विशेष
दिखने लगी हैं विक्टिम कार्ड से लेकर दूसरी सियासी चालें भी
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड में आसन्न विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक माहौल अचानक बेहद गर्म हो गया है। हर तरफ से सियासी मोहरे तैनात किये जाने लगे हैं, राजनीतिक चालें सजायी जाने लगी हैं और नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो गयी है। सत्तारूढ़ गठबंधन, यानी झामुमो-कांग्रेस-राजद और विपक्षी गठबंधन, यानी भाजपा और आजसू के बीच जम कर रस्साकशी हो रही है, बयानों के तीर चल रहे हैं, आरोप-प्रत्यारोप से लेकर बात अब ‘डरी हुई सरकार’ और ‘गिद्ध’ से लेकर ‘परजीवी’ और चील कौवों तक पहुंच गयी है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि झारखंड में अब चुनावी मौसम आ गया है। उधर नेताओं के पाला बदलने का दौर भी शुरू हो गया है। इस चुनावी आपाधापी में सबसे खास और दुखद बात यह है कि कोई भी दल या नेता झारखंड की बात नहीं कर रहा है। झामुमो की तरफ से भाजपा और आजसू पर हमले किये जा रहे हैं, तो भाजपा के निशाने पर झामुमो के साथ कांग्रेस भी है, जबकि आजसू ने झामुमो पर निशाना लगा रखा है। बयानों और सियासी चालों की इस गहमा-गहमी के बीच झारखंड की आम जनता को यह समझ में नहीं आ रहा है कि झारखंड का राजनीतिक विमर्श किस तरफ जा रहा है और इस विमर्श में ‘झारखंड’ कहां खड़ा है।
कहा जाता है कि राजनीति का अंतिम उद्देश्य देश-राज्य-समाज का विकास और कल्याण होता है, लेकिन झारखंड का वर्तमान राजनीतिक माहौल तो इससे पूरी तरह अलग होता दिखाई दे रहा है। एक आम झारखंडी को यही बात खल रही है। क्या है झारखंड का वर्तमान राजनीतिक माहौल, किस तरह की कड़वाहट देखने को मिल रही है और इसका क्या असर हो सकता है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
कभी ‘राजनीति की प्रयोगशाला’ कहे जानेवाले झारखंड का राजनीतिक माहौल इन दिनों अचानक से गर्म हो गया है। आसन्न विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वैसे तो राजनीतिक माहौल का गर्म होना आश्चर्य का विषय नहीं है, लेकिन इस बार मामला जरा हट कर है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह पहली बार है, जब झामुमो-कांग्रेस के शासन में चुनाव होगा और भाजपा विपक्ष में होगी। इसलिए कहा जा रहा है कि झारखंड में इस बार का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होनेवाला है, क्योंकि 2019 के मुकाबले परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। इस बार एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन के बीच मुकाबला होना है। दलों के लिहाज से घोषित तौर पर एनडीए में भाजपा, आजसू, और अभी तक अघोषित तौर पर जदयू और एनसीपी (अजित पवार गुट) है, तो इंडिया गठबंधन में झामुमो, कांग्रेस, राजद के अलावा भाकपा माले है। इस चुनाव के दिलचस्प होने की एक वजह यह भी है कि एक तरफ जहां इंडिया गठबंधन सत्ता में अपनी वापसी के लिए पूरा जोर लगा रहा है, तो एनडीए गठबंधन झारखंड की सत्ता दोबारा हासिल करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है। इस मकसद में कामयाबी के लिए दोनों तरफ से मोहरे सजाये जा रहे हैं, सियासी चालें चली जा रही हैं और बयानों के तीर भी चलाये जाने लगे हैं।
आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो खैर पहले ही शुरू हो चुका है। हालांकि अब तक न तो विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई है और न ही सीट शेयरिंग का फार्मूला तय हुआ है।
