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    Home»विशेष»कितना कारगर होगा भाजपा का ‘मध्यप्रदेश फॉर्मूला’
    विशेष

    कितना कारगर होगा भाजपा का ‘मध्यप्रदेश फॉर्मूला’

    adminBy adminOctober 1, 2023No Comments7 Mins Read
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    -गुटबाजी रोकने के उद्देश्य से सांसदों को टिकट देने का फैसला
    -प्रदेश के कई इलाकों से आने लगे इस्तीफे, हो गयी है बगावत की शुरूआत

    भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा का प्रयोग दुहराया है। भाजपा ने प्रदेश में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत कुल सात सांसदों को विधानसभा चुनाव मैदान में उतारा है। साथ ही पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी इंदौर की एक सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। माना जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश समेत कुछ अन्य राज्यों में गुटबाजी के कारण सत्ता गंवाने के बाद पार्टी ने यह फैसला लिया। उसने बड़े कद वाले नेताओं को विधानसभा चुनाव लड़ा कर गुटबाजी रोकने की कोशिश की, लेकिन उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट आने के कुछ दिनों में ही पार्टी के भीतर से असंतोष की आवाज उठने लगी है। प्रदेश के कई इलाकों में भाजपा के नेता बगावत पर उतर आये हैं और इस्तीफों का दौर शुरू हो गया है। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा का यह दांव उल्टा पड़ गया है। क्या हो रहा है भाजपा के साथ मध्यप्रदेश में, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    यह पहला मौका नहीं है, जब भाजपा ने सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाने का एलान किया हो। इससे पहले भी भाजपा ने राज्य विधानसभा चुनावों में इस तरह का फॉर्मूला आजमाया था। 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने पांच मौजूदा लोकसभा और राज्यसभा सांसदों को टिकट दिया था। इनमें से केवल दो भाजपा सांसद, जगन्नाथ सरकार और निशिथ प्रमाणिक जीतने में सफल रहे। उस चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता और सांसद स्वपन दासगुप्ता, लॉकेट चटर्जी और बाबुल सुप्रियो को हार का सामना करना पड़ा था। 2022 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने करहल की हाइ प्रोफाइल सीट पर केंद्रीय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल को अखिलेश यादव के खिलाफ खड़ा किया था। उस चुनाव में भी समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने आगरा से मौजूदा भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को बड़े अंतर से हरा दिया था।
    फिर भाजपा ने प्रतिमा भौमिक को निर्वाचित सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री होने के बावजूद त्रिपुरा से विधानसभा का चुनाव लड़ने की अनुमति दी। उन्होंने धनपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। मध्यप्रदेश के मामले में गौर करने वाली बात है कि भाजपा ने हाल के वर्षों में पहली बार किसी विधानसभा चुनाव में इतनी बड़ी संख्या में मौजूदा सांसदों को मैदान में उतारने का फैसला किया है।
    भाजपा ने जिन सांसदों को टिकट दिया है, वे सभी मध्यप्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रीय इलाकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हें मैदान में उतार कर भाजपा ने साफ संकेत दिया है कि इस बार पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रही है और इसीलिए वह हर क्षेत्र से एक बड़ा चेहरा विधानसभा चुनाव में उतार रही है। लेकिन भाजपा का यह प्रयोग उसके लिए जोखिम भी पैदा कर रहा है।

    चाचौड़ा की भाजपा नेता ने थामा आम आदमी पार्टी का हाथ
    भाजपा ने 18 अगस्त को उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी। तब से ही कुछ सीटों पर असंतोष की आवाजें उठ रही हैं। इनमें से प्रमुख हैं चाचौड़ा की ममता मीणा, जिन्होंने प्रियंका मीणा के नामांकन से नाराज होकर पार्टी छोड़ दी और आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो गयीं। उम्मीदवारों को लेकर पार्टी के भीतर तनाव के बारे में पूछे जाने पर भाजपा के प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनी ने कहा, चुनाव के दौरान हर कार्यकर्ता सोचता है कि उसे टिकट मिलना चाहिए। पार्टी ने जीतने की सबसे ज्यादा संभावना वाले उम्मीदवारों को टिकट देने का फैसला किया है। भाजपा में गुटबंदी ज्यादा नहीं है, लेकिन ऐसे मामलों में हम उनसे बात करने की कोशिश करेंगे। संगठन उनसे बात करेगा।

