विशेष
-ममता और मान के अलग होने से विपक्षी एकता की नींव हिली
-नीतीश भी कर सकते हैं खेला, अखिलेश भी छाछ फूंक कर ही पीयेंगे, उद्धव-एनसीपी दिखा सकते हैं रंग
-अब भारत जोड़ो न्याय यात्रा के साथ-साथ, इंडी जोड़ने पर आत्ममंथन करना चाहिए कांग्रेस को
लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए पूरे तामझाम से बना 38 दलों का इंडी अलायंस मैदान में उतरने से पहले ही फुस्स होता दिख रहा है। गठबंधन के दो प्रमुख घटक, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अकेले अलग-अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की सभी 42 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है, तो पंजाब के सीएम भगवंत मान ने कहा है राज्य की 13 सीटों पर पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। इन दोनों नेताओं के एलान के बाद राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि इंडी अलायंस ने राम मंदिर के उद्घाटन का बहिष्कार करने का जो पाप किया है, यह सब उसका ही नतीजा है। दरअसल, कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडी अलायंस ने 22 जनवरी को अयोध्या में मंदिर के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया था। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो ममता और भगवंत मान के बाद अब अगली बारी अखिलेश यादव और उद्धव ठाकरे के अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की है, जो क्रमश: उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ तालमेल के मूड में नहीं दिख रहे हैं। इसके अलावा बिहार में भी कुछ खेल होने के संकेत मिल रहे हैं। ऐसे में अब तो यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस के युवराज को अपनी ताकत भारत जोड़ो न्याय यात्रा में लगाने की बजाय गठबंधन की मजबूती की तरफ लगानी चाहिए। हालांकि कांग्रेस की ओर से ममता के स्टैंड को स्पीड ब्रेकर बता कर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की गयी है, लेकिन इसका असर होता नहीं दिख रहा है। क्या है विपक्षी गठबंधन का भविष्य और आगे क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों का जो गठबंधन आकार ले रहा था, वह बनने से पहले ही टूटने लगा है। गठबंधन के खिलाड़ी मैदान में उतरने से पहले ही रिटायर्ड हर्ट हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इंडी गठबंधन को तगड़ा झटका दिया है। उन्होंने पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। ममता बनर्जी और कांग्रेस में बंगाल में सीटों को लेकर बात नहीं बन पा रही थी। कांग्रेस बंगाल में 10 से 12 सीटें मांग रही थी, वहीं ममता दो से ज्यादा सीटें देने पर राजी नहीं थीं। ममता के एलान के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का बयान आया है। उन्होंने कहा कि जब हम लंबे सफर पर चलते हैं, तो कभी राह में स्पीड ब्रेकर और लाल बत्ती आती है, लेकिन हम उसको पार करते हैं, लाल बत्ती हरी हो जाती है, सफर जारी रहता है। उधर पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने भी राज्य में अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर विपक्षी गठबंधन के ढांचे को करारी चोट पहुंचायी है।
ममता ने एक दिन पहले ही कांग्रेस को दी थी नसीहत
गौरतलब है कि बंगाल की सीएम ने एक दिन पहले ही कांग्रेस को नसीहत दी थी। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस लोकसभा की तीन सौ सीटों पर चुनाव लड़ सकती है, लेकिन उसे कुछ क्षेत्रों को पूरी तरह क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ देना चाहिए, पर कांग्रेस अपनी मनमानी पर अड़ी है। उन्होंने कहा कि कोई भी भाजपा का उतना सीधा मुकाबला नहीं करता, जितना वह करती हैं। उन्होंने साफ कहा था कि अगर गठबंधन की पार्टियां उनका साथ नहीं देतीं, तो टीएमसी सभी 42 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। ममता ने कहा कि गठबंधन की बैठक में वह जब भी शामिल होती हैं, तो माकपा विपक्षी एजेंडे को नियंत्रित करने का प्रयास करती है। यह उन्हें स्वीकार नहीं है। वह उनसे सहमत नहीं हो सकती, जिनसे उन्होंने 34 साल तक संघर्ष किया।
