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    Home»विशेष»संसद के पटल पर गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर हिंसा पर दिया जवाब
    विशेष

    संसद के पटल पर गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर हिंसा पर दिया जवाब

    adminBy adminAugust 11, 2023No Comments13 Mins Read
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    विशेष
    -1993 से 2023 तक की मणिपुर नस्लीय हिंसा की खोली परत
    -अपने शासनकाल में यूपीए के प्रधानमंत्री ने एक बार भी नहीं दिया था जवाब
    -उनके कार्यकाल में एमओएस भी मौके पर नहीं जाते थे, होम मिनिस्टर का तो क्वेश्चन डज नॉट एराइज
    -मोदी सरकार ने पहले दिन से ही इस पर नियंत्रण के उपाय शुरू कर दिये थे

    मणिपुर में जो हिंसक घटनाएं हुईं, वे क्यों हुईं, वहां क्या स्थिति है और उससे निपटने के लिए केंद्र सरकार क्या कर रही है, उसके बारे में अमित शाह ने लोकसभा में विस्तार से बताया। कांग्रेस द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान लोकतंत्र के मंदिर में केंद्रीय गृह मंत्री का यह भाषण इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। इस भाषण के राजनीतिक संदर्भों और मायनों को छोड़ दिया जाये, तो मणिपुर हिंसा के कारणों की ऐसी पड़ताल देश के सामने आज तक कभी नहीं रखी गयी थी। बुधवार 9 अगस्त को जब अमित शाह सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर बोल रहे थे, तब उनके पूरे भाषण के दौरान सदन में मुखर तरीके से विरोध नहीं हुआ। आम तौर पर विरोधी पक्ष ऐसे अवसरों पर अधिक मुखर होते हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर हिंसा के बारे में हर वह बारीक जानकारी देश-दुनिया को दी, जिससे आज तक देश के लोग अनभिज्ञ थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस भाषण को यदि आंतरिक सुरक्षा के प्रहरियों के लिए भविष्य का दस्तावेज कहा जाये, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दो घंटे लंबे भाषण में मणिपुर के बारे में कही गयी उनकी बातों को लिपिबद्ध करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि देश जाने कि दरअसल मणिपुर का सच क्या है। वहां क्यों बार-बार नस्लीय हिंसा होती है। आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह ने।

    बतौर अमित शाह: मैं विपक्ष की बातों से सहमत हूं कि वहां हिंसा का तांडव हुआ है। इस हिंसा के तांडव से कोई सहमत नहीं हो सकता, हम भी सहमत नहीं हैं। इस तांडव से हमें बहुत दुख है। बहुत ही शर्मनाक घटना मणिपुर में हुई है। मणिपुर की घटना जितनी शर्मनाक है, उस पर राजनीति करना उससे भी ज्यादा खतरनाक है। अमित शाह मणिपुर की वायरल वीडियो के बारे में जिक्र कर रहे थे। कहा-एक भ्रांति देश की जनता के समक्ष फैलायी गयी है। जब सदन आहूत भी नहीं हुआ था, मैंने पत्र लिख कर लोकसभा अध्यक्ष से मांग की थी कि मैं मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार हूं, इसे समय सीमा में मत बांधियेगा। मैं पहले ही दिन से चर्चा के लिए तैयार था, मगर विपक्ष खुद चर्चा नहीं चाहता था। वह महज विरोध करता रहा।

