26नक्सलियों के खिलाफ चल रहे निर्णायक अभियान का दिखने लगा है असर
झारखंड, छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों में अब सुरक्षा बल पड़ने लगे हैं भारी
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
आमतौर पर नक्सली, आतंकवादी और अंडरवर्ल्ड के मास्टरमाइंड अपने पूरे जमात के साथ भारतीय गणतंत्र के लिए चुनौती समझे जाते हैं। इसलिए सुरक्षा बलों ने 76वें गणतंत्र दिवस से महज कुछ दिन पहले नक्सलियों के खिलाफ जो निर्णायक कार्रवाई करते हुए अंतरराज्यीय आॅपरेशन चलाये हैं और 50 से ज्यादा नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया है, वह तिरंगे और संवैधानिक गणतांत्रिक व्यवस्था को सच्ची सलामी है। इसलिए देशवासियों की अपेक्षा है कि सुरक्षा बलों की यह कार्रवाई और अधिक तेज होनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करके ही हम उनके नापाक हौसले को तोड़ सकते हैं। अब यह साफ हो चला है कि देश से नक्सलवाद का सफाया अब नजदीक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च, 2026 तक नक्सलियों का पूरी तरह सफाया करने का जो एलान किया था, वह अब सफल होता दिखाई देने लगा है। झारखंड और छत्तीसगढ़ समेत दूसरे राज्यों से नक्सलियों के पांव उखड़ने लगे हैं। हाल के दिनों में सुरक्षा बल नक्सलियों पर भारी पड़ते दिखे हैं। कई मुठभेड़ हुए हैं, लेकिन किसी में भी सुरक्षा बलों को नुकसान नहीं उठाना पड़ा है। इससे साबित होता है कि देश में नक्सलवाद अब अंतिम सांसें गिन रहा है। हाल के दिनों में नक्सलियों के खिलाफ चलाये गये अभियान के असर और सुरक्षा बलों को मिली सफलता का क्या है प्रभाव, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड, छत्तीसगढ़ और देश के अन्य हिस्सों में बड़ी समस्या बन चुके नक्सलवाद के खिलाफ हाल के दिनों में सुरक्षा बलों को जो सफलता हासिल हुई है, वह इस बात का साफ संकेत है कि यह समस्या अब अंतिम सांसें गिन रही है। लाल आतंक के रूप में चर्चित नक्सलवाद पर नकेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति की बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। इसका श्रेय निश्चित तौर पर गृह मंत्री अमित शाह को जाता है, लेकिन इसमें राज्यों की भी कम भूमिका नहीं रही है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। नक्सलवाद पर नकेल कितना कारगर रहा है, इसका ही असर है कि देश के अब सिर्फ 38 जिले ही नक्सल प्रभावित माने जा रहे हैं, जबकि पहले ऐसे जिलों की संख्या 120 से अधिक थी। नक्सलवाद से जुड़े सिमटते आंकड़े ही बता रहे हैं कि केंद्र सरकार की नक्सलविरोधी रणनीति की दिशा सही है।
हाल के दिनों में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में भारी संख्या में नक्सली या तो मारे गये हैं या फिर गिरफ्तार किये गये हैं। इसके साथ ही कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण करके मुख्य धारा की जिंदगी को अपनाया है। मारे गये नक्सलियों में शीर्ष नक्सली नेता चलपति और कई अन्य कमांडर शामिल हैं। छत्तीसगढ़ में तो सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के एक पूरे दस्ते का ही सफाया कर दिया है। अब बचे-खुचे नक्सली इधर-उधर भागे फिर रहे हैं।
नक्सली आतंक पर कामयाबी के पीछे रही तीन-स्तरीय रणनीति, जिसके तहत सबसे पहले नक्सलियों पर आत्मसमर्पण का दबाव बनाया गया। अगर इसके बावजूद नक्सली नहीं मानते, तो उनकी पहले गिरफ्तारी के लिए रणनीति बनायी गयी। इसके बावजूद अगर नक्सली नहीं माने, तो उनके खिलाफ निर्णायक मुठभेड़ की तैयारी की गयी। इसी का असर रहा कि पिछले छह महीने में अकेले छत्तीसगढ़ राज्य में ही एक हजार से ज्यादा नक्सलियों ने या तो आत्मसमर्पण किया या फिर उनकी गिरफ्तारी की गयी है, जबकि करीब 350 नक्सली मारे गये। झारखंड में भी दो दर्जन के करीब नक्सली मारे गये। झारखंड में इसी तरह एक सैक मेंबर, दो जोनल कमांडर, छह सब जोनल कमांडर और छह एरिया कमांडर गिरफ्तार किये गये।
