-हाल के दिनों की गतिविधियां दे रही हैं चुनावी माहौल का स्पष्ट संकेत
-शिलान्यास-उद्घाटन से लेकर रोजगार मेला जैसे इवेंट का तांता
-पिछले एक साल के दौरान ताबड़तोड़ फैसले लेकर खींची है बड़ी लकीर
करीब 23 साल पहले 15 नवंबर, 2000 को भारत के राजनीतिक नक्शे पर अलग राज्य के रूप में उभरे झारखंड का राजनीतिक माहौल एक बार फिर गरमा रहा है। वैसे तो पूरे देश में अगले साल की पहली छमाही में होनेवाले संसदीय चुनावों को लेकर राजनीतिक दल रेस हैं, लेकिन झारखंड में 2024 के अंत में विधानसभा चुनाव होना है। इसलिए यहां का राजनीतिक माहौल देश के दूसरे हिस्सों से थोड़ा अलग है। विपक्षी भारतीय जनता पार्टी जहां राज्य में दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए अपना सब कुछ झोंक चुकी है, तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो भी चुनाव की तैयारी में जुट गया है। पिछले दो-तीन महीने के दौरान राज्य सरकार हर वर्ग को लुभाने के लिए लगातार कई महत्वपूर्ण फैसले ले रही है। कई परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री ने किया है, जबकि बेरोजगारी के खिलाफ अपने अभियान के तहत वह रोजगार मेलों में शिरकत कर रहे हैं। इतना ही नहीं, अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी वह चुनाव के लिए तैयार रहने को कह चुके हैं। हेमंत सोरेन ने वैसे भी पिछले एक साल के दौरान जितने फैसले किये हैं, उनका असर भले ही सियासी माहौल पर नहीं पड़ा हो, हेमंत सोरेन की लोकप्रियता बहुत बढ़ गयी है। इतना ही नहीं, देश स्तर पर भी विपक्षी गठबंधन में उनकी हैसियत कई गुना बढ़ गयी है और अब वह गैर-भाजपा दलों की एक पहचान बन चुके हैं। इस बदली हैसियत के सहारे हेमंत सोरेन को क्या हासिल होगा और झारखंड में क्या असर होगा, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड का मौजूदा सियासी मौसम पिछले दो महीने से गर्म है। गर्माहट ऐसी है कि लगता है, अभी ही चुनाव होने हैं। वैसे झारखंड में विधानसभा चुनाव 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद होगा। राज्य में यह सियासी गर्माहट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गतिविधियों को लेकर है। पिछले दो महीने में उन्होंने राज्य के विभिन्न हिस्सों की यात्राएं की हैं और एक सौ से अधिक परियोजनाओं का शिलान्यास-उद्घाटन किया है। इतना ही नहीं, प्रमंडल और जिला स्तर पर रोजगार मेलों के माध्यम से युवाओं को रोजगार देने का एक अभियान भी राज्य में चल रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री खुद शिरकत कर रहे हैं।
हेमंत सोरेन सिर्फ प्रशासनिक मोर्चे पर ही सक्रिय नहीं हैं, बल्कि राजनीतिक मोर्चे पर भी बेहद सक्रिय नजर आ रहे हैं। पिछले सप्ताह उन्होंने पार्टी के जिला और प्रखंड अध्यक्षों और सचिवों के साथ बैठक की। इस बैठक में उन्होंने जहां कार्यकर्ताओं के समक्ष अपनी बात रखी, वहीं कार्यकर्ताओं की नब्ज भी टटोली। हेमंत ने कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए कहा कि कार्यकर्ताओं को हर चुनाव और हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। राज्य की जनता ने बड़ी उम्मीदों से झामुमो पर विश्वास किया और अपना समर्थन दिया। सरकार के साथ संगठन की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह जनता के विश्वास पर खरा उतरे। सरकार ने चार साल में कई योजनाएं चलायीं, कई काम भी किये हैं। सरकार इसे अपने माध्यम से जनता के बीच ले जा ही रही है, संगठन के लोगों का भी यह दायित्व बनता है कि वे इन योजनाओं को जनता तक ले जायें, ताकि अंतिम व्यक्ति तक को इनका लाभ मिले. उन्होंने नेताओं और कार्यकर्ताओं को चुनावी तैयारी में जुट जाने का निर्देश दिया।
पिछले एक साल से हैं एक्शन में