क्या है राजनीतिक माहौल
इस बार झारखंड की राजनीति का एक कोण सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम चंपाई सोरेन भी हैं। दोनों नेता खुल कर विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं। दोनों नेता अभी दो महीने पहले एक-दूसरे के पर्याय थे, लेकिन अब परस्पर विरोधी ध्रुवों पर खड़े हैं। आज चंपाई सोरेन भाजपा का दामन थाम चुके हैं। उन्होंने भगवा धारण करते ही झामुमो नेतृत्व पर उन्हें अपमानित करने का आरोप लगा कर पार्टी छोड़ दी। इस क्रम में उन्होंने यह भी कह दिया कि अगर झारखंड को बांग्लादेशी घुसपैठियों से बचाना है, तो भाजपा को जीताना होगा। यानी एक तरह से वह बांग्लादेशी घुसपैठ के लिए सत्ताधारी दल को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। वह झामुमो की बजाय कांग्रेस पर ज्यादा निशाना साध रहे हैं। गुवा गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि कांग्रेस ने ही झारखंड के सपूतों को गोलियों से भूना। वैसे अपमान का दर्द यदा-कदा उनकी बातों से जाहिर हो ही जाता है। दूसरी तरफ हेमंत सोरेन खुल कर भाजपा पर हमलावर हैं। बिना किसी सबूत के पांच महीने तक जेल में रखने से लेकर झारखंड की हकमारी तक का आरोप वह भाजपा पर मढ़ रहे हैं और खुद को बड़ा ‘विक्टिम’ साबित करने में जुटे हुए हैं। इस ‘विक्टिम पॉलिटिक्स’ से इतर नेताओं के बीच जुबानी जंग भी पूरे उफान पर है। झामुमो की तरफ से भाजपा और आजसू पर बयानों के तीर चल रहे हैं, जो भाजपा-आजसू के निशाने पर झामुमो के अलावा कांग्रेस भी है। इस जुबानी जंग में सबसे अफसोसजनक यह है कि इसमें दोनों ओर से भाषा की मर्यादा टूट जा रही है।
क्या कह रहे हैं हेमंत और चंपाई
हेमंत सोरेन और चंपाई सोरेन खुल कर विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं, लेकिन एक-दूसरे के खिलाफ सीधे तौर पर बयानबाजी से बच रहे हैं। दोनों में एक बात कॉमन दिख रही है और वह यह कि चंपाई कह रहे हैं कि आदिवासियों की बदहाली के लिए कांग्रेस जिम्मेवार है, तो हेमंत सोरेन भाजपा को महाजनी पार्टी बता कर आदिवासियों का शोषक बता रहे हैं। गुवा गोलीकांड के बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने सिंहभूम गये सीएम ने बस इतना कहा कि अपने बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इस लड़ाई को छोड़ कर अलग राह पर चले गये। वहीं चंपाई सोरेन ने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ही यहां गोली चलवायी थी। कांग्रेस कभी आदिवासियों के हित में नहीं रही है। हेमंत कह रहे हैं भाजपा वाले राज्य को लूट लेंगे। वहीं चंपाई कह रहे हैं कि झारखंड में आदिवासियों को कोई पार्टी बचा सकती है, तो वह सिर्फ भाजपा है। उनका कहना है कि बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से आदिवासी समाज सिमटता जा रहा है। हालांकि इस मसले पर झामुमो की दलील है कि घुसपैठ रोकना केंद्र सरकार का काम है।
जुबानी जंग से गरमाया माहौल
इन सियासी गहमा-गहमी के बीच अब बात जुबानी जंग की। नेताओं के बयानों में अब कड़वाहट साफ झलकने लगी है। एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप तो सामान्य बात है, लेकिन अब तो ‘पत्नी संग नाच रहे हैं’ से लेकर ‘गिद्ध’ और ‘राजनीतिक परजीवी’ से होते हुए चील कौवों तक पर मामला पहुंच गया है। पांच दिन पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर तंज कसते हुए कह दिया कि एक तरफ राज्य में युवाओं की मौत हो रही है और दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अपनी पत्नी के साथ नाच रहे हैं। बाबूलाल मरांडी जैसे गंभीर नेता की तरफ से आये इस बयान से लोगों को आश्चर्य तो हुआ, लेकिन अब, जबकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बगैर नाम लिये झारखंड भाजपा के चुनाव प्रभारी मंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा को ‘राजनीतिक गिद्ध’ कह दिया है, तो फिर किसी को अब भाषा की मर्यादा टूटने की चिंता शायद नहीं रह गयी है। यही नहीं, शिवराज सिंह चौहान भी पीछे नहीं रहे।
