आजाद सिपाही संवाददाता
प्रयागराज। अतीक अहमद, यानी पूर्वांचल के आतंक का एक अध्याय। इसकी कहानी 70 के दशक से शुरू हुई थी। तब के इलाहाबाद और आज के प्रयागराज में नये-नये शिक्षा केंद्रों, स्कूल-कॉलेज का निर्माण चरम पर था। नये-नये उद्योग-धंधे लग भी रहे थे और फल-फूल भी रहे थे। अलग-अलग विभागों से सरकारी ठेके बाढ़ की तरह बंट रहे थे। जिले में पैसों की चमक दिखने लगी। अमीरों की तादाद बढ़ने लगी। इधर नये खून में झटपट अमीर बनने का चस्का लग चुका था। जल्दी और शॉर्टकट तरीके से पैसा कमाने के लिए युवा कुछ भी करने को तैयार थे। उन दिनों शहर में चांद बाबा का दहशत था। लेकिन इसी दहशत के बीच अचानक से चकिया मोहल्ले के एक नये लड़के का नाम सुर्खियों में आना शुरू हुआ। नाम था अतीक अहमद। फिरोज तांगे वाले का लड़का। पहलवान था। बहुत ही जल्द वह युवाओं में मशहूर होने लगा। पढ़ाई में कमजोर, लेकिन क्राइम की दुनिया में अव्वल। अतीक अहमद नाम का उदय हो चुका था। वैसे तो अतीक अहमद का जन्म 1960 में प्रयागराज के धूमनगंज कसारी नसारी में हुआ था। लेकिन मात्र 17 साल की उम्र में उसका नया जन्म हुआ। जुर्म की दुनिया में। अतीक के पिता तांगा चलाने के साथ-साथ कुश्ती लड़ा करते थे। अतीक भी पिता को देख कुश्ती लड़ा करता। यहीं से इलाके में उसका नाम पहलवान भी पड़ा। अतीक ने इंटर तक ही पढ़ाई की। साल 1979 में 17 साल का अतीक 10वीं कक्षा में फेल हो गया। उसी दौरान वह इलाके में रंगदारी वसूलने लगा। पहली रंगदारी उसने अपने मोहल्ले में ही वसूली। रंगदारी वसूलते-वसूलते वह क्राइम की दुनिया में एक कदम और आगे बढ़ गया। 1979 में ही पहली बार अतीक का नाम हत्या के केस में सामने आया। मो. गुलाम हत्याकांड में अतीक का नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। यह मामला धारा 302 के तहत खुल्दाबाद थाने में दर्ज हुआ। मुकदमा संख्या 431 /79 । इसके बाद उसका धंधा चल निकला। उसके नाम का खौफ बढ़ने लगा। देखते ही देखते एक तांगे वाला का बेटा क्राइम की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया। समय के साथ उसे बड़े-बड़े सरकारी ठेके मिलने लगे और वह जमकर पैसा कमाने लगा। जैसे-जैसे अपराध की दुनिया में उसका नाम बड़ा होता गया, वैसे-वैसे अपराध की दुनिया में कई नाम उसके सामने बौने साबित होने लगे। बाहुबली चांद बाबा के विरोधी और पुलिस भी अतीक को शह देने लगी थी। अब अतीक अहमद का नाम प्रयागराज के सबसे बड़े माफिया चांद बाबा और कपिल मुनि करवरिया से ऊपर गिना जाने लगा। वह पूरे प्रदेश में जमीन कब्जा करना, हत्या, लूट, डकैती और फिरौती की घटनाओं को अंजाम देने लगा। सात सालों में अतीक चांद बाबा से भी ज्यादा खतरनाक हो गया था। जिस पुलिस ने कभी अतीक को शह दे रखी थी, अब उसी पुलिस की नाक में अतीक ने दम कर दिया। पुलिस बदनाम हो चुकी थी। उसे अपनी छवि सुधारनी थी। पुलिस दिन-रात उसे तलाशने में जुट गयी। एक दिन अतीक पुलिस के हत्थे चढ़ गया। लोगों को लगा कि अब अतीक का काम खत्म हो गया। उन दिनों प्रदेश में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी और केंद्र में राजीव गांधी की। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, उस वक्त अतीक की गिरफ्तारी के बाद उसे छुड़ाने के लिए दिल्ली से फोन आया था। इस एक फोन कॉल ने दर्शा दिया कि अतीक की राजनितिक पकड़ क्या है। वह कितना बड़ा बन चुका था। माफियागिरी के सात सालों में प्रयागराज के कांग्रेस सांसद से उसके अच्छे संबंध बन चुके थे। अतीक की आपराधिक गतिविधि पर लगाम लगाने के लिए यूपी सरकार ने 1985 में गुंडा और 1986 में गैंगस्टर की कार्रवाई की। साथ ही और कड़ी निगरानी के लिए 17 फरवरी 1992 को इसकी हिस्ट्रीशीट खोली गयी, जिसका नंबर 39 ए है। उसके गैंग का नंबर आइएस -227 है।
