Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Wednesday, May 21
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»स्पेशल रिपोर्ट»कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री, न जमीन, न कार, सिर्फ पक्का उसूल
    स्पेशल रिपोर्ट

    कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री, न जमीन, न कार, सिर्फ पक्का उसूल

    adminBy adminJanuary 24, 2024Updated:January 27, 2024No Comments13 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जयेगा। कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगानेवाला नेता माना जाता है। आपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा सकी थीं। कर्पूरी ठाकुर की पहचान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ के रूप में रही है। वह बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था। 1988 में उनके निधन के बाद पिछड़ी जातियों से कई नेता उभरे, लेकिन उन जैसा कोई नहीं था और न अब भी वैसा मुकाम किसी को हासिल है। जाहिर है, पिछड़ों की राजनीति करनेवाले सभी दल उन्हें अपना बताने में कभी पीछे नहीं हुए। 24 जनवरी को उनकी 100वीं जयंती पर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के साथ जदयू का भी बड़ा कार्यक्रम है। लेकिन, ठीक एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक तरह से बाजी मार ली। पहले कमंडल, फिर विकास और इसके बाद मंडल। पीएम नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की। ठीक इसी दिन केंद्र सरकार ने बिजली बिल से लोगों को निजात दिलाने के लिए प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना का एलान किया। इसके तहत एक करोड़ से ज्यादा घरों की छत पर सोलर पैनल लगाने का लक्ष्य है। सरकार का मकसद गरीब और मध्य वर्ग को बिजली बिल से राहत दिलानी है। इसके ठीक एक दिन बाद ही केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व सीएम और दिग्गज नेता रहे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का एलान कर दिया। यानी तीन दिनों में पीएम मोदी ने तीन चीजों से मिशन 2024 के लिए रास्ता और साफ किया है। ऐसी भी अटकलें हैं कि कर्पूरी के जरिए भाजपा ने बिहार में अपने पुराने सहयोगी रहे नीतीश कुमार की तरफ दोस्ती का हाथ भी बढ़ा दिया है। कर्पूरी ठाकुर के व्यक्तित्व, जीवंत किस्से और बिहार में उनकी राजनीतिक हैसियत के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह

    स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक के रूप में सार्वजनिक जीवन की शुरूआत करनेवाले जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर के पितौंझिया में 24 जनवरी, 1924 को हुआ था। अब यह गांव कर्पूरीग्राम के नाम से चर्चित है। महज 14 साल की उम्र में उन्होंने अपने गांव में नवयुवक संघ की स्थापना की। गांव में होम विलेज लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन बने। 1942 में पटना विश्वविद्यालय पहुंचने के बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन और बाद में समाजवादी पार्टी तथा आंदोलन के प्रमुख नेता बने। 1952 में भारतीय गणतंत्र के प्रथम आम चुनाव में ही वह समस्तीपुर के ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। तब वह 31 साल के थे। संसदीय कार्यकलापों में तो उन्होंने दक्षता दिखायी ही, समाजवादी आंदोलन को जमीं पर उतारने का भी भरसक प्रयास किया।

    1970 और 1977 में मुख्यमंत्री बने थे कर्पूरी ठाकुर
    कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी। उनका पहला कार्यकाल महज 163 दिन का रहा था। 1977 की जनता लहर में जब जनता पार्टी को भारी जीत मिली, तब भी कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। अपना यह कार्यकाल भी वह पूरा नहीं कर सके। इसके बाद भी महज दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया। बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी। वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किये, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आ गया। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वह बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गये।
    बिहार में पिछड़ों के प्रणेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर भाजपा ने कई निशाने एक साथ साध लिये हैं। कर्पूरी ठाकुर की बुधवार को 100वीं जयंती हैं। बिहार में महागठबंधन सरकार की जाति जनगणना दांव की धार को भाजपा ने कर्पूरी ठाकुर को दिये गये सम्मान से कुंद करने की कोशिश की है। कर्पूरी अत्यंत पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने बिहार में दलितों-पिछड़ों के लिए जम कर काम किया था। दूसरी तरफ, सत्तारूढ़ जेडीयू भी पिछले काफी वक्त से कर्पूरी जी को भारत रत्न देने की मांग कर रही है। इस दांव से भाजपा ने अपने पुराने सहयोगी रहे जेडीयू को भी साध लिया है। इसका असर भी दिखा कि राज्य के मुखिया नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने पर अपने पुराने ट्वीट को डिलीट कर नया पोस्ट एक्स पर डाला और उसमें पीएम नरेंद्र मोदी को धन्यवाद भी दिया। यानी दो दिन में भाजपा ने ऐसा दांव चला है कि कमंडल और मंडल दोनों सध गये। भाजपा ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर नीतीश कुमार को एक तरह से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया है। पिछले कुछ वक्त से ऐसी अटकलें हैं कि नीतीश एक बार फिर से पाला बदल सकते हैं। यानी महागठबंधन का साथ छोड़ सकते हैं। इधर, भाजपा ने एक ऐसा रास्ता भी बना दिया है कि नीतीश के लिए आसानी हो जाये।

