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    Home»विशेष»झारखंड की चार संसदीय सीटों पर प्रतिशत के हिसाब से कम मतदान, लेकिन 2019 पड़े कुल वोटों से इस बार अधिक हुआ है मतदान
    विशेष

    झारखंड की चार संसदीय सीटों पर प्रतिशत के हिसाब से कम मतदान, लेकिन 2019 पड़े कुल वोटों से इस बार अधिक हुआ है मतदान

    adminBy adminMay 26, 2024No Comments8 Mins Read
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    विशेष
    गिरिडीह, धनबाद, जमशेदपुर और रांची के प्रत्याशियों की किस्मत इवीएम में कैद

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    भारतीय संसद के निचले सदन, यानी लोकसभा के लिए चल रहे 18वें आम चुनाव के छठे चरण का मतदान शनिवार को संपन्न हो गया। इस चरण में आठ राज्यों की 58 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हुई। इनमें झारखंड की चार सीटें भी शामिल हैं। झारखंड में यह तीसरे चरण का मतदान था। इस चरण में 889 प्रत्याशियों की किस्मत को देश के करीब 11 करोड़ मतदाताओं ने इवीएम में बंद कर दिया है। देश भर में चल रही गर्म हवाओं के थपेड़ों के बीच छठे चरण में भी 2019 की तुलना में कम मतदान हुआ। इतना ही नहीं, पिछले पांच चरणों के मुकाबले भी इस बार कम वोटिंग हुई। छठे चरण में झारखंड समेत किसी भी राज्य में पिछली बार के मुकाबले अधिक मतदान नहीं हुआ है। हर बार की तरह इस बार भी सबसे अधिक मतदान पश्चिम बंगाल में हुआ। उसके बाद झारखंड और ओड़िशा में वोटिंग हुई, लेकिन सभी राज्यों में भी पिछली बार के मुकाबले कम मतदान हुआ है। झारखंड की जिन चार सीटों पर मतदान हुआ, उनमें सबसे अधिक गिरिडीह में और सबसे कम रांची में वोट डाले गये। ये सभी सीटें सामान्य हैं और यहां 93 प्रत्याशी मैदान में थे। 2019 में इनमें तीन सीटें भाजपा ने और गिरिडीह की सीट आजसू ने जीती थी।

    राजनीतिक दलों का कहना है कि कम मतदान का मुख्य कारण मौसम है, लेकिन वोटिंग ट्रेंड के जानकार इसका अलग-अलग मतलब निकाल रहे हैं। उनका कहना है कि प्रतिशत के हिसाब से भले ही आपको आंकड़ा कम दिखता है, लेकिन संख्या के हिसाब से देखेेंगे, तो पिछली बार की तुलना में इस बार ज्यादा ही वोट पड़ा है। वह इसे इस प्रकार समझाते हैं: हर पांच साल में लोकसभा क्षेत्र में सामान्य तौर पर आठ से दस फीसदी नये वोटर जुड़ते हैं। इन नये वोटरों में अधिकांश छात्र हैं, जो हायर एजुकेशन के लिए बाहर चले जाते हैं। उनके वोट नहीं देने के कारण ही मत प्रतिशत कम दिखता है, वैसे संख्या के हिसाब से हर पांच साल में मत बढ़ रहे हैं। इसमें टेंशन जैसी कोई बात नहीं हैद्ध छठे चरण में झारखंड में कहां कितना हुआ मतदान और क्या है कम मतदान का मतलब, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    भारत की 18वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया अंतिम दौर में प्रवेश कर गयी है। कुल सात चरणों में होनेवाले इस चुनाव का छठा चरण शनिवार को संपन्न हो गया, जिसमें आठ राज्यों की 58 सीटों पर वोट डाले गये। मतदान के आरंभिक आंकड़ों से पता चलता है कि इन राज्यों में इस बार भी 2019 की तुलना में कम मतदान हुआ। इतना ही नहीं, पिछले पांच चरणों के चुनाव के मुकाबले इस बार सबसे कम मतदान हुआ है। चौथे चरण में झारखंड की चार सीटों, रांची, जमशेदपुर, धनबाद और गिरिडीह में भी वोट डाले गये। इन सीटों पर कुल 93 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनकी राजनीतिक किस्मत का फैसला 82.16 लाख वोटरों ने कर दिया। इन वोटरों के लिए 8963 मतदान केंद्र बनाये गये थे।

    लोकसभा चुनाव के मतदान के छठे चरण के बाद जारी वोटिंग के आरंभिक आंकड़ों के मुताबिक करीब 11.14 करोड़ वोटरों में से 57.70 फीसदी ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया और 889 उम्मीदवारों की किस्मत को इवीएम में बंद कर दिया है। इस चरण के साथ ही देश भर में कुल 487 सीटों के मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके हैं। पिछले पांच चरणों की तरह इस चरण में भी कम मतदान चर्चा का विषय बन गया है।

