-झामुमो की प्रेस वार्ता पर भाजपा का पलटवार
-सीता सोरेन के लिए हमदर्दी का सिर्फ नाटक, असली हमदर्दी होती तो दुर्गा सोरेन की संदेहास्पद मौत की उच्च स्तरीय जांच होती : प्रतुल शाहदेव
-लोकसभा चुनाव के परिणाम से सत्ताधारी गठबंधन बदहवास, भाजपा गठबंधन 51 विधानसभा सीटों पर आगे था, जबकि सत्ताधारी गठबंधन 29 सीटों पर सिमटा
झामुमो कांग्रेस की समीक्षा बैठकों को भूल गया झामुमो, जिसमें दिनदहाड़े गोलियां चला करती थीं
रांची। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की प्रेस वार्ता पर पलटवार करते हुए कहा कि आज ये लोग सीता सोरेन के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। प्रतुल शाहदेव ने कहा कि जिस समय सीता सोरेन ने सोरेन परिवार के ऊपर उनकी और उनकी बेटियों की उपेक्षा का आरोप लगाया था, तो झामुमो चुप रहा। सीता सोरेन ने अपने आंदोलनकारी पति स्व दुर्गा सोरेन की मौत को संदेहास्पद बताते हुए इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा को सांप सूंघ गया था। आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रतुल ने कहा कि जब सत्ताधारी गठबंधन के प्रथम परिवार के भीतर मां समान बड़ी बहू की अपेक्षा की गयी हो, तो इनसे आम लोगों के लिए न्याय की उम्मीद की बात सोचना भी बेमानी है। वैसे अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा आरोपों पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करता हैं तो उसे अपने ही गठबंधन के विधायक लोबिन हेंब्रम, चमरा लिंडा, अंबा प्रसाद, इरफान अंसारी, दीपिका पांडे सिंह के द्वारा अलग-अलग समय पर सरकार पर लगाये गये गंभीर आरोपों का भी प्रेस कांफ्रेंस कर जवाब देना चाहिए।
प्रतुल ने कहा कि लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद सत्ताधारी गठबंधन बदहवास हो गया है। जिस समय 2019 में इन लोगों ने चुनाव जीता था, तब इनके पास 48 विधायक थे एवं तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन था। इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन 50 सीटों पर आगे रहा, जबकि इंडी गठबंधन सिर्फ 29 सीटों पर सिमट गया। इन्हें पता है कि अगले चुनाव में इनका सुपड़ा साफ होनेवाला है। इसलिए ये अनर्गल बयानबाजी पर उतर आये हैं।
प्रतुल ने कहा कि भाजपा की समीक्षा बैठक पूरे प्रदेश में चल रही है। अधिकांश जगहों पर कार्यकर्ता सुचारू रूप से फीडबैक दे रहे हैं। सिर्फ देवघर में कुछ बाहरी तत्वों के द्वारा हंगामा करने की सूचना आयी थी। यह पूरा मुद्दा प्रदेश नेतृत्व के संज्ञान में है।
प्रतुल ने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा को जरा अपने सहयोगी दल कांग्रेस का झारखंड में भी ट्रैक रिकॉर्ड देख लेना चाहिए। 21 जून, 2013 को कांग्रेस भवन, रांची में दो गुटों के बीच में वर्चस्व की लड़ाई पर दिनदहाड़े दर्जनों राउंड गोलियां चली थीं और पुलिस ने कई लोगों को हिरासत में ले लिया था। 1 जुलाई, 2019 को लोकसभा की हार की समीक्षा बैठक के दौरान तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार को कांग्रेस कार्यालय में घुसने तक नहीं दिया गया और पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा था। कांग्रेस आॅफिस पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था। उस समय भी कई लोग हिरासत में लिये गये थे। प्रतुल ने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने ही गठबंधन के तीन विधायकों के ऊपर मुकदमे करा कर कोलकाता में उनकी गिरफ्तारी भी करवायी थी। लंबे समय तक उनको जेल में यातना भी दिलवायी थी। प्रतुल ने कहा कि जाहिर तौर पर भ्रष्टाचार, वादाखिलाफी, बेरोजगारी, महिला उत्पीड़न आदि के मामलों में चौतरफा घिरा झारखंड मुक्ति मोर्चा ध्यान भटकाने के लिए नया नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रहा है।