महिला, मोदी और मंदिर के मुद्दे पर खुलेगा भाजपा की जीत का द्वार
-महिलाओं पर केंद्रित इस ‘मंत्र’ से ही निकलता है जीत का रास्ता
-बिहार से पहले के चुनावों में भी महिलाओं ने ही पलटी है पूरी बाजी
महिलाएं जिस पार्टी के पक्ष में एकजुट हो जायें, चुनाव में उसकी जीत को भला कौन रोक सकता है। यह चुनावी विजय की कामना एक ऐसा ‘मंत्र’ है, जिसका जाप देश भर में चल रहा है। पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें, तो भाजपा ने सबसे पहले महिलाओं पर केंद्रित ऐसी योजनाएं लागू कीं, जिससे उसे चुनावों में अपार सफलता मिली। इसके बाद अन्य दलों ने भी इसी ‘मंत्र’ का अनुसरण करते हुए चुनावों में जीत हासिल की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से बिहार में शुक्रवार 26 सितंबर को 75 लाख महिलाओं को प्रदेश सरकार की एक योजना के तहत 10-10 हजार रुपये की वित्तीय सहायता का हस्तांतरण किया गया। यह भाजपा सहित अन्य दलों की ओर से विभिन्न राज्यों में अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त हासिल करने के लिए अपनायी गयी एक सफल रणनीति का हिस्सा है। बिहार में महिलाओं को आकर्षित करने के लिए एनडीए जो तरीका इस्तेमल कर रहा है, वह पहले कई अन्य राज्यों में भी इस्तेमाल किया गया है और इसने चुनावों में सफलता भी दिलायी है। कर्नाटक में महिलाओं को मासिक वित्तीय सहायता का भुगतान कांग्रेस की उन पांच गारंटी में शामिल था, जिनकी बदौलत पार्टी को 2023 में भाजपा को राज्य में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने और अपनी सरकार बनाने में मदद मिली। झारखंड में इसी तरह की योजना ने 2024 में झारखंड मुक्ति मोर्चा को राज्य में अपनी सत्ता बरकरार रखने में अहम भूमिका निभायी। हालांकि अन्य दलों के मुकाबले कल्याणकारी योजनाओं से राजनीतिक फायदा लेने में भाजपा अधिक माहिर साबित हुई है। पार्टी के सटीक लक्ष्य निर्धारण, प्रभावी संचार तथा मजबूत संगठन के कारण यह सफल होती है। बिहार की मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना कुछ अन्य राज्यों में लागू नकद हस्तांतरण योजनाओं से अलग है, क्योंकि इसका उद्देश्य महिलाओं के बीच रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना है, लेकिन गरीब महिलाओं के प्रत्यक्ष वित्तीय सशक्तिकरण के लक्ष्य के चलते इसका सार समान है। महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजना को सभी राजनीतिक दलों ने अपनाया है, जो चुनाव मैदान में इसके प्रभाव को दर्शाता है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसी योजनाओं के अधिक प्रचलित होने के बाद संपन्न विधानसभा चुनावों के नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की चुनावी सफलता में महिलाओं को वित्तीय मदद की पेशकश की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बिहार में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले इस योजना की शुरूआत को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। क्या है चुनावी जीत में महिलाओं की भूमिका और बिहार में क्या हैं संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।
बिहार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की अहमियत हर राजनीतिक दल को समझ आ रही है। एनडीए हो या इंडिया गठबंधन, दोनों महिलाओं को रिझाने की कोशिश में जुटे हैं। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में महिला वोटर जिसे ज्यादा वोट करती हैं, सरकार उसी की बनती है। यही कारण है कि राजनीतिक मंचों पर जगह बनाने के लिए जद्दोजहद करने वाली महिलाएं बिहार में राजनीतिक मंचों के केंद्र में हैं। बिहार में विधानसभा चुनाव दरवाजे पर है और राजनीतिक दलों में महिलाओं को लेकर संवेदनशीलता बढ़ गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 सितंबर को बिहार की 75 लाख महिलाओं को 10-10 हजार रुपये दिये, जो नीतीश कुमार सरकार की एक नयी योजना का हिस्सा है। पिछले एक साल में बिहार में महिलाओं के लिए चार योजनाएं शुरू की जा चुकी हैं, जिनका जबरदस्त राजनीतिक असर पड़ने की संभावना दिखाई दे रही है।
अमित शाह का ‘ट्रिपल एम’ फार्मूला
बिहार चुनाव में महिला वोटरों के महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने बिहार प्रवास के दौरान पार्टी नेताओं को जो मंत्र दिया है, उसमें ‘ट्रिपल एम’ का फार्मूला सबसे अहम है। पटना में हुई बैठक में उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि आगामी चुनाव में भाजपा और एनडीए का लक्ष्य 225 सीटें जीतना है। इसके लिए कार्यकर्ताओं को जनता से गहरा जुड़ाव बनाने और हर महिला तक पहुंचने की जिम्मेदारी निभाने को कहा गया। शाह ने पार्टी नेताओं को संबोधित करते हुए ‘ट्रिपल एम’, यानी महिला, मोदी और मंदिर का मंत्र दिया। उन्होंने कहा, महिला परिवार की धुरी होती हैं, इसलिए प्रत्येक कार्यकर्ता को हर महिला तक पहुंचना होगा और एनडीए सरकार की योजनाओं की जानकारी देनी होगी। शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि जाति, धर्म और विचारधारा से ऊपर उठकर केवल जनता से संवाद किया जाये और उन्हें विश्वास दिलाया जाए कि एनडीए ही विकास और स्थिरता की गारंटी है। अमित शाह ने नेताओं को निर्देश दिया कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 225 बार जनसंपर्क अभियान चलाया जाये। उनका कहना था कि जीत केवल संगठन की मजबूती और जनता से प्रत्यक्ष संवाद से संभव है।
बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं महिलाएं
बिहार में महिलाएं पहले तो अपने पति को ही संपत्ति समझती थीं, लेकिन आज पति अपनी पत्नी को लखपति समझते हैं। पहले घर के पुरुष बाहर काम करते थे, अब उन्हें भी महिलाओं ने वापस बुला लिया है। अब दोनों मिल कर काम करते हैं। इससे साबित होता है कि बिहार की महिलाएं अब राजनीति के केंद्र में हैं। ऐसे में सवाल है कि आखिर क्यों हर दल महिलाओं को अपने पाले में लाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहा है।
क्यों महत्वपूर्ण हैं महिला मतदाता
बिहार में महिला मतदाता पुरुषों के मुकाबले ज्यादा वोट करती हैं। 2010 के चुनाव में 51.12% पुरुषों ने वोट किया था, तो 54.49 % महिलाएं वोट के लिए बाहर आयी थीं। 2015 के चुनाव में 53.32% पुरुष और 60.48% महिलाओं ने वोट किया था। पिछले विधानसभा चुनाव में 54.45 % पुरुषों के मुकाबले 59.69 % महिलाएं वोट के लिए बाहर निकली थीं, यानी पिछले तीन चुनावों में हर बार महिलाओं ने ज्यादा वोट किया है। आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि महिला मतदाता क्यों महत्वपूर्ण हैं।
नीतीश ने महिला मतदाताओं को कैसे साधा
2005 में सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पंचायती राज में 50% आरक्षण दिया। स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल दी। बाद में 10वीं और 12वीं, ग्रेजुएशन पास करने पर प्रोत्साहन राशि का भी एलान किया। इन फैसलों ने महिलाओं को उनसे जोड़ा। शराबबंदी का फैसला भी महिलाओं की मांग पर किया, जबकि इससे राज्य को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। नीतीश कुमार के इन फैसलों के कारण महिला मतदाताओं ने उन्हें सबसे ज्यादा वोट किया। इसे पिछले चुनाव के परिणामों से भी समझा जा सकता है। पहले फेज में पुरुषों (56.8%) ने महिलाओं (54.4%) के मुकाबले 2.4% अधिक वोटिंग की। इस फेज में महागठबंधन ने 71 में से 47 सीटें जीत लीं। हालांकि दूसरे चरण में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले करीब छह फीसदी अधिक वोट डाले। तब 94 में से महागठबंधन 42 सीटें ही जीत पाया और एनडीए को ज्यादा सीटें मिली। तीसरे चरण में दोनों का अंतर 11% हो गया और महागठबंधन को बुरी हार मिली। तीसरे चरण की 78 सीटों में से एनडीए को 52 सीटें मिली यानी करीब दो तिहाई। आंकड़े बताते हैं कि महिला मतदाताओं ने जब-जब अधिक वोट किया है, एनडीए को जीत मिली है और कम वोट तो हार। इसलिए इस वर्ग को अपने साथ बनाये रखने के लिए इस बार सरकार ने 10 हजार रुपये भेजने समेत कई अन्य एलान किये हैं।
नीतीश का वोट बैंक, महागठबंधन की नजर
महागठबंधन के दल जानते हैं कि महिला मतदाताओं को अपने पाले में लाये बगैर वे सत्ता में नहीं आ सकते हैं। इसलिए उन्होंने महिलाओं के खाते में ढाई हजार रुपये महीना देने का एलान किया है। इस तरह की योजनाएं महाराष्ट्र, झारखंड, मध्यप्रदेश तक में गेम चेंजर रही हैं। प्रियंका गांधी ने भूमिहीन परिवारों को तीन से पांच डिसमिल जमीन देने का एलान किया है। इस जमीन का मालिकाना हक महिलाओं के पास होगा। पार्टी इसे 10 हजार रुपये की काट मान रही है। प्रियंका गांधी ने बिहार में अपनी सभा में कहा, क्या वे हर महीने 10 हजार देंगे? चुनाव खत्म होने दीजिये, यह भी बंद हो जायेगा। आप समझदारी से हर पार्टी को पहचानो। हम हर महीने ढाई हजार देंगे। पार्टी को लगता है कि महिलाओं के लिए घोषणाएं महिला नेता करे, तो इससे महिलाएं ज्यादा जुड़ाव महसूस करेंगी। इसलिए इसका एलान प्रियंका गांधी से कराया गया।
किधर जायेंगी बिहार की महिला मतदाता
बिहार की महिलाओं का कहना है कि एक बार 10 हजार रुपये मिलने से ज्यादा फायदा महीने-महीने ढाई हजार मिलने में है। कुछ महिलाएं इसलिए 10 हजार के मुकाबले 30 हजार सालाना को अधिक महत्व दे रही हैं। कांग्रेस भले ही सिर्फ एक बार 10 हजार रुपये बनाम 30 हजार सालाना का नैरेटिव बना रही हो, लेकिन महिलाओं के एक वर्ग को लंबे समय से नीतीश कुमार की योजनाओं का लाभ मिलता रहा है। इसलिए देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार के इस वोट बैंक में महागठबंधन कितना सेंध लगा पाता है।