    बिहार की राजनीति में अहम हैं कर्पूरी ठाकुर
    बिहार की सियासत में कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे किरदार हैं, जिनकी विरासत पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की राजद दावा करती रही हैं। कर्पूरी ठाकुर हज्जाम समाज से आते हैं, जो बिहार में दो फीसदी हैं। लेकिन कर्पूरी ठाकुर की बाहर में ओबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग के सबसे बड़े नेता के तौर पर पहचान है। खास बात यह है कि कर्पूरी ठाकुर से बिहार का ओबीसी वर्ग आज भी कनेक्ट करता है। बिहार सरकार द्वारा जारी किये गये जातिगत सर्वे में ओबीसी को कुल आबादी का करीब 36% बताया गया है। इसका मतलब बिहार में ओबीसी सबसे अधिक है और सभी दल इन्हें अपने पक्ष में करना चाहते हैं। चुनावी विश्लेषकों की मानें तो कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था, लेकिन इतने साल बाद भी वह बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। गौरतलब है कि बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की आबादी करीब 52 प्रतिशत है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी पकड़ बनाने के मकसद से कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं।
    समाजहित में काम करनेवालों को तरह-तरह के सम्मान से नवाजा जाता है। भारत रत्न भी कइयों को मिला है। लेकिन कर्पूरी ठाकुर सचमुच में पिछड़े और अति पिछड़े में रत्न में थे। आज की चकाचौंध भरी राजनीति में क्या कोई कर्पूरी ठाकुर की तरह जी सकता है। रह सकता है। क्या आज इस बात की कल्पना भी की जा सकती है कि अपना पूरा जीवन राजनीति और समाजहित में खपा देनेवाले के पास रहने को घर नहीं हो। पहनने को कपड़े नहीं हो, भोजन के नाम पर पकवान जिनके लिए सपना हो। जिसने अपने किसी भी परिचित के लिए पैरवी नहीं की हो। जिस व्यक्ति के पिता को सामंत इसलिए पीटे कि वह बीमारी की हालत में भी उसके घर जाकर उसका बाल नहीं बनाये और उसका वह बेटा उस सामंत को इसलिए छुड़वा दे कि ऐसा असंख्य लोगों के साथ हो रहा है। सचमुच में कर्पूरी ठाकुर आदर्श, इमानदारी, शुचिता, कर्तव्यनिष्ठा और समाजहित में सब कुछ न्योछावर कर देनेवाले की प्रतिमूर्ति हैं। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आज शायद ही कोई ऐसा संवेदनशील व्यक्ति होगा, जिसको कर्पूरी ठाकुर की जीवनशैली झकझोरती नहीं होगी। उन्हें शत-शत नमन!