क्या कहा हेमंत सोरेन ने
हेमंत सोरेन ने कहा है कि जल्द ही राज्य में चुनाव की घंटी बजने वाली है। इसलिए अभी से झारखंड के आसमान में राजनीतिक गिद्ध मंडराने लगे हैं। कोई असम से आ रहा है तो कोई छत्तीसगढ़ से। अभी छोटे-छोटे गिद्ध आ रहे हैं। कुछ दिनों में बड़े गिद्ध भी आयेंगे। ये लोग सौ लोगों के बीच में सिर्फ पांच लोगों को झूठ का खाना परोसेंगे कि बाकी लोग खाना के लिए लड़ें। ये झूठे आश्वासन देंगे। लोगों को दिग्भ्रमित करेंगे, लेकिन आप सावधान रहिएगा। याद रखिएगा कि बीते चार वर्षों में इन लोगों ने मुझे कितना परेशान किया। मुझे जेल तक भेज दिया। अब इनकी कोशिश है कि मेरे पूरे परिवार को जेल में कैसे भेजा जाये।
क्या कहा शिवराज सिंह चौहान ने
मंगलवार को बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर जब पत्रकारों ने केंद्रीय कृषि मंत्री और झारखंड भाजपा के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह का ध्यान हेमंत सोरेन के उस पर दिलाया, जिसमें उन्होंने कहा था कि झारखंड में राजनीतिक गिद्ध मंडरा रहे हैं, कोई असम से आ रहा है तो कोई मध्यप्रदेश से, कुछ दिन में बड़ा गिद्ध भी आयेगा, इस पर शिवराज सिंह चौहान ने पलटवार करते हुए यहां तक कह दिया कि सत्ताधारी दल के लोग झारखंड को चील-कौवों की तरह नोच रहे हैं।
झामुमो का आजसू पर निशाना
इधर झामुमो और आजसू के बीच भी नया विवाद पैदा हुआ है। झामुमो ने आजसू पार्टी को ‘राजनीतिक परजीवी’ कह दिया। इस पर आजसू पार्टी बुरी तरह बिफर पड़ी है। झामुमो के महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि आजसू ने अकेले चुनाव लड़ा था, जिसमें वह दो सीटों पर सिमट गयी। उसकी बैसाखी ने तब उसे नकार दिया था। बाद में फिर सुलह हुई होगी। एक बार तो ऐसी भी परिस्थिति आयी थी कि अभी भाजपा को गौरवान्वित कर रहे मधु कोड़ा की सरकार में इसके एक विधायक मंत्री बने और दूसरे विपक्ष में थे। इसका मतलब यह है कि इनको सत्ता कहीं से छोड़ना नहीं है। आजसू एक संगठित राजनीतिक मोलभाव करने वाला समूह है। इसका जीवन दूसरे के साथ चिपक कर चलता है।
आजसू ने किया पलटवार
आजसू प्रमुख सुदेश महतो को ‘परजीवी’ बताने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने कहा है कि सबसे बड़ा परजीवी तो झामुमो है, जो पूरे झारखंड को चूस रहा है। बालू, कोयला, जमीन को लूट कर यह काम कर रहा है। जिसने कहा था कि उसकी लाश पर झारखंड बनेगा तथा जिस दल ने झारखंड आंदोलन को बेचने का काम किया, सत्ता के लिए उसके साथ मिल गया।
झामुमो को इतनी ताकत और हिम्मत हो गयी है, तो अकेले चुनाव लड़ कर दिखा दे। कौन परजीवी है, यह उसे पता चल जायेगा। सच यह है कि झारखंड नवनिर्माण संकल्प में युवाओं के जुटान को देखकर झामुमो के लोग बौखला गये हैं।
इन सियासी बयानों और चालों के बीच एक बात साफ है कि इसमें झारखंड कहीं नहीं है और सबसे बड़ी विडंबना भी यही है कि कोई झारखंड की बात नहीं कर रहा। सभी को अपनी चिंता है और इस राजनीतिक विमर्श को किसी नये मुकाम पर पहुंचाना अब केवल जनता के बूते की ही बात है।