शाह आयोग की रिपोर्ट और सरकारीनोटिस भी ठंडे बस्ते में
रांची। अगले कुछ दिनों में टाटा स्टील के स्वामित्व में जानेवाली उषा मार्टिन कंपनी (स्टील डिवीजन, जमशेदपुर) ने कई बार नियमों का उल्लंघन किया है और न केवल सरकारी जांच एजेंसियों, बल्कि राज्य सरकार को भी चूना लगाया है। एक मोटे अनुमान के अनुसार कंपनी ने पिछले 10 साल में लगभग चार हजार करोड़ रुपये के लौह अयस्क का अवैध खनन किया है।
बताते चलें कि 10 नवंबर को उषा मार्टिन के शेयरधारकों की बैठक हो रही है, जिसमें कंपनी के अधिग्रहण के प्रस्ताव पर मुहर लगाने की औपचारिकता पूरी होगी। इसके बाद उषा मार्टिन के अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हो जायेगी। बताया जाता है कि टाटा स्टील कंपनी इस अधिग्रहण के बदले में लगभग साढ़े चार हजार करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करेगी।
उषा मार्टिन के प्रमोटरों की दलील चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह सच है कि कंपनी ने पिछले 10 साल में लगातार माइनिंग लीज का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया है। कंपनी ने चाईबासा स्थित विजय-2 खदान से अवैध खनन किया और दूसरी कंपनियों को आवंटित खदान का अतिक्रमण किया है। यह सिलसिला पिछले 10 साल से चल रहा है।
उषा मार्टिन के खिलाफ अतिक्रमण और अवैध खनन की शिकायत मिलने के बाद मामले की जांच के लिए जस्टिस एमबी शाह की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग की रिपोर्ट में शिकायतों को सही पाया गया और कई सिफारिशें की गयीं। इन सिफारिशों के आलोक में कंपनी को राज्य सरकार के खान विभाग से नोटिस भी भेजा गया, लेकिन कंपनी ने उसका जवाब तक नहीं दिया।
शाह आयोग ने अपनी जांच में कंपनी को आवंटित लीज में अनियमितता, लौह अयस्क का गैर-कानूनी निर्यात, पर्यावरणीय स्वीकृति और खनन योजना का उल्लंघन कर अधिक खनन करने, राज्य सरकार द्वारा लगाये गये 50 करोड़ के जुर्माने की रकम अदा नहीं करने, वन क्षेत्र का अतिक्रमण करने और जबरन खनन करने तथा नक्सलियों को आर्थिक मदद देकर आंतरिक सुरक्षा को कमजोर करने का दोषी पाया है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इतनी अनियमितताओं के बावजूद राज्य सरकार इस कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है और खनन बदस्तूर जारी है।
आयोग की रिपोर्ट बताती है कि उषा मार्टिन को विजय-2 खदान केवल इसलिए आवंटित की गयी, क्योंकि आदित्यपुर में उसका एक उद्योग है। कंपनी ने 17 जनवरी 1998 को लिखित दिया था कि इस खदान के उत्पाद का इस्तेमाल वह आदित्यपुर स्थित संयंत्र में करेगी। इस वादे के आधार पर खदान आवंटन के लिए राज्य सरकार ने केंद्र को प्रस्ताव भेजा था। इसके बाद सात नवंबर 2003 को कंपनी को खदान का आवंटन हो गया। आयोग ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि 22 मार्च 2005 को जारी आवंटन आदेश में इस वादे का कोई जिक्र नहीं था। यहां तक कि लीज पट्टे में भी इस वादे का जिक्र नहीं किया गया था।
आयोग की जांच रिपोर्ट के अनुसार उषा मार्टिन ने 2006-07 से 2009-10 की अवधि के बीच आठ लाख 32 हजार 397 टन लौह अयस्क का निर्यात किया। यह निर्यात कंपनी द्वारा खान आवंटन के लिए दिये गये आवेदन में उल्लेखित वादे का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन था। आयोग ने इस अवैध काम के लिए कंपनी पर कार्रवाई करने और निर्यात किये गये लौह अयस्क की कीमत की वसूली करने की सिफारिश की थी।
आयोग ने कहा है कि उषा मार्टिन को 29.46 हेक्टेयर जमीन पर खनन की अनुमति दी गयी थी। शेष 125 हेक्टेयर जमीन पर खनन के लिए वन विभाग से अनुमति नहीं ली गयी। इसके बाद दूसरी बार भी अवैधानिक तरीके से वन विभाग की अनुमति हासिल की गयी।
आयोग ने कहा था कि विजय-2 खदान वन्य प्राणी प्रबंधन के दृष्टिकोण से बहुत खराब जगह पर अवस्थित है। खदान के कारण वन्य प्राणियों का आवागमन बाधित हो गया है। आयोग ने उषा मार्टिन द्वारा नक्सलियों को आर्थिक मदद देने पर भी गंभीर सवाल उठाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मनोहरपुर थाना द्वारा 21 अगस्त 2011 को जब्त डायरी के अनुसार कंपनी ने नक्सलियों को 60 लाख रुपये प्रति वर्ष का भुगतान किया है। यह आंतरिक सुरक्षा और विधि-व्यवस्था संधारण के लिए बेहद संगीन है। इसके लिए कंपनी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उषा मार्टिन की खदान से उत्पादन .65 मिलियन टन से चार मिलियन टन तक पहुंच गया, जबकि आदित्यपुर स्थित कंपनी के संयंत्र की आवश्यकता एक मिलियन टन भी नहीं थी।
आयोग ने कहा है कि उषा मार्टिन द्वारा टीपी साव की खनन भूमि के अतिक्रमण की शिकायत का भी निबटारा नहीं किया गया, जबकि उपायुक्त को इस मामले की जांच का आदेश दिया गया था। चाईबासा के उपायुक्त ने मामले की जांच संयुक्त समिति से करायी और समिति ने पांच दिसंबर 2012 को आयोग को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। रिपोर्ट की प्रति राज्य सरकार को भी सौंपी गयी। उसमें उषा मार्टिन द्वारा अतिक्रमण किये जाने की बात सही पायी गयी थी, लेकिन यह अतिक्रमण कितने क्षेत्र में है, इसका जिक्र नहीं किया गया था।
आयोग ने राज्य सरकार से पूरे मामले की तत्काल जांच करने की सिफारिश की थी। बाद में वैज्ञानिक जांच से साबित हुआ कि उषा मार्टिन ने करीब 11 हेक्टेयर जमीन का अतिक्रमण किया है और वहां खनन हो रहा है। बाद में चाईबासा के जिला खनन अधिकारी ने खान विभाग के सचिव के आदेश पर अतिक्रमण मामले की जांच की। इसमें पाया गया कि उषा मार्टिन ने निकटवर्ती टीपी साव की खदान की 44 हेक्टेयर जमीन का अतिक्रमण किया है। तब राज्य सरकार ने उषा मार्टिन को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, लेकिन कंपनी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। बाद में यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।