-मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में हो रहा है इस फॉर्मूले का परीक्षण
-सफल हो गया, तो 2024 के आम चुनावों में भाजपा इसे बना सकती है मुख्य हथियार
17वें आम चुनाव के मुहाने पर खड़े दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीतिक दल अब अपने हथियारों का जखीरा चुस्त करने में जुट गये हैं। ये सियासी हथियार ही चुनावी रण में राजनीतिक दलों की जीत-हार तय करेंगे। इसलिए इसके चयन में पूरी सावधानी बरती जा रही है। लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए एक तरफ भाजपा अपना पूरा जोर लगा रही है, तो विपक्ष उसे हराने की जद्दोजहद में जुटा है। इसलिए देश का सियासी माहौल पूरी तरह गरम है। पिछले कुछ दिनों से देश की सियासत में एक बार फिर से आरक्षण और जातीय राजनीति की गूंज सुनाई दे रही है। बिहार से उठी यह आवाज अब विपक्ष का मुख्य हथियार बन चुकी है, क्योंकि कांग्रेस ने देश भर में जातिगत जनगणना कराने की घोषणा कर बड़ा दांव चल दिया है। इसके जवाब में भाजपा कौन सा दांव चलती है, इस पर सबकी दिलचस्पी थी। अब यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष के इस हथियार के जवाब में ऐसा फॉर्मूला तैयार किया है, जिसकी ताकत की कल्पना मात्र से ही खलबली मची हुई है। इस फॉर्मूले के अंतर्गत जिन ओबीसी-दलित जातियों को अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है, उन्हें प्राथमिकता के साथ उन्हीं वर्गों की उपश्रेणी में आरक्षण दिलवाना और नयी जातियों को भी ओबीसी-दलित जातियों में शामिल करना शामिल है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को योगी का यह फॉर्मूला विपक्ष की जाति आधारित सियासत की काट के लिए सबसे उपयुक्त नजर आ रहा है। इसलिए उसने इसे राजस्थान और मध्यप्रदेश में हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव के दौरान आजमाने का फैसला किया। यदि इन राज्यों में यह फॉर्मूला सफल हो गया, तो 2024 के चुनाव में इसे पूरी तरह अंगीकार कर लिया जायेगा। क्या है यह योगी फॉर्मूला और क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
जातिगत जनगणना और जातिगत आरक्षण का दांव चल कर विपक्ष भाजपा को लोकसभा चुनाव 2024 में घेरने की रणनीति बना चुका है। राहुल गांधी, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव और स्टालिन रोज इस मुद्दे को नये-नये तरीके से धार दे रहे हैं। भाजपा योगी फॉर्मूले के सहारे विपक्ष के इस हमले को ध्वस्त करने की तैयारी कर रही है। इसके अंतर्गत जिन ओबीसी-दलित जातियों को अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है, उन्हें प्राथमिकता के साथ उन्हीं वर्गों की उपश्रेणी में आरक्षण दिलवाना और नयी जातियों को भी ओबीसी-दलित जातियों में शामिल करना शामिल है। इसके साथ ही संगठन से लेकर सरकार तक में ओबीसी-दलित जातियों की भागीदारी को और अधिक मजबूत बना कर उनका सामाजिक सशक्तीकरण करके उन्हें अपने साथ जोड़ने का फॉर्मूला अपनाया जा सकता है। भाजपा ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभार्थी वर्ग बना कर भी इन वर्गों को अपने से जोड़ने की कोशिश की है। पार्टी ने राजस्थान और मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान इस फॉर्मूले को परीक्षण के तौर पर अपनाया है। वहां यदि यह सफल होता है, तो लोकसभा चुनाव के पहले इस रणनीति को और अधिक धार दी जा सकती है।
