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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»बड़ा संकेत दे रहा है बिहार का सियासी सन्नाटा
    स्पेशल रिपोर्ट

    बड़ा संकेत दे रहा है बिहार का सियासी सन्नाटा

    adminBy adminJuly 4, 2023No Comments8 Mins Read
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    विशेष
    -लालू के ‘फिटनेस’ और नीतीश की ‘वन टू वन’ मुलाकात ने बढ़ाया सस्पेंस
    -तेजस्वी के विभाग में हुए तबादलों पर लगे स्थगनादेश के बाद मिल रहा संकेत
    -बड़ा सवाल : क्या एक बार फिर ‘बड़ा खेल’ करने वाले हैं नीतीश कुमार

    देश की सियासत में सबसे संवेदनशील राज्य के रूप में चर्चित बिहार में मॉनसून की इंट्री और भारी बारिश के बीच सियासी माहौल गरमा गया है। 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक के बाद से राज्य में अजीब किस्म का सन्नाटा पसरा हुआ है। एक तरफ राजद सुप्रीमो लालू यादव खुद को ‘फिट’ बता चुके हैं, तो दूसरी तरफ विपक्षी एकजुटता की धुरी बने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने डिप्टी तेजस्वी यादव के विदेश रवाना होने के कुछ ही घंटे बाद उनके विभाग में हुए तबादलों पर रोक लगा कर खुद को ‘बॉस’ साबित कर रहे हैं। इतना ही नहीं, वह अपनी पार्टी के विधायकों और विधान पार्षदों से ‘वन टू वन’ मुलाकात कर महागठबंधन के दूसरे घटकों को एक संकेत भी दे रहे हैं। बिहार के इन तमाम घटनाक्रमों को जोड़ने पर एक बात साफ हो जाती है कि राज्य की सियासत में सब कुछ ठीक नहीं है। इसलिए सियासी गलियारे में यह सवाल जोर-शोर से उठने लगा है कि कि क्या नीतीश कुमार फिर किसी फैसले के मूड में हैं? क्या बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार कोई बड़ा सियासी ‘खेल’ करने वाले हैं? यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि पिछले कई ऐसे मौके रहे हैं, जब नीतीश कुमार अपनी पॉलिटिकल लाइन बदलने से पहले पार्टी के विधायकों और नेताओं से वन टू वन मुलाकात करते रहे हैं। बीते साल अगस्त महीने में नीतीश कुमार ने जब एनडीए छोड़कर महागठबंधन में आने का फैसला किया था, उस वक्त भी विधायकों के साथ उनकी रायशुमारी हुई थी। चर्चा है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लखीसराय दौरे के बाद बिहार की सियासत में कुछ नये समीकरण आकार ले चुके हैं, जिनके केंद्र में नीतीश कुमार ही हैं। बिहार के इस सियासी सन्नाटे और उसके संभावित परिणाम का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    23 जून को पटना में 15 विपक्षी दलों की बैठक के बाद बिहार में जो सियासी माहौल बना हुआ है, उसे देखते हुए राजनीतिक गलियारे में एक सवाल बड़ी तेजी से उठ रहा है कि क्या बिहार में फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘खेल’ करने वाले हैं? इस सवाल के उठने के दो कारण हैं, पहला यह कि नीतीश कुमार जाने ही इसीलिए जाते हैं और दूसरा यह कि हाल में उन्होंने अपने विधायकों और विधान पार्षदों से धुआंधार मुलाकात की है। वह अगले सप्ताह सभी सांसदों से भी मिलने वाले हैं। ऐसे में चर्चा गर्म है कि क्या वह फिर से महागठबंधन का दामन छोड़ कर भाजपा के साथ जायेंगे। इन सवालों के जवाब तलाशने के क्रम में कई कड़ियां जोड़नी होंगी।

