विशेष
पिछली बार इन सीटों पर बेहद कम रहा था जीत-हार का अंतर
एनडीए ने 24, महागठबंधन ने 16 सीटों पर हासिल की थी जीत
इस बार दोनों गठबंधनों ने इन सीटों पर केंद्रित कर लिया है ध्यान
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
किसी भी चुनाव की रणनीति को अंतिम रूप देने के क्रम में कई तरह की बातों और पिछले रिकॉर्ड को ध्यान में रखा जाता है। हरेक सीट के पिछले परिणामों का विश्लेषण किया जाता है, क्योंकि कोई भी दल किसी भी कीमत पर एक भी सीट का नुकसान उठाना नहीं चाहता। बिहार विधानसभा के आसन्न चुनावों में भी ऐसा ही हो रहा है और इसमें कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। चुनाव मैदान में उतरनेवाली सभी राजनीतिक पार्टियां पिछले चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करते हुए अपने समीकरणों को उसके अनुरूप ढाल रही हैं। इनमें नजदीकी मुकाबले वाली सीटें भी शामिल हैं। बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में 40 सीटें ऐसी थीं, जहां मुकाबला बेहद नजदीकी हुआ था। कुल 243 सीटों में से ये 40 सीटें ऐसी थीं, जहां जीत-हार का अंतर साढ़े तीन हजार वोटों तक रहा था। इनमें 11 सीटें तो ऐसी थीं, जिन पर एक हजार वोटों के अंतर से जीत-हार हुई थी। नजदीकी मुकाबले वाली इन विधानसभा सीटों पर इस बार दोनों गठबंधनों, सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी महागठबंधन ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। दोनों ही गठबंधनों ने जहां अपने सीटिंग विधायकों के कामकाज के बारे में रिपोर्ट लेनी शुरू कर दी है, वहीं वहां के सामाजिक समीकरणों को भी साधने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है। इस तरह इन सीटों पर इस बार भी रोमांचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। कौन सी हैं वे 40 सीटें, पिछली बार क्या रहा था वहां का परिणाम और इस बार क्या हैं संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बिहार विधानसभा के आसन्न चुनाव में मुकाबला अब उन 40 सीटों पर सिमट रहा है, जहां 2020 में जीत-हार का अंतर बेहद मामूली था। भाजपा इन्हें ‘गोल्डन जोन’ बता रही है, तो महागठबंधन के लिए यह पिछली चूक की भरपाई का मैदान है। इन सीटों पर हर वोट जीत-हार का फैसला कर सकता है। इसलिए सभी दल इन सीटों पर पूरी ताकत लगा रहे हैं। बिहार विधानसभा की कुल 243 में से 40 सीटें ऐसी हैं, जो न सिर्फ बेहद संवेदनशील हैं, बल्कि इन पर जीत और हार का अंतर 2020 में साढ़े तीन हजार वोटों से भी कम रहा। इन 40 सीटों में से 11 सीटों पर तो मुकाबला इतना नजदीकी था कि अंतर एक हजार से भी कम वोटों का था। यही कारण है कि एनडीए और महागठबंधन दोनों ही इन सीटों को 2025 की चाबी मान कर हर बूथ तक पहुंच बना रहे हैं, इन सीटों के सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं।
एक हजार से कम अंतर वाली सीटें
पहले बात करते हैं उन 11 सीटों की, जहां पिछली बार जीत-हार का अंतर एक हजार से भी कम रहा था। इनमें पहली सीट है हिलसा, जहां जदयू के कृष्णमुरारी शरण ने राजद के शक्ति सिंह यादव को केवल 12 वोटों से हराया था। भोरे में जदयू के सुनील कुमार ने भाकपा माले के जितेंद्र पासवान को 462 वोटों से पराजित किया था। डेहरी में राजद के फतेह बहादुर ने भाजपा के सत्य नारायण को 464 वोटों से हराया था। मटिहानी में लोजपा के राज कुमार सिंह ने जदयू के नरेंद्र कुमार सिंह को 333 वोटों से परास्त किया था। रामगढ़ में राजद के सुधाकर सिंह ने बसपा की अंबिका सिंह को 189 वोटों से हराया था। बछवाड़ा में भाजपा के सुरेंद्र मेहता ने भाकपा के अवधेश कुमार राय को 484 वोटों से हराया था। इसी तरह बखरी में भाकपा माले के सूर्यकांत पासवान ने भाजपा के रमेश पासवान को 777 वोटों से हराया था। चकाई से निर्दलीय सुमित कुमार सिंह ने राजद की सावित्री देवी को 581 वोटों से हराया था। कुढ़नी से राजद के अनिल कुमार सहनी ने भाजपा प्रत्याशी को 712 वोटों से हराया था और परबत्ता से जदयू के डॉ संजीव कुमार ने राजद के दिगंबर प्रसाद त्यागी को 951 वोटों से हराया था। बेहद नजदीकी मुकाबले वाली इन 11 सीटों में से पांच-पांच सीटें एनडीए और महागठबंधन को मिली थीं, जबकि एक सीट निर्दलीय ने जीती थी।
