पत्थलगड़ी। पत्थलगड़ी का मास्टरमाइंड जॉन जोनास तिड़ू गिरफ्तार हो चुका है। राज्य में पत्थलगड़ी की घटना में शामिल प्रमुख षडयंत्रकारियों की झारखंड पुलिस ने तत्परता से गिरफ्तारी की है। पत्थलगड़ी की घटना का मास्टरमाइंड जॉन जोनास तिड़ू और उसका साथी बलराम समद दोनों गिरफ्तार हो चुके हैं। दोनों ही झारखंड छोड़ कर नागपुर जाने की फिराक में थे। इन दोनों ने झारखंड पुलिस को पूछताछ में बताया है कि वे नागपुर में एक वकील से मिलने जा रहे थे। उस वकील ने इन्हें कहा था कि वह इनको किसी भी अपराध के मामले से बचा लेगा। अब प्रश्न उठता है कि वह वकील था कौन? आखिर कौन है ऐसा वकील, जो इन अपराधियों को कानूनी संरक्षण देने की बात करता है, ताकि ये अपराधी बेहिचक अपराध करते रहें?
आइएपीएल दे रहा माओवाद को संरक्षण
निश्चित ही जॉन जोनास तिड़ू और बलराम समद इंडियन एसोसिएशन आॅफ पीपुल्स लायर्स (आइएपीएल) के अधिवक्ताओं से ही मिलने जा रहे थे। यह नागपुर में वकीलों का ऐसा संगठन है, जो सभी माओवादियों का केस फ्री में लड़ता है और उन्हें कानून से बचाने का पूरा प्रयास करता है। इस संगठन ने वकीलों का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा किया है, जो माओवाद को संरक्षण देने के काम में लगा हुआ है। अपराधियों को कानून की आइम्युनिटी मिल जाने से अपराधी बेखौफ हो जाता है, जिसका दंश स्थानीय जनता को झेलना पड़ता है। इनके बेखौफ हो जाने का प्रभाव झारखंड में हुए घटनाक्रम में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर भी हुआ।
नागरिकों के अधिकारों के हनन का लाइसेंस दे देते हैं ये वकील
चाहे कोचांग में डायन प्रथा के विरुद्ध नाटक का मंचन कर रही पांच लड़कियों के बलात्कर का मामला हो, घाघरा में खूंटी सांसद कड़िया मुंडा के घर पर हमला करके अंगरक्षकों के अपहरण और हथियार छीनने का या फिर झारखंड-बिहार बंद के दौरान खूंटी तमाड़ रोड पर आड़ा घाटी में लोहे की पाइप से लदे ट्रक में चालक जोगा सिंह को जिंदा जला देने का हो। उग्रवादियों के इन वकीलों के सहारे बेखौफ हो जाने के कारण वे सामान्य जनता के जीवन जीने के अधिकार का अतिक्रमण करने लग जाते हैं। इन वकीलों के सहारे के कारण उग्रवादी आम नागरिकों को संविधान प्रदत्त सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार खतरे में डाल देते हैं।
गाडलिंग के वकीलों के नेटवर्क से जुड़ा झारखंडी माओवाद के तार
ज्ञात हो कि 6 जून 2018 को पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया माओवादी अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग संचालित करता है इंडियन एसोसिएशन आॅफ पीपुल्स लायर्स (आइएपीएल) नाम का यह संगठन। यह संगठन देश के सभी शीर्ष माओवादियों के केस लड़ता है। यद्यपि सुरेंद्र गाडलिंग अभी जेल में है, तब भी इसका संगठन सक्रिय होने का संकेत है जॉन जोनास तिड़ू का यह एकरारनामा। सुरेंद्र गाडलिंग के वकीलों के नेटवर्क से झारखंड के उग्रवादी भी जुड़े हुए हैं, यह प्रमाणित हो रहा है झारखंड के अपराधियों के बयान से।
पांव पसार रहा है शहरी माओवाद
ध्यान रहे कि माओवादियों का तत्कालीन एशिया हेड दिल्ली के रामलाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी का प्रोफेसर रहा जीएन साइबाबा का केस भी सुरेंद्र गाडलिंग ही लड़ता रहा है। भीमा कोरेगांव की एलगार परिषद नाम के हिंसक समाजतोड़क सभा के आयोजन का मास्टर माइंड भी यही सुरेंद्र गाडलिंग ही था। एलगार परिषद का प्रमुख आयोजक सुधीर धावले का केस भी सुरेंद्र गाडलिंग ही लड़ता था। सुधीर धावले भी 6 जून को गिरफ्तार हो चुका है। नागपुर से गिरफ्तार अंग्रेजी के प्रोफेसर सोमा सेन के पति का केस भी सुरेंद्र गाडलिंग ही लड़ता था।