    लालू का राजनीतिक संदेश
    शुरूआत करते हैं 23 जून को हुई बैठक से। पटना में विपक्षी नेताओं की बैठक हुई। 15 दलों के 20 नेता इसमें शामिल हुए। बैठक के बाद सबसे ज्यादा चर्चा लालू यादव और राहुल गांधी की ही हुई। जहां लालू यादव अपने पुराने अंदाज में दिखे और खुद को पूरी तरह ‘फिट’ बता कर एक प्रकार का संदेश दिया, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने राहुल गांधी को शादी करने की सलाह दी और कहा कि हम सब आपकी शादी में बारात में चलेंगे। राजनीति समझने वाले इस इशारे का मतलब लगा सकते हैं कि लालू यादव के लिए ‘दूल्हा’ कौन है। अगर राहुल गांधी ‘दूल्हा’ हैं और लालू यादव को भी यह स्वीकार्य है, तो निश्चित ही यह नीतीश कुमार के लिए बुरी खबर हो सकती है, जिन्होंने अपने मन में प्रधानमंत्री पद की इच्छा दबाये पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक की दौड़ लगायी है। विपक्ष की बैठक में उन्हें शायद उतनी लाइम लाइट मिली नहीं, जितना वह चाहते थे। दिल्ली के अध्यादेश पर अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस में भिड़ंत हुई, तो उधर अनुच्छेद 370 पर महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला ने आप को सुना दिया।

    नीतीश के साथ नयी दिक्कत
    लेकिन इस बार नीतीश कुमार के साथ दिक्कत यह है कि खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह कह चुके हैं कि भाजपा ने अब नीतीश कुमार और ललन सिंह (जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष) के लिए सारे दरवाजे बंद कर दिये हैं। ऐसे में अमित शाह इतनी जल्दी अपने कहे से पीछे हटेंगे, यह संभव नहीं है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने तो हाल ही में कहा कि भाजपा ने नीतीश के लिए ‘नो एंट्री’ लगा दी है। उन्होंने नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद को संरक्षण देने का भी आरोप लगाया।

    तेजस्वी के स्वास्थ्य विभाग में तबादलों पर रोक
    बिहार में स्वास्थ्य मंत्रालय में हुए तबादलों और अचानक उन पर लगी रोक के कारण भी नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के बीच अनबन के कयास लगाये जा रहे हैं। असल में हुआ क्या कि शाम के समय तबादले की अधिसूचना जारी की गयी और सुबह में उस पर स्टे लग गया। इस सूची को रद्द किये जाने के बाद महागठबंधन सरकार की खूब किरकिरी हो रही है। स्वास्थ्य विभाग के निदेशक प्रमुख ने अधिसूचना जारी की और विभागीय अपर मुख्य सचिव के ओएसडी ने इस पर रोक लगा दी। खास बात यह है कि स्वास्थ्य मंत्रालय तेजस्वी यादव के पास ही है। अब नौ संवर्ग के कर्मियों के स्थानांतरण में त्रुटियां बता कर इसे रोक दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि किसे जानकारी दिये बगैर तबादले हुए थे, नीतीश या तेजस्वी? कुछ लोगों ने इसे अधिकारियों की आपसी पावर पॉलिटिक्स बता दी है, लेकिन हर बड़े नेता के विश्वासपात्र अधिकारी मंत्रालय में होते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। गड़बड़ी डिप्टी सीएम के विभाग में हो रही है, ऐसे में सवाल उठना तो लाजिमी है। यदि एक मिनट के लिए मान लिया जाये कि कुछ लोग इसे छोटी बात कह कर भी खारिज कर सकते हैं और कह सकते हैं कि यह सब चलता रहता है, जहां एक पार्टी की सरकार है, वहां भी दो नेताओं के बीच ऐसी अनबन की खबरें आती रहती हैं। लेकिन सवाल फिर वहीं है कि तबादलों पर रोक तब क्यों लगी, जब तेजस्वी विदेश यात्रा पर रवाना हो चुके थे।

