-सबसे पहले तो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की खुमारी से बाहर निकलना होगा
-पार्टी के रायपुर महाधिवेशन के बाद दूसरी चुनौतियां भी होंगी सामने
‘भारत जोड़ो यात्रा’ की ‘कपोल-कल्पित सफलता’ की खुमारी में डूब-उतरा रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी के राजनीतिक कौशल के इम्तिहान की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वह खुद को रहस्यमय ढंग से एकाकी रूप में ढालते जा रहे हैं। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की खुमारी उन पर ऐसी छायी है कि वह यह भूल गये हैं कि यह कांग्रेस का पतझड़ काल चल रहा है। राहुल की इस सोच से कांग्रेस का 2024 के लोकसभा चुनाव जीतना मुश्किल ही नहीं, असंभव लग रहा है। राहुल को अब समझना होगा कि यदि उनकी पार्टी आम चुनावों में सबसे बड़े दल के रूप में भी उभरना चाहती है, तो भी उन्हें पहाड़-सी चुनौतियों से पार पाना होगा। 2024 के आम चुनाव से पहले इस साल होनेवाले पांच राज्यों के चुनाव उनके लिए सबसे कठिन इम्तिहान लेंगे। राजस्थान में पार्टी की अंदरूनी हालत और छत्तीसगढ़ में इसी सप्ताह आयोजित होनेवाले पार्टी महाधिवेशन के दो परस्पर विरोधी ध्रुवों में कांग्रेस के युवराज संतुलन कैसे स्थापित कर पाते हैं, यह देखनेवाली बात हो सकती है। पार्टी के गांधी-नेहरू परिवार से बाहर का अध्यक्ष देकर कांग्रेस ने आंतरिक लोकतंत्र के प्रति जो ‘आभासी प्रतिबद्धता’ दिखायी है, मल्लिकार्जुन खड़गे की अब तक की पारी ने उस पर धूल ही चढ़ायी है। राहुल के लिए इस धूल को साफ करना भी जरूरी होगा। इसके अलावा उनके सामने कांग्रेस की भ्रष्टाचार, वंशवाद, हिंदू-विरोधी नकारात्मक छवि को बदलने की चुनौती भी है। हालांकि राहुल के नेतृत्व में भद्रता, विनम्रता और संवेदना तो झलकती है, लेकिन नजरिये की व्यापकता नहीं। ऐसे में राहुल गांधी कांग्रेस को कौन सी दिशा देंगे, यह गंभीर सवाल है। उन्हें अब जरूरत ऐसा ‘मास्टर प्लान’ बनाने की है, जो उन्हें और कांग्रेस के लिए 2024 का लांच पैड साबित हो सके। इसके लिए जरूरी है कि राहुल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की खुमारी से बाहर निकलें। राहुल गांधी के सामने इन चुनौतियों की सूची पेश कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
‘मुझे नफरत फैलाना नहीं आता, मैं प्यार बांटता हूं। इस देश को प्यार की जरूरत है, एक-दूसरे के साथ की जरूरत है। धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों से बचने की जरूरत है।’ ये सभी बातें पिछले कुछ महीनों में एक नेता ने पैदल यात्रा कर बार-बार कहीं। देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर कहीं। लेकिन इससे कितना फायदा हुआ, क्या किसी के जीवन में इन बातों का असर पड़ा भी? या फिर बस ये एक छवि चमकाने वाला बड़ा इवेंट था, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने साढ़े तीन हजार किलोमीटर का पैदल सफर तय किया। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से राहुल गांधी ने खुद का और कांग्रेस पार्टी का कितना भला किया और आगे भी इसी तरह की यात्रा उन्हें करनी चाहिए या नहीं, इस सवाल का जवाब तलाश करना बहुत जरूरी है। इसका एक ही जवाब हो सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी को अब ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को भूल जाना चाहिए और चुनाव के लिए एक मास्टर प्लान बनाना चाहिए।
क्यों भूल जाना चाहिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने साढ़े तीन हजार किलोमीटर की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पूरी कर ली है और अब वह एक बार फिर से मुख्यधारा की राजनीति में वापसी कर चुके हैं। लोकसभा में उन्होंने अडाणी के मुद्दे पर मोदी सरकार पर खूब शब्दों के बाण चलाये। काफी हद तक सरकार को घेरा भी। उनके भाषण में बार-बार ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की खुमारी झलकी। लेकिन जब संसद में पीएम मोदी बोलने आये, तो एक बार में ही सारा हिसाब बराबर कर गये। राहुल गांधी को अब समझना होगा कि पीएम मोदी से सीधी टक्कर लेनी है तो प्यार, नफरत या पीएम मोदी पर सीधे हमले, ये बातें छोड़कर ठोस मुद्दों की बात करनी होगी।