इसके पूर्व यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इन्हीं वर्गों की उपश्रेणियों का निर्माण कर इन्हें आरक्षण का अधिक लाभ देने की रणनीति अपनायी थी, जिसका विपक्षी दलों की ओर से विरोध हुआ था। योगी आदित्यनाथ सरकार ने आर्थिक-सामाजिक तौर पर पिछड़ी कुछ अन्य नयी जातियों को भी इन वर्गों में शामिल करने की रणनीति अपनायी थी। यह मामला अदालत की चौखट तक जा पहुंचा था, लेकिन नये संदर्भों में इस कोशिश को एक बार फिर मजबूती से आजमाया जा सकता है।
जातिगत जनगणना का दांव खेलने के लिए क्यों मजबूर हुआ विपक्ष
केंद्र सरकार ने 2014 से ही कल्याणकारी योजनाओं की राजनीति की। नरेंद्र मोदी सरकार ने विभिन्न योजनाओं के सहारे हर वर्ग के गरीब वर्गों का कल्याण किया। इससे हर जाति-वर्ग के गरीब भाजपा के साथ जुड़े। विपक्षी दलों ने देख लिया कि यदि इस तरह की गरीब हितैषी राजनीति होती रही, तो उनकी जाति आधारित राजनीति हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगी। यही कारण है कि अब नये तरीकों से ओबीसी-दलित वर्गों को बरगलाने की कोशिश की जा रही है। जानकार बताते हैं कि जातिवाद के नाम पर केवल राजनीति कर इन दलों ने अपने चंद परिवारों का भला करने का काम किया है और यह बात जनता ने देख ली है। जनता यह समझ रही है और यही कारण है कि अब अखिलेश यादव जैसे लोगों की जाति के नाम पर समाज को तोड़ने की कोई कोशिश सफल नहीं होगी।
हाल ही में बिहार दौरे पर गये केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया था कि लालू-नीतीश की जोड़ी ने सर्वेक्षण में मुस्लिम और यादव समुदाय की आबादी को बढ़ा कर अति पिछड़ा और पिछड़ा समुदाय के साथ अन्याय करने का काम किया। उन्होंने बिहार के पिछड़ा और अति पिछड़ा दोनों समाज से कहा कि यह सर्वेक्षण एक छलावा है। भाजपा ने इसका समर्थन किया था, लेकिन उसे नहीं मालूम था कि लालू यादव के दबाव में यादव और मुस्लिम की संख्या बढ़ा कर अति पिछड़ा वर्ग के साथ अन्याय करने का काम नीतीश और लालू करेंगे। अति पिछड़ी जाति का मुख्यमंत्री का मुद्दा उठाते हुए अमित शाह ने कहा था कि विपक्षी दलों के गठबंधन के नेता कहते हैं कि जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी, तो क्या सर्वेक्षण के अनुसार अति पिछड़ी जातियों को हिस्सेदारी मिलेगी और क्या विपक्षी नेता यह घोषणा करेंगे कि उनका मुख्यमंत्री अति पिछड़ा समाज से होगा। इस तरह अमित शाह ने खुल कर अति पिछड़ी जातियों के मुद्दे को उठाया और मोदी कैबिनेट में ओबीसी-इबीसी जातियों के मंत्रियों की संख्या बता कर सियासी संदेश दिया था। यह पहली बार था, जब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से अति पिछड़ी जातियों के समर्थन में खुल कर कुछ कहा गया था। जानकार कहते हैं कि यह योगी फॉर्मूले का ही असर है। बता दें कि भाजपा यूपी में गैर-यादव ओबीसी का दांव चल कर अति पिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़ने में सफल रही थी। यूपी की तर्ज पर पार्टी राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी यही रणनीति अपना चुकी है। इसके साथ ही वह हिंदी पट्टी के दूसरे राज्यों में भी अति पिछड़ी जातियों को साधने की कवायद में जुटी हुई है।
हालांकि विपक्षा दलों की ओर से नीतीश कुमार ने जिस तरह से बिहार में पहले जातिगत जनगणना और आरक्षण बढ़ाने का दांव चला है और बाद में उसे अपना मुख्य हथियार बनाया है, उसे चुनौती देना भाजपा के लिए आसान नहीं है। लेकिन योगी का फॉर्मूला भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने के रास्ते में आये इस बड़े गतिरोध से पार पाने में मददगार साबित होगा, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है।