Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Friday, August 1
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»स्पेशल रिपोर्ट»राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद नीतीश रेस
    स्पेशल रिपोर्ट

    राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद नीतीश रेस

    adminBy adminApril 12, 2023No Comments9 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    विशेष
    -विपक्षी एकता की धुरी बनने को हैं बेकरार
    -सवाल अटक रहा वही- कौन बनेगा विपक्ष का कप्तान
    -नीतीश के साथ बैटिंग करने उतरे हैं तेजस्वी भी, राहुल हो रहे हैं उत्साहित
    -लेकिन केजरीवाल, ममता और केसीआर की सहमति के लिए करनी होगी मशक्कत

    बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की मुहिम में फिर से जुट गये हैं। नीतीश कुमार ने दूसरी बार नये सिरे से विपक्षी एकजुटता की कोशिशें शुरू कर दी हैं। नीतीश इसलिए भी बैटिंग करने उतरे हैं, क्योंकि राहुल गांधी की सांसदी चली गयी है। सो नितीश को लगता है कि यह एक सुनहरा अवसर भी है खुद को विपक्षी एकता की धुरी साबित करने का। कहीं न कहीं उनके दिल के किसी कोने में यह बात हिलोरे मारने लगी है कि उनका सपना पूरा हो जायेगा। इसी चाहत को पूरा करने औरबिखरे विपक्ष को एक प्लेटफार्म पर जोड़ने के लिए वह इस समय दिल्ली यात्रा पर हैं। उनका यह दौरा सियासी नजरिये से काफी अहम माना जा रहा है। माना जा रहा है कि उनकी इस यात्रा से पिछले कुछ दिनों से ठंडी पड़ चुकी विपक्ष की खिचड़ी एक बार फिर उबलने लगेगी। वैसे देखा जाये, तो जैसे-जैसे मोदी का कद बढ़ रहा है, वैसे-वैसे विपक्ष की खिचड़ी का पतीला भी पेड़ की ऊपरी डाल पर शिफ्ट होता जा रहा है। पतीले तक आंच अभी पहुंच नहीं पा रही है। इस आंच में विपक्ष को कई राज्यों से लकड़ियों को जुटाना होगा, तभी उनकी खिचड़ी सही तरीके और समय से पक सकेगी। वैसे कुछ लकड़ियां ऐसी भी हैं, जो खिचड़ी को जला देने का माद्दा रखती हैं, क्योंकि उन लकड़ियों की चाहत है हरा भरा पेड़ बनने की। नीतीश कुमार ने अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान बिहार की सत्ता में अपने सहयोगी बड़े भाई राजद सुप्रीमो लालू यादव से मुलाकात की। उसके बाद नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बुधवार को कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलने उनके दिल्ली स्थित निवास पर पहुंचे। राहुल गांधी भी इस दौरान वहां मौजूद थे। तस्वीरें भी खिंचायी गयीं। प्रेस कांफ्रेंस भी हुआ। देखा जाये, तो हाल के दिनों में अडाणी प्रकरण और राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द किये जाने के मुद्दों को लेकर सियासी माहौल गरमाया हुआ है। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ नीतीश की मुलाकात काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। नीतीश की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि राहुल गांधी के अनिश्चित राजनीतिक भविष्य के कारण अब नीतीश को लग रहा है कि वह विपक्षी एकता के पोस्टर बॉय बन सकते हैं। लेकिन उनके सामने केजरीवाल, ममता बनर्जी और केसीआर जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की मंजूरी लेने की चुनौती भी है। ऐसे में नीतीश की दिल्ली यात्रा पर देश भर की निगाहें जमी हुई हैं। उनके इस सियासी पर्यटन का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
    बिहार की सियासत में भाजपा से नाता तोड़ने और महागठबंधन में वापसी के बाद जदयू का एक ही लक्ष्य दिखायी देता है। उसका लक्ष्य है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष का चेहरा बनाना। ऐसे में नीतीश कुमार तीन दिन के दिल्ली दौरे पर पहुंचे हैं और इस दौरान वह विपक्षी एकता की दिशा में नयी इबारत लिखने की कवायद करेंगे। यही वजह है कि नीतीश का इस बार का दिल्ली दौरा राजनीतिक रूप से काफी खास माना जा रहा है।