    शुक्ला की जगह रीति पाठक
    भाजपा ने सीधी विधानसभा क्षेत्र से तीन बार के विधायक केदारनाथ शुक्ला की जगह सांसद रीति पाठक को उम्मीदवार बनाया है। शुक्ला के समर्थक ने एक आदिवासी युवक पर पेशाब कर दिया था। इस कारण उनका भाजपा से नाता टूट गया। रीति पाठक को उम्मीदवार बनाये जाने के बाद पार्टी के पूर्व सीधी जिला अध्यक्ष राजेश मिश्रा ने विभिन्न पदों से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा, मैंने पार्टी नहीं छोड़ी है, लेकिन सीधी में भाजपा के विभिन्न निकायों से इस्तीफा दे दिया है। मुझे इस फैसले से बहुत बुरा लगा। लेकिन मैं हमेशा की तरह भाजपा के लिए काम करता रहूंगा। यह मेरा विरोध का तरीका है। भाजपा एक लोकतांत्रिक पार्टी है और यहां असहमति के लिए जगह है।

    सतना में निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान
    उधर सतना में चार बार के सांसद गणेश सिंह को पार्टी ने इस भरोसे से टिकट दिया कि वह यह सीट कांग्रेस से छीन लेंगे। मौजूदा विधायक डब्बू सिद्धार्थ उर्फ सुखलाल कुशवाहा ने पिछले चुनाव में भाजपा की लगातार जीत का क्रम तोड़ दिया था। 2003 के बाद भाजपा को सतना में पहली बार 2018 के विधानसभा चुनावों में ही हार मिली थी। लेकिन भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष रत्नाकर चतुर्वेदी ने इस फैसले के विरोध में पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का एलान भी कर दिया।

    मैहर में सिंधिया समर्थक को टिकट से भाजपा नेता नाराज
    भाजपा को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं के बीच गुटबाजी से भी जूझना पड़ रहा है। हाल के महीनों में सिंधिया के कई समर्थकों ने पार्टी छोड़ दी है और कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। मैहर में सिंधिया समर्थक श्रीकांत चतुर्वेदी को टिकट दिया गया है, जिससे मौजूदा विधायक नारायण त्रिपाठी नाराज हैं। उन्होंने 2018 में कांग्रेस के टिकट पर लड़े श्रीकांत चतुर्वेदी को हराया था। त्रिपाठी ने अलग विंध्य प्रदेश की लड़ाई लड़ने के लिए विंध्य जनता पार्टी (विजपा) का गठन किया है। उन्होंने कहा, मैंने भाजपा से इस्तीफा नहीं दिया है। मुझे पार्टी से टिकट नहीं चाहिए था। मैं तय कर रहा हूं कि भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना है या नहीं।

    श्योपुर में हार रहे कैंडिडेट को तीसरी बार टिकट
    इधर श्योपुर में पूर्व विधायक दुर्गालाल विजय को फिर से टिकट दिये जाने पर पार्टी के कार्यकर्ताओं में असंतोष है। विजय ने 2003 और 2013 का चुनाव जीता था, लेकिन 2008 और 2018 में वह हार गये थे। इसके बावजूद पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है। भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष राधेश्याम रावत ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर मनमानी का आरोप लगाते हुए गुरुवार को इस्तीफा दे दिया। रावत ने कहा कि पिछले 30 वर्षों से एक ही व्यक्ति को प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने कहा कि मीणा समाज के किसी भी व्यक्ति को पार्टी में कोई पद नहीं दिया गया है और एक ऐसे उम्मीदवार को टिकट दिया गया है, जो बड़े अंतर से हार जाता है।

    नागदा-खचरोद में भी बगावत
    उज्जैन जिले के नागदा-खचरोद निर्वाचन क्षेत्र में डॉ तेज बहादुर सिंह की उम्मीदवारी का पार्टी के जिला समन्वयक (कानूनी शाखा) लोकेंद्र मेहता ने विरोध किया है। मेहता ने पार्टी छोड़ दी है और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
    मेहता ने कहा कि मैं 25 वर्षों से भाजपा में हूं और हिंदुत्व की विचारधारा और केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों को प्रचारित करने के लिए हर गांव गया हूं। उन्होंने जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर चैंबर में बैठने वाले नेताओं को टिकट दे दिये हैं। हम कांग्रेस के गढ़ों में नेताओं को ऊपर से उतारने की रणनीति को नहीं समझ पा रहे हैं।
    मध्यप्रदेश के इस परिदृश्य से भाजपा में चिंता है। इसलिए पार्टी अभी से डैमेज कंट्रोल में जुट गयी है। असंतुष्ट नेताओं के मान-मनव्वल का सिलसिला भी शुरू हो गया है। चुनाव में क्या होगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन नये प्रयोग से युवा कार्यकर्ताओं में असंतोष देखा जा रहा है।

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