दिल्ली और पंजाब में पेंच हो गया ढीला
उधर दिल्ली और पंजाब को लेकर भी इंडिया गठबंधन में पेंच फंसा है। बात अब तक फाइनल नहीं हो पायी है। हालांकि चर्चा ऐसी है कि दिल्ली को लेकर दोनों में डील पक्की हो गयी है, लेकिन पंजाब में सीएम भगवंत मान ने साफ कर दिया है कि पार्टी राज्य में अकेले चुनाव लड़ेगी। दिल्ली को लेकर सीट शेयरिंग का दो फॉर्मूला सामने आया। एक फॉर्मूले के मुताबिक एक पार्टी चार और दूसरी पार्टी तीन सीटों पर लड़ेगी, जबकि दूसरे फॉर्मूले के मुताबिक एक पार्टी पांच और दूसरी पार्टी दो सीटों पर लड़ेगी। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि फैसला आलाकमान लेगा। पंजाब की बात करें तो यहां के कांग्रेस सांसदों का मानना है कि आप से गठबंधन का संगठन को फिलहाल नुकसान तो होगा, लेकिन 2024 के अहम चुनाव के लिहाज से गठजोड़ करने पर सीटें ज्यादा जीती जा सकेंगी। राज्य में आप और कांग्रेस एक दूसरे की प्रतिद्वंद्वी हैं। हालांकि दोनों पार्टियां लगातार इस बात पर जोर दे रही हैं कि वे पंजाब की सभी सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार उतारेंगी, क्योंकि दोनों ही पार्टियां पंजाब में अपना राजनीतिक दबदबा बढ़ाने के साथ ही इस उम्मीद में भी हैं कि चुनाव के परिणाम उनके पक्ष में होंगे। इसलिए सीएम मान ने अकेले लड़ने का एलान कर दिया है।
यूपी में भी अटकी बात, अखिलेश शायद अपना मुंह जलाने से बचना चाहेंगे
दिल्ली, पंजाब की तरह उत्तरप्रदेश में भी बात अटकी हुई है। सपा और कांग्रेस के नेता ये तो जरूर कहते हैं कि हम साथ में लड़ेंगे, लेकिन कितनी सीटों पर कौन लड़ेगा, ये नहीं बताते। हाल में कांग्रेस के साथ बैठक करने के बाद सपा के रामगोपाल यादव ने कहा था कि मंजिल दूर नहीं, दोनों मिल कर 80 सीटों पर लड़ेंगे। उन्होंने ये नहीं बताया कि सपा कितनी सीट पर लड़ेगी। कांग्रेस से सीटों को लेकर बात चल ही रही है कि सपा का रालोद के साथ सीटों पर समझौता हो गया। सपा ने रालोद को सात सीटें दी हैं। हालांकि बता दें कि रालोद इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। लेकिन जानकारों की मानें तो यूपी में भी इंडी गठबंधन को लेकर अभी भी असमंजस बना हुआ है। बीच-बीच में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ऐसा बयान दे देते हैं, जिसके बाद यह कयास लगने शुरू हो जाते हैं कि क्या अब उनका इंडिया गठबंधन से मोह भंग हो रहा है। अखिलेश यादव कई बार मंच से कह चुके हैं कि चुनाव में पीडीए का फार्मूला ही एनडीए को हरा सकता है। इस दौरान उन्होंने एक बार भी इंडी गठबंधन का जिक्र नहीं किया और न ही उसके बारे में कोई राय रखी, लेकिन यह जरूर साफ कर दिया कि वह पीडीए के जरिए ही भाजपा का मुकाबला करने की तैयारी कर रहे हैं। सपा अध्यक्ष की कांग्रेस से हाल ही में कई बार तल्खी भी देखी गयी। अखिलेश ने कांग्रेस पर जातीय जनगणना का मुद्दा हड़पने तक का आरोप लगा दिया था। उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना, ओबीसी और महिलाओं के मुद्दे को उन्होंने उठाया था, लेकिन कांग्रेस हमारे मुद्दों को अपना बना रही है। इधर इंडिया गठबंधन में बसपा सुप्रीमो मायावती के शामिल होने की भी बातें सामने आ रही थीं। खबरों की मानें तो कांग्रेस और बसपा के बीच इसे लेकर बात चल भी रही थी, लेकिन अखिलेश यादव नहीं चाहते कि बसपा इंडी गठबंधन का हिस्सा हो। सपा का मानना है कि बसपा के आने से उनकी सीटों पर दावेदारी कम हो जायेगी, वहीं कई सपा नेता ये भी मानते हैं कि बसपा अपना वोट दूसरे दलों के पक्ष में नहीं कर पाती। 2019 चुनाव में भी ऐसा ही देखने को मिला था, जब बसपा को तो गठबंधन का फायदा हुआ, लेकिन सपा की सीटें नहीं बढ़ पायी थीं। तो दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, अखिलेश शायद अपना मुह जलाने से बचना चाहेंगे।
क्या हो रहा है बिहार में, जिससे खेला होने का संकेत मिल रहा है