    मणिपुर हिंसा की पृष्ठभूमि
    कहा: करीब छह साल से मणिपुर में भाजपा की सरकार है। जब से मणिपुर में भाजपा की सरकार बनी, तब से 03 मई 2023 तक एक भी दिन कर्फ्यू नहीं लगाया गया था। मणिपुर एक भी दिन बंद नहीं हुआ, एक भी दिन ब्लॉकेड नहीं रहा, उग्रवादी हिंसा लगभग समाप्त रही। यह मणिपुर में भाजपा का छह साल का इतिहास रहा। 2021 में हमारे देश के पड़ोस में म्यांमार में सत्ता परिवर्तन हुआ। म्यांमार में फिर मिलिट्री का शासन आया। डेमोक्रेटिक सरकार गिर गयी। म्यांमार में कुकी डेमोक्रेटिक फ्रंट है। इसने लोकतंत्र स्थापित करने के लिए आंदोलन चलाया। उसके बाद वहां के मिलिट्री शासन ने उन पर कड़ाई करनी शुरू की। दबिश बनायी। म्यांमार की बॉर्डर ‘फ्री बॉर्डर’ है। वहां पर फेंसिंग नहीं है। यह आज से नहीं है। जब से भारत आजाद हुआ है, तब से नहीं है। उसका परिणाम क्या हुआ कि बहुत बड़ी मात्रा में मिजोरम और मणिपुर के अंदर कुकी लोगों का वहां से यहां आना शुरू हुआ। वे यहां शरणार्थी के रूप में आने लगे। अमित शाह ने कहा कि चूंकि कुकी समाज के लोगों का झगड़ा म्यांमार की मिलिट्री से था और उन पर दबिश शुरू हुई, तब हजारों की संख्या में कुकी समाज के लोग मिजोरम और मणिपुर में दाखिल होने लगे। परिवार बसने लगे। जंगलों में बसने लगे। उसके बाद मणिपुर के बाकी हिस्सों में असुरक्षा की भावना जगने लगी। डर था कि वहां की जनसांख्यिकी बदल जायेगी।

    बार्डर पर फेंसिंग बनना शुरू
    अमित शाह ने कहा की हमारी सरकार ने यह नोटिस किया और उसी वक्त 2022 में गृह मंत्री ने निर्णय किया कि अब हम यह बॉर्डर खुला नहीं छोड़ सकते। बॉर्डर बनानी पड़ेगी, फेंसिंग करनी पड़ेगी। अभी हमने तबसे 10 किलोमीटर की फेंसिंग पूरी कर दी है। 60 किलोमीटर का काम चालू है। 600 किलोमीटर का सर्वे भी चालू है, जिससे घुसपैठ को रोका जा सके। कांग्रेस ने 2014 तक कभी फेंसिंग नहीं की। जैसे ही 2020 में दंगे हुए, हमने 2021 में फेंसिंग का काम शुरू कर दिया, क्योंकि जनसांख्यिकी के बदलाव का डर रहता है। घाटी में मैतेई भाई और जंगल में कुकी और नागा भाई रहते हैं। कुकी लोगों के लगातार मणिपुर में आने की वजह से जनसांख्यिकी में बदलाव तो हो ही रहा था। मैतेई समाज में असुरक्षा की भावना जन्म ले चुकी थी। उसके बाद जनवरी 2023 से जितने भी वहां शरणार्थी आये थे, उन्हें हमारी सरकार ने परिचय पत्र देने की शुरूआत की। उनका थंब इंप्रेशन लिया, आइ इंप्रेशन लिया। उसके बाद वोटर लिस्ट और आधार कार्ड के नेगेटिव लिस्ट में डालने का काम किया। ऐसा नहीं है कि गृह मंत्रालय में कोई आंख बंद कर सोया रहा। 1968 से भारत और बर्मा में समझौता है कि बॉर्डर से 40 किलोमीटर जो अंदर आयेगा या जायेगा, उसको पासपोर्ट नहीं लगेगा। इसका नतीजा यह हुआ कि वहां से लोग भारत आये-गये, क्योंकि वहां फेंसिंग भी नहीं थी, तो कुकी लोगों की संख्या मणिपुर में बढ़ती गयी और मैतेई लोगों में असुरक्षा बढ़ती गयी।

    अफवाह से हिंसा को मिला बल
    29 अप्रैल 2023 को एक अफवाह फैल गयी कि 58 जगहों पर जंगलों में जहां शरणार्थी की बसाहटें थीं, उन्हें गांव घोषित कर दिया गया है। जैसे ही यह अफवाह फैली, उसके बाद से ही घाटी में अनरेस्ट का माहौल शुरू हो गया। उसके बाद हमारी सरकार ने माइक वाली जीपें चलायीं, अनाउंसमेंट करवाया कि कोई गांव घोषित नहीं हुआ है। लेकिन जब अफवाहें फैलती हैं, तो उसके सिर-पैर तो होता नहीं है। वह फैलती चली गयी और लोगों में असुरक्षा की भावना को बल मिलता चला गया।