राहुल गांधी का राजनीतिक करियर करीब 20 साल का हो गया है, लेकिन इस 20 साल के पूरे कार्यकाल को देखें, तो एक भी ठोस बात नजर नहीं आती। कोई ऐसा मुद्दा नजर नहीं आता, जिसमें वाकई राहुल गांधी ने सरकार को बैकफुट पर ला खड़ा कर दिया हो। इसकी बड़ी वजह है राहुल का मुद्दों से हट जाना और बार-बार सिर्फ और सिर्फ मोदी, मोदी कहना।
2024 के लिए मोदी-मोदी नहीं, मुद्दों पर करनी होगी बात
ऐसा नहीं है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से राहुल गांधी को कुछ हासिल नहीं हुआ। हासिल हुआ है, जरूर हुआ है और वह यह है कि राहुल गांधी की छवि एक गंभीर और हृष्ट-पुष्ट नेता के रूप में उभरी है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश भी फूंका गया है। लेकिन पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ जंग लड़ने के लिए इतने से काम नहीं चलेगा। राहुल गांधी को उन मुद्दों पर फोकस करना होगा, जो सीधा आम आदमी को प्रभावित करते हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद तीन मुद्दे ऐसे थे, जिन पर जनता का सबसे ज्यादा ध्यान था और उसने सबसे ज्यादा वोट उसी पर किया भी है। कई सर्वे में भी यह बात दिखायी गयी है कि लोगों के लिए क्या अहम है, चुनाव में किसे लेकर वोट करते हैं। सर्वे में सामने आया है कि 11.3 प्रतिशत लोगों ने बेरोजगारी और नौकरियां न होने के मुद्दे पर वोट किया। चार प्रतिशत लोगों ने महंगाई पर वोट किया, तो 14.3 प्रतिशत लोगों ने विकास को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा माना।
2024 का चुनाव अगर राहुल गांधी, मोदी-मोदी किये बिना आम आदमी के मुद्दों पर लड़ते हैं, तो जरूर उन्हें इसका बड़ा फायदा मिल सकता है। साथ ही साथ पार्टी को भी उन्हें संदेश देना होगा कि मोदी पर फोकस मत करो, जनता के मुद्दों पर फोकस करो।
विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बने रहने के लिए भी लड़नी है लड़ाई
राहुल गांधी के लिए अब सिर्फ मोदी या भाजपा से लड़ना ही एकमात्र चैलेंज नहीं रह गया है। उन्हें अब विपक्ष का सबसे बड़ा नेता बने रहने के लिए भी संघर्ष करना होगा। बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने तो इस बाबत खुले मंच से अपनी बात रख दी है। विपक्षी एकता के रास्ते में रोड़ा बने बाकी नेताओं से बात करने की जिम्मेदारी अब राहुल गांधी को ही उठानी होगी। अगस्त, 2022 के मूड आॅफ द नेशन सर्वे में 53 प्रतिशत देशवासियों ने कहा था कि वे पीएम मोदी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, जबकि नौ प्रतिशत लोगों ने राहुल गांधी का साथ दिया था और सात प्रतिशत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का। लेकिन कुछ समय बाद ही राहुल गांधी का ग्राफ नीचे चला गया और केजरीवाल विपक्ष के सबसे काबिल नेता के रूप में सामने आते दिखे। मूड आॅफ द नेशन के मुताबिक जनवरी 2021 में 11 प्रतिशत लोगों का मानना था कि विपक्ष का नेतृत्व राहुल गांधी को करना चाहिए, जबकि 16 प्रतिशत लोगों का साथ केजरीवाल को मिला था और 17 प्रतिशत ममता बनर्जी को। 2022 के अगस्त में राहुल को 13 प्रतिशत, ममता बनर्जी को 20 प्रतिशत केजरीवाल को 27 प्रतिशत लोगों ने विपक्ष का सबसे बड़ा नेता बताया। ऐसे ही जनवरी 2023 में विपक्ष को लीड करने के लिए सिर्फ 13 प्रतिशत ने राहुल गांधी का हाथ थामा, तो 24 प्रतिशत ने केजरीवाल और 20 प्रतिशत ने ममता बनर्जी का। ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि राहुल गांधी को अब नये प्लान के बारे में सोचना होगा। कांग्रेस के लिए मास्टर प्लान बनाना होगा और वह भी सिर्फ और सिर्फ मुद्दों पर आधारित।