रांची। वह दिन था, वर्ष 2008 की जुलाई महीने की नौ तारीख। राज्य के मंत्री रमेश सिंह मुंडा अपने चुनाव क्षेत्र तमाड़ के बुंडू इलाके में एक स्कूल में समारोह में शिरकत कर रहे थे। सब कुछ सामान्य ढंग से चल रहा था। तभी वहां कुछ हथियारबंद लोग आते हैं और अंधाधुंध फायरिंग करते हैं। इस एकतरफा फायरिंग में मंत्री तथा उनके तीन सुरक्षाकर्मियों की मौत हो जाती है। हत्या करनेवाले उनके सुरक्षाकर्मियों के हथियार भी लूट ले जाते हैं।
हत्याकांड का आरोप नक्सलियों पर लगता है, खास कर उस इलाके में सक्रिय रहे दुर्दांत माओवादी सरगना कुंदन पाहन पर। राज्य की पुलिस मामले की जांच करती है, सीआइडी जांच करती है, लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आता है। कुछ आरोपियों को पकड़ा भी जाता है, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण उन्हें रात को छोड़ दिया जाता है। तब दिवंगत नेता के पुत्र और युवा विधायक विकास सिंह मुंडा मामले की एनआइए जांच के लिए अभियान चलाते हैं। धरना देते हैं और केंद्रीय गृह मंत्री को ज्ञापन सौंपते हैं। काफी जद्दोजहद और संघर्ष के बाद घटना के आठ साल बाद रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड की जांच एनआइए को सौंप दी जाती है। इससे पहले रांची पुलिस कुछ दिनों तक पूरे मामले की जांच करती है। बाद में यह मामला सीआइडी को स्थानांतरित हो जाता है। सीआइडी की जांच में क्या निकला, किसी को मालूम नहीं। एनआइए ने 28 जून 2017 को मामला अपने हाथ में लिया और प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू करती है।
एनआइए द्वारा मामले की जांच शुरू होने से ठीक एक महीने पहले 27 मई को माओवादी सरगना कुंदन पाहन सरेंडर कर देता है। करीब एक दशक तक इलाके में आतंक का राज चलानेवाले कुंदन पाहन के गिरोह का एक भी हथियार पुलिस तक नहीं पहुंचता है, न ही उसके द्वारा एकत्र की गयी संपत्ति के बारे में ही किसी को जानकारी मिलती है। सरेंडर करने के बाद कुंदन पाहन को कुछ अधिकारियों के साथ अपने गांव जाता है, जहां वह ग्रामीणों में पैसे बांटता है, चुनाव लड़ने की बात कहता है। उसके साथ गये अधिकारी चुपचाप सब देखते हैं, फिर उसे लेकर रांची लौट आते हैं।
इसके एक महीने बाद एनआइए ने रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड की जांच शुरू की, तो पूरी कहानी में नया मोड़ आया। एनआइए ने अपनी जांच में पाया कि रमेश सिंह मुंडा की हत्या महज एक सामान्य नक्सली घटना नहीं थी। इसके पीछे राजनीतिक महत्वाकांक्षा, प्रशासनिक दबाव और उच्च स्तर की साजिश थी। एनआइए ने मामले के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में तमाड़ के पूर्व विधायक राजा पीटर की पहचान की। एनआइए की जांच के दौरान खुलासा हुआ कि पूर्व मंत्री राजा पीटर ही विधायक रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड का मास्टरमाइंड और षड्यंत्रकारी है।