    यह सर्वविदित है कि बिहार में राजनीतिक बदलाव के बाद नीतीश कुमार के सियासी दोस्त और दुश्मन दोनों ही बदल गये हैं। नीतीश के निशाने पर अब भाजपा और पीएम मोदी हैं, तो सहयोगी के तौर पर राजद और कांग्रेस है। लालू यादव से लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक उनके खासमखास बन गये हैं। तीन दिवसीय दौरे पर दिल्ली पहुंचे सीएम नीतीश कुमार कांग्रेस के बड़े नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। दौरे के पहले दिन उन्होंने राजद सुप्रीमो लालू यादव से मुलकात की। बाद में मल्लिकार्जुन के आवास पर तेजस्वी और राहुल गांधी के साथ देखे गये। नीतीश कुमार की विश्व प्रसिद्ध मुस्कान भी उनके चेहरे पर तैर रही थी। लेकिन इस मुस्कान के पीछे कई राज छिपे होते हैं। यह सिर्फ नीतीश को ही पता होता है। लेकिन नीतीश के हाल के दिनों में पलटी मारने की जो छवि बनी है, उससे भी लोग भली भांति अब अवगत हो चुके हैं। तो अब राजनीतिक लोग या यूं कहें राजनीतिक दल अपनी सुरक्षा अपने हाथ वाला फार्मूला अपना कर चलने लगे हैं। फिलहाल नीतीश की दिल्ली यात्रा से सवाल यह पैदा होता है कि जदयू के पूरा जोर लगाने के बाद भी क्या यह इतना आसान होगा कि विपक्ष के तमाम नेता नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर स्वीकार कर लेंगे और क्या विपक्ष के तमाम दलों को एक मंच पर वह साथ ला पायेंगे। यह सवाल इसीलिए अहम है, क्योंकि नीतीश कुमार ही नहीं, बल्कि ममता बनर्जी से लेकर केसीआर और अरविंद केजरीवाल तक 2024 के चुनाव में विपक्ष का चेहरा बनने की कवायद में जुटे हैं और वे एक-दूसरे से खुद को बेहतर बताने में जुटे हैं। नीतीश कुमार से पहले तेलंगाना सीएम केसीआर भी विपक्ष को एकजुट करने के लिए नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव जैसे नेताओं से मिल चुके हैं। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी भी केसीआर, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव समेत कई नेताओं से मुलाकात कर चुकी हैं। इन सब नेताओं के बीच दो समानताएं हैं। पहला यह कि ये सभी लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देना चाहते हैं और दूसरा यह कि ये सभी कांग्रेस को लेकर असमंजस में हैं। ऐसे में मोदी के खिलाफ 2024 के चुनाव में नीतीश कुमार कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को एकजुट करना चाहते हैं।
    ममता बनर्जी और केसीआर अपने-अपने दिल्ली दौरे के दौरान विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मेल-मिलाप कर विपक्षी एकता बनाने की पटकथा लिखने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन अभी तक सफल नहीं हो सके हैं। ऐसे में नीतीश कुमार अब पाला बदलने के साथ ही विपक्षी एकजुटता की दिशा में अपने कदम बढ़ा रहे हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात देने के लिए देशभर में विपक्षी दलों को नीतीश कुमार ने एकजुट करने का बीड़ा उठाया है। इसी मकसद से उनके दिल्ली दौरे को देखा जा रहा है।
    दिल्ली दौरे से पहले नीतीश कुमार ने जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में सारे संशय दूर करने की कोशिश की। नीतीश कुमार ने बैठक में कहा कि वह अब कभी भी भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। 2017 में एनडीए में दोबारा से वापस जाना एक बड़ी गलती थी। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इस बात का जिक्र करके विपक्षी दलों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की है कि वह अब दोबारा से भाजपा से हाथ नहीं मिलायेंगे।
    बता दें कि नीतीश कुमार को भले ही सुशासन बाबू के नाम से जाना जाता है, लेकिन उनकी छवि पलटी मारनेवाले नेता की भी रही है। वह भाजपा और महागठबंधन के पाले में आते-जाते रहे हैं, लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले पाला बदला है। ऐसे में नीतीश और उनकी पार्टी जदयू के बयानों को मिला दें, तो नीतीश कुमार की सियासी महत्वाकांक्षा साफ झलक रही है।