उधर बिहार में राजनीतिक सरगर्मी एक बार फिर से बढ़ गयी है। जदयू के फिर से एनडीए में जाने के कयास पिछले एक सप्ताह से बिहार की सियासत में लगाये जा रहे हैं। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सबसे करीबी अशोक चौधरी के साथ मंगलवार को अचानक राजभवन पहुंच गये और राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से लगभग 40 मिनट तक मुलाकात की। अब इसे लेकर चर्चा का बाजार और गर्म हो गया कि क्या बिहार में फिर लोकसभा चुनाव से पहले कोई बड़ा उलटफेर होने वाला है। इस बात पर चर्चा उस वक्त और तेज हो गयी, जब पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने फिर से सियासत में बदलाव के संकेत दिये। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा खेला होबे। पूरा ट्वीट इस प्रकार है। बंगला में कहते हैं, खेला होबे, मगही में कहते हैं, खेला होकतो, भोजपुरी में कहते हैं, खेला होखी, बाकी तो आप खुद ही समझदार हैं। पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के चौंकाने वाले दावे से सूबे का सियासी पारा चढ़ गया है। हालांकि, मांझी के इस ट्वीट में सच्चाई भी दिख रही। ऐसा इसलिए, क्योंकि गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव में बातचीत नहीं हुई। जानकारी के मुताबिक, 20 मिनट चली कैबिनेट मीटिंग में दोनों नेताओं में कोई सीधा संवाद नहीं हुआ। एक दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परिवारवाद पर प्रहार किया। कर्पूरी ठाकुर की जन्मशती पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि अपने परिवार को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाने के पीछे की वजह उनका बताया रास्ता है। नीतीश कुमार की इस बात का जवाब विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने नहीं दिया। लेकिन जवाब तो आया है। वह भी सत्ता में उनके साथी लालू प्रसाद यादव की लाडली रोहिणी के बैक टू बैक ट्वीट से। रोहिणी ने लगातार तीन ट्वीट किये, जिसमें चाचा नीतीश कुमार का नाम लिये बिना ही जम कर अटैक किया। रोहिणी आचार्य ने एक्स पर पहले पोस्ट में लिखा कि अक्सर कुछ लोग नहीं देख पाते हैं अपनी कमियां, लेकिन किसी दूसरे पे कीचड़ उछालने को करते रहते हैं बदतमीजियां। अगली पोस्ट में उन्होंने कहा, खीज जताये क्या होगा, जब हुआ न कोई अपना योग्य। विधि का विधान कौन टाले, जब खुद की नीयत में ही हो खोट। वहीं तीसरे ट्वीट में रोहिणी आचार्य ने नीतीश कुमार के समाजवादी पुरोधा होने के दावे पर ही सवाल खड़े कर दिये। रोहिणी आचार्य ने कहा कि समाजवादी पुरोधा होने का करता वही दावा है, हवाओं की तरह बदलती जिनकी विचारधारा है। रोहिणी के इस कमेंट से साफ हो गया कि बिहार महागठबंधन में फिर गेम पलटने जा रहा है। वैसे भी नीतीश कुमार ने जिस तरह से कर्पूरी जयंती पर परिवारवाद के मुद्दे को लेकर कमेंट किया, तो उसे लेकर सूबे में सियासी पारा चढ़ गया है।
नीतीश की नजर भी ज्यादा सीटों पर
ममता के अलावा नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप की भी नजर ज्यादा से ज्यादा सीटों पर है। नीतीश की पार्टी जेडीयू ने हाल ही में कहा था कि हम 16 से कम सीटों पर समझौता नहीं करेंगे। जेडीयू ने कहा कि जीती हुई सीटों पर हम कोई समझौता नहीं करेंगे। बता दें कि बिहार में जेडीयू की 16 सीटें हैं। पार्टी ने कहा कि हम बड़ी पार्टी हैं और बड़े भाई हैं। विधानसभा में भी हमारी बड़ी संख्या है। पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस को एक, आरजेडी को शून्य, जेडीयू को 16 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि बीजेपी 16 और लोजपा सात सीटों पर विजयी हुई थी।
मंदिर के बहिष्कार का असर
जब विपक्ष का गठबंधन बना था, तो सबको यह उम्मीद थी कि यह गठबंधन जरूर अच्छी टक्कर देगा। लेकिन कुछ मीटिंग के बाद ही घटक दलों के नेता अपना अपना राग अलापने लगे। इधर भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को इतना भव्य बना दिया कि विपक्ष का प्रत्येक नेता कुछ भी बोलने से बच रहा है। और यह सच भी है जब देश का बहुसंख्यक समुदाय रामजन्म भूमि का इतना बड़ा उत्सव मना रहा है, तो कोई भी पार्टी बहुसंख्यक समाज के विपरीत जाने का दुस्साहस नहीं कर सकती। चूंकि विपक्षी दलों ने इसका बहिष्कार किया था, इसलिए बहुसंख्यक समाज में वह राम विरोधी हो गये हैं। अयोध्या में उमड़ रही भीड़ बता रही है कि विपक्ष की हालत चुनाव में क्या होनेवाली है।