विशेष
-पार्टी मुख्यालय को भगवा रंग से सजाने के अलावा पुजारी प्रकोष्ठ का गठन
-सुंदरकांड पाठ से लेकर पुजारियों को वेतन देने तक के वादे
-धर्म-संवाद और मठ-मंदिर स्वायत्तता दिवस का आयोजन
चुनाव की दहलीज पर खड़े मध्य प्रदेश में दिखावे की राजनीति के चटख रंग दिखने लगे हैं। राजनीति में धर्म के इस्तेमाल पर भारतीय जनता पार्टी को नसीहत देती रही कांग्रेस को भी धर्म सम्मेलनों से परहेज नहीं रह गया है। सामने चुनाव है और मुकाबला भाजपा से। ऐसे में कांग्रेस भी हिंदुत्व की राह पर चलने को मजबूर हो गयी है। इसका नजारा पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस भवन में दिखा। धर्म-संवाद और मठ-मंदिर स्वायत्तता दिवस के बहाने कांग्रेस ने धर्मगुरुओं को साधने की कोशिश की। कांग्रेस भवन को भगवा रंग की पट्टिका से सजाया गया। दरअसल पुजारियों के माध्यम से बड़े वर्ग को साधने के लिए प्रदेश कांग्रेस ने पहली बार मंदिर पुजारी प्रकोष्ठ का गठन किया है। इसका उद्देश्य मंदिरों के संचालकों या फिर पुजारियों को जो समस्याएं आती हैं, उन्हें जानना और राज्य में सरकार बनने पर पर उनका समाधान करने के साथ तुष्टीकरण के आरोपों से मुक्ति पाना है। पार्टी यह अच्छी तरह से जानती है कि यदि सत्ता में वापसी करनी है, तो बहुसंख्यकों (हिंदुओं) का साथ जरूरी है, इसलिए उनसे जुड़ने के प्रयास लगातार किये जा रहे हैं। हालांकि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले भी कांग्रेस की तरफ से इसी तरह की कोशिश की गयी थी। तब से लेकर आज तक मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपनी छवि बदलने की कोशिश लगातार कर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा की थी। भले ही यह गैर राजनीतिक थी, पर इसका लाभ कांग्रेस को चुनाव में मिला था। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी राहुल गांधी ने महाकाल दर्शन के साथ नर्मदा का पूजन किया था। कांग्रेस के कई नेता भागवत कथा करा चुके हैं। सियासी मैदान में हरदम धर्मनिरपेक्षता के मंत्र का जाप करनेवाली कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में हिंदुत्व की राह पर चलने का क्या असर होगा, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
चुनाव बड़ी अजीब चीज है। लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम होने के बावजूद आज चुनाव का पूरा खेल लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाने तक सीमित रह गया है। चुनाव जीतने के लिए अक्सर ऐसा होता है कि राजनीतिक दल अपने सिद्धांतों को छोड़ने में तनिक भी देर नहीं लगाते। मध्यप्रदेश में तो अभी यही स्थिति दिख रही है, जहां इसी साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। पिछली बार सत्ता में आने के बावजूद उसे गंवाने के बाद कांग्रेस इस बार कोई रिस्क लेने के मूूड में नहीं है। इसलिए वह इस बार अभी से ही उस रास्ते पर आगे बढ़ती दिखाई दे रही है, जिसे वह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताती रहती है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव अब सिर पर है। इसके साथ ही फिर भगवान राम सियासत के केंद्र में आ गये हैं। दोनों ही राजनीतिक पार्टियां हिंदू वोटरों को साधने के लिए धर्म का सहारा ले रही हैं। भाजपा अक्सर कांग्रेस को चुनावी हिंदू बताती रही है। वहीं, कांग्रेस पिछले चुनाव से ही भाजपा की पिच पर बैटिंग करने में जुटी है। 2018 चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के रामभक्त वाले होर्डिंग पूरे प्रदेश में दिखे थे। इसके अलावा उन्होंने चित्रकूट में भगवान कामतानाथ के दर्शन किये थे। हाल ही में संपन्न भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी राहुल ने उज्जैन में भगवान महाकाल के दर्शन किये थे।
मध्यप्रदेश की सियासत में धर्म का तड़का कोई नयी बात नहीं है। पिछले चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस सरकार ने नर्मदा विकास के लिए समिति बनाकर कंप्यूटर बाबा उर्फ नामदेव दास त्यागी को राज्यमंत्री का दर्जा दिया था। मार्च 2018 में नर्मदा नदी के किनारे पेड़ लगाने में हुए कथित घोटाले को लेकर यात्रा निकाली गयी थी, जिसमें शिवराज सरकार ने पौधरोपण को बढ़ावा दिया और एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी में कंप्यूटर बाबा को शामिल किया गया और उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिला। लेकिन जब सरकार बदली, तो कंप्यूटर बाबा ने भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया। इसके अलावा कंप्यूटर बाबा ने 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का विरोध किया था और दिग्विजय सिंह को जिताने के लिए मिर्ची यज्ञ किया था। वहीं इस चुनाव से पहले प्रदेश की राजनीति में दो धर्मगुरु- धीरेंद्र शास्त्री और कथावाचक प्रदीप मिश्रा केंद्र बने हुए हैं। पिछले कुछ समय में बागेश्वर धाम में भाजपा और कांग्रेस के कई दिग्गज पहुंचे हैं। इसमें भाजपा सांसद मनोज तिवारी, मध्यप्रदेश भाजपा प्रदेशाध्यक्ष और खजुराहो सांसद वीडी शर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता अरुण यादव, पूर्व सीएम और पीसीसी चीफ कमलनाथ और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा आदि शामिल हैं। प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी फरवरी में बागेश्वरधाम पहुंचे थे। माना जा रहा है कि चुनावी साल में बहुंसख्यक वोटों को हासिल करने की कोशिश में राजनीतिक दल दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं।