राजा पीटर ने राजनीति में अपने कद को पाने के लिए आपराधिक साजिश रच कर माओवादियों के हाथों रमेश सिंह मुंडा को रास्ते से हटवाया। इसके लिए माओवादियों को पांच करोड़ रुपये की सुपारी दी। हथियार मुहैया कराये। इतना ही नहीं, माओवादियों की मदद से ही राजा पीटर ने रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड के बाद तमाड़ का उप चुनाव जीता और झारखंड सरकार में मंत्री बना।
राजा पीटर की गिरफ्तारी के बाद लगा कि अब एनआइए इस हत्याकांड से पर्दा उठा लेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। एनआइए की जांच चलती रही। राजा पीटर के अलावा कई अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया। एनआइए की चार्जशीट में कुल 15 लोगों के नाम हैं। इनमें राजा पीटर, कुंदन पाहन और विधायक का अंगरक्षक शेषनाथ खरवार शामिल है। एनआइए ने जांच के दौरान सात अक्टूबर 2017 को खरवार को पकड़ा और उससे गहन पूछताछ की।
इसके दो दिन बाद नौ अक्टूबर को जांच एजेंसी ने गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर को दबोचा। इसके बाद एनआइए की जांच की गाड़ी चल पड़ी। 15 जनवरी, 2018 को एनआइए ने प्रफुल्ल कुमार महतो उर्फ भक्ति महतो, जय गणेश उर्फ जय गणेश लोहरा और अमुश मुंडू उर्फ भीम को गिरफ्तार किया। इससे पहले राज्य पुलिस ने रमेश सिंह हत्याकांड की जांच के दौरान 14 सितंबर, 2009 को बलराम साहू उर्फ बोलो उर्फ डेविड उर्फ राजू उर्फ अली खान को पकड़ा था। इनके अलावा एनआइए ने राधे श्याम बड़ाइक, कृषि दांगिल उर्फ सुशील दांगिल उर्फ विनोद और गुरुआ मुंडा को भी पकड़ा। इतने लोगों की गिरफ्तारी के बाद एनआइए ने 12 जनवरी, 2019 को भजोहरी सिंह मुंडा को गिरफ्तार कर लिया।
वह कुंदन पाहन का सहयोगी था और खूंटी जिले के अड़की थाना क्षेत्र के गुरुबेड़ा का रहनेवाला है। उसकी गिरफ्तारी अड़की थाना क्षेत्र के ही जोजोहातू गांव से हुई। एनआइए की छानबीन में पता चला है कि तमाड़ के तत्कालीन विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के लिए पूर्व मंत्री राजा पीटर ने दो खेप में कुल पांच करोड़ रुपये की सुपारी कुंदन पाहन को दी थी। पहली खेप में तीन करोड़ रुपये आठ जुलाई 2008 को राजा पीटर ने कुंदन पाहन को दिया था। इस तीन करोड़ रुपये में से कुंदन पाहन ने भजोहरी सिंह मुंडा को सुरक्षित रखने के लिए पौने तीन करोड़ रुपये दिये थे, ताकि झारखंड में नक्सल गतिविधियों में उक्त राशि का उपयोग किया जा सके। राजा पीटर ने अपने कर्मचारी के माध्यम से शेष दो करोड़ रुपये 11 जुलाई 2008 को कुंदन पाहन के सहयोगी बलराम साहू को दिये थे।
इन तमाम गतिविधियों के बावजूद सवाल यह उठता है कि आखिर इस हत्याकांड को इतने दिनों तक दबा कर क्यों रखा गया। इसके जिम्मेदार अधिकारियों की गिरेबान तक एनआइए के हाथ क्यों नहीं पहुंचे हैं। तमाड़ इलाके में लोग अच्छी तरह जानते हैं कि रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड की जांच को दबा कर रखनेवाले लोग केवल अपनी चमड़ी बचा रहे हैं। एक न एक दिन एनआइए उन तक जरूर पहुंचेगी, लेकिन वह दिन अब तक क्यों नहीं आया है। क्या कोई ऐसी ताकत काम कर रही है, जो एनआइए का रास्ता रोक रही है। जिस दिन इन सवालों का जवाब मिल जायेगा, शायद रमेश सिंह हत्याकांड का खुलासा भी हो जायेगा।