दरअसल, हेमंत सोरेन इस बात से बखूबी वाकिफ हैं कि वह राजनीतिक रूप से विरोधियों के निशाने पर हैं। चार साल से गठबंधन सरकार चलाने और विभिन्न आरोपों में घेरने की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्होंने अपनी लाइन कभी नहीं छोड़ी है। भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही के कई आरोप उन पर लगे, लेकिन उन्होंने इन पर कभी ध्यान नहीं दिया और अपना काम करते रहे। खास कर पिछले एक साल के दौरान जिस तरह के संकटों में घिरने के बावजूद हेमंत सोरेन सुरक्षित बाहर निकले, उससे साफ हो गया कि राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से हेमंत सोरेन बेहद परिपक्व हो गये हैं। वह इस बात से भी वाकिफ हैं कि अभी संकटों का दौर खत्म नहीं हुआ है, इसलिए पिछले एक साल के दौरान उन्होंने ताबड़तोड़ फैसले लेकर अपने जनाधार को ही मजबूत किया है।
आरक्षण समेत दो महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराये
पिछले एक साल के दौरान हेमंत सोरेन ने तीन ऐसे मुद्दों पर काम किया है, जिनकी मांग अर्से से होती रही थी। अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण को मौजूदा 14 से बढ़ा कर 27 प्रतिशत करने, जातीय जनगणना और 1932 के आधार पर स्थानीय नीति बनाने की उनकी तैयारी से साफ हो गया था कि वह चुनावी मोड में आ गये हैं। स्थानीयता नीति झारखंड की पुरानी मांग रही है। पूर्ववर्ती सरकारों ने दो बार इसकी कोशिश भी की, पर हर बार यह कानूनी पचड़े में पड़ती रही है। हेमंत सोरेन भी यह जानते-मानते हैं। विधानसभा में जब यह मांग उठी, तो उन्होंने कहा भी था कि स्थानीयता के लिए 1932 के सर्वे को आधार बनाना संभव नहीं। इसके बावजूद पहले कैबिनेट से उन्होंने इसे पास कराया और विधानसभा से भी पारित करा लिया। इसी तरह ओबीसी के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग भी पुरानी थी। उसे भी हेमंत सोरेन ने पूरा किया। इतना ही नहीं, पिछले एक साल के दौरान उन्होंने चार महत्वपूर्ण योजनाओं को मंजूरी दी है। युवाओं को स्वरोजगार के लिए मुख्यमंत्री सारथी योजना को सरकार ने स्वीकृति दी है। इसके अलावा उच्च शिक्षा के लिए चार प्रतिशत ब्याज पर 15 लाख रुपये तक कर्ज के लिए गुरुजी क्रेडिट कार्ड योजना की घोषणा की गयी है। ये ऐसी लुभावनी योजनाएं हैं, जो युवा वर्ग को आकर्षित करेंगी।
65 हजार पारा शिक्षकों का वेतन बढ़ाया
झारखंड के पारा शिक्षक वेतन वृद्धि समेत कई तरह की मांगें लंबे समय से कर रहे थे। राज्य सरकार ने पिछले साल उनके वेतन में चार प्रतिशत की वृद्धि कर दी। साथ ही उनकी सेवा पुस्तिका खोलने और प्रशिक्षित के समान ही अप्रशिक्षित शिक्षकों को भी वेतन देने की स्वीकृति दे दी। इससे राज्य के तकरीबन 65 हजार पारा शिक्षकों को लाभ मिला। इसी तरह आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के मानदेय भी राज्य सरकार ने बढ़ा दिये। इसके अलावा उन्होंने पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दी, जिससे करीब सवा लाख सरकारी कर्मचारियों को लाभ होगा। इसी तरह पुलिस कर्मियों को साल में एक माह का क्षतिपूर्ति अवकाश देने का निर्णय सरकार ने किया। इससे करीब 70 हजार पुलिस कर्मियों को फायदा होगा।
क्यों खतरा महसूस कर रहे हैं हेमंत सोरेन
दरअसल, पिछले करीब डेढ़ साल से हेमंत सोरेन पर तलवार लटक रही है या यूं कहा जाये कि लटकायी जा रही है। कभी मुख्यमंत्री रहते खनन लीज अपने नाम लेने की शिकायत के बाद उन पर खतरा मंडराता रहा है, तो कभी अवैध खनन मामले में इडी की पूछताछ के बाद उन पर संकट के बादल गहराये। फिर जमीन घोटाले में इडी के समन और उसके बाद विधि-व्यवस्था के लेकर तमाम तरह के आरोपों ने हेमंत सोरेन को सतर्क जरूर कर दिया। इस खतरे को भांपते हुए वह अपनी सियासी जमीन पुख्ता करने की कवायद में लग गये हैं।