क्राइम के बाद चेहरा साफ करने राजनीति में उतरा
अतीक अहमद अब बड़ा हाथ मारना चाहता था। समाजसेवक का चोला ओढ़ना चाहता था। सो अब बारी थी राजनीति में एंट्री की। अतीक 1989 में प्रयागराज पश्चिमी सीट से अपने चिर प्रतिद्वंद्वी चांद बाबा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरा। अतीक पहली बार में ही चांद बाबा को निगल गया। चांद बाबा को हराकर वह विधायक बन गया। अब उसकी एंट्री राजनीति में आॅफिशियली हो गयी। वह विधायक बन चुका था। इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति के दम पर अपराध की दुनिया में एक अलग मुकाम स्थापित कर लिया। यह वो दौर था, जब माफिया सांसद या विधायक बनकर सफेद लिबास पहन अपने काले कारनामों की मैल ढंकना चाहते थे। लेकिन जनता की नजर में उनका खौफ बरकरार रहे, उसके लिए अपने अपराध का स्तर भी दिन पर दिन हाइ-टेक करते रहते। अतीक अहमद पांच बार विधायक और एक बार सांसद चुना गया। एक समय ऐसा आ गया, जब उसके खिलाफ दर्ज मामलों की सुनवाई से बड़े-बड़े वकील और यहां तक कि जज तक उससे दूरी बनाने लगे। अतीक अहमद राजनीतिक गलियारे में रसूख बनाने के लिए हर हथकंडा अपना रहा था। इसी कड़ी में 1995 में उसे पहचान मिली। उसका नाम लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड में आया। सपा सरकार को बचाने के लिए उसने तत्कालीन बसपा प्रमुख मायावती और उनके दल के तमाम लोगों को बंधक बना लिया। लखनऊ के थाना हजरतगंज में अतीक पर मुकदमा दर्ज हुआ। इसकी विवेचना क्राइम ब्रांच, अपराध अनुसंधान विभाग लखनऊ (सीआइडी) ने की थी। इसमें उसका नाम प्रमुख अभियुक्त के रूप में नाम दर्ज किया गया। इसके साथ ही प्रयागराज के धूमनगंज थाने में एक ही दिन में 114 केस अतीक के खिलाफ दर्ज किये गये। साल 1996 में सपा के टिकट पर विधायक बना। साल 1999 में अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा और हार गया। फिर 2002 में अपनी पुरानी इलाहाबाद पश्चिमी सीट से पांचवीं बार विधायक बना।
साल 2002 में अतीक पर नस्सन की हत्या का आरोप लगा। साल 2003 में यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी। अतीक वापस सपा में शामिल हो गया। साल 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी भाजपा नेता अशरफ की हत्या हुई। इस हत्या में भी अतीक का नाम आया। मुकदमा दर्ज हुआ। लगातार हमले में नाम आने के बाद अतीक अब डॉन के नाम से जाना जाने लगा था। साल 2004 में देश में लोकसभा के चुनाव हुए। प्रयागराज की पश्चिम सीट के विधायक अतीक अहमद फूलपुर लोकसभा से ही सांसदी का चुनाव जीत गया।
मौजूदा समय में अतीक के खिलाफ 53 मुकदमे एक्टिव हैं। इनमें 42 मुकदमे कोर्ट में पेंडिंग हैं, जबकि 11 मामलों में अभी जांच पूरी नहीं हो सकी है। अतीक अहमद के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कौशांबी, चित्रकूट, प्रयागराज ही नहीं बल्कि बिहार राज्य में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं। अतीक के खिलाफ हत्या के 17, गैंगस्टर एक्ट के 12, आर्म्स एक्ट के आठ और गुंडा एक्ट के चार मामले दर्ज हैं। अभी तीन दिन पहले उसका बेटा असद पुलिस मुठभेड़ में मारा गया है। अतीक की पत्नी शाइस्ता भी फरार है।