    आग में तेल डालने का काम किया मणिपुर हाइकोर्ट के एक फैसले ने
    अप्रैल 2023 में मणिपुर हाइकोर्ट के एक फैसले ने आग में तेल डालने का काम किया, जिसने सालों से पड़ी हुई एक लंबी पीटिशन को अचानक चलाया। न भारत सरकार के ट्राइबल आयोग का शपथ पत्र लिया, न भारत सरकार के ट्राइबल डिपार्टमेंट का लिया, न ही भारत सरकार के गृह मंत्रालय का लिया, न ही मणिपुर सरकार का लिया। अचानक ही 29 अप्रैल के पहले मैतेई जाति को ट्राइबल घोषित कर दिया। इस फैसले से पहाड़ पर बहुत बड़ी अशांति फैल गयी। एक तरफ घाटी में पहले से ही अशांति फैली हुई थी, इस फैसले के बाद पहाड़ पर भी अशांति फैल गयी और 3 मई को दोनों समाज के बीच टकराव हो गया। इस टकराव के बाद नस्लीय दंगे शुरू हो गये, जो अब तक अशांत परिस्थिति को बनाये हुए हैं। म्यांमार में मिलिट्री शासन आने के बाद बॉर्डर पर ढिलाई आ गयी है। म्यांमार से नारकोटिक्स की बड़ी मात्रा में तस्करी मणिपुर में बढ़ी है। हिंसा में उसकी भी भूमिका है।

    संघर्ष की शुरूआत 1993 में हुई
    अमित शाह ने कहा: 1993 में पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। राजकुमार दोरेंद्र सिंह कांग्रेस के नेता मणिपुर के मुख्यमंत्री थे। इस दौरान नागा-कुकी में संघर्ष हुआ। यह भी एक नस्लीय हिंसा थी। उस वक्त 750 लोग मारे गये, 200 लोग घायल हुए, 45 हजार शरणार्थी हुए और डेढ़ साल तक यह हिंसा चलती रही। आज विपक्ष का कहना है कि हालिया मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री क्यों नहीं बोले। लेकिन उस वक्त जब इनकी सरकार थी, सिर्फ एमओएस राजेश पायलट आये थे इस पर जवाब देने। उस वक्त इतनी जघन्य घटना हुई, क्या भारत सरकार से किसी ने मुलाकात की थी, क्या ट्राइबल मिनिस्टर गये? ना जी। समाज कल्याण विभाग के मंत्री गये? ना जी। होम मिनिस्टर का क्वेश्चन डज नॉट एराइज। पीएम बोले, ना जी, एमओएस गये? ना जी। और आज विपक्ष हमसे पूछता है कि प्रधानमंत्री क्यों नहीं गये। उस वक्त संसद के अंदर विपक्ष बोलते-बोलते थक गया, लेकिन गृह मंत्री जवाब देने तक के लिए खड़े नहीं हुए। उसके बाद एमओएस ने जवाब दिया। आज इन्हें प्रधानमंत्री से जवाब चाहिए। पूरा पार्लियामेंट होल्ड कर दिया विपक्ष ने। 1993 में ही दूसरी बार नस्लीय हिंसा का संघर्ष हुआ। 100 लोग मारे गये। वह भी एक साल चला। उसके बाद राज्यसभा में गृह मंत्री ने जवाब दिया बस। लोकसभा में नहीं।