बुद्धिजीवी तबके के लोग जुड़े हैं इन संगठनों से
आइएपीएल के जैसा ही एक और संगठन है सीआरपीपी, कमेटी फॉर द रिलीफ आॅफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स। यह संगठन चलाता है संसद पर हमले का आरोपी रहा दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रोफेसर गिलानी। इसी संगठन का कर्ताधर्ता था दिल्ली के मुनिरका से गिरफ्तार जेएनयू के प्रतिबंधित माओवादी छात्र संगठन का पूर्व कर्ता-धर्ता और गिरफ्तारी के समय माओवादियों का तत्कालीन एशिया हेड रोना विल्सन। रोना विल्सन के प्रोफेसर गिलानी से बड़े गहरे संबंध रहे हैं।
माओवादियों को पोषण देते हैं अरबन माओइस्ट
उपरोक्त वर्णनों से एक बात स्पष्ट है कि अर्बन माओवाद के टॉप ओपेरेटिव्स से जॉन जोनास तिड़ू समेत पत्थलगड़ी की घटना में लिप्त सभी लोगों के गहरे संबंध हैं। यह अर्बन माओइस्ट फ्रंट जंगलों-गांवों में कार्यरत इन माओवादियों का संरक्षण पोषण करता रहता है। इन शहरी माओवादियों द्वारा दिये हुए निर्भयता के कारण ही ये उग्रवादी क्रूरता की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं। अर्बन माओइस्ट फ्रंट देश के लगभग राज्यों में सक्रिय है। वकालतखानों से लेकर विश्वविद्यालय और महाविद्यालय तक इनके प्रमुख अड्डे हैं। इनमें कार्यरत लोगों के साथ प्रत्येक राज्य में पत्रकारों का भी एक बड़ा गिरोह जुड़ा हुआ है। इन शहरी माओवादियों की फौज में अनेक मानवाधिकार संगठन का संचालन करनेवाले लोग भी शामिल हैं। कई एनजीओ गिरोह भी अरबन माओइस्ट फ्रंट का हिस्सा होते हैं।
माओवाद और पीएलएफआइ का गठजोड़ खतरनाक
जॉन जोनास तिड़ू की गिरफ्तारी कुछ गंभीर संकेत भी देती हुई प्रतीत होती है। इसे बहुत गहराई से समझ लेने की आवश्यकता है। जॉन जोनास नागपुर के गिरोह से संबंध रखता था। इसका मतलब यह भाकपा माओवादी धड़े का आॅपरेटिव है। किंतु बलराम समद का संबंध पीएलएफआइ से बताया गया है। और पीएलएफआइ का दस्ता कमांडर समद माओवादियों के इशारे पर काम कर रहा है। इसका अर्थ है कि माओवाद के सफाये के लिए बनाये गये ये सॉफ्ट टेरर फ्रंट अब पुन: माओवादी नेटवर्क से मिल चुके हैं। ये बहुत ही खतरनाक संकेत है। इन संगठनों के माध्यम से राज्य में कोई बड़ा अहित हो, इससे पूर्व ही इनके नेटवर्क को ध्वस्त कर देने की आवश्यकता है।
देशद्रोहियों के खिलाफ कड़ा कदम जरूरी
शहरों में सक्रिय इनके शहरी माओवादी अपने आपको हरिजनों-आदिवासियों के लिए काम करनेवाले गरीबों के शुभचिंतक बताकर चंदा इकट्ठा करते हैं और आये दिन जंगल और गांवों में इन्हीं आदिवासियों तथा हरिजनों का जीवन संकट में डालते हैं। मीम-भीम का नारा उछाल कर मतिभ्रमित करने के बाद ग्रामीण एवं वन जीवन को लकवाग्रस्त बनाने का इनका कुटिल प्रयत्न देश के लिए बहुत हानिकारक है। नागरिक जीवन के लिए कष्टकारक है। देश की संप्रभुता को चुनौती है। शासन प्रशासन के लिए कठिन चुनौती है। विकास के मार्ग में अवरोधक हैं ये देशद्रोही। इनके मजबूत होने के पहले ही इनके खिलाफ कठोर कानूनी कदम उठाना ही सबसे उचित और सूझबूझ भरा कदम होगा। (यह लेख, लेखक के निजी विचार हैं। अभिव्यक्ति की आजादी के तहत इसे प्रकाशित किया जा रहा है)