विशेष
-यह उल्लास और समर्पण का माहौल बताता है भारत अब बदल गया है
-अब नहीं रुकेंगे भारत के कदम, विश्वगुरु बनने का सपना भी साकार होगा
-पांच सौ वर्षों की तपस्या, संघर्ष और बलिदान का फल मिला सनातनियों को
देश की आध्यात्मिक राजधानी श्री अयोध्या धाम में राम मंदिर का उद्घाटन और करोड़ों सनातनियों के आदर्श प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के पुनीत मौके पर पूरी दुनिया में जिस उल्लास और समर्पण का माहौल दिखा, वह अद्भुत ही नहीं, अप्रत्याशित था। लोगों में भक्ति का भाव यह बता रहा था कि उनकी पांच सौ वर्ष की तपस्या, संघर्ष और बलिदान को एक मुकाम हासिल हो गया है। यह माहौल उनकी संतुष्टि के वातावरण को सामने ला रहा था। आज सनातनियों का भाव बता रहा है कि भारत अब रामराज की ओर अपने कदम बढ़ा चुका है। उसके कदम अब रुकनेवाले नहीं हैं। वास्तव में राम किसी एक धर्म के नहीं हैं। वह भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के आधार हैं। राम के बिना भारत की कल्पना की बुनियाद कमजोर होती है। इसलिए राम मंदिर को भारतीय सभ्यता की रक्षा, सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक और भारतीयता की अंतरराष्ट्रीय पहचान के रूप में देखा जाना चाहिए। लोगों में स्वत: स्फूर्त उत्साह बताता है कि भगवान राम इस भारत के कण-कण में विद्यमान हैं। उन्हें देखने के लिए अलग से किसी नजर की जरूरत नहीं होती है। अब चूंकि राम मंदिर निर्माण का संकल्प पूरा हो चुका है, इसलिए रामराज की परिकल्पना को अमली जामा पहनाने का समय आ गया है। इसके लिए सफलता का मापदंड धन-संपदा नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण जरूरी है। राम के जीवन को आत्मसात करना होगा। अब हर सनातनी पर बड़ी जिम्मेवारी आ गयी है। क्या है यह जिम्मेवारी और क्या है रामराज की परिकल्पना, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
आज पूरा देश राममय होकर पांच सौ साल के अनथक संघर्ष के बाद मिली सफलता का जयघोष कर रहा है। देश की आध्यात्मिक राजधानी अयोध्या धाम में राम जन्मभूमि पर मंदिर का उद्घाटन हो गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अपनी जन्मभूमि पर विराज गये हैं। इसके साथ ही दुनिया भर में फैले करोड़ों सनातनियों की तपस्या पूरी हो गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलला के मनमोहक विग्रह को भक्तों के दर्शन के लिए उपलब्ध करा कर साबित कर दिया है कि वह भारत के ही नहीं, दुनिया के सच्चे नायक हैं। सनातनियों में भगवान राम का क्या स्थान है, यह इसी बात से प्रमाणित होता है कि मंदिर का उद्घाटन अयोध्या में हुआ, लेकिन पूरी दुनिया आज राममय है। यह महज भक्ति नहीं है। इसके पीछे है संकल्प और तपस्या का बल, सिद्धि तक पहुंचने का आत्मबल और विश्वगुरु बनने का उत्साह। वास्तव में मंदिर के उद्घाटन के साथ ही भारत ने रामराज की तरफ अपने मजबूत कदम बढ़ा दिये हैं।
क्या है संदेश और निहितार्थ