    कर्पूरी ठाकुर ने ऐसे ही सबके दिलों में जगह नहीं बनायी थी
    बहनोई नौकरी के लिए आये तो मिले 50 रुपये
    कर्पूरी ठाकुर से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि वह जब राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गये और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुन कर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गये। उसके बाद अपनी जेब से 50 रुपये निकाल कर उन्हें दिये और कहा, जाइये, उस्तरा आदि खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।

    देवीलाल ने कहा था पांच-दस हजार रुपये मांगें तो दे देना
    उत्तरप्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में कर्पूरी ठाकुर की सादगी का बेहतरीन वर्णन किया है। बहुगुणा लिखते हैं, कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था कि कर्पूरी जी कभी आपसे पांच-दस हजार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा कि भई कर्पूरी जी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता, नहीं साहब, वह तो कुछ मांगते ही नहीं।

    विधायक ने कहा, जमीन ले लीजिए नहीं तो आपका बाल-बच्चा कहां रहेगा, कर्पूरी ने कहा- गांव में
    70 के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी। खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने उनसे कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए। उन्होंने साफ मना कर दिया। तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए, नहीं तो आप नहीं रहियेगा तो आपका बाल-बच्चा कहां रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेगा।

    शादी में राज्यपाल को नहीं बुलाया, कहा मेरी हैसियत नहीं
    कर्पूरी ठाकुर की बेटी की शादी थी। तब उस वक्त उन्होंने अपने किसी कैबिनेट सहयोगी और राज्यपाल को निमंत्रण नहीं भेजा था। शादी होने के चार-पांच दिन बाद जब राज्यपाल को पता चला तो उन्होंने उनसे पूछा कि आपने हमें निमंत्रण क्यों नहीं दिया, तब कर्पूरी ठाकुर ने उनसे कहा कि मेरी हैसियत नहीं थी कि मैं अपने घर पर राज्यपाल को बुला सकूं। आपको बैठाने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है।

    जब फटी हुई कमीज पहन कर पहुंचे एक कार्यक्रम में
    जब कर्पूरी ठाकुर एक कार्यक्रम में पहुंचे थे, तब लोगों ने देखा कि उनकी कमीज फटी थी। तब चंद्रशेखर और अन्य नेताओं ने चंदा कर उन्हें पैसे दिये। उस पैसों को कर्पूरी ठाकुर ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन उसे मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करा दिये।

    बेटे को कहा, कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना
    कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने और उसके बाद मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। बेटे रामनाथ बताते हैं, पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं कि तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।

    जब मुख्यमंत्री के पिता को पीटने आ गये लोग
    कर्पूरी के मुख्यमंत्री रहते हुए ही उनके क्षेत्र के कुछ जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिए बुलाया। जब वह बीमार होने के चलते नहीं पहुंचे तो जमींदार ने अपने लोगों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। इसकी सूचना जिला प्रशासन को हो गयी और तुरंत जिला प्रशासन कर्पूरी जी के घर पहुंच गया और उधर मारने वाले भी थे। लठैतों को बंदी बना लिया गया, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने सभी लठैतों को जिला प्रशासन से बिना शर्त छोड़ने का आग्रह किया। इस पर अधिकारियों ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताड़ित करने का कार्य किया, इन्हें हम किसी शर्त पर नहीं छोड़ सकते। कर्पूरी ठाकुर ने कहा, पता नहीं कितने असहाय, लाचार और शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोड़ते हैं, काम करते हैं। कहां तक और किस-किसको बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के मां-बाप हैं। इनको इसलिए दंडित किया जा रहा है कि इन्होंने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है, सामान्य जनता को कौन बचायेगा। जाओ प्रदेश के कोने-कोने में शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और एक भी परिवार सामंतों के जुल्मों सितम का शिकार न होने पाये। उसके बाद लठैतों को कर्पूरी ठाकुर ने छुड़वा दिया।

    विधायक से थोड़ी देर के लिए जीप मांगी
    80 के दशक की बात है। बिहार विधानसभा की बैठक चल रही थी। कर्पूरी ठाकुर विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। उन्होंने एक नोट भिजवा कर अपने ही दल के एक विधायक से थोड़ी देर के लिए उनकी जीप मांगी। उन्हें लंच के लिए आवास जाना था। विधायक ने उसी नोट पर लिख दिया, मेरी जीप में तेल नहीं है। कर्पूरी दो बार मुख्यमंत्री रहे। कार क्यों नहीं खरीदते?

