विशेष
फिर से अशांत होता दिख रहा है प्रदेश, अजनाला की घटना ने पुख्ता किया संदेह
अरविंद केजरीवाल की राजनीति ने इस प्रदेश में लगा दी है आग
समय रहते अमृतपाल सिंह जैसे तत्वों पर लगाम लगाना जरूरी
देश के सबसे समृद्ध और खुशहाल प्रदेश पंजाब इन दिनों अशांत है। पाकिस्तान की सीमा से सटे इस राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से जिस तरह की घटनाएं हुईं और हो रही हैं, उससे लगता है कि यह राज्य एक बार फिर आतंकवाद के मुहाने पर पहुंच गया है। ‘वारिस पंजाब दे’ नामक संगठन के मुखिया अमृतपाल सिंह ने अजनाला थाने पर प्रदर्शन करने और पुलिस प्रशासन को घुटनों पर लाने के बाद जो तेवर दिखाया है, उससे तो साफ लगता है कि यदि उस पर तत्काल नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो वह जरनैल सिंह भिंडरांवाले हो सकता है। वह खुलेआम सरकार को चुनौती दे रहा है, उसके समर्थक तालिबानी कानून लागू करने की कोशिश कर रहे हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। अलगाववाद की यह चिंगारी पंजाब से निकल कर आॅस्ट्रेलिया तक पहुंच गयी है, जहां अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने भारतीय उच्चायोग पर खालिस्तानी झंडा तक फहरा दिया है। पंजाब जैसे राज्य के लिए यह बेहद खतरनाक स्थिति है। राज्य में खालिस्तानी समर्थक जगह-जगह दिखाई देने लगे हैं। पंजाब की यह स्थिति राज्य में पिछले साल हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से पैदा हुई है। विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल पर खालिस्तानी आतंकवादियों से साठगांठ के आरोप लगे थे और अब पंजाब की आप सरकार का रवैया देख कर लगता है कि वे आरोप निराधार नहीं थे। पंजाब की वर्तमान स्थिति पूरे देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है। पंजाब की इस स्थिति पर रोशनी डाल रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया भर में भारत की खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक पंजाब एक बार फिर से अशांत होता दिख रहा है। राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से आतंकवाद का दौर राज्य के दरवाजे पर दस्तक देने लगा है। खालिस्तान समर्थक सक्रिय हो गये हैं। माफिया राज, गैंगस्टर और गन कल्चर की घटनाएं बढ़ रही हैं। ‘वारिस पंजाब दे’ के जत्थेदार अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने जिस तरह अजनाला थाने का घेराव कर पुलिस प्रशासन को घुटना टेकने पर मजबूर कर दिया, वह गंभीर चिंता का विषय है। अब अमृतपाल सिंह के तेवर खतरनाक हो गये हैं। वह खुलेआम सरकार को चुनौती दे रहा है। उसके समर्थक पंजाब के ग्रामीण इलाकों में तालिबानी कानून लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। जो लोग उनकी बात नहीं मानते हैं, उन्हें सजा दी जा रही है। कुल मिला कर राज्य में 80 के दशक के दौर की आहट सुनाई देने लगी है।
कौन है अमृतपाल सिंह
अमृतपाल सिंह 29 साल का है और हाल ही में उसने ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन की कमान संभाली है। इस संगठन की कहानी जुड़ती है अभिनेता और एक्टिविस्ट संदीप सिंह उर्फ दीप सिद्धू से, जो 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर खालसा पंथ का झंडा फहराने को लेकर चर्चा में आया था। 