    विपक्ष के लिए कांग्रेस है जरूरी
    जदयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि बिना कांग्रेस और वामदलों के भाजपा के खिलाफ मजबूत लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। इसलिए विपक्षी पार्टियों को आपसी मतभेद मिटा कर एक साथ आना होगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव चाहते हैं कि भाजपा के खिलाफ जो गठबंधन बने, उसमें कांग्रेस को शामिल नहीं किया जाये, लेकिन जदयू इससे सहमत नहीं है। जदयू का मत है कि देश में कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं है। केसी त्यागी ने हालांकि यह स्पष्ट कर दिया कि जदयू ने 2024 के चुनावों में नीतीश कुमार को प्रोजेक्ट करने के बारे में कभी बात नहीं की। पार्टी ने केवल नीतीश कुमार को विपक्षी एकता की दिशा में काम करने के लिए अधिकृत किया है। ऐसे में साफ है कि दिल्ली दौरे पर पहुंचे नीतीश के एजेंडे में राहुल गांधी, सीताराम येचुरी, केजरीवाल और विपक्षी दलों के कुछ अन्य नेताओं से मिलना है। इनमें शरद पवार और संजय राउत भी हो सकते हैं। नीतीश की यात्रा के दौरान निगाहें राहुल गांधी से उनकी मुलाकात से ज्यादा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से होनेवाली मुलाकात पर हैं। नीतीश और केजरीवाल की मुलाकात का नतीजा क्या होता है, इस पर विपक्षी एकता का भविष्य काफी हद तक निर्भर करेगा, क्योंकि दोनों ही नेता पीएम पद के लिए दावेदार माने जा रहे हैं। जदयू भले ही नीतीश की विपक्षी चेहरा बनने की दावेदारी को खारिज कर रही हो, लेकिन आम आदमी पार्टी केजरीवाल को 2024 का सबसे मजबूत दावेदार बता चुकी है। केजरीवाल 7 सितंबर से मेक इंडिया नंबर वनअभियान की शुरूआत करने जा रहे हैं। इसे उनके 2024 के अभियान की शुरूआत के तौर पर देखा जा रहा है। आम आदमी पार्टी बार-बार जोर देकर कहती रही है कि मोदी के खिलाफ केजरीवाल ही सबसे दमदार विकल्प हैं और भाजपा को हराने में आप ही सक्षम है। ऐसी ही बात ममता बनर्जी खेमे से भी की जा रही है।
    केजरीवाल सहित दूसरे विपक्षी दलों को नीतीश कुमार विपक्षी एकता में साथ जोड़ने की मुहिम में कामयाब होंगे या नहीं, यह तो आनेवाले समय में ही पता चलेगा। फिलहाल राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसा होना कठिन है। इसकी असली वजह यह है कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी खुद को मोदी के विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं। इसके अलावा केजरीवाल और केसीआर तो कांग्रेस नीत वाले किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं। केसीआर की पार्टी टीआरएस और कांग्रेस तेलंगाना में आमने-सामने की लड़ाई लड़ रही हैं। ऐसे में कांग्रेस के साथ लिये जाने से केसीआर को अपनी चिंता सता रही है। ऐसे ही केजरीवाल की पार्टी कई राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ लड़ रही है और यदि वह राष्ट्रीय स्तर पर देश की सबसे पुरानी पार्टी से परोक्ष रूप से भी जुड़ती है, तो नुकसान उठाना पड़ सकता है। आप नेताओं का यह भी कहना है कि उनकी पार्टी देश में एकमात्र गैर-भाजपाई, गैर कांग्रेसी दल है, जिसके पास एक से अधिक राज्यों में सत्ता है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की दावेदारी सबसे मजबूत है। ऐसे में नीतीश कुमार कैसे विपक्षी एकता को अमली जामा पहना सकेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleहेमंत सरकार के तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के कारण झारखंड का बदल रहा है डेमोग्राफी: दीपक प्रकाश
    Next Article -निलंबित आइएएस अधिकारी पूजा ने इडी कोर्ट में किया सरेंडर
    admin

      Related Posts

      ऑपरेशन सिंदूर : पीएम मोदी ने विपक्ष के हर वार को किया नाकाम

      July 31, 2025

      बिहार की चुनावी पिच पर हाथ आजमायेंगे कई नौकरशाह

      July 30, 2025

      बिहार की सत्ता के रास्ते में ‘एम’ फैक्टर का रोल है अहम

      July 29, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए गढ़ी भगवा आतंकवाद की झूठी अवधारणा : अनुराग सिंह ठाकुर
      • ओरमांझी चौक पर अब फ्लाइओवर के संशोधित डिजाइन पर जल्दी ही शुरू होगा कार्य
      • बाबूलाल मरांडी ने भैरव सिंह की गिरफ्तारी पर उठाये सवाल, कहा- सरकार विरोधियों को फर्जी मुकदमे में फंसा रही
      • जल स्रोतों के कैचमेंट एरिया को नो एंट्री जोन बनायें : हाइकोर्ट
      • अच्छा डॉक्टर के साथ एक अच्छा इंसान भी होना जरूरी: राष्ट्रपति
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version