इस तरह मध्यप्रदेश में इस बार कांग्रेस भी उसी राह पर चल पड़ी है, जिस पर चलने का आरोप वह भाजपा पर लगाती है। यह राह है हिंदुत्व की। कांग्रेस इस बार चुनावी मैदान में धर्म के इस्तेमाल से तनिक भी परहेज नहीं कर रही है। चाहे प्रदेश मुख्यालय में धर्म संवाद कार्यक्रम का आयोजन करना हो या फिर मुख्यालय को भगवा रंग के झंडों से सजाना, कांग्रेस इस बार भाजपा से एक कदम आगे दिख रही है। धर्म संवाद कार्यक्रम का आयोजन कर कांग्रेस ने बड़ा संदेश देने की कोशिश की। दरअसल यहां कांग्रेस द्वारा मंदिर पुजारी प्रकोष्ठ का धर्म संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें प्रदेश भर के मठों और मंदिरों के पुजारी शामिल हुए। इस दौरान प्रकोष्ठ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को गदा भेंटकर धर्म संवाद कार्यक्रम में उनका स्वागत किया।
क्या है कांग्रेस का मंदिर पुजारी प्रकोष्ठ
पिछले साल के अंत में राज्य में कांग्रेस ने मंदिर पुजारी प्रकोष्ठ बनाया। कहा जा रहा है कि इस प्रकोष्ठ के जरिये कांग्रेस हिंदुत्व की छवि चमकाना चाहती है। कांग्रेस ने मंदिर पुजारी प्रकोष्ठ का गठन कर शिवनारायण शर्मा को अध्यक्ष बनाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकोष्ठ के जरिये पार्टी ब्राह्मण वोटों को साधना चाहती है। इस प्रकोष्ठ के जरिये कांग्रेस मंदिर और पुजारियों के मुद्दे भी उठाना चाहती है। इसके बाद पिछले दिनों रामनवमी के पावन पर्व पर पूर्व सीएम कमलनाथ के बेटे और छिंदवाड़ा सांसद नकुलनाथ भगवामय दिखे थे। उस दिन वह रघुवंशी समाज छिंदवाड़ा द्वारा निकाली गयी शोभा यात्रा में शामिल हुए। इस दौरान कांग्रेस सांसद ने हेलीकॉप्टर से फूल बरसा कर यात्रा का स्वागत किया और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पूजा-अर्चना की।
पिछले साल (अप्रैल 2022 में) भी प्रदेश कांग्रेस ने रामनवमी और हनुमान चालीसा पर अपने कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और विधायकों को रामलीला, सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ करने के निर्देश दिये थे, ताकि चुनाव से पहले कांग्रेस जनता के बीच अपनी पैठ को और मजबूत कर सके। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में भव्य हनुमान मंदिर बनाया है। यही कारण है कि वह अपने आप को रामभक्त हनुमान का भक्त कहलाना पसंद करते हैं।
पांच अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया था। भूमि पूजन से पहले मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी ट्विटर प्रोफाइल की फोटो बदल ली थी। इस तस्वीर में वह भगवा चोला पहने हुए नजर आ रहे थे। कांग्रेस नेता ने अपनी तस्वीर बदली और लिखा था, ‘श्रीराम के हनुमान करो कल्याण’। इसके अलावा उन्होंने भोपाल स्थित अपने आवास में हनुमान चालीसा का पाठ किया था।
राम वन गमन पथ का वादा
मध्यप्रदेश में कांग्रेस धर्म के मुद्दे पर अपनी पैठ बनाने की कोशिश पिछले चुनाव से ही कर रही है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने राम वन गमन पथ को अपने वचन पत्र में शामिल किया था। इसमें उन धार्मिक स्थानों को आध्यात्मिक रूप से विकसित करने की योजना है, जिन पर वन गमन के समय भगवान राम के चरण पड़े थे। चुनाव के बाद कांग्रेस कमलनाथ सरकार ने कार्ययोजना बनाकर 22 करोड़ रुपये का बजट भी अध्यात्म विभाग को दिया, लेकिन 15 महीने बाद ही सरकार चली गयी। शिवराज सरकार बनने के बाद दोबारा राम वन गमन पथ को लेकर काम शुरू किया गया। अब इसका काम अध्यात्म विभाग से लेकर संस्कृति विभाग को सौंपा गया है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राम वन पथ गमन को लेकर काम शुरू हो गया है।
किन वोटों की साधने की कोशिश
धार्मिक आयोजनों और धर्म गुरुओं के चक्कर लगाकर के जरिये कांग्रेस हिंदू वोटों को साधने की कोशिश में है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पुजारियों के लिए धर्म संवाद और वेतन जैसे कार्यक्रम आयोजित कर कांग्रेस प्रदेश में ब्राह्मण वोट को अपनी ओर लाने की कोशिश कर रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव के आंकड़े के अनुसार प्रदेश में 40 लाख के करीब ब्राह्मण वोटर हैं। यह कुल वोट बैंक का 10 प्रतिशत के करीब है, जो विंध्य, महाकौशल, चंबल और मध्य क्षेत्र की 60 से अधिक सीटों पर सीधा प्रभाव डालते हैं। ऐसे में यदि ब्राह्मण वोट कांग्रेस की ओर आता है, तो पार्टी के लिए 2023 का रास्ता आसान हो जायेगा।