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    Home»Jharkhand Top News»झारखंड पार्टी के चुनावी समर में उतरने से बदल सकता है खूंटी का राजनीतिक समीकरण
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    झारखंड पार्टी के चुनावी समर में उतरने से बदल सकता है खूंटी का राजनीतिक समीकरण

    SUNIL SINGHBy SUNIL SINGHApril 29, 2024No Comments3 Mins Read
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    खूंटी । लोकसभा चुनाव में सबसे हॉट सीट बन चुकी खूंटी संसदीय सीट में इस बार भी दिलचस्प मुकाबला देखने को मिला है। अब तक हुए सभी लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस अथवा भाजपा और झारखंड पार्टी के बीच ही मुकाबला होता आया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता कड़िया मुंडा का सीधा मुकाबला झारखंड पार्टी के एनोस एक्का से था, जिसमें कड़िया मुंडा ने बाजी मार ली थी।

    कांग्रेस के वर्तमान उम्मीदवार कालीचरण मुंडा उस समय तीसरे स्थान पर थे। 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा के अर्जुन मुंडा की सीधी टक्कर कांग्रेस के कालीचरण मुंडा से ही था, जिसमें 1445 वोटों के अंतर से अर्जुन मुंडा चुनाव जीत गये थे। इस बार भी लोगों को उम्मीद थी कि इन्हीं दोनों पुराने राजनीतिक योद्धाओं के बीच ही चुनावी दंगल होगा, पर झारखंड पार्टी की अपर्णा हंस और पूर्व विधायक निर्दलीय उम्मीदवार बसंत कुमार लोंगा की चुनाव मैदान में इंट्री से चुनावी समीकरण बदलने की संभावना राजनीति के जानकार जता रहे हैं।

    जानकारों का मानना है कि झारखंड पार्टी का अब भी खूंटी संसदीय क्षेत्र खासकर सिमडेगा, कोलेबिरा और तोरपा में अच्छा जनाधार है। अपर्णा हंस खूंटी नगर पंचायत की वार्ड पार्षद हैं और काफी दिनों से राजनीति में सक्रिय हैं। उनके पति सिरिल हंस भी खूंटी के रानीतिक क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम है। अपर्णा हंस ऑ चर्चेज कमेटी की सचिव भी रह चुकी हैं। बसंत लोंगा भी कोलेबिरा के पूर्व विधायक रह चुके हैं। अब देखना है कि लोंगा दूसरे दलों को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि झारखंड पार्टी के मैदान में आने से कांग्रेस और भाजपा दोनों के वोट प्रभावित हो सकते हैं।

    ईसाई मतों के ध्रुवीकरण का लाभ मिल सकता है भाजपा को

    राजनीति के जानकारों का मानना है कि आमतौर पर ईसाई समुदाय खासकर आरसी चर्च से जुड़े ईसाई मतदाता कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते हैं, जबकि जीईएल चर्च को झारखंड पार्टी का समर्थक माना जाता है। बताया जाता है कि ईसाई मतों के विखराव का लाभ भाजपा को मिल सकता है।

    भाजपा उम्मीदवार अर्जुन मुंडा के समक्ष भी लेाकसभा चुनाव के दौरान चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सरना कोड, लैंड बैंक, कुद समुदायों को जनजाति का दर्जा देना, कुर्मी समुदाय को इसका लाभ नहीं देना जैसे कई सवालों से भाजपा प्रत्याशी को रू ब रू होना पड़ सकता है।

    भाजपा, कांग्रेस और झामुमो का दो-दो विधानसभा सीटों पर है कब्जा

    पांच जिलों खूंटी, रांची, सिमडेगा, गुमला और सरायकेला-खरसावां की छह विधाानसभा सीटों में भाजपा, कांग्रेस और झामुमो का दो-दो सीटों पर कब्जा है। खूंटी और तोरपा में भाजपा के विधायक हैं, तो सिमडेगा और कोलेबिरा में कांगेस के। वहीं खरसावां और तमाड़ विधानसभा सीट झामुमो के कब्जे में है। ऐसी स्थिति में चुनावी राजनीति किस करवट लेती है, यह कहना मुश्किल है, पर इतना तो तय है कि खूंटी में इस बार भी उम्मीदवारों के बीच कांटे का संघर्ष देखने को मिल सकता है।

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