    कर्पूरी के घर की हालत देख रो पड़े थे उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवंती नंदन बहुगुणा
    एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे, क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती थी। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद अविभाजित उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गये थे। बहुगुणा कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोंपड़ी देख कर रो पड़े थे। कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया। न ही कोई जमीन खरीद सके।

    यूगोस्लाविया में कोट भेंट की गयी
    कर्पूरी जी 1952 में विधायक बन गये थे। एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उन्हें आॅस्ट्रिया जाना था। उनके पास कोट ही नहीं थी। एक दोस्त से मांगनी पड़ी। वहां से युगोस्लाविया भी गये, तो मार्शल टीटो ने देखा कि उनकी कोट फटी हुई है और उन्हें एक कोट भेंट की।
    जयप्रकाश नारायण की धर्मपत्नी के आग्रह पर पांच रुपया चंदा स्वीकार किया था
    उनके पुत्र सह राज्यसभा सदस्य रामनाथ ठाकुर बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण के दबाव पर ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने को तैयार हुए, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। कार्यकर्ताओं ने चंदा जुटाये। तब कर्पूरी जी ने तय किया कि चवन्नी-अठन्नी तथा दो रुपये से ज्यादा सहयोग नहीं लेना है। जयप्रकाश नारायण की धर्मपत्नी प्रभावती देवी के आग्रह पर उनसे पांच रुपया चंदा स्वीकार किया था। समाजवादी नेता दुर्गा प्रसाद सिंह बताते हैं कि हर बार वह चंदे के पैसे से ही चुनाव लड़ते थे। एक-एक पैसे का हिसाब खुद रखते थे। एक पाई भी निजी काम में नहीं लगाया। उनका यह स्व-अनुशासन, नैतिक आग्रह और प्रतिबद्धता 17 फरवरी, 1988 को उनके विदा होने तक उनके साथ रही।

    इतना पैसा लगा कर आने की जरूरत क्या थी, मैं खुद आपके इलाके में आनेवाला था
    उस दौरान कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री के तौर पर लोगों की समस्या को लेकर अधिकारियों को तत्काल फोन करते। समस्या के निवारण का निर्देश देते। उसके साथ ही कई अधिकारियों को पत्र भी लिखते। इतना ही नहीं, दूर से आनेवाले लोगों से एक निवेदन भी करते। जननायक उनसे कहते कि इतना पैसा लगा कर आने की जरूरत क्या थी? मैं खुद आपके इलाके में आनेवाला था। कर्पूरी ठाकुर गरीबों को नम्र भाव से ये बात समझाते। उन्हीं में से एक कहते हैं कि एक रात जब उनसे मिल कर चलने लगा, तो उन्होंने कहा कि छह बजे आ जाइयेगा। सुबह कहीं चलना है। उन्होंने लिखा है कि वे अक्सर मुझे अपने साथ लेकर जाया करते थे।

    कर्पूरी ठाकुर के शागिर्द हैं लालू-नीतीश
    बिहार में समाजवाद की राजनीति कर रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं। जनता पार्टी के दौर में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़ कर सियासत के गुर सीखे। ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आये, तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हक में कई काम किये।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleराहुल गांधी की न्याय यात्रा, झारखंड में हर 100 किलोमीटर पर ब्रेक
    Next Article लोकसभा-विधानसभा में सीटों का रिकॉर्ड टूटेगा: बाबूलाल
    admin

      Related Posts

      पाकिस्तान-चीन-बांग्लादेश मिल कर बना रहे आतंक की नयी फैक्ट्री

      May 20, 2025

      भारत को अब आतंकी घुसपैठ से अलर्ट रहने की जरूरत

      May 19, 2025

      भारत ने मात्र डिफेंसिव मोड में ही चीनी हथियारों की पोल खोल दी, फुस्स हुए सारे हथियार

      May 18, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • शराब घोटाले में तत्कालीन उत्पाद सचिव विनय चौबे व संयुक्त आयुक्त गजेंद्र सिंह अरेस्ट
      • आदिवासी विरोधी सरकार की टीएससी बैठक में जाने का कोई औचित्य नहीं : बाबूलाल मरांडी
      • जेपीएससी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर भर्ती के लिए इंटरव्यू 22 से
      • नये खेल प्रशिक्षकों की बहाली प्रक्रिया जल्द, प्राथमिक सूची तैयार
      • यूपीए सरकार ने 2014 में सरना धर्म कोड को किया था खारिज : प्रतुल शाह देव
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version