    लगातार कम हो रहा है मतदान
    छठे चरण में कुल 57.70 प्रतिशत मतदान हुआ है। यह आरंभिक आंकड़ा है और चुनाव आयोग ने कहा है कि इसमें बदलाव हो सकता है। इस बार लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग में 66.14 प्रतिशत वोट डाले गये थे। दूसरे चरण में 66.71 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था, जबकि तीसरे चरण में 65.68 प्रतिशत मतदान हुआ। चौथे और पांचवें चरण में क्रमश: 69.16 और 62.20 प्रतिशत मतदान हुआ। इसलिए जब तक अंतिम आंकड़े नहीं आ जाते, यही कहा जा सकता है कि इस बार पिछले पांच चरणों के मुकाबले सबसे कम मतदान हुआ। जहां तक 2019 का सवाल है, तो 2019 में इन संसदीय सीटों पर 64.22 प्रतिशत मतदान हुआ था।
    इस बार पहले चरण के चुनाव में 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की 102 सीटों के लिए वोट डाले गये थे। 2019 में इन 102 सीटों 69.96 फीसदी वोट पड़े थे। दूसरे चरण में 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर मतदान हुआ था। पिछले चुनाव में इन 88 सीटों पर कुल 70.09 फीसदी मतदान हुआ था। इसी तरह 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 93 सीटों पर तीसरे चरण का मतदान हुआ था। इन 93 सीटों पर 2019 में कुल 66.89 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। चौथे चरण में 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 96 सीटों पर 2019 में कुल 69.12 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। 20 मई को पांचवें चरण में आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 49 सीटों पर मतदान कराया गया। इस चरण में कुल 62.20 फीसदी मतदान हुआ।

    झारखंड में कम हुआ मतदान
    20 मई को झारखंड की चार संसदीय सीटों पर मतदान हुआ। आरंभिक आंकड़े बता रहे हैं कि इन चार सीटों पर कुल 61.41 प्रतिशत मतदान हुआ है। यह शनिवार को हुए राज्यवार मतदान में दूसरा है, जबकि 2019 के मुकाबले इस बार करीब तीन फीसदी कम मतदान हुआ है। झारखंड में सबसे अधिक 64.75 फीसदी मतदान गिरिडीह में हुआ, जबकि जमशेदपुर में 64.30 प्रतिशत, धनबाद में 58.90 और रांची में 58.73 प्रतिशत वोट डाले गये हैं। 2019 में गिरिडीह में 67.12 प्रतिशत, जमशेदपुर में 67.19 प्रतिशत, धनबाद में 60.47 प्रतिशत और रांची में 64.49 प्रतिशत मतदान हुआ था। छठे चरण में सबसे अधिक मतदान के मामले में पश्चिम बंगाल पहले नंबर है, जहां 77.99 प्रतिशत वोट डाले गये हैं। दूसरे स्थान पर झारखंड है, जहां के 74.41 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले। तीसरे स्थान पर 59.60 प्रतिशत मतदान के साथ ओड़िशा है।

    क्या है कम मतदान का कारण
    चुनाव प्रक्रिया और वोटिंग पैटर्न पर नजर रखनेवालों की मानें, तो छठे चरण में कम मतदान का प्रमुख कारण मौसम ही है। देश भर में पड़ रही प्रचंड गर्मी के कारण मतदाताओं का उत्साह कम है। कम मतदान को किसी निश्चित ट्रेंड से जोड़ना सही नहीं है। लेकिन यह बात भी सही है कि राजनीति में भविष्यवाणी करना वैसे बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि मतदाताओं के मूड को समझना आसान नहीं होता है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि कम वोटिंग प्रतिशत को आम तौर पर सत्ता पक्ष के विरुद्ध देखा जाता है। हालांकि कुछ का कहना है कि विपक्ष के कमजोर होने के कारण भी मतदान का प्रतिशत घटता है। वहीं कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि प्रतिशत में भले ही आप कम मतदान मान लें, लेकिन संख्या पर गौर करें तो यह मतदान पिछली बार से कम नहीं हुआ है। वह इसको इस तरह से समझाते हैं। उनका कहना है कि हर पांच साल पर लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या में पांच से सात प्रतिशत का इजाफा होता है। कहीं-कहीं यह संख्या दस प्रतिशत तक जाती है। बढ़े हुÞए मतदाताओं के हिसाब से अगर देखा जाये, तो प्रतिशत में यह कम दिखता है, लेकिन पिछली बार कुल जितने मत पड़े थे, उससे इस बार पड़े कुल मतों की संख्या कम नहीं है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि नये मतदाताओं में अधिकांश शिक्षा से जुड़े होते हैं। बड़ी संख्या में युवा हायर एजुकेशन के लिए बाहर चले जाते हैं। कोई भी ऐसा राज्य नहीं है, जहां के पांच से सात हजार तक युवा हायर एजुकेशन के लिए बाहर नहीं जाते हों। वोट के समय उनकी ही अनुपस्थिति ज्यादा होता है।

    राजनीतिक दलों की टेंशन बढ़ी
    मतदान में लगातार गिरावट देश में चिंता का विषय बनी है, तो यह स्वाभाविक है। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो औसत मतदान में गिरावट नहीं है। राज्यों और राज्यों के अंदर संसदीय क्षेत्रों में भी मतदान प्रतिशत कहीं ठीक-ठाक है, तो कहीं गिरा है। निश्चित रूप से मतदान की इन प्रवृत्तियों का आकलन कठिन बना दिया है। अभी तक 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान उच्चतम स्तर पर पहुंचा था। वर्तमान मतदान को देखते हुए अब कहा जा सकता है कि इस बार मतदान में 2019 का रिकॉर्ड नहीं टूटेगा। यह स्वाभाविक है कि जब एक बार कोई भी प्रवृत्ति ऊंचाई छूती है, तो उसके बाद उसका ठहराव आता है। जहां तक झारखंड की चार सीटों की बात है तो यहां यह साफ हो गया है कि प्रचार अभियान में विपक्षी उम्मीदवार पिछड़ रहे हैं। इसका कितना असर पड़ेगा, यह 4 जून को ही पता चलेगा।

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