिक हमारी न्याय व्यवस्था ने लोगों की भावना का खयाल नहीं रखा, जबकि इस तथ्य से तो वे स्वयं वाकिफ हैं कि कानून लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला नहीं देता, बल्कि संविधान के प्रावधानों के मुताबिक ही न्याय करता है। इसीलिए इंसाफ की देवी की आंखों पर काली पट्टी बंधी रहती है। हालांकि इस फैसले की आलोचना करने के बहाने सिंघवी ने एक गंभीर मुद्दा भी उठाया है, जिस पर हमारी न्यायपालिका को संजीदगी के साथ गौर करने की जरूरत है। उनका कहना है कि भारतीय जेलों में लाखों लोग ऐसे हैं, जो बिना अपराध के बंद हैं। उन पर ध्यान न देकर कर आप अपराधियों को रिहा कर रहे हैं।
    सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस की आपत्ति सर्वथा उचित है, लेकिन आखिर क्या कारण रहा कि एक समय सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने राजीव गांधी के हत्यारों के प्रति न केवल सहानुभूति जतायी थी, बल्कि उन्हें माफ करने की भी बात कही थी। प्रियंका गांधी तो एक दोषी से जाकर जेल में भी मिली थीं। आखिर इस सबकी क्या आवश्यकता थी। प्रश्न यह भी है कि कांग्रेस तमिलनाडु में अपने सहयोगी दल द्रमुक को इसके लिए क्यों राजी नहीं कर पायी कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई की पैरवी करने से बाज आये। द्रमुक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जिस तरह प्रसन्नता जताने में लगी हुई है, उससे न केवल दोषियों का महिमामंडन होने की आशंका उभर आयी है, बल्कि इसकी भी कि अन्य जघन्य कांडों में दोषी करार दिये गये लोगों की रिहाई की मांग उठ सकती है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की मांग उठती रही है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि संकीर्ण क्षेत्रवाद के चलते इस तरह की मांगों को कुछ राजनीतिक दल अपना समर्थन देने के लिए आगे आ जाते हैं। इसलिए इस फैसले को संपूर्णता से देखने पर साफ लगता है कि यह यह फैसला देश के एक बड़े वर्ग को सहज स्वीकार्य नहीं है।

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