15 फरवरी 2022 को एक सड़क हादसे में उसकी मौत हो गयी, लेकिन अपनी मौत से छह महीने पहले, यानी सितंबर 2021 में सिद्धू ने ‘वारिस पंजाब दे’ की नींव रखी थी। दीप सिद्धू की मौत के बाद दुबई में रहनेवाला अमृतपाल सिंह भारत आया और संगठन का प्रमुख बन गया। वह अमृतसर के पास स्थित जल्लूपुर खेड़ा गांव का रहनेवाला है। उसने खालिस्तानी भिंडरांवाले और उससे जुड़े तमाम ज्ञान इंटरनेट की बदौलत हासिल किया। पहले वह दुबई में रह कर बिजनेस करता था। अब पंजाब में रह कर खालिस्तान समर्थक आंदोलन चला रहा है। संगठन के प्रमुख के रूप में उसकी दस्तारबंदी उसी रोड गांव में हुई, जहां जरनैल सिंह भिंडरांवाले का जन्म हुआ था। ‘वारिस पंजाब दे’ को खालिस्तान समर्थक समूह ‘सिख फॉर जस्टिस’ से भी मदद मिल रही है। यह संगठन पंजाब में लोगों की भावनाओं को भड़काने और आंदोलन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है। इसका सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू है। वह अमृतसर के खानकोट गांव का रहनेवाला है। इन संगठनों को विदेशों से पैसा मिल रहा है। अमेरिका, कनाडा, मलेशिया, सिंगापुर आदि में खालिस्तानी आतंकी सक्रिय हैं।
अजनाला की घटना ने बढ़ायी चिंता
पंजाब के अजनाला पुलिस थाने पर खालिस्तान समर्थकों का हमला होना इस बात का संकेत और संदेश है कि आम आदमी पार्टी की सरकार के चलते पंजाब फिर आतंकवाद और अलगाववाद की डगर पर चल पड़ा है। वैसे भी यह एक सर्वमान्य सत्य है कि खालिस्तान समर्थकों का दिमाग ठीक नहीं है और विदेशी शक्तियां उनके दिमाग को और भी अधिक खराब करने की चेष्टा में लगी हुई हैं। ये वही वैश्विक शक्तियां हैं, जो भारत की बढ़ती शक्ति को अपने लिए खतरा मानती हैं और हमारे देश को कभी भी सम्मानित स्थान देने की इच्छुक नहीं रही हैं। ऐसी शक्तियों के हाथों में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल का खेलना और इस सीमावर्ती प्रदेश को अशांति के माहौल में झोंक देना बहुत बड़े षडयंत्र को प्रकट करने के लिए पर्याप्त हैं। विधानसभा चुनाव के पहले अरविंद केजरीवाल पर खालिस्तान समर्थक आतंकियों के साथ साठगांठ का आरोप लगा था। उस समय तो इसे राजनीति से प्रेरित कहा गया, लेकिन आज पंजाब की स्थिति को देख कर वे आरोप निराधार नहीं लग रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि खालिस्तान समर्थक आंदोलन पंजाब में गति पकड़ रहा है और आम आदमी पार्टी की सरकार इस आंदोलन के प्रति पूर्णतया उदासीन बनी हुई है।
खालिस्तान के नाम पर विदेशों से बहुत भारी मात्रा में फंडिंग की जा रही है। नये-नये उग्रवादी और आतंकवादी संगठन बनाये जा रहे हैं। उनका वित्त पोषण किया जा रहा है ।
ऐसी परिस्थितियों में पंजाब में अलगाववादी तत्वों ने जिस प्रकार एक थाने को घेरा और उस पर आक्रमण किया, वह गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे तत्वों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति बनाने पर सभी राजनीतिक दलों को अपना सहयोग देने का भरोसा सरकार को देना होगा। आम आदमी पार्टी की सरकार पंजाब में है। इसलिए इस पार्टी का और इसके नेता केजरीवाल का यह दायित्व है कि वह सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिल कर पंजाब के लिए कठोर कानून बनाने की रणनीति पर विचार करें। जिन लोगों ने थाने पर आक्रमण करने में अपनी उपस्थिति दिखायी है, यह उन्हीं आतंकवादियों के मानस पुत्र हैं, जिन्होंने कभी पंजाब में हिंदुओं का व्यापक नरसंहार किया था। उनके उसी नरसंहार के परिणाम स्वरूप एक दिन वह भी आया, जब देश ने सिखों का नरसंहार देखा। सिखों का नरसंहार निश्चित रूप से एक जघन्य अपराध था, पर उससे पहले जिन लोगों ने पंजाब में हिंदुओं को मारा था, उन हिंदुओं के बलिदान को भी भुलाया नहीं जा सकता, क्योंकि खून उनका भी लाल ही था। ऐसे में यदि आज फिर वही लोग या उनके मानस पुत्र पंजाब में सक्रिय हो रहे हैं, तो सरकार को भविष्य के प्रति सावधान होकर सामूहिक ठोस कार्रवाई के लिए कटिबद्ध होना चाहिए।
राजनीति जब अपने धर्म से पथ भ्रष्ट या स्खलित होती है, तो वह शब्दों की गरिमा भूल जाती है। कभी हमने महाभारत के समय दुर्योधन जैसे राजनीतिक व्यक्ति की वाणी को देखा था, जो मर्यादा भूल चुकी थी।
पंजाब की वर्तमान स्थिति पूरे देश के लिए चिंतनीय है। इसलिए इस पर गंभीरता से विचार करने और एक्शन लेने की जरूरत है, ताकि एक और भिंडरांवाले सिर नहीं उठा सके।