29 सीटों पर अंतर एक हजार से साढ़े तीन हजार वोट
अब बात उन 29 विधानसभा सीटों की, जहां जीत-हार का अंतर एक हजार से साढ़े तीन हजार वोटों का रहा था। इनमें आरा से लगभग 3002 वोट से भाजपा जीती थी, जबकि भागलपुर से लगभग 2950 वोट से कांग्रेस जीती थी। गोपालगंज में भाजपा प्रत्याशी ने लगभग 2200 वोट से जीत हासिल की थी और मधुबनी में राजद ने लगभग दो हजार वोटों से कामयाबी पायी थी। इसी तरह कल्याणपुर से लगभग 1193 वोट से जदयू, रामनगर से लगभग 1750 वोट से भाजपा, धुरैया से लगभग 3060 वोट से राजद और परिहार से 1569 वोट से भाजपा ने जीत हासिल की थी। झाझा से लगभग 1700 वोट से जदयू को जीत मिली थी, तो सकरा सीट भी उसने लगभग 2250 वोट के अंतर से जीती थी। खगड़िया से कांग्रेस ने लगभग तीन हजार वोट से जीत हासिल की थी, जबकि त्रिवेणीगंज में लगभग 3031 वोट से जदयू प्रत्याशी जीता था। रानीगंज सीट पर भी जदयू को लगभग 2304 वोट और महिषी में लगभग 1630 वोट से जदयू को जीत मिली थी। बहादुरपुर सीट जदयू ने लगभग 2650 वोट के अंतर से जीती, तो सिमरी बख्तियारपुर सीट से राजद ने लगभग 1750 वोट से जीत हासिल की। अमरपुर सीट लगभग 2450 वोट से जदयू ने जीती, तो अमनौर सीट पर भाजपा ने लगभग साढ़े तीन हजार वोट के अंतर से कब्जा जमाया। सुगौली से लगभग 3447 वोट से राजद की जीत हुई, तो बाजपट्टी से भी इसी पार्टी ने 2704 वोट के अंतर से जीत हासिल की। कांग्रेस ने किशनगंज सीट 1381 वोट से जीती, तो राजद ने दरभंगा ग्रामीण सीट लगभग 2141 वोट से जीती। इसी तरह राजद ने सिवान पर लगभग 1973 वोट से जीत हासिल की, तो महाराजगंज से कांग्रेस ने लगभग 1976 वोट से जीत दर्ज की। महनार सीट लगभग 2150 वोट से लोजपा जीती, तो सिकटा सीट लगभग 2300 वोट के अंतर से भाकपा माले ने जीत ली, जबकि अलीनगर सीट से 3101 वोट से वीआइपी के मिश्री लाल यादव जीते। इस तरह इन 29 सीटों में से 11 सीटें भाजपा ने जीतीं, जबकि जदयू ने सात, राजद ने छह, कांग्रेस ने दो और लोजपा, भाकपा माले और वीआइपी ने एक-एक सीट जीती।
महागठबंधन और एनडीए के बीच तगड़ा मुकाबला
इस बार के चुनाव के लिए भाजपा और एनडीए ने इन सीटों को लेकर एक ठोस योजना बनायी है। रणनीति है ‘माइक्रो मैनेजमेंट से मैक्सिमम सीटें’ जीतने की। बूथ लेवल पर डिजिटल डेटा से लेकर पीएम मोदी की टारगेट रैलियों तक हर हथियार इन सीटों पर झोंक दिये गये हैं। वहीं महागठबंधन ने भी इन सीटों पर मोर्चा खोल दिया है। राजद अपने कोर यादव-मुस्लिम वोट बैंक को संगठित करने में जुटा है। कांग्रेस और वाम दलों को स्थानीय चेहरों को आगे करने की सलाह दी गयी है और जहां पिछली बार चूक हुई, वहां स्थानीय नाराजगी को मुद्दा बनाया जा रहा है। राजद का दावा है कि ये सीटें इस बार उसकी होंगी। जनता जानती है कि किसने काम किया और किसने सिर्फ प्रचार किया।
बिहार चुनाव का तीसरा कोण
इस बार बिहार चुनाव की तस्वीर में एक तीसरा कोण भी है और वह हैं प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज। पीके की एंट्री इन 40 सीटों समेत 243 सीटों पर सियासी समीकरण बिगाड़ सकती है। 2020 में कुल 11 नजदीकी सीटों में एनडीए ने पांच और महागठबंधन ने छह सीटें जीती थीं। बाकी 29 सीटों में भी एनडीए का पलड़ा भारी रहा।
प्रशांत किशोर से किसे होगा नुकसान
इन 29 सीटों में से 20 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी, जबकि शेष सीटें महागठबंधन (राजद-कांग्रेस-वाम) के खाते में गयीं। इस बार प्रशांत किशोर भी हैं और संकेत मिल रहे हैं कि विशेषकर शहरी ब्राह्मण और भूमिहार वोटों पर अगर वह असर डालते हैं, तो यह भाजपा के गणित को प्रभावित कर सकता है। यही वजह है कि 2025 का बिहार चुनाव सीटों की नहीं, हर बूथ की लड़ाई बन गया है।