    गुजराल के शासनकाल में भी हिंसा हुई
    1997-98 में इंदर कुमार गुजराल की सरकार आयी। कुकी-पाइते संघर्ष हुआ। 350 लोग मारे गये। एक साल संघर्ष चला। यह भी नस्लीय हिंसा थी। इसकी तो चर्चा ही नहीं हुई। स्टेटमेंट भी नहीं आया। सवाल भी सारे खारिज कर दिये गये। और आज विपक्ष प्रधानमंत्री से जवाब मांगता है। मैं तो पहले ही दिन से कह रहा हूं कि जवाब देने के लिए मैं तैयार हूं। यह मेरी ड्यूटी है। मैं देश के प्रति जवाबदेह हूं। संसद के प्रति जवाबदेह हूं। विपक्ष के प्रति भी जवाबदेह हूं, लेकिन विपक्ष मुझे बोलने नहीं देता है।

    2004 में 17 सौ लोगों के एनकाउंटर हुए
    2004 में मनमोहन सिंह पीएम बने और मणिपुर के सीएम ओकराम इबोबी सिंह थे। उस दौरान मणिपुर में लगभग 1700 लोगों के एनकाउंटर हुए। वहां के लोगों का मानना है कि वह वर्दी से की हुई नस्लीय हिंसा थी। सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया। कई सारी एसआइटी बनी। मगर किसने जवाब दिया? किसी ने नहीं। एक चर्चा नहीं हुई। ना एमओएस, ना मिनिस्टर। मेरा यही कहना है कि मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, वह परिस्थिति से जन्मी नस्लीय हिंसा है। इसे राजनीति का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।

    सुबह चार बजे प्रधानमंत्री ने मुझे फोन किया
    प्रधानमंत्री ने मुझे सुबह के चार बजे भी फोन किया। अगले दिन फिर सुबह छह बजे भी फोन किया। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही इसे लेकर मुझे उठाया और विपक्ष कह रहा है कि मोदी जी ध्यान नहीं रख रहे हैं। तीन दिन तक लगातार मैं वहां रहा। हमने यहां से काम किया। 16 वीडियो कांफ्रेंसिंग की, 36 हजार जवान भेजे। वायु सेना के विमानों का उपयोग किया गया। चीफ सेक्रेटरी को बदल दिया गया। डीजीपी बदल दिया गया। उसके बाद केंद्र से सुरक्षा सलाहकार भेजे गये। केंद्र से चीफ सेक्रेटरी भेजे गये, डीजीपी भी केंद्र ने भेजा। यह सब चार मई की शाम तक कर दिया गया था। तीन मइ्र को हिंसा हुई और चार मइ्र तक फैसले लिये जा चुके थे। और विपक्ष का कहना है कि 356 क्यों नहीं लगाया। 356 तब लगता है, जब हिंसा के समय राज्य सरकार सहयोग नहीं करती है। हमने डीजीपी बदल दिया, राज्य सरकार ने भारत सरकार के डीजीपी को स्वीकार कर लिया, हमने चीफ सेक्रेटरी बदल दिया, राज्य सरकार ने भारत सरकार के चीफ सेक्रेटरी को स्वीकार कर लिया। और रही बात सीएम की, तो सीएम तब बदलना पड़ता है, जब वह सहयोग न करे।

    यूपीए शासन में एक साल में 130 दिन मणिपुर रहता था बंद
    यूपीए के शासन में वहां नाकाबंदी की जाती थी। ब्लॉकेड लगाये जाते थे। एक साल में 130 दिनों तक ब्लॉकेड रहा। यह सिलसिला पांच सालों तक चला। उस वक्त वहां पर पेट्रोल की कीमत 1200 रुपये हो गयी थी। आज हमने 28 दिनों में पूरा काम कर के रेलवे को वहां पहुंचाया है। सप्लाई चालू है। कीमत भी बढ़ने नहीं दी। वह भी इतनी कठिन परिस्थिति में। एक तरफ जहां मैतेई का ड्राइवर कुकी एरिया में नहीं जा सकता और कुकी का मैतेई में। हमने असम से ट्रक भी लाये, ड्राइवर भी लाये और सेना को भी लगाया। तब जाकर दामों को हमने कंट्रोल किया।