    नीतीश इतना डरे हुए क्यों हैं
    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में अब यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि वह खुद को हमेशा असुरक्षित महसूस करते हैं, जिनके साथ हैं, उनसे भी और जो विरोधी हैं, उनसे भी। इतना ही नहीं, बिहार की जनता के प्रति भी खुद को लेकर उनके मन में असुरक्षा की ही भावना है। आखिर तभी तो राजधानी पटना में कभी शिक्षक, कभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, तो कभी छात्रों की पिटाई होती है। लेकिन अब जब भाजपा ने अपने साथ जीतन राम मांझी की हम, लोजपा के दोनों धड़ों, मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ जोड़ लिया है, ऐसे में इस प्रकार की हर एक घटना पर भी चौतरफा प्रहार होगा।

    शिक्षक अभ्यर्थियों पर लाठी चार्ज बना सियासी मुद्दा
    इस बीच दो दिन पहले तीन हजार शिक्षकों पर हुए लाठीचार्ज ने भी सियासी रंग पकड़ लिया है। शिक्षक अभ्यर्थियों को लेकर डोमिसाइल पॉलिसी में बदलाव कर महागठबंधन सरकार ने निर्णय लिया है कि अब बिहार के बाहर के अभ्यर्थी भी इसमें शामिल हो सकते हैं। 1.7 लाख रिक्तियों के लिए पहले से ही बेरोजगारी से जूझते बिहार के लोग इससे परेशान हैं। इसलिए प्रदर्शन किया जा रहा था, जिस पर लाठीचार्ज किया गया। पुलिस का कहना है कि विरोध प्रदर्शन बिना अनुमति के किया जा रहा था। चिराग पासवान ने कहा है कि नीतीश कुमार हर बात का जब लाठी से जवाब दे रहे हैं। उन्होंने नीतीश पर पीएम बनने की महत्वाकांक्षा सवार होने की बात करते हुए कहा कि छात्रों की मांग जायज है। इस घटना पर टिप्पणी करने में मुकेश सहनी भी पीछे नहीं रहे। वीआइपी के नेता ने तुरंत टिप्पणी की कि 18 वर्षों से सरकार चलाने के बावजूद नीतीश कुमार अब तक शिक्षकों के दिलों में जगह नहीं बना पाये हैं। उन्होंने भी शिक्षकों पर लाठीचार्ज की निंदा करते हुए कहा कि शिक्षक ही भविष्य तैयार करते हैं। ऐसे में उनके साथ ऐसा करना सही नहीं है। किस गठबंधन के साथ जाना है, उनके इसी बयान से कयास लगाये जा सकते हैं। अमित शाह के साथ उनकी बैठक भी हुई है।

    भाजपा का हमलावर रुख
    इसके बाद चिराग पासवान, पशुपति कुमार पारस, मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा के अलावा जीतन राम मांझी जैसे नेताओं के साथ भाजपा नीतीश कुमार के खिलाफ क्षेत्रीय महागठबंधन तैयार करने की ओर अग्रसर है। वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार देश भर के नेताओं को खुश कर भाजपा विरोधी गठबंधन तैयार कर रहे हैं। नीतीश कुमार उद्धव ठाकरे का हश्र देख चुके हैं, जिनके पास न सत्ता रही न पार्टी। ऐसे में उनके मन में एक असुरक्षा की बड़ी भावना ने घर कर लिया है, यह साफ है। भाजपा ने नीतीश कुमार के लिए सारे दरवाजे बंद कर दिये हैं। तीन बड़े नेता (कुशवाहा, मांझी और सहनी) जो उनके साथ हुआ करते थे, छिटक गये हैं। शिक्षकों पर लाठीचार्ज और नियमों में परिवर्तन के बाद एक बड़े समूह के बीच उनकी थू-थू हो रही है। बिहार में एक के बाद एक पुल गिर रहे हैं, जिससे भ्रष्टाचार का आलम पता चलता है। नीतीश कुमार डरे हुए हैं, उद्धव का हश्र देख कर भाजपा से और विपक्षी एकता बैठक में लालू यादव का रवैया देख कर अपने साथी दल से। और हां, जनता से भी। इसलिए वह यदि ‘खेल’ कर ही दें, तो आश्चर्य नहीं। आखिर अपने अस्तित्व रक्षा का हक तो सभी को है।

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