नक्सलवाद की कमर सबसे ज्यादा उस झारखंड और छत्तीसगढ़ में टूटती नजर आ रही है, जहां नक्सलियों ने लगभग पूरे राज्य में अपने पैर जमा लिये थे। वर्ष 2000 में जब झारखंड और छत्तीसगढ़ बना था, तब इन दोनों राज्यों के तीन चौथाई इलाके में नक्सलियों की तूती बोलती थी। आज वह प्रभाव लगभग खत्म हो गया है।
नक्सलवाद के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण नक्सल प्रभावित इलाकों में बुनियादी ढांचे की कमी को माना जाता रहा है। नक्सलवाद का समूल नाश करने के लिए मौजूदा केंद्र सरकार ने सबसे पहले इसी समस्या को खत्म करने पर जोर दिया। इसके तहत केंद्र सरकार ने विकास और बुनियादी ढांचे पर विशेष ध्यान केंद्रित किया। तमाम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के हजारों गांवों को सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से जोड़ा गया। इन गांवों में बुनियादी सहूलियतों को बहाल किया गया। इसकी वजह से इन इलाकों के स्थानीय निवासियों की जिंदगी की कठिनाइयां कम हुईं। इसकी वजह से उन्होंने विकास की धारा को अपनी आंख से देखा और भारत के बारे में उनकी धारणा बदली। इस धारणा को बदलने के बाद सुरक्षा बलों के लिए नक्सलियों को रोकने के लक्ष्य में बड़ी सफलता मिली। नक्सलियों को लोक समर्थन कम हुआ। इसके साथ ही सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए आर्थिक सहायता और पुनर्वास योजनाओं की शुरूआत की। इसके तहत 40 हजार आवास बनाने का फैसला लिया गया। साथ ही नक्सल प्रभावित इलाकों में रोजगार को लेकर विशेष योजनाएं चलायी गयीं। इससे न केवल हिंसा में कमी आयी, बल्कि स्थानीय लोगों की जिंदगी की दुश्वारियां कम हुईं। इसकी वजह से उन लोगों का मन बदला, जो नक्सलवादी वैचारिक बहकावे में चल पड़े थे। बुनियादी ढांचा सुधारने, रोजगार की स्थितियां बेहतर बनाने और विकास की धारा को बहाने के बावजूद लंबे समय से नक्सल प्रभावित रहे लोगों के लिए मुख्यधारा में लौटना या मुख्यधारा के प्रति भरोसा बनाना बिना सुरक्षा सुनिश्चित किये संभव नहीं था। सरकार ने इस मोर्चे पर भी काम किया और सुरक्षा बलों की प्रभावी उपस्थिति हरसंभव स्तर पर की।
नक्सल प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य और शिक्षा सहूलियत को बढ़ावा देने के लिए युद्धस्तर पर कार्यक्रम चलाये गये। पहले इन इलाकों के लिए स्कूल और अस्पताल सपना थे, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। इसके साथ ही, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों की स्थापना भी की गयी है, जहां आदिवासी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा रही है। इससे भी नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों का मन बदला है। स्थानीय समुदायों का सहयोग इस अभियान की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। अमित शाह ने प्रभावित क्षेत्रों में जनता से सीधे संवाद स्थापित किया है। ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया गया है, जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ है। स्थानीय सुरक्षा बलों को मजबूत करते हुए उनकी मदद से नक्सलवाद को कमजोर किया गया है। इन प्रयासों ने न केवल जनता का विश्वास जीता है, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और स्थिरता लाने में भी मदद की है।
इस बीच नक्सलियों पर गहन निगाह रखने के लिए जहां खुफिया तंत्र को मजबूत बनाया गया, वहीं उनकी निगहबानी के लिए तकनीक का भी खूब सहारा लिया जा रहा है। ड्रोन जैसी तमाम तकनीकों के जरिये जहां माओवादियों की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है, वहीं सटीक सूचनाओं के चलते उनके खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने में भी आसानी हुई है। इसके साथ ही नक्सलियों के लिए की जा रही परोक्ष और अप्रत्यक्ष फंडिंग पर नकेल कसी गयी है। हालांकि सरकार के इस कदम को लेकर राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना झेलनी पड़ी है। लेकिन केंद्र सरकार ने अपना रुख नहीं बदला। इससे नक्सलियों की आर्थिक रीढ़ कमजोर हुई है।