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    Home»झारखंड»आदिवासी संगठनों का मशाल जुलूस, पुतला दहन कार्यक्रम आज
    झारखंड

    आदिवासी संगठनों का मशाल जुलूस, पुतला दहन कार्यक्रम आज

    अनुबंधकर्मियों के स्थायीकरण का करेंगे विरोध
    adminBy adminJanuary 15, 2023Updated:January 15, 2023No Comments3 Mins Read
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    आजाद सिपाही संवाददाता
    रांची। झारखंड में अनुबंध पर नियुक्ति कर्मियों के स्थायीकरण की प्रक्रिया हाइकोर्ट के निर्देश के बाद सरकार शुरू करने जा रही है। लेकिन इसका विरोध भी शुरू हो गया है। राष्ट्रीय आदिवासी समाज सरना धर्म रक्षा अभियान ने इसपर बैठक की। जिसकी अध्यक्षता बंधन तिग्गा ने की। बैठक में कहा गया कि विभिन्न सरकारी विभागों, अनुमंडलों, जिला, प्रखंड स्तर पर नियुक्त हजारों अनुबंध कर्मियों की सेवा नियमित की जा रही है। इसका विरोध राजी पाहा सरना प्रार्थना सभा, केंद्रीय सरना समिति, झारखंड आदिवासी संयुक्त मोर्चा, राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ, सरना धर्म सोतो: समिति खूंटी, केंद्रीय सरना संघर्ष समिति रांची सहित अन्य संगठनों ने विरोध किया है। इनका कहना है कि अनुबंध और संविदा नियुक्ति में एसटी, एससी के आरक्षण का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन हुआ है। संगठनों का कहना है कि वर्तमान गठबंधन की सरकार के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से निवेदन किया गया है कि इस तरह की गलती कभी ना करें। अन्यथा राज्य में आदिवासियों का आंदोलन होगा। संगठनों का कहना है कि 16 जनवरी को 3 बजे जयपाल सिंह स्टेडियम में सभी संगठनों के प्रतिनिधि जमा होंगे और मशाल जुलूस के साथ अल्बर्ट एक्का चौक पर सरकार का पुतला दहन होगा। बैठक में सरकार से मांग की गयी है कि, राज्य सरकार के अधीन विभिन्न स्तरीय सेवा संवर्ग बैकलॉग हजारों वैकेंसी आरक्षित वर्गों का है। बैकलॉग वैकेंसी का आकलन किया जाये और उसके विरुद्ध नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जाये। इस बैठक में आशा लकड़ा के सरना धर्म कोड को लेकर दिये बयान का भी विरोध किया गया। कहा गया कि उनका बयान आदिवासियों को दिग्भ्रमित करने वाला है। आशा लकड़ा को मालूम होना चाहिए कि 11 नवंबर 2020 को विधानसभा से पारित हुआ है। भाजपा के विधानसभा सदस्यों ने भी अपना समर्थन दिया है और सर्वसम्मति से सरना धर्म कोड पारित हुआ है। डॉ लकड़ा को यह जानकारी होनी चाहिए कि 2011 की जनगणना में अन्य धर्म कॉलम में देशभर से 79 लाख लोगों ने अपना-अपना धर्म दर्ज किया है। जिनमें देश भर से 49.57 लाख लोगों ने अपना धर्म सरना दर्ज किया है, जो जैन धर्म से कहीं अधिक है। जिसमें पूरा मुंडा, हो, संथाल और झारखंड के लगभग सभी जनजाति समुदाय ने दर्ज किया है। यह संख्या 97 प्रतिशत है। वहीं ओडिशा में 2000 की जनगणना में सरना धर्म दर्ज करने वालों की संख्या 4 लाख 33 हजार और पश्चिम बंगाल 4 लाख 32 हजार है। सरना धर्म को देश के 21 राज्यों में प्रभावी ढंग से अपनाया गया है। इसे मात्र छोटा नागपुर का कहना, भ्रम पैदा करना है। सभा में यह भी कहा गया कि डॉक्टर आशा लकड़ा की बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। क्योंकि वह आरएसएस की भाषा बोल रही हैं। झारखंड कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस ने सरना कोड की बात कही है, यह स्वागत योग्य है लेकिन कांग्रेस से निवेदन है कि इस मसले को कांग्रेस की केंद्रीय कार्यसमिति दिल्ली में रखी जाये। फिर इसपर कांग्रेस के विचार को केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के सामने रखी जाये, तो बड़ी बात होगी। झारखंड मुक्ति मोर्चा और मुख्यमंत्री से निवेदन है जिस तरह से विधानसभा में सरना धर्म कोड की प्रस्ताव को पारित किया गया है। आगे भी उम्मीद करते हैं कि राज्य की हेमंत सरकार केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के सामने स्पष्ट रूप से सरना कोड की वकालत करेंगे। बैठक में डॉ करमा उरांव, बलकू उरांव, संगम उरांव, रवि तिग्गा, नारायण उरांव, अमर उरांव, शिवा कच्छप, प्रभात तिर्की, रेणु तिर्की, रायमुनि किस्पोट्टा, सुमन खलखो, निर्मल पाहन, रंजीत उरांव, अस्मितमन तिर्की, अर्पित तिर्की आदि शामिल थे।

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