    धीरे-धीरे कम हो रही है हिंसा
    मणिपुर हिंसा में अब तक 152 लोग मारे गये। इसमें कोई छिपाने की जरूरत नहीं है। हमारा स्वभाव भी छिपाने का नहीं है। जहां मई 2023 में 107 लोग मारे गये, जून में 30 मारे गये, जुलाई में 15 और अगस्त में चार। मई में जो 107 लोग मारे गये, उनमें से 68 लोग तीन, चार और पांच तारीख को मारे गये। इस आंकड़े को जारी करने का तात्पर्य यह है कि हिंसा धीरे-धीरे कम हो रही है और विपक्ष इस आग में तेल डालने का काम न करे।

    संसद सत्र के एक दिन पहले सामने क्यों आया वीडियो
    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को मणिपुर के वायरल वीडियो पर भी बात की। अमित शाह ने कहा कि 4 मई की जो दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, वह दुनिया में किसी भी जगह पर किसी भी स्थान पर किसी महिला के साथ इस तरह की घटना समाज के नाम पर धब्बा है। इसका कोई समर्थन नहीं कर सकता। न यह सदन कर सकता है, न कोई पॉलिटिकल पार्टी कर सकती है। 4 मई का वीडियो संसद सत्र के एक दिन पहले ही क्यों आया। अगर किसी के पास वीडियो था, तो उसे पुलिस तंत्र को देना चाहिए था कि नहीं देना चाहिए था। क्या उसको सार्वजनिक करना चाहिए? कम से कम उस महिला के सम्मान का तो सोचना चाहिए। अगर वह वीडियो डीजीपी को दे दिया गया होता, तो 5 मई तक उस मामले में कार्रवाई हो जाती। जिस दिन वीडियो आया, उसी दिन वीडियो की कॉपी से हमने फेस आइडेंटिफिकेशन सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हुए सरकार के डाटा के साथ मिलान किया और नौ के नौ लोगों को गिरफ्तार किया।

    मणिपुर में तीन दिन और तीन रात रहा
    मैं मणिपुर में तीन दिन और तीन रात रहा। मेरे साथी एमओएस नित्यानंद 23 दिनों तक लगातार वहां रहे। हमने जांच के लिए हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का एक कमीशन बना दिया है, जिसमें एक आइपीएस और आइएएस अफसर भी हैं। 36 हजार से अधिक सुरक्षा कर्मी दिन-रात तैनात किये हुए हैं। इसलिए हिंसा कंट्रोल में आ रही है। वहां पर स्थित पांचों सुरक्षा एजेंसियों के बीच में बेहतर समन्वय रहे, उसके लिए यूनिफाइड कमांड व्यवस्था बना दी गयी है। उसकी चेयरमैनशिप केंद्र से भेजे गये सुरक्षा सलाहकार के हाथ में है। कई एसआइटी भी गठित की गयी हैं। 14898 लोगों को अरेस्ट किया है और 1106 एफआइआर रजिस्टर हुए हैं। पीड़ितों को मुआवजा भी दिया गया है। 30 हजार मीट्रिक टन चावल भी रातों-रात वहां भेजे गये हैं और भी बांटे जा रहे हैं। किसी भी क्षेत्र में मेडिकल फैसिलिटी का अभाव न हो, उसके लिए भारत सरकार की आठ टीमें वहां अलग-अलग कैंपों में अपनी सेवा दे रही हैं। वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से केसों की सुनवाई भी हो रही है। बच्चों की आॅनलाइन पढ़ाई चालू हो चुकी है। घाटी में 98 प्रतिशत स्कूल खुल चुके हैं। 80 प्रतिशत उपस्थिति रहती है। दो प्रतिशत स्कूलों में कैंप चल रहे हैं। उसमें स्थायी शेल्टर बनाने की शुरूआत हो चुकी है। राहत सामाग्री समय पर पहुंचे, उसकी भी व्यवस्था कर दी गयी है। सुरक्षा की समीक्षा मैं हर हफ्ते वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से करता हूं। गृह सचिव हर दूसरे दिन करते हैं और डीआइ भी हर रोज करता है। शांति स्थापित करने की दिशा में कोई भी कमी नहीं की जा रही है। मैं इतना जरूर कहूंगा कि कम से कम समय में हम हिंसा को रोकने का काम कर पायेंगे।

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