अयोध्या में मंदिर के उद्घाटन का संदेश यही है कि प्रभु श्रीराम ने इस देश को इस दिशा में भी आंखें खोलने का एक अवसर दे दिया है कि कौन देश की संस्कृति के साथ है और कौन देश को एक उपनिवेश मानने की मानसिकता से पीड़ित है। यह धारणा अर्धसत्य है कि मुट्ठी भर लोग वोट बैंक के प्रति निष्ठा दर्शाने के लिए राम का विरोध करते हैं। वास्तव में उनका मिशन भारत की सांस्कृतिक चेतना का अपमान करना है। ठीक भी है। उनकी वैचारिक थाली वामपंथी कबीलों ने परोसी हुई है और परोसने का काम करने वाले इन वामपंथियों के रसोइये कट्टरवादी हैं। ऐसे में उन्हें इस देश में राम कहां दिख सकते हैं? मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदुओं का मानमर्दन तो उनका स्वभाव है। यही कारण है कि कांग्रेस के प्रथम परिवार का कोई भी व्यक्ति 1947 से 2024 तक कभी भी रामलला दर्शन के लिए अयोध्या नहीं गया। यह वही कांग्रेस है, जिसके प्रधानमंत्री ने बाबरी ढांचा गिरने के बाद फिर से मस्जिद बनाने का वादा किया था। जिसने सुप्रीम कोर्ट में न केवल राम के अस्तित्व को आधिकारिक रूप से नकारा था, बल्कि कोर्ट से यह भी याचना की थी कि राम जन्मभूमि पर फैसला न सुनाया जाये। कांग्रेस को समाहित करते हुए बने-अनबने गठबंधन के नेता भी सनातन को समाप्त करने की घोषणाएं करते रहे हैं।
प्रभु श्रीराम को काल्पनिक कहने वालों के लिए भी यह प्रश्न तो शेष ही रह जाता है कि वे हजारों वर्ष से किस प्रकार साक्षी हैं, साक्षात हैं। वे मात्र जीवंत और साक्षी ही नहीं हैं, बल्कि उनके नाम-मात्र ने राष्ट्र में नव-प्राणों का तब-तब संचार किया है, जब-जब इस राष्ट्र ने उन्हें पुकारा है। गांधी जी ने स्पष्ट कहा था कि वे इस बात में पड़ना ही नहीं चाहते कि राम ऐतिहासिक हैं या नहीं। उनके लिए राम नाम ही उनकी शक्ति और उनकी प्रेरणा थी। अगर राम काल्पनिक हैं, तो यह जरूर बतायें कि ऐसी ‘कल्पना’ क्या है, जिसका अस्तित्व कण कण में व्याप्त है, जिससे यह भारत भारत बना है? यह भी कि संविधान सभा ने, भारत के संविधान के मुखपृष्ठ पर (प्रस्तावना से भी पहले), रामराज की ही कल्पना क्यों की? राम मंदिर का निर्माण मात्र एक मंदिर का निर्माण नहीं है, बल्कि आदर्श शासन के युग ‘रामराज’ की स्थापना की दिशा में एक परिवर्तनकारी यात्रा है। इस दृष्टि का लक्ष्य वह सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन स्थापित करना है, जो गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस में चित्रित आदर्शों और स्वराज के संदर्भ में महात्मा गांधी की ‘रामराज’ की व्याख्या में है। ‘रामराज’ में भौतिक कल्याण भी है, सामंजस्यपूर्ण और समावेशी भविष्य भी है, दैवीय चेतना भी है और नैतिक आचरण भी है।
राम मंदिर का उद्घाटन राजनीतिक आख्यानों को राष्ट्र का कायाकल्प करने वाले रामराज्य के शाश्वत सिद्धांतों के साथ जोड़ने का एक बिंदु है। ऐसे में राम को काल्पनिक कहने का आशय है- राम नाम को सत्य के स्थान पर असत्य ठहराना। माने राम के नाम पर श्वांस लेने वाला यह राष्ट्र उनका अपना राष्ट्र नहीं है, बल्कि उनका कोई विजित उपनिवेश है। और ऐसे राष्ट्र का उठ खड़ा होना उन्हें कैसे सहन होगा?
वास्तव में भारत आज अपने उस संकल्प की ओर बढ़ चला है, जिसमें रामराज की कल्पना निहित है। यह संपन्नता से नहीं, ज्ञान, अध्यात्म और चरित्र निर्माण से होगा। राम मंदिर के उद्घाटन के दिन का माहौल बताता है कि लोग अब रामराज की परिकल्पना को साकार करने के लिए उद्यत हैं। स्वत: स्फूर्त ढंग का उत्साह, उत्सवी माहौल और संकल्प का यह दौर अभी चलता रहेगा, लेकिन 22 जनवरी 2024 की तारीख दुनिया के इतिहास में सबसे बुलंद अक्षरों में लिखी जायेगी, जब भारत ने अपनी ‘वास्तविक यात्रा’ शुरू की थी।